राज किशोर मिश्र
नदीक धार
ऊपर सँ जखन खसबा क रहैक,
तँ कतेक उत्सा ह छलैक नदी मे ?
लगैइए नहि जे गति क लेल कि ओ
एतेक उता हुल भेल छल सदी मे।
पा थर सँ लड़ैत, मा टि केँ फो ड़ैत,
नी चाँ पड़ा एल बढ़ैति गेलि ,
दुनु का त सा क्षी गा छ-पा त,
गर्तक अनुरा ग मे आन्हर भेलि ।
जौ बनक जो श, सर्पि नी चा लि ,
लेने आँखि मे चि त्र समुद्रक,
चि त्त चेहा एल, मो न औना एल,
सुनैत बा त नहि को नो मि त्रक।
नी र नहि , उन्मा दक रस ओ,
जे पि बि -पि बि छलि मद-मा तल,
नैहर छो ड़ि प्री तम घर जा एति ,
मो न पि री ति बड़ जाँ तल।
का नन-पथ पर नेहक गी त,
थम्हि -थम्हि गा बि रहल बसा त,
सुर-मे-सुर अछि मि ला रहल,
बा टे-बा टे गा छक पा त।
अँटकल नहि , नहि भटकल कत्तहु,
लहा लो ट अछि भेलि तरङ्गि णी ,
पा नि क तृष्णा भेलैक नहि ति रपि त,
भेटलैक आगाँ कतेको संगि नी ।
नहूँ-नहूँ थि र हो इत गेलि ,
पहुँचलि जखन धरा तल पर,
यथा र्थ-रूप देखल जखन ,तँ
उत्तरदा यि त्व आएल नद पर।
हि मक्षेत्र सँ आएलि बस्ती दि स,
उदेम-फेक्टरी , गा म-नगर,
गरी बी , बेमा री , पि आस ,पी ड़ा ,
जि नगी क असल समस्या अहगर।
चि ड़ैअक लो ल केँ ठंढा जलक भेटलैक सुकून,
घड़ि आरक मुह मे फँसल हरि णक टा ङक खून।
नदी क मस्ति ष्क मे गेलै ई बा त,
पा ओल पशु-गोँ त , कचरा -करकट ,
मृतकक मा टि क अस्थि -कुंभ,
जजा ति लेल आ' पि आसल मर्कट।
ती र्थक शंखना द,फेक्टरी क सा यरन,
आ' सुखल गरी बक खेत,
पा नि ओकर मुदा चा ही सभ केँ ,
उपयो गक अपन-अपन छै नेत।
ओ अपन मो क्षक तैआरी मे,
कि एक त' समुद्र छलै आब थो ड़बे दूर,
उमंग,दा यि त्व ,नि र्वा ण-पद,
ओकर जि नगी क अरुदा ओत्तहि पूर।
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