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वैद्यनाथ झा (संपर्क-9582221968)

अद्भुत कथाशिल्पी शिवशंकर श्रीनिवास

हमरा साहित्यक आन-आन विधामेसँ कथा बड़ नीक लगैय। ताहूमे मैथिली कथा। मैथिली कथाक ’टेक्स्चरे’ भिन्न होइत छैक।

एक बेर हम एकटा कथा पढ़ैत छलहुँ-’पितामही’। लेखक छलाह शिवशंकर श्रीनिवास। पितामही आ पोतीक समानान्तर केन्द्रीय चरित्र मुदा पोतीक चरित्र बेसी भरिगर छलै। कथानक यैह जे पितामहीक बेटा-पुतहु महानगरीय तनाओक प्रभावे बेटीकेँ माता-पितामे प्रायः परस्पर विवाद होइक। दुनू ओकर दुष्प्रभावसँ बचबऽ लेल बेटीकेँ होस्टलमे देबाक योजना बनेलक। पोतीकेँ दादीसँ बेसी आपकता छलै, दुनूमे परस्पर संवाद रहै। होस्टल जयबा लेल तैयार नहि छल। ओ दादीसँ मदति माँगलक। दादी अपन वीटो पावर लगा ओकर होस्टल जयबाक कार्यक्रम रद्द करबा देलखिन। कथ्य, शैली, संवाद एतेक रोचक छलै जे कथा बहुत नीक लागल। बेर-बेर लेखकक प्रति आकर्षण बढैत गेल। हम हिनक लिखल दू कथा-संग्रह ’गामक लोक’ आ ’गुणकथा’ पढ़लहुँ। हम सम्मोहित भऽ गेलहुँ। कथा लेखक अपन कथामे एकटा समाज, ओकर संस्कृतिकेँ अपन शैली, शिल्प आ भाषिक-संरचनासँ ओकरा पठनीय आ पुनर्पठनीय बना दैत छैक। हम शिवशंकरजीक पाठक-वर्गक विस्तार हेतु हिन्दीमे अनुववाद शुरू कएल।

हमरा द्वारा हिन्दीमे अनूदित कथा ’अनुराग’ (जनपथः आरा) ’रूमाल’ (राजस्थान सा0 अका. पत्रिका ’मधुमती’ आ ’मनुक्ख चिड़ै नहि अछि’ (परिकथाः दिल्ली) मे प्रकाशित भेल। ’परिकथा’क सम्पादक शंकर जी हमरा कहलथि जे 'हम लेखकसँ बात करऽ चाहैत छी’ आ ओ फोनसँ गप कयलखिन। ओ शिवशंकरजीसँ प्रभावित छलाह। तकरा बाद हम हिनक 15 गोट कथाक चयन कऽ हिन्दीमे ’जमनिया धार’ शीर्षकसँ अनुवाद कऽ कथा संग्रह प्रकाशित कयल। एहि कथा संग्रहक भूमिका हिन्दीक सम्प्रति शीर्ष साहित्यकार डा. रामदरश मिश्र जी लिखलनि।

डा. रामदरश मिश्र आइ 101म बर्खक छथि, सयसँ बेसी पोथी लीखि चुकल छथि, सरस्वती सम्मान, व्यास सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत-भारती आदि पुरस्कारसँ सम्मानित छथि आ स्वयं लमसम 186 कथा लिखि चुकल छथि। एहन शीर्ष पुरूष कथा सभ पढ़ि कहलखिन-’मैथिलीमे भी अच्छी कहानियाँ लिखी जा रही हैं’। हुनक पत्नी ’पितामही’, ’रूमाल’, ’अनुराग’ पढ़लखिन। ओ ई कथा सभ दू बेर पढ़लखिन।

उपरोक्त प्रसंगसँ ई जनबाक उत्कण्ठा होइत छैक जे आखिर शिवशंकरजीक कथा सभ एतेक ’अपीलिंग’ किएक होइत छनि? कोन एहन तत्व छै जे पाठककेँ घीचैत छनि। हिनक नव कथासंग्रह ’माटि’ सेहो पढ़लहुँ। हमरा हिनक कथा सभ पढ़लासँ कोनो विशेष वैचारिक प्रतिबद्धता नहि बुझायल। हिनक कथा सभ मानवतावादी छनि। संवेदना, करूणा, मौलिक जीवनमूल्यसँ सिक्त छनि। ओ सभ कथा मनुक्खक कथा छनि आ मनुक्ख लेल लिखल गेल छैक। मनुक्ख-मनुक्खक बीचक कथा छैक। समाजक कथा छैक, लोकक कथा छैक। लोकक मानसिकताक कथा अछि, गामक कथा अछि, टोल, डीहक कथा अछि। मान-सम्मान, गरीबीक कथा अछि, सम्पन्नताक कथा अछि। स्त्रीक कथा अछि-पुरूषक कथा अछि। हिनक कथा सभमे गामक विषमता, दुर्दशा, जातिभेद, पलायन, प्रवासमे मैथिलक संस्कृति, सोच, परम्परा जोगेने रहबाक वर्णन सेहो रहैत छनि, समय संगे दौड़ैत मैथिल सेहो रहैत छनि।

हिनक कथा-रचनाक एतेक आयाम किएक? कोना? मधुबनीक एकटा गाम लोहनामे रहैत छथि। गामक एक-एकटा टोंपोग्राफी हिनका लग छनि जे कथा सभमे आयल छनि। व्यक्तित्वमे सहजता आ संवेदना छनि तैं भाषामे सेहो वएह तत्व परिलक्षित होइत छनि।

शिवशंकर श्रीनिवासजीक भाषामे शब्द-चयन कुशलतासँ कएल गेल छनि। शब्द, वाक्य किंवा पदबंधमे नीक प्रयोग कएल गेल छनि तँ फकड़ा/कहबी का अन्य गामक प्रचलित बोल सभक समावेश छनि। कथा विधामे ओ विदेशी कथाकार सामरसेट मौबसँ प्रभावित छथि। शिवशंकरजीक कथा सभक एकटा विशेषता आओरो छनि। ओ कथामे कोनो सामाजिक समस्या उठबैत छथि तँ ओकर समाधानो दैत छथि। स्त्री-पात्र-विशेषरूपे निम्न-मध्यम वर्गक, कठिन जीवन-संघर्ष आ ओहिसँ निस्तार सेहो हिनक कएकटा कथामे भेटैत अछि। सुगिया, सलमा, रनिआ एहने पात्र छनि।

’शुभ इच्छा’ कथामे ओ कृषिकर्मक प्रधानता पर जोर दैत छथि। जंगलक कटनाइ वा-खेती-बाड़ीक काजसँ विरत .... मनुष्यता विनाशसँ जोड़ैत छथि। पात्रक माध्यमे कहैत छथि- ’’हौ, हमरा सभक बाप-पित्ती फहथिन जे बाध माने खेती-पथारी निरन्तर पबैय तँ मनुक्खक भाग पर हँसैए। देखह, मनुक्ख जंगल काटिकऽ घर बनौलक, गाम बसौलक, फेर शहर नगर- गेल। ओहि नि मनुक्खकेँ श्राप भेटलै। जहिआ बाध माने खेत-पथार एकदम्मे छोड़ि देत तहिआ ई मनुक्ख जाति समाप्त भऽ जायत।’’

श्रीनिवासजी समाजक प्रति अपन लेखकीय दायित्वक प्रतिए सजग छथि। समाजक परम्परा आ बिध-बेवहार मे कोनो अव्यावहारिक, अतार्कि वा अमानवीय तत्व भेटैत छनि तँ स्पष्ट विरोध करैत छथि। हुनक दृष्टि नब छनि, तर्कपरक छनि। ओ समाजकेँ चेतबैत छथि। गाममे एकटा पारम्परिक दृष्टिकोण छैक जे कुमारि भोजनमे ब्राहम्णक बेटी आमंत्रित कयल जायत। शिवशंकरजीक एहि मामिलामे दृष्टि अलग छनि। ’पिरीत’ कथामे कुमारि खोअयबाक प्रसंगमे गुलाब दाइक भाउज पुछलखिन तँ हुनक सासु ब्राहम्ण कुमारिकेँ कमीक गप उठौलखिन। कनिया कहलकनि ’’रामखेतारी बालीकेँ देखै छियनि। तीनटा नातिन छनि। हिनके नातिन सभकेँ नीत देबनि।’ रामखेतारी बाली ओतहि रहै, वएह टोकि देलकनि-’’की कहलियै, हमर नातिन सभकेँ कुमारि खोआयब? हम कुमारि छी, से नहि बूझल अछि? हमरा अउरीक बच्चा कतौ कुमारि खाइ? कुमारि खाइ के हमहूँ सभ ब्राहम्णों बेटीकेँ तकै छियै।’

नै नै, कोनो कुमारि, सभ एके रंग होइ छै .....’ कनिया ओकरा बुझाबऽ लगथिन।’’

ई भेल क्रांतिकारी - सोच - परम्पराभंजक, जड़ताभंजक सोच। जन्मप्रधान नहि कर्मप्रधान समाजक सपना। हुनक कथा  सभक भाषिक-संरचनाक मादे ई कहल जा सकैय जे ओ लिखैत तॅ छथि गद्य मुदा भाषाक स्वरूप उत्तम छनि। गद्योमे ओ काव्यात्मक बिम्ब आ प्रतीक सेहो कएक ठाम कयने छथि। एहि तरहक प्रयोग पाठकक रूचि आओर बढ़बैत छैक। हुनक सम्पूर्ण कथा सभामे ’ठेहकऽ लागल,’ ’नेहाल भऽ जाइथि’ भदबरिया चन्ना भऽ मोन मेघ तर नुका रहलीह’, सौंसे जीवन हरियर-हरियर भऽ गेलनि’, कमलक प्रीतिक ई लाल फूल अहिना सदा फुलायल रहौ सन सन वाक्यसँ कथाक भाषिक सौन्दर्य आओरो करैत छैक।

गत 1973 सँ कथा-लेखन प्रारम्भ कयने शिवशंकर जी निरंतर कथा लेखन कऽ रहल छथि। मैथिली-कथा भंडार भरि रहल छथि। समाज सेहो हुनक योगदानकेँ सम्मानिक कऽ रहल छनि। किछु समय पूर्व रांचीक प्रतिष्ठित विश्वम्भर फाउन्डेशन इुनका पुरस्कृत कयलकनि।

डा0 शिवशंकर श्रीनिवासजीकेँ शुभकामना।

 

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