प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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डा. आभा झा

कवयित्रीक आँजुरसॅं खसैत विचारक बिन्दु

पूनम झा सुधा विगत किछु वर्षसॅं कविता लिखि रहल छथि।हुनक पहिल पोथी चारि वर्ष पूर्व प्रकाशित भेल छलनि।दिल्लिए धरि नहि, अपितु दरभंगा- मधुबनीमे सेहो यत्र- तत्र मंच-मचान पर हुनक उपस्थिति देखल जाइत अछि।कोनहु महिलाक लेखन स्वयंमे एकटा पैघ काज होइत छैक,कारण ओकरा लेल घरक आ सामाजिक दायित्व निमाहब प्रथम कर्त्तव्य होइत छैक।ओहि दायित्वक संग ओ अपन विश्रामक समय कतरि पढ़बा ,गुनबा आ लिखबाक समय निकालैत अछि। महिला लेखनक संग एकटा आर पैघ चुनौती रहिते छैक जे ओकर लेखनक निरपेक्ष नहि अपितु सापेक्ष समीक्षा होइत छैक-स्त्रीलेखनक विषय-वस्तु, ट्रीटमेंट आ प्रस्तुति सभ ठाम प्रत्यक्षतः तनहि,मुदा परोक्षत: जजमेंटल दृष्टि रहैत छैक।हमर कहबाक तात्पर्य ई नहि जे ई जजमेंटल दृष्टि पुरुषे टाक रहैत छनि,स्त्रियोक भसकैछ, कारण हमर सभक अपब्रिंगिगमे (पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा वा संस्कारमे) सभतरि बड़ मेंही ढंगसॅं तुलनात्मकता गूहल रहैत अछि।

अस्तु,एहि सभ विपरीत स्थितिक बादो आजुक समयमे बहुत रास महिला मजगूतीसॅं कलम पकड़लनि अछि,ई हर्षक विषय अछि। मात्र कलमे नहि पकड़लनि अछि, स्त्री जीवनक वास्तविकताक संग देश-विदेशमे घटि रहल घटनाक्रम पर गौरसॅं नजरि दैत ओहि सभकेॅं लेखनक वर्ण्य-विषय सेहो बनौलनि अछि।ओ एहिमे कतेक परिपक्वताक संग लिखि रहल छथि,कतेक नहि,ई फराक विषय अछि आ एहि पर विचार करबा लेल बहुत रास विद्वान् समीक्षक छथि । हॅं, एतबा धरि हम अवश्य कहय चाहब कि लेखनक गंभीरता वा अगंभीरता लैंगिक परिधिमे बन्हायल नहि अछि। जहिना बहुत रास लेखक नीक जकाॅं लेखकीय दायित्वक निर्वहण कए रहल छथि,तहिना लेखिकागण सेहो।आ जहिना बहुत रास लेखकक लेखन काॅंच छनि,ओ क्रमशः सिखबाक दिशामे बढ़ि रहल छथि तहिना लेखिकाक सेहो। हॅं,एहि क्रममे ई कहब सेहो आवश्यक जे जे केओ लेखक (स्त्री-पुरुष दुहू) महत्वाकांक्षा आ तात्कालिक प्रसिद्धिक बिहाड़िमे उधियाकअपन क्षमता नहि बिसरलथि,हुनक लेखनक स्तर धीरे-धीरे मॅंजा रहल छनि आ जनिका लेल अपन सामर्थ्यक आकलनो धरि दुरूह छनि ओ अपन बनाओल छोट सनक घेरामे गोल गोल घुमैत समय आ कागदक दुरुपयोग कए रहल छथि।

दिल्ली कार्यक्षेत्र अछि आ एम्हर पाॅंच-छौ बर्खसॅं मैथिली साहित्यिक कार्यक्रममे अयबा- जयबाक सुयोग भेटैत रहल अछि।ताहि क्रममे पूनम जीसॅं  भेंट- घाॅंट  होइत रहल अछि आ हुनक गीत सुनबाक अवसर सेहो भेटैत रहल अछि।सत्य पूछू तहम हुनका पारम्परिक गीत लेखिकाक रूपमे जनैत- बुझैत रहलियनि आ हुनक प्रस्तुतिक राग- भास सेहो एहि अवधारणाकेॅं पुष्ट करैत रहल  अछि। मुदा ओएह पूनम झा जखन अपन तेसर पोथीआंजुरमे अमृतधरि अबै छथि तबहुत रास एहन विषय उठबैत छथि जे एकटा जागरूक कविकेॅं उठयबाके चाही। हॅं अवश्य विषयोपस्थापनक संग ओकर समतुल्य अभिव्यक्तिक ऊपर काज करब सेहो जरूरी होइत छैक जाहिसॅं पाठकक तादात्म्य होइत चलै आ ओ अनायासे बाजि उठय-वाह!

आउ एकटा सामान्य पाठक जकाॅं हमहूॅं एहि पोथी पर नजरि दैत छी आ तत्पश्चात् जे जतबा बुझबामे अबै अछि, संक्षेपमे सोझाॅं रखैत छी-

पाठककेॅं आनन्दित करबाक संग एकटा कविक काज ओकरा प्रेरित करब सेहो होइत छैक।तएहि क्रममे हुनकअमृत संताननामक कविता देखल जा सकैछ -

सागरक तटपर बैसल भरत पुत्र कहू कियैक कनैत छी

कियैक नहि स्मरण अबैत अछि गीताक कृष्ण

कर्म-योग महामंत्र कियैक बिसरि जाइत छी अहाँ

हे सगर पुत्र भारतमे अहाँ आनि सकैत छी सुरसरि धार

कऽ सकैत छी नव सृष्टि तैयार

एहि कवितामे आत्मविश्वास बढ़ैबाक आ प्रेरित करबाक सामर्थ्य छै।

वर्तमान राजनीतिक कदाचारक बीच आशावादक संदेश दैत ई कविता मोन मोहैत  छै-

मुदा फेर बनाओत ओ मधुक संग्रहालय

आ ई अनवरत  चलैत  अयलैए आ चलैत रहत

युग युग धरि मनुक्ख अपन घर भरत

मधुमाछी फेर बनाओत सुंदर संग्रहालय

परिस्थितिक विषमतासॅं हारि नहि मानबाक चाही, अपन कर्त्तव्य करबाक चाही,समाज लेल आवश्यक मधु संग्रहमे व्यस्त रहबाक चाही, निराशाक अन्हारकेॅं अपन पुरुषार्थसॅं दूर करबा लेल कटिबद्ध होयबाक चाही।

यैह आशावाद हिनकजागल हमर गामकवितामे  सेहो देखाइत अछि -

जे बगुला लगौने अछि घात घोरबाक लेल जहर

तकरा भगाएब अपन शहर हम बनाएब चानन सन शहर पोखरिमे फुलाएत कमल विश्वासक

शीतल बहत बसात थिड़कत बसंतक पैर

कियैक तँ जागि गेल अछि हमर गाम।

पूनम जी दिल्लीमे रहैत छथि आ कानूनक कवचमे विकासक विकृत रूपक आम जनता पर पड़ैत दुष्प्रभावक साक्षी बनैत रहैत छथि।ओ अनधिकृत कालोनीमे रहनिहारक पीड़ा आ विवशता देखैत रहल छथि।ओएह व्यथा हिनक एहि कवितांशमे देखल जा सकैछ -

नव निर्माणक दुन्दुभी बजाक

 जखन लाल रंगक झंडी लगा देल जाइत छैक आम बाटपर तँ चौंकि जाइत छैक लोक नर-पिशाचक आगमनक

 लागय लगैत छैक आशंका

 जकर संकेत छैक दानवाकार बुलडोजर

 जे क्षणहिमे ध्वस्त कर दैत छैक गरीब-दुखियाक घर

अपन रोलरसँ कऽ दैत छैक समतल

एहि संग्रहक भूमिका लिखैत बहुचर्चित परिपक्व कवि मैथिल प्रशान्त एहि संग्रहमे भावनाक चरणोदकक निर्मल धार देखैत आ मैथिलीक निस्तुकी शब्दक प्रयोग देखैत पुलकित होइत छथि।वास्तवमे भाषाक मौलिकताक क्षरण आ बाहरी शब्दक अनावश्यक घुसपैठ एकटा चिन्ताजनक स्थिति छैक। गामघरक  माटि- पानिसॅं जुड़ल लोक भाषाई मौलिकताक रक्षा आ तकर बहुल व्यावहारिक प्रयोग सॅं एहि चिंताक समाधान करबा लेल प्रयत्नशील छथि,ई हर्षक गप।मुदा प्रवासक असरि तपड़िए जाइत छैक आ तेॅं चिमटा, मनुहार,तंग गली,बेमौत,रौशन आदि सन शब्द अहू संग्रहमे अहाॅंकेॅं भेटत।

एहि संग्रहमे बहुत रास कवितामे नशाखोरी, पर्यावरण प्रदूषण, दायित्वविहीन संतान,नौड़ी रूपमे उपेक्षित बचपन, टैलेंट हंटक उन्मादमे छिनाइत बचपन,परिस्थितिवश देह-व्यापार करैत बालिका आदि अनेक सामयिक विषय उठाओल गेल अछि जे कवयित्रीक जागृत सामाजिक चेतनाक प्रमाण अछि। अभिव्यक्तिमे कनेक आओर मेहनति केने संग्रह स्तरीय बनि सकैत छलै।दू चारि टा उदाहरण सोझाॅं रखैत छी-

मेल मिलापशीर्षक कवितामे विरोधाभासी वाक्य-

बस एतबे करू,दयाक पात्र बनू,दिवाक स्वप्न बनू’ ?

तहिनाअजेय योद्धाशीर्षक कवितामे तीन बरखक शहीदक बेटाक मुंहसॅं निकलल ई शब्द अव्यावहारिक लगैत छै-

हम हराए सकैत छी

चाहे जे कारण होअए वीर सैनिकक संग

हम प्रण लैत छी एहि आंखिक नोरक

तहिना भेंटघांट कवितामेअनाथालयमे पड़ल मायशब्दक चयन पर मेहनति करबाक खगता छैक। हमरा जनैत एतय वृद्धाश्रम शब्दक प्रयोग समुचित होयत।एतय दस बरखक बाद भेंट लेल आयल बेटा लेल ममत्व आ दूर ठाढ़ि पुतहु लेल नरभक्षी शेरनीक उपमा कनेक असहज करैत छैक। तहिना एक ठाम हमरापरखशब्दक अर्थ नहि लागल -

दाम्पत्य-सूत्रमे बन्हलापर जखन परख

लागि जाइत छैक दानवरूपी

अस्तु, एकटा पाठकक दृष्टि कतौ कतौ अटकै छै ई तकर किछु उदाहरण छल ।एहि संग्रहमे एकाओन टा कविता अछि,जाहिमे स्त्रीक अस्मिताक गपक संग सामाजिक सौहार्दक गप अछि,प्रेमक मधुर सरगमक संग वैचारिक विरोधक कोलाहल अछि,गाम- घरक नोस्टाल्जिया अछि तभौतिक विकासक  जड़िमे विद्यमान प्रकृतिक आहि सेहो। हम एहि संग्रहमे समाविष्ट विषय सभक प्रशंसा करैत छी आ कवयित्रीक कलमक मजगूतीक कामना सेहो ।व्यक्तिगत रूपसॅं जॅं पूछी त कवयित्रीक लेखनक विशिष्ट क्षेत्र प्रेम आ तद्विषयक गीत लेखन हमरा बेशी पसिन्न अछि।

एहि संग्रह लेल बहुत बहुत बधाई।

आभा झा

10.5.2025

 

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