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संतोष कुमार राय 'बटोही'
'लव यू टू'[धारावाहिक डायरी]


फरवरी, 2018

समदर्शी देल्ही पब्लिक स्कूल

मधेपुर सँ झंझारपुर आबि गेल छी। नवका इस्कूल छियैय। विद्यार्थी केँ दाखिला भऽ रहल छै। एस एन मिश्राजी डायरेक्टर भेलाह। दु सऐ विद्यार्थी भऽ गेल छन्हि तबो परयास मे मिश्राजी लागल छथि। जूही मैम, आभा मैम, अर्चना मैम आओर हम शिक्षक भेलहुँ अछि। हमरा टीचर-इन-चार्ज बनौल गेल अछि। ई आवासीय विद्यालय छियैय। तैं दुआरे अई विद्यालय मे 'फूल डे' आओर 'हाफ डे' होस्टल चलि रहल छै। पढ़ाई-लिखाई नीक चलि रहल छै तैं दुआरे विद्यार्थी केर दाखिला बढ़ि रहल छै। दाखिला शुल्क पैंसठ सऐ टाका राखल गेल छै। मधेपुर मे टीचर-इन-चार्ज रहल छलहुँ। तैं झंझारपुर मे सेहो टीचर-इन-चार्ज बनौल गेलहुँ। इस्कूल नीक सँ चलऽ लागल। दू सै विद्यार्थी पहिल बरख मे भऽ गेलै। बीस टा विद्यार्थी फूलडे हॉस्टल मे रहऽ लागल। आमदनी बढ़ि गेलै। हाफ डे मे सेहो विद्यार्थी रहैत छल। हॉस्टल मे खाना केर बेवस्था नीक छलै। झंझारपुर हाट सँ तरकारी आबैत छल। गुफ़रान, चंद्रकिशोर आओर बहुत राश विद्यार्थी पढ़वा मे नीक छल। विजय कुमार जी गार्ड छलाथि। काज करबा मे नीक छलाथि, परञ्च जाति-पाँति केर कट्टर समर्थक छलाथि। हमर मातहत रहैतो सोलकन्ह मानि कऽ हमर विरोध करऽ लगलाह। अंत मे हुनका इस्कूल सँ हटाबऽ पड़ल। पहिल बेर जाति-पाँति लऽकऽ किनको सँ मुठभेर भेल छल। ब्राह्मणवादी सोच सँ रगड़ा भेल। हम हुनका कहलियैन्ह जे कर्म प्रधान होएत छै। बाद मे निकाल लाक बादो हिनकर गुमान कम नहि भेलैन्ह।

झंझारपुर में 2018 सँ 2021 धरि रहलहुँ । एकटा अपन छवि बनल। जखन स्कूल मोहना वाला रोड मे चलि गेलै, तँ ओतऽ ब्राह्मण लॉबी केँ बीचि फँसि गेलहुँ। गप्प इ जेब किछु उफैंट विद्यार्थी सभ कक्षा मे पढ़ि सँ बेसी कूद-फाँद करैत छल। विषय हिन्दी आओर संस्कृत पढ़बै लेल भेटल छल। सस्कृत आओर हिन्दी मे केकरो रूचि नहि छेलन्हि। संस्कृत अनिवार्य नहि छेलै । हिन्दी मे ओ सभ बुझैत छल जे पास तँ भय्ये जायब। ताहि लऽकऽ ओ सभ क्लास मे हल्ला- हुच्च करैत छल। यानी डिस्टर्ब करैत छल। नवम आओर दशम क्लास मे ढीठ छौरा-छौरी सभ पढ़वाक लेल राजी नहि होयत छल। किछु टीचर विद्यार्थी केँ मार्फत डिस्टर्ब कराबैत छल जे कहुना हम स्कूल छोड़िकऽ भागि जाउ। ई समस्या हम डारेक्टर सर लग रखलियैन्ह, परञ्च हुनको रिस्पाउंस पॉजिटीव नहि देखि कऽ हम स्कूल छोड़वाक विचार केलहुँ । तनख्वाह तीन महीना सँ नहि देने छल। एक बेर तँ नहि तीन बेर मे टाका देलैथ। किछु हिसाब मे सेहो गड़बड़ी केलैथ। पिछलका टाका नहि देलैथ। संतोख कऽ लेलहुँ हम। प्राइवेट विद्यालय केर इएहा किरतानी होयत छै। विद्यार्थी कियाक क्लास मे डिस्टर्ब करैत छल उ मालूम भेल। बोर्ड परीक्षा मे हरेक विद्यार्थी सँ फॉर्म भरवाक समय पाँच हजार टाका परीक्षा मे सेंटर पर चोर नुकबा दरवाजा सँ कापी लिखवाक आओर बेसी नंबर लेवाक लेल जायत छलैक। ई गप्प विद्यार्थी केँ बुझल छलै, तैं ओ विद्यार्थी पढ़वा मे क्लास मे रूचि नहि लैत छल। हम तँ अवाक् छलहुँ ई गप्प बुझिकऽ । भारत मे कोन कोन इएह खेल होयत छै। सभ किछु मे खड्यंत्र. होयत छै।

हमरा स्कूल छोड़लाक बाद आओर तीन-चारिटा मास्टर साहब सेहो विद्यालय त्यागि देलथिहिन । विद्यालय चरमरा गेलै । डायरेक्टर सँ ओ प्रिंसिपल भ गेलाह । स्कूल किनको हाथे बेच लेलाह । स्कूल हुनका हाथ सँ बेहाथ भऽ गेलै । जेहेन करनी तेहेन भरनी भेलैन्ह । हम जखन स्कूल केँ चलाबैत छलहुँ , तँ हुनका मोट टाका अबैत छलैन्ह । आब हुनका स्कूल सँ हाथ धोअऽ पड़लैन्ह ।
 

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