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आशीष अनचिन्हार (संपर्क-8134849022)

या तऽ अपूर्ण शीर्षक या तऽ अपूर्ण पोथी

'मैथिली उपन्यासक आलोचना' ई पोथी छनि शिवशंकर श्रीनिवासजीक जे कि बर्ख 2021 मे प्रकाशित भेल अछि।

जेना कि नामसँ पता चलि रहल अछि जे ई मैथिलीमे उपन्यास विधाक आलोचनापर आधारित अछि आ एहि पोथीक भीतर जे लेख छै तकरा हम सभ विस्तृत रूपें देखी। एहि पोथीमे अशोक जीक लिखल भूमिका छनि आ तकरा बाद शिवशंकरजीक कुल 12 टा आलेख छनि। एहि 12 टा आलेखक शीर्षक ओहि आलेखक विवरण निम्नवत् अछि-

1. मैथिली उपन्यासक आलोचना
एहि आलेखमे लेखक आलोचना विधाक चर्चा करैत उपन्यास विधापर कतेक आलोचनाक पोथी आएल अछि तकर सूचना पाठककेँ दैत छथि। ई आलेख सूचनाक संदर्भमे उपयोगी अछि।
2. मैथिली उपन्यासक संरचना शिल्प
एहि आलेखमे लेखक संरचना. शिल्प आ शैली एहि तीनू शब्दकेँ मिझरा देने छथि आ एक शब्द 'संरचना शिल्प' बना देने छथि। हमरा ई उचित नहि लागल। हमरा जनैत कोनो विधाक संरचना अलग होइत छै आ ओकर शिल्प अलग। एकरा एना बूझू जे कथा केर संरचना अलग होइत छै आ कविता कि उपन्यास आ कि नाटकक संरचना अलग। शिल्प कहबाक तरीका भेलै एकै शिल्प मने कहबाक तरीकासँ कवितो लिखा सकैए आ नाटको। मुदा संरचना पूरा अलग हेतै विधाक। हमरा ई बात एहू कारण लागल जे शिवशंकर जी 1989 केर लगीचमे रमेश जीक लिखल कथित गजल संग्रह 'नागफेनी' केर भूमिका लिखने छथि आ ओहूमे विधा (गजल) केर संरचनापर अपन भ्रामक मान्यता लिखने छथि।
3. निर्माणक भूमिका: 'अभिमानिनी'
ई आलेख काञ्चीनाथ झा 'किरण' जी केर अप्रकाशित उपन्यास "अभिमानिनी" केर पांडुलिपिपर आधारित अछि आ संगहि हरिमोह झाक 'कन्यादान'क संगे ओकर तुलना सेहो कएल गेल छै। नव पाठक लेल ई आलेख निश्चित रूपें पठनीय अछि। आ एहि आलेखक ऐतिहासिक महत्व छै।
4. 'कन्यादान' समाजकें सतर्क करैत अछि
ई आलेख हरिमोहन झाक उपन्यास 'कन्यादान'पर अछि आ हरेक पाठक लेल उपयोगी अछि।
5. एहन उपन्यास सभ दिन प्रासंगिक रहत
ईहो लेख उपन्यास 'कन्यादान'पर अछि आ पाठक दूनू आलेख एक संग जोड़ि पढ़थि तँ बेसी उपयोगी रहतनि।
6. डा. शैलेन्द्रमोहन झाक उपन्यास 'प्रतिमा' 'मधुश्रावणी'
एहि आलेखक ऐतिहासिक महत्व छै कारण उपन्यास 'मधुश्रावणी' तऽ विश्वविद्यालयक कोर्समे छै तँ विद्यार्थी वा पाठक लेल सुलभ छै मुदा डा. शैलेन्द्रमोहन झाक अचर्चित उपन्यास 'प्रतिमा'पर लीखि शिवशंकरजी हमरा सन पाठकपर उपकारे केलखिन्ह अछि।
7. यात्रीक 'बलचनमा'
ई आलेख यात्री जीक उपन्यास 'बलचनमा'पर अछि आ हरेक पाठक लेल उपयोगी अछि। एहि आलेखमे बलचनमा उपन्यासक मैथिली पाठ आ हिंदी पाठपर चर्चा भेल अछि संगहि महन भारद्वाजजीक विचार सेहो राखल गेल अछि। मुदा शिवशंकर जी समेत सभ पाठककेँ सूचित करबनि जे बलचनमाक मैथिली पाठ केर प्रकाशक मिथिला सांस्कृतिक परिषद्, कलकत्ता केर कर्ता-धर्ता स्व. किशोरीकांत मिश्रजीक बालक दयाशंकर मिश्र केर एक लेख 'बलचनमा' प्रकाशनक प्रसंग श्री तारानंद वियोगी जीक अनर्गल प्रलापक संदर्भमे नामसँ मैथिली पुनर्जागरण प्रकाश नामक मैथिली अखबारक 31 जुलाइ 2023 मे प्रकाशित भेल। दयाशंकरजीक उक्त आलेखसँ मैथिलीक बलचनमाक प्रकाशनक संदर्भमे भेल सुविधा-असुविधाकेँ आजुक पाठक समक्ष तर्कसंगत रूपें राखल गेल अछि आ बहुत रास भ्रम केर खंडन भेल अछि।
8. नवतुरिए आबओ आगाँ
ई आलेख यात्री जीक उपन्यास 'नवतुरिया'पर अछि आ हरेक पाठक लेल उपयोगी अछि। मुदा हमरा एक बात खटकल अछि। बलचनमा बला आलेखमे शिवशंकरजी ओकर मैथिली आ हिंदी दूनू पाठ केर चर्चा करैत छथि मुदा एहि आलेखमे नवतुरिया केर हिंदी पाठ (जे कि 'नयी पौध' नामसँ छै) केर कोनो चर्चा हमरा नहि भेटैत अछि। आब ई सायास भेल छै कि अनायास से शिवशंकरेजी कहि सकै छथि।

9. ललितक उपन्यास पृथ्वीपुत्र'
ई आलेख ललित केर उपन्यास 'पृथ्वीपुत्र'पर अछि आ हरेक पाठक लेल उपयोगी अछि। एहि आलेखक विशेषता अछि जे कलपू मिसर आ बिजलीक प्रेमकेँ संदर्भमे उपन्यासकार ललितक युगबोधकेँ आधुनिक आ सामंतवादी कसौटीपर कसब। पाठक लेल ई एकटा नव दृष्टिकोण भेल।
10. धीरेन्द्रक उपन्यास
ई आलेख धीरेन्द्र जीक कुल तीनू उपन्यास (1. भोरुकवा, 2. कादो आ कोइला 3. ठुमुकि बहू कमला) पर अछि आ हरेक पाठक लेल उपयोगी अछि। ई आलेख एहू लेल उपयोगी अछि से पाठककेँ एकै आलेखसँ धीरेन्द्रजी सभ उपन्याक परिचय भऽ जेतनि।

11. श्रीमती लिली रेक उपन्यास 'मरीचिकामे' समाज
लिली रे जीक उपन्यास 'मरीचिका' (दूनू भाग)मे चित्रित समाजक मीमांसा अछि ई आलेख आ पाठक लेल उपयोगी अछि।
12. उपन्यास: दू धाप आगाँ'
ई आलेख दिलीप कुमार झा केर उपन्यास 'दू धाप आगाँ'पर अछि आ हरेक पाठक लेल उपयोगी अछि।

पाठक जखन एहि शीर्षक सभसँ गुजरि जेता तखन हुनका मोनमे अनायास आबि जेतनि एहि पोथीमे मैथिलीक आरंभिक उपन्यास सहित बहुत रास मध्यकालीन ओ आधुनिक उपन्यासपर किछु नै लीखल गेल छै। ओना लेखक कहि सकै छथि जे सभ उपन्यासपर लीखब बाध्यता नै, से हमहूँ मानैत छी मुदा तखन एहि पोथीक शीर्षक 'मैथिली उपन्यासक आलोचना' कोना राखि देल गेलै। ई तँ भ्रामक शीर्षक भऽ गेलै, आ शीर्षकक अनुरूप पोथीक भीतरमे सामग्री नहि देल गेलै। पाठक शीर्षक देखि बुझतै जे एहिमे मैथिली उपन्यास विधाक संक्षिप्त रूपें आदिसँ एखन धरिक सूचना भेटत मुदा पोथी किनला ओ पढ़लाक उपरांत ओकरा हाथ निराशा लगतै।  सभसँ निराशा केर बात ई जे मणिपद्म, प्रभाष कुमार चौधरी, सुशील, चतुरानन मिश्र, जगदानंद झा, केदारनाथ चौधरी, प्रदीप बिहारी, मधुकांत झा, अशोक कुमार ठाकुर, उषाकिरण खान सहित गजेन्द्र ठाकुर, रबीन्द्र नारायण मिश्र , जगदीश प्रसाद मंडल, राजदेव मंडल सन उपन्यसाकारक कृतिपर कोनो आलेख नहि भेटत।

ओना शिवशंकरजी कहि सकै छथि जे ओहि पोथीक पहिल आलेख 'मैथिली उपन्यासक आलोचना' छै आ ओकरे पोथीक शीर्षक बना देल गेलै। मुदा हमरा जनैत ई तरीका खिस्सा-कहानी-कथा-कविता-गल्प आदि विधा लेल उपयुक्त छै ने कि आलोचना वा कि इतिहास विधा लेल। जँ शिवशंकरजी ऊपरक तर्क दै छथि तऽ ई मानब उचित जे लेखक आलोचना-इतिहास सन गंभीर विधाकेँ खिस्सा-कहानी-कथा-कविता-गल्प सन मानै छथि। मुदा हमरा बूझल अछि जे शिवशंकरजी ई तर्क नहि रखताह।

शिवशंकरजी ईहो कहि सकै छथि जे बहुत रास नामक चर्च ओ ओही पोथीक पहिल दू आलेख  (1. मैथिली उपन्यासक आलोचना, 2. मैथिली उपन्यासक संरचना शिल्प) मे केने छी। मुदा ई तर्क हमरा अपर्याप्त बुझाइए कारण एहि दू आलेखक बाद ओ किछु उपन्यासकारपर फूट-फूट चर्चा केने छथि। हमरा बुझने शिवशंकरजी पोथीक शीर्षक आ ओकर भीतरक सामग्रीक बीच तारतम्यता बनेबामे चूकि गेलाह से या तऽ जानि-बूझि कऽ भेल हेतै वा अनजानेमे। मैथिलीमे पहिनेहो एहन किछु पोथी हमरा भेटल जकर शीर्षक आ ओकर भीतरक सामग्रीमे ओतेक सामंजस्य नै रहल छै। हमरा बुझने शिवशंकरजीक ई पोथी ओहि कड़ी केर अग्रिम दाना छै।

हमरा बुझने एहि पोथीक शीर्षक आ ओकर सामग्रीमे दू तरीकासँ तारतम्यता बैसाएल जा सकै छल-

1. एहि पोथीक शीर्षक जे छै तकरा संग कोष्ठकमे विवेचित उपन्यासकारक वा उपन्यासक नामक संग संदर्भ देल जा सकै छल-जेना मैथिली उपन्यासक आलोचना (काञ्चीनाथ झा किरण, हरिमोहन झा, शैलेन्द्र मोहन झा, यात्री, ललित, धीरेन्द्र, लिली रे ओ दिलीप कुमार झाक संदर्भमे) जरूरी नै जे एतेक नमहर शीर्षक मुख्यपृष्ठपर हो मुदा भीतरमे एक पन्ना ओनाहिते बेकार जाइत छै ताहूठाम सूचना देल जा सकैए अथवा भूमिकामे सेहो स्पष्ट कएल जा सकैए। जँ अतेक मेहनति नै करबाक हो तखन सीधे लीखू मैथिली उपन्यासक आलोचना (किछु उपन्यासक संदर्भमे)। पाठक लग त्वरित सूचना भेटि जेतै।

2. सभसँ हमरा नीक लगैत अछि कोनो विधाक आंतरिक प्रक्रियापर बात करैत आलोचना करब। जेना शिवशंकर जीक अही पोथीक पहिल जे दू आलेख अछि (1. मैथिली उपन्यासक आलोचना, 2. मैथिली उपन्यासक संरचना शिल्प) तेहने शीर्षकसँ मैथिलीक उपन्यास विधापर बात कऽ आ ओहिसँ संबंधित उपन्यासक चर्च करब। वस्तुतः हमरा बुझने इएह तरीका कोनो पोथी, लेखक आ पाठक लेल उपयोगी भऽ सकैए।

मुदा शिवशंकरजी उपरोक्त दूनू कोनो तरीकासँ पोथी नहि लिखलाह जाहिसँ पाठककेँ या तऽ पोथीक शीर्षक भ्रामक लगतनि वा भीतरक सामग्री अपूर्ण। एहि संग हमरा उम्मेद अछि भविष्यमे शिवशंकरजी एवं आनो लेखक सभ एहि प्रकारक तारतम्यताक कमी बला पोथी लिखबासँ बचताह जाहिसँ पाठकक श्रम बचतनि आ पोथीक गुणवत्ता बढ़तै।

ऊपरक नाम संबंधी विवेचनाकेँ देखी तऽ ई कहि सकैत छी जे एहि पोथीक शीर्षक अनुरूपें सामग्री नहि देल गेलै आ एक पाठक रूपमे हमरा अपूर्ण लागल। हँ ईहो हमरा स्वीकार करबामे कोनो संकोच नहि जे किछु तथ्य नव रूपें पाठक लग आएल छै आ हम पाठकक रूपमे ओहीसँ संतोष करैत छी।

 

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