प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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कुमार मनोज कश्यप

अनुत्तरित प्रश्न (लघुकथा)

मैंयाँ के सरझप्पी प्रात दलान पर दस लोक के जुटान आ आरम्भ भेलै श्राद्ध आ भोज पर गहन विचार-विमर्श! पंडितजी श्राद्धकर्म हेतु वस्तु-जात के संगहिं घाट आ आँगन के दान इत्यादि के फेहरिश्त लिखा चुकल छलाह। एम्हर कै गाम के जवार नेओतल जाय ताहु पर निर्णय भs गेलाक बाद असल घमर्थन हुअ लगलै जे कोन दिनक भोज मे कोन-कोन वस्तु-विन्यास हेतैक। सभक अपन-अपन सुझाव छलैक आ तैं सर्वसम्मत निर्णय मे बेसी माथापच्ची स्वभाविके! पंडितजी लोटा सs जल पीबा सs पहिने कुरूड़ फेकैत बजला - ' हे! सुनै जाई जाऊ। भोज मे जे वस्तु-विन्यास राखी से अपन निर्णय, मुदा बुड़ही के मनपसंद वस्तु सभ जरूर हेबाक चाही। नहिं तs बुड़ही के पईत नहिं हेतनि।' एहि प्रस्ताव के उपस्थित सभ जन मुड़ी डोला कs समर्थन केलनि।

अंततोगत्वा सभ वस्तु-जातक फेहरिश्त संगे भोज मे कोन दिन की विन्यास रहतै, जेनेरेटर, टेन्ट हाऊसक सामान, हलुआई, कार्यकर्ता सभक नाम आदिक विषद सूची बनेबाक कार्य सम्पन्न भेलै। रजिस्टर आ कलम आशू के हाथ मे दैत भैया आँगन मे राखि देबा लेल कहि कुर्सी सs उठि डाँड़ सोझ करs लगलाह। आशू भोजक विन्यास पढ़ैत बाजल - 'जा पापा! एहि लिस्ट मे 'नोन रोटी' कहाँ लिखलियै? …… मैंयाँ तs रोज इहै खाईत रहै ने?  …… तकर माने ओकरा इहै बेसी पसिन्न छलै! पंडितजी एखने कहलखिन ने पापा जे मैंयाँ के पसिन्न के वस्तु भोज मे अवश्ये राखक लेल? ' सुनिते मातर भैया तामसे लाल भs गेलाह - 'तेहन घरमेच्चा मारबौ जे मुँहे टुटि जेतौ! ……  जो अपन काज कsर गs।'

अपरतिभ भेल आशू कलम-रजिस्टर लेने ओतs सs चलि तs गेल; मुदा ओकर नेनमति मे ई जिज्ञासा हौंड़िते रहि गेलै।

 

-कुमार मनोज कश्यप, सम्प्रति: भारत सरकार के उप-सचिव; संपर्क: सी-11, टावर-4, टाइप-5, किदवई नगर पूर्व (दिल्ली हाट के सामने), नई दिल्ली-110023; # 9810811850; ईमेल: writetokmanoj@gmail.com

 

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