१.१.गजेन्द्र ठाकुर- नूतन अंक सम्पादकीय १.२.विदेह ई-लर्निङ्ग
१.१.गजेन्द्र ठाकुर- नूतन अंक सम्पादकीय (भवनाथ झा विशेषांक)
भवनाथ झा- असञ्जाति मन (बुद्धचरितम्- सम्पादक भवनाथ झा, २०१३)
अश्वघोष प्राचीन भारतक अद्वितीय कवि,
दार्शनिक आ
तर्कशास्त्री छलाह। हुनका संस्कृत बौद्ध साहित्यक प्रथम महाकवि मानल जाइत
अछि। हुनक
प्रमुख रचनामे *बुद्धचरितम्*,
*सौन्दरानन्दम्*
आ *शारीपुत्रप्रकरणम्* शामिल अछि। एहि
सभमे *बुद्धचरितम्* बौद्ध धर्मक रामायण कहल जाइत अछि,
जे भगवान बुद्धक जीवन,
उपदेश
आ तत्त्वज्ञानक काव्यात्मक रूप प्रस्तुत करैत अछि। ई कृति संस्कृत साहित्यक
एहन
अनुपम रचना अछि जे कालिदासक *रघुवंश* आ *कुमारसंभव* सँ तुलनीय अछि।
इत्सिंग,
प्रसिद्ध चीनी यात्री,
लिखने छथि जे *बुद्धचरितम्* सम्पूर्ण भारत,
चीन,
तिब्बत आ दक्षिण–पूर्व एशियामे गायल आ पठित होइत छल। धर्मरक्षा द्वारा
पाँचम
शताब्दीमे ई चीनी भाषामे अनूदित भेल आ सातम शताब्दीमे तिब्बती भाषामे सेहो
अनुवाद
भेल। युआन च्वांग (ह्वेनसांग) अश्वघोष केँ “बोधिसत्त्व” कहि सम्मान दैत छथि
आ हुनका
चतुर्थ बौद्ध संगीतिक प्रमुख विद्वान् रूपमे वर्णन करैत छथि।
परंतु,
दुर्भाग्यवश,
*बुद्धचरितम्*
महाकाव्यक मूल संस्कृत पाठ केवल चौदहम सर्ग धरि
सुरक्षित रहि सकल। पन्द्रह सँ अट्ठाइस सर्ग पूर्णरूपेण नष्ट भए गेल।
तिब्बती आ चीनी
अनुवादक सहायतासँ बादमे अंग्रेजी अनुवाद ई. एच. जॉन्सटन (E. H. Johnston)
द्वारा
कएल गेल,
जे अत्यंत प्रामाणिक मानल जाइत अछि।
स्वतंत्र भारतक समयमे आचार्य किशोर कुणालक प्रेरणासँ मिथिलाक प्रसिद्ध
संस्कृताचार्य पंडित भवनाथ झा एहि नष्ट भागक संस्कृतमे पुनःनिर्माण कएलनि।
भवनाथ झा
अत्यंत विद्वान् कवि छथि,
संस्कृत व्याकरण,
छन्द,
अलंकार आ भावशैलीक गहन ज्ञाता
छथि। हुनक पुनर्निर्माण मूल अश्वघोषक शैलीक समान अछि — जेहि मे समान छन्द
योजना,
काव्यिक सौंदर्य,
आ दार्शनिक गाम्भीर्य विद्यमान अछि।
महन्त रामचन्द्रदास शास्त्री आ सूर्यनारायण चौधरी द्वारा पूर्वमे
हिंदी–संस्कृत
अनुवाद भेल छल,
मुदा आचार्य किशोर कुणालक मत अनुसार भवनाथ झा कृत पुनर्निर्माण अधिक
काव्यिक आ प्रामाणिक अछि। हुनक छन्द चयन आ भावाभिव्यक्ति एहन अछि जे मूल
ग्रंथक
सौंदर्यक पुनरुत्थान करैत अछि। ई केवल भाषिक पुनर्निर्माण नहि,
अपितु सांस्कृतिक
पुनर्जीवन सेहो अछि।
भवनाथ झा द्वारा पुनःस्थापित भागमे अश्वघोषक रूपक,
उपमा,
आ करुण रसक उत्कृष्ट
प्रयोग पुनः प्रकट भेल अछि। वृद्धावस्था,
मृत्यु,
दुख आ मोक्षक चित्रण अत्यंत
मर्मस्पर्शी अछि। उदाहरणस्वरूप,
आचार्य किशोर कुणाल लिखने छथि जे ई पुनर्निर्माण
केवल साहित्यिक उपलब्धि नहि,
अपितु भारतीय संस्कृत साधनाक गौरव प्रतीक अछि।
भवनाथ झा अपन पुनर्निर्माणमे केवल जॉन्सटनक अंग्रेजी संस्करणपर निर्भर नहि
रहलाह,
बल्कि चीनी आ तिब्बती अनुवादक गहर अध्ययन करि अनेक ठाम सुधार सेहो प्रस्तुत
केलनि।
एहि कारणे हुनक कार्य अधिक विश्वसनीय आ वैज्ञानिक मानल जाइत अछि।
आचार्य किशोर कुणाल एहि ग्रंथक प्रकाशनक अवसरपर कहने छथि जे *“पंडित भवनाथ
झा कृत
पुनर्निर्माण स्वतंत्र भारतक संस्कृत साहित्यक सर्वोत्तम योगदान छी।”* एहि
कार्य सँ
बौद्ध साहित्यक एहन अमूल्य रत्न पुनः पूर्ण रूपमे उपलब्ध भेल अछि जे
सहस्राब्दीसँ
अपूर्ण रूपमे विद्यमान छल।
अंततः, *बुद्धचरितम्*
केवल धार्मिक महाकाव्य नहि,
बल्कि मानवीय चेतना,
करुणा आ बोधक
विश्वसाहित्यिक संदेश अछि। पं. भवनाथ झा द्वारा कएल गेल ई पुनःस्थापना
अश्वघोषक
गौरव आ भारतक सांस्कृतिक धरोहर केँ पुनः जीवित कएलक अछि।
**निष्कर्ष
रूपेँ**,
पं. भवनाथ झा द्वारा *बुद्धचरितम्*क पुनर्निर्माण भारतीय
संस्कृत परंपराक पुनर्जागरण अछि। ई केवल अश्वघोषक रचना नहि,
बल्कि भारतीय बौद्ध–संस्कृति,
काव्यकला आ मानवता क भावनाके पुनर्स्थापित करैत अछि। आचार्य किशोर कुणालक
शब्दमे,
“जेना
इत्सिंगक समयमे बुद्धचरितम् श्रद्धा आ प्रेम सँ गायल जाइत छल,
ओहिना आब फेर
सँ भारत आ समस्त बौद्ध देशसभमे ई पुनः गुँजित हएत।”
असञ्जाति मन (गीत प्रबन्ध)-[कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर खण्ड-६, २००९]
[अश्वघोषक २८ सर्गक संस्कृत बुद्धचरितम् विलुप्त भऽ गेल मुदा एकर तिब्बती अनुवादसँ पुनः संस्कृत रूपान्तर भेल, रूपान्तरकारक नाम अज्ञात। ओ अनुवाद अश्वघोषक मूल संस्कृत बुद्धचरितम् नामसँ ओइ अज्ञात अश्वघोष भक्त (आ बुद्धक भक्त) अनुवादक द्वारा जारी कएल गेल। ओइ अद्भुत् अनुवादकक संस्कृत बुद्धचरितम् केर अति-संक्षिप्त मैथिली अनुवाद- अनुवादक- गजेन्द्र ठाकुर]
[सर्ग १- सर्ग २८]
असञ्जाति मन [कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-गजेन्द्र ठाकुर खण्ड-६, २००९]
सर्ग १
ई पुरातन देश नाम भरत,
राज करथि जतऽ इक्ष्वाकु वंशज।
ऐ वंशक शाक्य कुलक राजा शुद्धोधन,
पत्नी माया छलि,
कपिलवस्तुमे राज करथि तखन।
अश्वघोषक वर्णन ई सकल,
दैत अछि सम्बल असञ्जाति मनक।
माया देखलन्हि स्वप्न आबि रहल,
एकटा श्वेत हाथी आबि मायाक शरीरमे,
पैसि छल रहल हाथी मुदा,
मायाकेँ भऽ रहल छलन्हि ने कोनो कष्ट,
वरन् लगलन्हि जे ऐल अछि मध्य क्यो गर्भ।
गर्भक बात मुदा छल सत्ते,
भेल मोन वनगमनक,
लुम्बिनी जाय रहब, कहल शुद्धोधनकेँ।
दिन बीतल ओत्तै लुम्बनीमे दिन एक,
बिना प्रसव-पीड़ाक जन्म देलन्हि पुत्रक,
आकाशसँ शीतल आ गर्म पानिक दू टा धार,
कएल अभिषेक बालकक लाल-नील पुष्प कमल,
बरसि आकाश।
यक्षक राजा आ दिव्य लोकनिक भेल समागम,
पशु छोड़ल हिंसा पक्षी बाजल मधुरवाणी।
धारक अहंकारक शब्द बनल कलकल,
छोड़ि ’मार’ आनन्दित छल विश्व सकल,
’मार’ रुष्ट आगमसँ, बुद्धत्व प्राप्ति ई करत।
माया-शुद्धोधनक विह्वलताक प्रसन्नताक,
ब्राह्मण सभसँ सुनि अपूर्व लक्षण बच्चाक,
भय दूर भेल माता-पिताक तखन जा कऽ,
मनुष्यश्रेष्ठ पुत्र आश्वस्त दुनू गोटे पाबि कऽ।
महर्षि असितकेँ भेल भान शाक्य मुनि लेल जन्म,
चली कपिलवस्तु सुनि भविष्यवाणी बुद्धत्व करत प्राप्त,
वायु मार्गे एला राज्य वन कपिलवस्तुक,
बैसायल सिंहासन शुद्धोधन तुरत ।
राजन् ऐल छी देखय बुद्धत्व प्राप्त करत जे बालक।
बच्चाकेँ आनल गेल चक्र पएरमे छल जकर,
देखि असित कहल, हा! मृत्यु समीप अछि हमर,
बालकसँ शिक्षा प्राप्त करितौं मुदा वृद्ध हम अथबल,
उपदेश सुनऽ लेल शाक्य मुनिक, जीवित कहाँ रहब।
वायुमार्गे घुरला असित कऽ दर्शन शाक्य मुनिक,
भागिनकेँ बुझाओल पैघ भऽ बौद्धक अनुसरण करथि।
दस दिन धरि केलन्हि जात-संस्कार,
फेर ढेर रास होम जाप,
करि गायक दान सिंघ स्वर्णसँ छारि,
घुरि नगर प्रवेश केलन्हि माया,
हाथी-दाँतक महफा चढ़ि।
सर्ग २
धन-धान्यसँ पूर्ण भेल राज्य,
अरि छोड़ल शत्रुताक मार्ग,
सिद्धि साधल नाम पड़ल सिद्धार्थ।
मुदा माया नै सहि सकली प्रसन्नता,
मृत्यु ऐल मौसी गौतमी कएल शुश्रुषा।
उपनयन संस्कार भेल बालकक,
शिक्षामे छल चतुर,
अंतःपुरमे कय ढेर रास व्यवस्था विलासक,
शुद्धोधनकेँ छल मोन असितक बात,
बालकक योगी बनबाक।
सुन्दरी यशोधरासँ फेर करबाओल सिद्धार्थक विवाह,
समय बीतल सिद्धार्थक पुत्र राहुलक भेल जन्म।
सर्ग ३
उत्सवक संग बितैत रहल दिन पल,
सुनलन्हि चर्च उद्यानक कमल सरोवरक,
सिद्धार्थ इच्छा देखेलन्हि घुमक ।
सौँसे रस्तामे आदेश भेल राजाक,
क्यो वृद्ध दुखी रोगी रहथि बाट ने घाट।
सुनि नगरवासी देखबा लेल व्यग्र,
निकलि ऐल पथपर दर्शन लेल सिद्धार्थक ।
चारू कात छल मनोरम दृश्य,
मुदा तखने ऐल पथपर एक वृद्ध।
हे सारथी, सूतजी के अछि ई,
आँखि झाँपल भौँहसँ,
श्वेत केश,
हाथ लाठी,
झुकल की छै भेल?
कुमार अछि ई वृद्ध,
भोगि बाल युवा अवस्था जाय
अछि भेल वृद्ध आइ ।
की ई हएत सभक संग,
हमहूँ भऽ जायब वृद्ध एक दिन?
सभकेँ अछि बुझल ई खेल,
फेर चहुदिस ई सभ करय किलोल ?
हर्षित मुदित बताह तँ नै ई भीड़?
घुरि चलू सूत जी आब,
उद्यानमे मोन कतऽ लाग !
महलमे घुरि-फिरि भऽ चिन्तामग्न,
पुनि लऽ आज्ञा राजासँ निकलल अग्र ।
मुदा ऐबेर भेटल एकटा लोक,
पेट बढ़ल, झुकल लैत निसास,
रोगग्रस्त छल ओ पूछल सिद्धार्थ,
सूत जी छथि ई के, की भेल?
रोगग्रस्त ई कुमार अछि ई तँ खेल,
कखनो ककरो लैत अछि अपन अधीन ।
सूत जी घुरू भयभीत भेलौं हम आइ फेर।
घुरि घर विचरि-विचरि कय चिन्तन,
शुद्धोधन चिन्तित जानि ई घटनाक्रम।
आमोद प्रमोदक कऽ आर प्रबन्ध,
रथ सारथी दुनू नव कएल शुद्धोधन।
फेर एक दिन पठाओल राजकुमार,
युवक-युवती संग पठाओल करय विहार ।
मुदा तखने एकटा यात्रा मृत्युक,
हे सूतजी की अछि ई दृश्य,
सजा-धजा कऽ चारि गोटे धऽ कान्ह,
मुदा तैयो सभ कानि रहल किए नै जानि ?
हे कुमार आब ई सजाओल मनुक्ख,
नै बाजि सकत, अछि ई काठ समान।
कानि-खीजि जाथि समस्त ई लोक,
छोड़ऽ ओकरा मृत्यु केलन्हि जे प्राप्त।
घुरू सारथी नै हएत ई बर्दाश्त,
भय नै अछि ऐबेर,
मुदा बुझितो आमोद प्रमोदमे भेर,
अज्ञानी सन केना घुमब उद्यान।
सर्ग ४
मुदा नव सारथी घुरल नै द्वार,
पहुँचल उद्यान पद्म खण्ड जकर नाम।
युवतीगणकेँ देलक आदेश उदायी, पुरोहित पुत्र,
करू सिद्धार्थकेँ आमोद-प्रमोदमे लीन ।
मुदा देखि इन्द्रजीत सिद्धार्थक अनासक्ति,
पुछल उदायी भेल अहाँकेँ ई की?
हे मित्र क्षणिक ई आयु,
बुझितो हम केना गमाउ?
साँझ भेल घुरि युवती सभ गेल,
सूर्यक अस्तक संग संसारक अनित्यताक बोध,
पाबि सिद्धार्थ घुरल घर चिन्ता मग्न,
शुद्धोधन विचलित मंत्रणामे लीन।
सर्ग ५
किछु दिनक उपरान्त,
मांगि आज्ञा बोन जेबाक,
संग किछु संगी निकलि बिच खेत-पथार,
देखि चास देल खेत मरल कीट-पतंग ।
दुखित बैसि उतरल घोड़ासँ अधः सिद्धार्थ,
बैसि जोमक गाछक नीचाँ धऽ ध्यान,
पाओल शान्ति तखने भेटल एक साधु।
छल ओ मोक्षक ताकिमे मग्न,
सुनि ओकर गप, देखल होइत अन्तर्धान।
गृह त्यागक ऐल मोनमे भाव,
बोन जेबाक आब अखन नै काज।
घुरि सभ चलल गृहक लेल,
रस्तामे भेटलि कन्या एक,
कहल अहाँ छी जनिक पति,
से छथि निश्चयेन निवृत्त।
निवृत्त शब्दसँ निर्वाणक प्रसंग,
सोचि मुदित सिद्धार्थ घुरल राज सभा,
रहथि ओतऽ शुद्धोधन मंत्रीगणक बिच।
कहल – लऽ संन्यास मोक्षक ज्ञानक लेल,
करू आज्ञा प्रदान हे भूदेव।
हे पुत्र कएल की गप,
जाउ पहिने पालन करू भऽ गृहस्थ ।
संन्यासक नै अछि ऐल बेर,
तखन सिद्धार्थ कहल अछि ठीक,
तखन दूर करू चारि टा हमर भय,
नै मृत्यु, रोग, वृद्धावस्था आबि सकय,
धन सेहो नै क्षीण हुअय।
शुद्धोधन कहल अछि ई असंभव बात,
तखन हमर वियोगक करू नै पश्चाताप।
कहि सिद्धार्थ गेला महल बिच,
चिन्तित एम्हर-ओम्हर घुमि निकलला बाह्य ।
सूतल छंदककेँ कहल श्वेत वेगमान,
कंथक घोड़ा अश्वशालासँ लाउ।
सभ भेल निन्नमे भेर कंथक ऐल,
चढ़ा सिद्धार्थकेँ लऽ गेल नगरसँ दूर ।
नमस्कार कपिलवस्तु !
घुरब जखन पायब जन्म-मृत्युक भेद !
सर्ग ६
सोझाँ ऐल भार्गव ऋषिक कुटी उतरि सिद्धार्थ,
लेलन्हि रत्नजटित कृपाण, काटल केश ।
मुकुट मणि आभूषण देल छंदककेँ।
अश्रुधार बहल छंदकक आँखि,
जाउ छंदक घुरु नगर जाउ ।
नै सिद्धार्थ हम नै छी सुमन्त,
छोड़ि राम जे घुरल अयोध्या नग्र।
घोटक कंथकक आँखिमे सेहो नोर,
तखने एक व्याध छल ऐल,
कषाय वस्त्र पहिरने रहय, कहल सिद्धार्थ,
हमर शुभ्र वस्त्र लिअ दिअ ई वस्त्र,
अदलि-बदलि दुनु गोटे वस्त्र पहीरि,
छंदक देखि केलक प्रणाम गेल घुरि।
सर्ग ७
सिद्धार्थ एला आश्रम सभ भेल चकित,
देखि नानाविध तपस्या कठोर,
नै संतुष्ट कष्ट भोगथि पाबय लेल स्वर्ग,
अग्निहोत्रक यज्ञ तपक विधि देखि ।
निकलि चलल किछु दिनमे सिद्धार्थ आश्रम छोड़ि,
स्वर्ग नै मोक्षक अछि हमरा खोज ।
जाउ तखन अराड मुनि लग विंध्यकोष्ठ,
नमस्कार मुनि प्रणाम घुरू सभ जाउ,
सिद्धार्थ निकलि बढ़ि पहुँचला आगु।
सर्ग ८
एम्हर कंथकक संग छंदक खसैत-पड़ैत,
एक दिनक मार्ग आठ दिनमे चलैत,
घरमुँहा रस्ता आइ कम नै, अछि भेल अनन्त।
घुरि सुनेलक खबरि कषाय वस्त्र पहिरबाक सिद्धार्थक,
गौतमी मूर्छित, यशोधरा कानथि बाजि-बाजि,
एहन कठोर हृदय सिद्धार्थक मुखेटा कोमल रहय,
ओकरो सँ कठोर अछि हृदय हमर जे फाटय अछि नै।
शुद्धोधन कहथि दशरथक छल भाग्य,
पुत्र वियोगमे प्राण हमर निकलय अछि नै।
पुरहित आ मंत्रीजी निकलि ताकू जाय,
भार्गव मुनिक आश्रममे देखू पुछू ओतय।
सर्ग ९
जाय जखन सभ ओतऽ पूछल भार्गव कहल,
गेलथि अराड मुनिक आश्रम दिस मोक्षक लेल बेकल।
दुनू गोटे बढ़ि आगाँ देखैत छथि की,
कुमार गाछक नीचाँ बैसल ओतय।
पुरोहित कहल हे कुमार पिताक ई गप सुनू,
गृहस्थ राजा विदेह, बलि, राम आ वज्रबाहु,
केलन्हि प्राप्त मोक्ष करू अहाँ सेहो।
मुदा सिद्धार्थ बोनसँ घुरता नै,
मोक्षक लेलन्हि अछि प्रण तोड़ता नै।
हे सिद्धार्थ पहिनहु घुरल छथि बोनसँ,
अयोध्याक राम, शाल्व देशक द्रुम आ राजा अंबरीष ।
हे पुरहित जी घुरू व्यर्थ समय नष्ट छी कऽ रहल,
राम आ कि आन नै उदाहरण समक्ष ।
नै बिना तप कोनो क्यो बहटारि सकत,
ज्ञान स्वयं पायब नव रस्ता तकैत।
घुरल दुहु गोटे गुप्त-दूत नियुक्त कऽ।
सर्ग १०
सिद्धार्थ बढ़ि आगाँ कएल गंगाकेँ पार,
राजगृह नगरी पहुँचि कऽ भिक्षा ग्रहण,
पहुँचि पाण्डव-पर्वत जखन बैसलथि,
राजा बिम्बसार आबि बुझाओल बहुत ।
सूर्यवंशी कुमार जाउ घुरि।
सर्ग ११
सिद्धार्थ कहल हे राजा बिम्बसार, हर्यंक वंशज,
मोहकेँ छोड़ल घुरि जाउ कतऽ?
राजा सेहो होइछ कखनो काल दुखित,
दास वर्गकेँ सेहो कखनो काल भेटै छै खुशी ?
करू रक्षा प्रजाक संग अपन सेहो,
सिद्धार्थ वैश्वंतर आश्रम दिस बढ़लाह,
मगधराज चकित !
सर्ग १२
अराडक आश्रममे ज्ञान लेल,
गेला शाक्य,
कहल मुनि अविद्या अछि पाँचटा,
अकर्मण्यता आलस्यक अछि अन्हार,
अन्हारक अंग अछि क्रोध आ विषाद,
मोह अछि ई वासना जीवनक आ संगे मृत्युक,
कल्याणक मार्ग अछि मार्ग मोक्षक।
मुदा सिद्धार्थ कहल हे मुनिवर!
आत्माक मानब तँ अछि मानब अहंकारकेँ,
अहाँ गप नै रुचल बढ़ल आश्रम उद्रकक से।
नगरी गेला राजर्षिक जे आश्रम छल,
मुदा नै उत्तर भेटल ओत्तौ सिद्धार्थक।
गेला तखन नैरंजना तट पाँचटा भिक्षुक भेटल,
छह बरख तप कएल मुदा प्रश्न अनुत्तरित छल।
स्वस्थ तनमे भेटत मनसिक प्रश्नक उत्तर,
प्रण कएल ई निरंजनामे कएल स्नान ओ,
बाहर बहराय एली तखने कन्या गोपराजक,
श्वेत रंग नील वस्त्रमे नन्द बाला जकर नाम छल ।
आयलि पायस पात्र लेने तृप्त भऽ सिद्धार्थ भोजन कएल।
पाँचू संगी देखि ई सिद्धार्थक संग छोड़ल ।
मुदा ओ भेला सबल बोधिसत्वक प्राप्तिक लेल,
दृढ़ प्रण लऽ पीपरक तर ओ आसन देलन्हि।
काल सर्प कहल देखू ऐ नीलकंठक झुण्डकेँ,
घुमि रहल चारू दिस अहाँक,
प्रमाण अछि जे बोधिसत्व प्राप्त करब अहाँ।
सुनि ई तृण उठा कएल प्रतिज्ञा तखन,
सिद्धार्थ पाओत ज्ञान आ तखने उठत छोड़ि आसन।
सर्ग १३
ब्रह्मांड छल प्रसन्न मुदा दुष्ट मार डरायल,
कामदेव, चित्रायुध पुष्पसर नाम मारक,
सिद्धार्थ प्राप्त कऽ ज्ञान जगकेँ बताओत।
हमर साम्राज्यक हएत की तखन,
पुत्र विभ्रम, हर्ष, दर्प छल ओकर,
पुत्री अरति, प्रीति, तृषाकेँ सेहो कऽ संग।
चलू ई लेने ढाल प्रतिज्ञाक,
सत् धनुषपर बुद्धिक वाण चढ़ाय,
जीतत से की जीतय देबै हमरा सभ आइ?
हे सिद्धार्थ यज्ञ कऽ पढ़ि कऽ शास्त्र,
करू इन्द्रपद प्राप्त भोगू भोग,
छोड़ू आसन देब वाण चलाय।
नै देलन्हि सिद्धार्थ ऐपर ध्यान,
मार तखन देलक वाण चलाय,
मुदा भेल कोनो नै परिणाम।
शिवपर सेहो चलल रहय ई वाण,
विचलित भेल रहथि ओ सेहो,
के अछि ई से नै जानि!!
हे सैनिक हमर विकराल-विचित्र,
त्रिशूल घुमाय, गदा उठाय,
साँढ़ सन दऽ हुंकार,
आउ करू विजित अछि शत्रु विकराल।
राति घनघोर अन्हरियामे कतऽ छथि चन्द्र?
तरेगणक सेहो कोनो नै दर्श!
मुदा सभ गेल व्यर्थ पदार्पण भेल अदृश्य,
मार जाउ हएत नै ई विचलित।
देखू एकर क्षमा प्रतीक जटाक,
धैर्य अछि एकर जेना गाछक मूल,
चरित्र पुष्प बुद्धि शाखा धर्म फलक प्रतीक।
स्थान जतऽ अछि आसन पृथ्वीक थिक नाभि,
प्राप्त करत ई ज्ञान सहजहि आइ।
पराजित मार गेल ओतयसँ भागि।
सर्ग १४
रातिक पहिल पहरमे शाक्य मुनि,
पाओल वर्णन स्मरण पूर्व जन्मक सहजहि।
दोसर पहरमे दिव्य चक्षु पाबि,
देखल कर्मक फल वेदनाक अनुभूति।
गर्भ सरोवर नरक आ स्वर्ग दुहुक,
पाओल अनुभव देखल खसैत स्वर्गहुँ,
अतृप्त भोगी जन्म, जरा, मृत्यु।
बीतल तेसर पहर चारिममे जाय,
पाओल ज्ञान बुद्ध भऽ पाओल शान्ति।
शान्त मन शान्त छल पूर्ण जगत !!!
धर्म चारू दिस बिन मेघ अछार !!
सूचना देल दुन्दुभि बाजि अकास!
सकल दिशा सिद्धगणसँ दीप्तमय छल,
स्वर्गसँ वृष्टि पुष्पक इक्ष्वाकु वंशक ई मुनि छल।
बैसल ऐ अवस्थामे सात दिन धरि मुनि शाक्य,
विमान चढ़ि एला तखन देवता दू टा,
करू उद्धार जगतक दऽ मोक्षक शिक्षा।
आ भिक्षुपात्र लऽ एला फेर एक देव,
कएल स्मरण अराड आ उद्रकक बुद्ध,
मुदा दुहु छल छोड़ल जगत ई तुच्छ।
आब जायब वाराणसी भिक्षु पाँचो संगी जतऽ,
कहल देखि बोधिक गाछ दिस स्नेहसँ।
सर्ग १५
बुद्ध चलला असगरे रस्तामे भिक्षु एक भेटल,
तेजमय अहाँ के? गुरु के छथि अहाँक?
हे वत्स गुरु नै क्यो हमर
प्राप्त कएल निर्वाण हम,
सभ किछु जानल जे अछि जनबा योग्य
लोक कहै छथि हमरा बुद्ध!
जा रहल छी काशी दुखित कल्याण लेल
दूर सँ देखल वरुणा आ गंगाक मिलन
आ गेला बुद्ध लगहिमे मृगदाव वन।
पाँचू संगी हुनक रहथि ओतहि
देखैत अबैत विचारल क्यो नै करत अभिवादन हुनक
मुदा पहुँचिते ई की गप भेल?
सभ हुनक सत्कारमे छल लागि गेल?
आसन दऽ जखन बैसेलन्हि हुनका सभ क्यो,
उपदेश देब शुरु करितथि मुदा तखने बाजल कियो,
अहाँ तँ तत्वकेँ नै छी बुझैत,
तप छोड़ि बीचहि उठल छलौं किए?
बुद्ध कहल घोर तप आ आसक्ति दुनुक हम त्याग कएल
मध्य मार्गकेँ पकड़ि बोधत्व प्राप्त कएल।
सर्ग १६
बोधत्व सूर्य अछि सम्यक दृष्टि आ
एकर सुन्दर रस्तापर चलैए सम्यक संकल्प।
ई करैए विहार सम्यक आचरणक उपवनमे
सम्यक आजीविका अछि भोजन एकर।
सेवक अछि सम्यक व्यायाम,
शान्ति भेटैए एकरा सम्यक स्मृति रूपी नगरीमे
आ सुतैए सम्यक समाधिक बिछाओनपर ई।
ऐ अष्टांग योगसँ अछि सम्भव ई
जन्म, जरा, व्याधि आ मृत्युसँ मुक्ति।
मध्य मार्ग चारिटा अछि ध्रुव सत्य
दुख, अछि तकर कारण, दुखक निरोध
आ अछि उपाय निरोधक ।
कौंडिन्य आ ओकर चारू संगी सुनल ई,
प्राप्त कएल सभ दिव्यज्ञान ।
हे नरमे उत्तम पाँचू गोटे
भेल ज्ञान अहाँ लोकनि के?
कौंण्डिन्य कहलन्हि हँ, भेल भंते,
कौंडिन्य भेला तखन प्रमुख धर्मवेत्ता
तखने यक्ष सभ पर्वतपरसँ केलक सिंहनाद,
शाक्यमुनि अछि केलक धर्मचक्र प्रवर्तित !!!!
शील कील अछि क्षमा-विनय अछि धूरी,
बुद्धि-स्मृतिक पहिया अछि सत्य अहिंसासँ युक्त,
ऐमे बैसि भेटत शान्ति ई बाजल सभ यक्ष,
मृगदावमे भेल धर्मचक्र प्रवर्तित।
फेर अश्वजित आ ओकर चारि टा आन भिक्षु
कएल निर्वाण धर्ममे बुद्ध दीक्षित,
फेर कुलपुत्र यश प्राप्त कएल अर्हत पद
यश आ चौवन गृहस्थकेँ
कएल बुद्ध सद्धर्ममे प्रशिक्षित।
घरमे रहि कऽ भऽ सकै छी अनाशक्त
आ वनमे रहियो प्राप्त कऽ सकै छी आशक्ति।
ऐमे सँ आठ गोट अर्हत प्राप्त शिष्यकेँ
विदा कऽ आठो दिशामे चलला बुद्ध।
पहुँचि गया जितबाक रहन्हि इच्छा
सिद्धि सभसँ युक्त काश्यप मुनिकेँ।
गयामे काश्यप मुनि केलन्हि स्वागत बुद्धक,
मुदा रहबा लेल देल अग्निशाला रहै छल महासर्प जतऽ।
रातिमे मुदा ओ सर्प प्रणाम कएल बुद्धकेँ
भोरमे काश्यप देखल सर्पकेँ बुद्धक भिक्षापात्रमे।
कऽ प्रणाम ओ आ हुनकर पाँच सय शिष्य
संग एला काश्यपक भाय गय आ नदी ।
कएल स्वीकार धर्म बुद्धक
प्राप्त कएल गय उत्तुंगपर निर्वाणधर्मक शिक्षा
लऽ सभकेँ बुद्ध पहुँचल राजगृहक वेणुवण ।
सर्ग १७
बिम्बसार सुनि ऐल ओतऽ देखल काश्यपकेँ बुद्धक शिष्य बनल
पूछल बुद्ध तखन काश्यपसँ,
छोड़ल अहाँ अग्निक उपासना किए भंते?
काश्यप कहल मोह जन्मक रहि जाइछ देने
आहुति अग्निमे केने पूजा पाठ ओकर ।
बुद्धक आज्ञा पाबि कएल काश्यप दिव्य शक्तिक प्रदर्शन
आकाश मध्य उड़ि अग्निक समान जरि कऽ।
तखन बिम्बसारकेँ देल बुद्ध अनात्मवादक शिक्षा
विषय, बुद्धि आ इन्द्रीक संयोगसँ अबैछ चेतनता
शरीर इन्द्रिय आ चेतना अछि भिन्न
आ अभिन्न सेहो।
बिम्बसार भऽ प्रसन्न दान बुद्धकेँ वेणुवनक देल
तथागतक शिष्य अश्वजित नग्र गेल भिक्षाक लेल।
कपिल संप्रदायक लोक देखि तेज पूछल अहाँक गुरु के?
कहल अश्वजित सुगत बुद्ध छथि जे इक्ष्कवाकु वंशक।
सएह हमर गुरु कहै छथि बिन कारणक नै होइछ किछुओ
उपतिष्य ब्राह्मणकेँ प्राप्त भेल ज्ञान कहलक ओ मौद्गल्यायनकेँ
मौद्गल्यायनकेँ सेहो प्राप्त भेलै सम्यक दृष्टि सुनिकेँ।
सुनि वेणुवनमे उपदेश त्यागल जटा दंड
पहिरि काषाय कएल साधना, प्राप्त कएल परम पद
काश्यप वंशक एकटा धनिक ब्राह्मण छोड़ल पत्नी परिजन
प्रसिद्धि भेटल हिनका महाकाश्यप नामसँ।
सर्ग १८
कोसलक श्रावस्तीक धनिक सुदत्त ऐल वेणुवन
गृहस्थ रहितो प्राप्त भेल तत्वज्ञान ओकरा।
उपतिष्य संगे सुदत्त गेल श्रावस्ती नगर
जेत केर वनमे विहार बनेबाक कएल निश्चित।
जेतवनक मालिक रहय लोभी ढेर पाइ लेलक जेतवनक लेल
मुदा देखि दैत पाइ हृदय परिवर्तित भेल ओकर
सभटा वन देलक ओ विहारक लेल
विहार शीघ्रे बनि गेल उपतिष्यक संरक्षकत्वमे
जेतवनमे।
सर्ग १९
बुद्ध फेर राजगृहसँ चलि देलन्हि कपिलवस्तु दिस
ओतऽ पिता शुद्धोधनकेँ देल अमृत बोधि
कोनो पुत्र पिताकेँ नै देने रहय ई।
कर्म धरैत अछि मृत्युक बादो पछोड़
कर्मक स्वभाव, कारण, फल, आश्रयक रहस्य बुझू,
जन्म, मृत्यु, श्रम, दुखसँ फराक पथ ताकू।
आनन्द, नन्द, कृमिल, अनुरुद्ध, कुन्डधान्य, देवदत्त, उदायि
कऽ ग्रहण दीक्षा छोड़ल गृह सभ।
अत्रिनन्दन उपालि सेहो कएल ग्रहण दीक्षा
शुद्धोधन देल राजकाज भाय केँ
रहय लगला राजर्षि जकाँ ओ।
फेर बुद्ध कएल प्रवेश नगरमे
न्यग्रोध वनमे बुद्ध पहुँचि
चिन्तन जीवक कल्याणक करय लगला।
सर्ग २०
फेर ओ ओतऽ सँ निकलि गेला प्रसेनजितक देस कोसल
श्रावस्तीक जेतवन छल श्वेत भवन आ अशोकक गाछसँ सज्जित
सुदत्त कएल स्वर्णमालासँ स्वागत बुद्धक
कएल जेतवन बुद्धक चरणमे समर्पित।
प्रसेनजित भेल धर्ममे दीक्षित
तीर्थक साधु सभक कऽ शंकाक समाधान
कएल बुद्ध हुनका सभकेँ दीक्षित।
जा कय स्वर्ग माताकेँ
केलन्हि सेहो दीक्षित
सर्ग २१
ओतऽसँ एला बुद्ध फेर राजगृह
ज्योतिष्क, जीवक, शूर, श्रोण, अंगदकेँ उपदेश दऽ,
कएल सभकेँ संघमे दीक्षित।
ओतऽ सँ गंधार जाय राजा पुष्करकेँ कएल दीक्षित
विपुल पर्वतपर हेमवत आ साताग्र दुनू यक्षकेँ उपदेश दऽ
एला जीवकक आम्रवन।
ओतऽ कऽ विश्राम घुमैत-फिरैत
पहुँचल आपण नगर,
ओतऽ अंगुलीमाल तस्करकेँ
कएल दीक्षित प्रेमक धर्ममे।
वाराणसीमे असितक भागिन कात्यायनकेँ कएल दीक्षित
देवदत्त मुदा भऽ ईर्ष्यालु संघमे चाहलक पसारय अराड़ि।
गृध्रकूट पर्वतपर खसाओल शिलाखंड बुद्धपर
राजगृह मार्गमे छोड़ल हुनकापर बताह हाथी
सभ भागल मुदा आनन्द संग रहल बुद्ध
लग आबि गजराज भऽ गेल स्वस्थ कएल प्रणाम झुकि
उपदेश देल गजराजकेँ बुद्ध।
देखल ई लीला राजमहलसँ अजातशत्रु
भऽ गेल ओहो तखन बुद्धक शिष्य।
सर्ग २२
राजगृहसँ बुद्ध एला पाटलिपुत्र
मगधक मंत्री वर्षाकार बना रहल छल दुर्ग,
बुद्ध कएल भविष्यवाणी हएत ई नगर प्रसिद्ध
तखन तथागत गेला गौतम द्वारसँ गंगा दिस।
गंगापार कुटी गाममे
देल उपदेश धर्मक
फेर गेला नन्दिग्राम जतऽ भेल छल बहुत रास मृत्यु।
दऽ सान्त्वना गेला वैशाली नगरी
निवास कएल आम्रपालीक उद्यानमे।
श्वेत वस्त्र धरि एली ओ
बुद्ध चेताओल शिष्य सभकेँ,
धरू संयम रहब स्थिरज्ञानमे लऽ बोधिक ओखध अमृत
प्रज्ञाक वाणसँ शक्तिक धनुषसँ करू अपन रक्षा।
आम्रपाली आबि पओलक उपदेश
भेलै ओकरा घृणा अपन वृत्तिसँ
मांगलक धर्मलाभक भिक्षा,
बुद्ध केलन्हि प्रार्थना ओकर स्वीकार,
आयब भिक्षाक लेल अहाँक द्वार।
सर्ग २३
सुनि ई गप जे ऐल छथि बुद्ध आम्रपालीक उद्यान
लिच्छवीगण एला बुद्धक समीप
बुद्ध देलन्हि शीलवान रहबाक सन्देश।
लिच्छवीगण देलन्हि भिक्षाक लेल अपन-अपन घर एबाक आमन्त्रण,
पाबि आमन्त्रण कहलन्हि बुद्ध
मुदा जाएब हम आम्रपालीक द्वार
कारण हुनका हम देलियन्हि अछि वचन।
लिच्छवीगणकेँ लगलन्हि ई कनेक अनसोहाँत,
मुदा पाबि उपदेश बुद्धक,
घुरला अपन-अपन घर-द्वार।
पराते आम्रपालीसँ ग्रहण कऽ भिक्षा
बुद्ध गेला वेणुमती करय चारि मासक बस्सावास।
चारि मास बितओला उत्तर,
रहऽ लगला मर्कट सरोवरक तट।
ओत्तै आयल मार,
कहलक हे बुद्ध नैरंजना तटपर अहाँक संकल्प
जे निर्वाणसँ पूर्व करब उद्धार देखायब रस्ता दोसरोकेँ,
आब तँ कतेक छथि मुक्त, कतेक छथि मुक्ति पथक अनुगामी,
आब कोनो टा नै बाँचल अछि कारण
करू निर्वाण प्राप्त।
कहलन्हि बुद्ध, हे मार
नै करू चिन्ता,
आइसँ तीन मासक बाद,
प्राप्त करब हम निर्वाण,
मार होइत प्रसन्न तृप्त
गेल घुरि।
बुद्ध धऽ आसन प्राणवायुकेँ लेलन्हि चित्तमे
आ चित्तकेँ प्राणसँ जोड़ि योग द्वारा समाधि कएल प्राप्त।
प्राणक जखने भेल निरोध,
भूमि विचलित, विचलित भेल अकास !!
सर्ग २४
आनन्द पूछल करू अनुग्रह लिच्छवी सभपर,
किए ई धरा आ आकास,
दलमलित मर्त्य आ दिव्यलोक !!!
बुद्ध कहलन्हि आबि गेल छी हम बाहर,
छोड़ि अपन प्रकोष्ठ,
मात्र तीन मास अनन्तर
छोड़ब ई देह,
निर्वाण मे रहबा लेल सतत !!!!
आनन्द सुनि ई करऽ लागल हाक्रोस,
सुनि विलाप लिच्छवी गण जुटि सेहो,
विलापमे भऽ गेला संग जोड़।
बुद्ध सभकेँ बुझा-सुझा,
चलला वैशालीक उत्तर दिशा।
सर्ग २५
पहुँचि भोगवती नगरी,
देल शिक्षा जे विनय अछि हमर वचन,
जे बोल अछि विनयविहीन,
से अछि नै धर्म।
तखन मल्लक नगरी पापुर जाय,
अपन भक्त चुंद केर घरमे कएल भोजन बुद्ध,
दऽ ओकरा उपदेश बिदा भेला कुशीनगर दिस।
संगे चुन्द पार कएल इरावती धार
सरोवर तटपर कऽ विश्राम,
कऽ हिरण्यवती धारमे स्नान,
कहल हे आनन्द,
दुनू शालक गाछक बीच करब हम शयन।
आजुक रातिक उत्तर पहर,
करब प्राप्त निर्वाण।
हाथक बना गेरुआ,
दऽ टांगपर टांग,
लऽ दहिना करोट कहल हे आनन्द,
बजा आनू मल्ल लोकनिकेँ,
भेँट करबा लेल निर्वाण पूर्व।
शान्त दिशा, शान्त व्याघ्र-भालु,
शान्त चिड़इ शान्त सभटा जन्तु।
आबि मल्ल लोकनि कएल विलाप,
मुदा घुरेलन्हि सभकेँ दऽ सांत्वना बुद्ध।
सर्ग २६
ऐल सुभद्र त्रिदंडी संन्यासी तकर बाद,
पाबि अष्टांग मार्गक शिक्षा,
कहल सुभद्र हे करुणावतार
अहाँक मृत्युक दर्शनसँ पहिने हम करय
चाहै छी निर्वाण प्राप्त।
बैसल ओ पर्वत जकाँ
आ जेना मिझा जाइत अछि दीप
हवाक झोँकसँ,
तहिना क्षणेमे केलक निर्वाण प्राप्त।
छल ई हमर अन्तिम शिष्य!
सुभद्रक करू अन्तिम संस्कार!
बीतल आध राति,
बुद्ध बजा सभ शिष्यकेँ,
देल प्रातिमोक्षक उपदेश,
कोनो शंका हुअय तँ पूछू आइ।
अनिरुद्ध कहल नै अछि शंका आर्य सत्यमे ककरो।
बुद्ध तखन ध्यान कऽ एकसँ चारिम तहमे पहुँचि,
प्राप्त कएल शान्ति।
सर्ग २७
भेल ई महापरिनिर्वाण!
मल्ल सभ आबि उठेलक बुद्धकेँ स्वर्णक शव-शिविकामे,
नागद्वारसँ बाहर भऽ केलन्हि पार हिरण्यवती धार,
मुदा शवकेँ चन्दनसँ सजाय,
जखन लगाओल आगि, नै उठल चिनगारि।
शिष्य काश्यप छल बिच मार्ग,
ओकरा अबिते लागल चितामे आगि!
मल्ल लोकनि बीछि अस्थि धऽ स्वर्णकलशमे,
आनल नगर मध्य,
बादमे कऽ पूजा भवनक निर्माण,
कएल अस्थिकलश ओतऽ विराजमान।
सर्ग २८
फेर सात देशक दूत,
आबि मांगलक बुद्धक अस्थि,
मुदा मल्लगण कएल अस्वीकार,
तँ बजड़ल युद्ध।
सभ आबि घेरल कुशीनगर,
मुदा द्रोण ब्राह्मण बुझाओल दुनू पक्ष।
बाँटि अस्थिकेँ आठ भाग,
द्रोण सेहो लेलक नौम घट जइमे छल सभटा अस्थि पहिले पहिल
आ दसम घट लेलक ’पिसल’ जाति, जइमे छल छाउर बुद्धक शरीरक।
सभ घुरला अपन देश आब।
अस्थि कलश आ छाउर कलश पर बना कऽ दस स्तूप,
करै गेला पूजा अर्चना जाय,
दसटा स्तूप बनि भेल ठाढ़,
जतऽ अखण्ड ज्योति आ घण्टाक होइ छल निनाद।
फेर राजगृहसँ ऐल पाँच सय भिक्षु,
आनन्दकेँ देल गेल ई काज,
बुद्धक सभ शिक्षाकेँ कहि सुनाउ,
हएत ई सभ समग्र आब।
हम ई छलौं सुनने ऐ तरहेँ,
कएल सम्पूर्ण वर्णन नीके।
कालान्तरमे अशोक स्तूपसँ लऽ धातु
कऽ कय सय विभाग,
बनाओल कएक सय स्तूप,
श्रद्धाक प्रतीक।
जहिया धरि अछि जन्म, अछि दुख,
पुनर्जन्मसँ मुक्ति अछि मात्र सुख,
तकर मार्ग देखाओल जे महामुनि,
शाक्यमुनि सन दोसर के अछि शुद्ध।
असञ्जाति मनक ई सम्बल,
देलौं अहाँ हे बुद्ध
हे बुद्ध
हे बुद्ध ।
गंगेश उपाध्यायक तत्त्वचिन्तामणि
गंगेश उपाध्यायक तत्त्वचिन्तामणि चारि खण्डमे विभाजित अछि- १. प्रत्यक्ष (सोझाँ-सोझी), (२) अनुमान, (३) उपमान (तुलना केनाइ) आ (४) शब्द (मौखिक गवाही)। वैध ज्ञान प्राप्त करबाक ई चारिटा साधन ऐ चारि खण्डमे अछि।
खण्ड एक
प्रत्यक्ष
गङ्गेशक आह्वान: त्रिमूर्ति शिवक आह्वानसँ
ई खण्ड शुरू होइत अछि।आ तेँ
आह्वानक विषयपर चर्चा शुरू होइत अछि। ई मानल जाइत अछि जे कोनो परियोजनाक
प्रारम्भमे भगवानक आह्वानसँ ई कार्य पूर्ण होइत अछि।
आपत्तिः जे कोनो आह्वान कोनो काज पूरा करबाक कारण अछि, से सकारात्मक बा
नकारात्मक संगतिक माध्यम सँ स्थापित नै कएल जा सकैत अछि, किएक तँ एहनो भेल
अछि जे कोनो आह्वानक बिना सेहो कोनो काज पूरा कएल गेल।
आपत्तिक उत्तर: एकर कारण ई अछि जे ई आह्वान पूर्व जन्ममे कयल गेल छल/
हएत।
आपत्तिः नै, ई तँ घुमघुमौआ तर्क अछि, आ ओनाहितो कोनो काज पूरा केना होइत अछि
तकर अनुभवजन्य कारण सभ आह्वानकेँ अनावश्यक सिद्ध करैत अछि।
आपत्तिक उत्तर: ई प्रमाण जे आह्वान
कार्य पूर्ण हेबाक कारण छै, तइमे दू चरणक
अनुमान शामिल
अछि। पहिल, ई जे ई शिष्ट लोक द्वारा निन्दित नै अछि वरन हुनका
सभ द्वारा सेहो आह्वानसँ
कार्य प्रारम्भ कएल जाइत अछि। तखन ई अनुमान लगाओल जा सकैत अछि जे काज पूरा भेनाइ
फल अछि किएक तँ ई नियमित रूप सँ इच्छित अछि, आ आन कोनो फल उपलब्ध नै अछि।
आपत्ति: ई तर्क काज नै करत कारण ई पहिनेसँ ज्ञात अछि जे आह्वानक अछैतो काज
पूर्ण भऽ सकैत अछि, कारण-सम्बन्ध
कोनो तर्कसँ स्थापित नै कएल जा सकैत
अछि।
आपत्तिक उत्तर: हम सभ ऐ तर्क
(जे आह्वान कार्य पूर्ण करबैत
अछि) क समर्थन लेल वैदिक आदेशक आह्वान करैत
छी। मुदा कोनो एहन वैदिक कथन नै भेटैत अछि। से अनुमान कएल जा सकैत अछि जे
ऐ तरहक आह्वान सुसंस्कृत लोक सभ द्वारा
शुरू कएल गेल आ कएल जाइत अछि।
प्रार्थना देह (जेना प्रणाम), वाणी (गायन) आ मस्तिष्क (ध्यान) सँ होइत अछि। मुदा कोनो ईश्वरमे विश्वास केनिहार सेहो कार्य सम्पन्न कऽ लैत अछि, तँ की ओ पूर्व जन्ममे आह्वान/ प्रार्थना केने हएत? आ आह्वानक बादो कखनो काल कार्य सम्पन्न नै होइत अछि, से की ढेर रास बाधा ओइ साधारण आह्वानसँ दूर नै भेल हएत?
ऐ तरहक तर्कसँ प्रारम्भ भेल छल ई ग्रन्थ, ७-८ सय बर्ख पहिने!
(सन्दर्भ: कार्ल एच पॉटर: एनसाइक्लोपीडिया ऑफ इण्डियन फिलोसोफी, १९९३; सतीश चन्द्र विद्याभूषण: अ हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लॉजिक, १९२१)
स्टीफन एच. फिलिप्स लिखै छथि:
मिथिलामे राखल गेल पञ्जी वंशावली अभिलेखसँ पता चलैत अछि जे हुनक पत्नी आ तीनटा बेटा आ एकटा बेटी छल। एकटा बेटा छलन्हि प्रसिद्ध न्याय लेखक, वर्धमान। गङ्गेश स्पष्ट रूपसँ अपन जीवनकालमे प्रसिद्धि प्राप्त कयलनि, जकरा "जगद-गुरु" कहल जाइत अछि, जे हुनक समयक शैक्षणिक संस्थानक लेल "प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय प्रोफेसर" क लगभग समकक्ष हएत।
Genealogical records kept in Mithila suggest that he had a wife and three sons and a daughter. One child was the famous Nyaya author, Vardhamana. Gangesa apparently achieved quite some fame during his lifetime, referred to as "jagad-guru," which would be the rough equivalent of "Distinguished University Professor" for the educational institutions of his time.
[Phillips, Stephen, "Gangesa", The Stanford Encyclopedia of Philosophy (Summer 2020 Edition), Edward N. Zalta (ed.), URL = https://plato.stanford.edu/archives/sum2020/entries/gangesa/ ]
गंगेश जगदगुरु तँ रहथि परमगुरु सेहो रहथि आ परमगुरुक उपाधि हिनका अतिरिक्त मात्र नूतन वाचस्पति (वृद्ध वाचस्पतिक परवर्ती) केँ पछाति जा कऽ प्राप्त भेलन्हि।
मुदा गंगेशक संगे जे अन्याय रमानाथ झा आ उदयनाथ झा अशोक केलन्हि से बीसम आ एक्कैसम शताब्दीमे भेल आ तकर दुष्परिणाम स्टीफन फिलिप्स सन नैय्यायिक उठेबा लेल अभिशप्त भेला। एतऽ अहाँकेँ सूचित करी जे स्टीफन फिलिप्स तत्त्वचिन्तामणिक चारू खण्डक सम्पूर्ण अंग्रेजी अनुवाद केनिहार पहिल व्यक्ति छथि [Jewel of Reflection on the Truth about Epistemology: A Complete and Annotated Translation of the Tattva-cinta-mani, Bloomsbury Academic (2020)]। हुनका अलाबी वी.पी. भट्ट सेहो तत्त्व चिन्तामणिक चारिमेसँ ३ खण्डक सम्पूर्ण अनुवाद २०२१ धरि कऽ लेने छथि [१. प्रत्यक्ष (सोझाँ-सोझी), (२) अनुमान, आ (४) शब्द (मौखिक गवाही); (३) उपमान (तुलना केनाइ)बाँकी छन्हि [Word The Sabdakhanda of Tattvacintamani- With Introduction, Sanskrit Text, Translation And Explanation (2 Vols Set) 2005; Perception The Pratyaksa Khanda of The Tattvacintamani 2012 (2 Vols Set); Inference the Anumana Khanda of the Tattva Chintamani ( With Introduction, Sanskrit text, Translation & Explanation ) (2 Vols Set) 2021 Published by Eastern Book Linkers, Delhi]।
HONOUR KILLING OF GANGESH UPADHYAYA (FIRST BY RAMANATH JHA, THEN BY UDAYANATH JHA 'ASHOK' (A PARALLEL HISTORY OF MITHILA AND MAITHILI LITERATURE, WHY TODAY ITS NEED BEING FELT MORE INTENSELY?)
I was not surprised, though I must have been when I saw a monograph on Gangesh Upadhyaya, whose copyright is being held by Sahitya Akademi, the author of the monograph is Udayanath Jha ' Ashok'. I thought that Udayanath Jha ' Ashok', who has been given Bhasha Samman also, by the same Sahitya Akademi, would do some justice. But truth and research seem elusive in Sahitya Akademi monographs, at least that I found in this monograph.
I searched and searched through chapters, that now the author will show courage. But the author like Ramanath Jha seems ashamed of the roots and offspring of Gangesh Upadhyaya. He tries to confuse the issue, but there is no confusion now at least since 2009. But in 2016 Sahitya Akademi seems to carry out the casteist agenda. Udayanath Jha mockingly pretends to search his name, lineage etc, where nothing is there to search for, yet he could not muster the courage, to tell the truth, and ends up just repeating the facts in 2016 that Dineshchandra Bhattacharya already has published way back in 1958.
The honour killing of Gangesh Upadhyaya by Prof. Ramanath Jha is being taken forward by Sahitya Akademi, Delhi in a most hypocritical way.
Ramanath Jha's obscurantism vis-a-vis Panji is evident from one example. The inter-caste marriage in Panji was well known to him (but he chose to keep the Dooshan Panji secret- which has been released by us in 2009), and it was apparent that the great navya-nyaya philosopher Gangesh Upadhyaya married a "Charmkarini" and was born five years after the death of his father (see our Panji Books Vol I & II available at http://videha.co.in/pothi.htm ). Sh. Dinesh Chandra Bhattacharya writes in the "History of Navya-Nyaya in Mithila". (1958)
"The family which was inferior in social status is now extinct in Mithila----- Gangesha's family is completely ignored and we are not expected to know even his father's name-----...As there is no other reference to Gangesa we can assume that the family dwindled into insignificance again and became extinct soon after his son's death." [1958, Chapter III pages 96-99), which is a total falsehood. He writes further that all this information was given to him by Prof. R. Jha, and he seemed thankful to him.
The following excerpt from Our Panji Prabandh (parts I&II) is being reproduced below for ready reference:
-
महाराज हरसिंहदेव- मिथिलाक कर्णाट वंशक। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण-रत्नाकरमे हरसिंहदेव नायक आकि राजा छलाह। 1294 ई. मे जन्म आ 1307 ई. मे राजसिंहासन। घियासुद्दीन तुगलकसँ 1324-25 ई. मे हारिक बाद नेपाल पलायन। मिथिलाक पञ्जी-प्रबन्धक ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय मध्य आधिकारिक स्थापक, मैथिल ब्राह्मणक हेतु गुणाकर झा, कर्ण कायस्थक लेल शंकरदत्त, आ क्षत्रियक हेतु विजयदत्त एहि हेतु प्रथमतया नियुक्त्त भेलाह। हरसिंहदेवक प्रेरणासँ- आ ई हरसिंहदेव नान्यदेवक वंशज छलाह, जे नान्यदेव कार्णाट वंशक १००९ शाकेमे स्थापना केने रहथि- नन्दैद शुन्यं शशि शाक वर्षे (१०१९ शाके)... मिथिलाक पण्डित लोकनि शाके १२४८ तदनुसार १३२६ ई. मे पञ्जी-प्रबन्धक वर्तमान स्वरूपक प्रारम्भक निर्णय कएलन्हि। पुनः वर्तमान स्वरूपमे थोडे बुद्धि विलासी लोकनि मिथिलेश महाराज माधव सिंहसँ १७६० ई. मे आदेश करबाए पञ्जीकारसँ शाखा पुस्तकक प्रणयन करबओलन्हि। ओकर बाद पाँजिमे (कखनो काल वर्णित १६०० शाके माने १६७८ ई. वास्तवमे माधव सिंहक बादमे १८०० ई.क आसपास) श्रोत्रिय नामक एकटा नव ब्राह्मण उपजातिक मिथिलामे उत्पत्ति भेल।
So, the Srotriyas as a sub-caste arose around 1800 CE as per authentic panji files. Sh. Anshuman Pandey [Gajendra Thakur of New Delhi provided me with digitized copies of the genealogical records of the Maithil Brahmins. The panjikara-s whose families have maintained these records for generations are often reluctant to allow others to pursue their records. It is a matter of 'intellectual property' to them. I was fortunate enough to receive a complete digitized set of panji records from Gajendra Thakur of New Delhi in 2007. [Recasting the Brahmin in Medieval Mithila: Origins of Caste Identity among the Maithil Brahmins of North Bihar by Anshuman Pandey, A dissertation submitted in partial fulfilment of the requirements for the degree of Doctor of Philosophy (History) in the University of Michigan 2014].
Later these Panji Manuscripts were uploaded to Videha Pothi at www.videha.co.in and google books in 2009).
The so-called Maharajas of Darbhanga were permanent settlement zamindars of Cornwallis, and there were so many in British India, but in Nepal there were none. In the annexure of our book (Panji Prabandh vol I&II), we have attached copies of genealogy-based upgradation orders (proof of upgradation for cash). So, before 1800 CE, there was no srotriya sub-caste in British India and there is no such sub-caste within Maithil Brahmins in Nepal part of Mithila even today. Srotriya before that referred to following some education stream in British India, in Nepal it still has that meaning.
ORIGINAL PANJI REFERENCES ARE PLACED BELOW:
४९.
|
१८८/२ |
चर्मकारिणी |
माण्डर |
वभनियाम |
छादन |
|
तत्त्वचिंतामणि कारकगंगेश |
छादनगंगेशक |
नाँई |
रत्नाकरक-मातृक (अज्ञात) |
गंगेश |
|
|
वल्लभा |
भवाइ |
माहेश्वर |
|
|
|
|
|
जीवे |
|
२१//१० छादनसँ तत्व चिन्तामणि कारक जगद्गुरु गंगेश
छादनसँ तत्व चिन्तामणि कारक
गंगेशक वल्लभा चर्मकारिणी पितृ परोक्षे पञ्च वर्ष व्यतीते तत्व चिन्तामणि कारक गंगेशोत्पत्ति- चर्मकारिणी मेधाक सन्तानक लागिमे छलन्हि
छादन सँ तत्व चिन्तामणि कारक मōमō गंगेश
"तत्व चिन्तामणि कारक म. म. पा. गंगेशक विषयक लेख प्राचीन पञ्जीसँ उपलब्ध"।।
पितृ परोक्षे पंच वर्ष व्यतीते गंगेशोत्पत्तिः इति प्राचीन लेखनीय: कुत्रापि
देवानन्द पञ्जी ३९-२ छादनसँ जगदगुरू गुंरू गंगेश सुताय वभनियामसँ जयादित्य सुत साधुकर पत्नी
देवानन्द पञ्जी ३३९-३ जगदगुरू गंगेश सुत सुपन दौ भण्डारिसमसँ हरादित्य दौ.।। पुत्र सुताच गोरा जजिवाल सँ जीवे पत्नी ए सुत सन्दगहि भवेश्वर। अत्रस्थाने सुपनभ्रातृ हरिशर्म्म दारिति क्वचित् जजिवाल ग्राम
देवानन्द पञ्जी ३०=५ छादनसँ उपायकारक म.म. पा. वर्द्धमान सुताच खण्डवलासँ विश्वनाथ सुत शिवनाथ पत्नी गंगेश- म.म. वर्द्वमान/ सुपन/ हरिशर्म्म
Gangesh, the author of the Tattvachintamani, wrote one text equivalent to 12,000 texts. Now come to the fact mentioned in the Panji- it clearly states that Gangesh of Tattvachintamani was born five years after the death of his father and he married a tanner, so why did Ramanath Jha hide this from Dinesh Chandra Bhattacharya? Vardhamana, son of Gangesh, calls Gangesh sukavikairavakananenduh. But the conspiracy under which the poems of a famous scholar like Gangesh are not available today is clear from the example given above. Vasudev of Bengal was a classmate of Pakshadhar Mishra of Mithila, he came to study in Mithila, passed the shalaka examination and received the title of sarvabhaum. Vasudeva memorised the tattvachintamani of Gangesh and the nyayakusumanjali karika of Udayana. Pakshadhar and other Mithila teachers did not allow writing (copying) tattvachintamani. Raghunath Shiromani, a disciple of Vasudeva, took the right of certification after he defeated his guru Pakshadhar Mishra in a scriptural debate (shastrartha). The Navya Nyaya school was founded in Navadvipa by Vasudeva-Raghunath. Pakshadhar Mishra was a contemporary of Vidyapati (distinct from the Padavali writer who was of the pre-Jyotirishwar period) who wrote in Sanskrit and Avahatta. And the arrival of Mithila students of Bengal from Bengal stopped after Raghunath Shiromani. Gangesh Upadhyaya enjoyed 'param guru' as well as 'jagad guru' titles, the highest titles of the time and as per Panji only Vacaspati Mishra II was the other person who enjoyed the title of 'param guru'. The extinction of Navya-Nyaya School from Mithila, as described above, was a revenge of nature against the honour killing of Gangesh Upadhyaya and his family.
[Translation of the Maithili Short Story, 'Shabdashastram' (based on the true Panji records of Gangesh Upadhyaya) was done by the author Gajendra Thakur himself: published as 'The Science of Words' Indian Literature Vol. 58, No. 2 (280) (March/April 2014), pp. 78-93 (16 pages) Published By: Sahitya Akademi]
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मैथिलीक वर्तनी
१
मैथिलीक वर्तनी- विदेह मैथिली मानक भाषा आ मैथिली भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
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मैथिलीक वर्तनीमे पर्याप्त विविधता अछि। मुदा प्रश्नपत्र देखला उत्तर एकर वर्तनी इग्नू BMAF001 सँ प्रेरित बुझाइत अछि, से एकर एकरा एक उखड़ाहामे उनटा-पुनटा दियौ, ततबे धरि पर्याप्त अछि। यू.पी.एस.सी. क मैथिली (कम्पलसरी) पेपर लेल सेहो ई पर्याप्त अछि, से जे विद्यार्थी मैथिली (कम्पलसरी) पेपर लेने छथि से एकर एकटा आर फास्ट-रीडिंग दोसर-उखड़ाहामे करथि|
IGNOU इग्नू BMAF-001
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Maithili (Compulsory & Optional)
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यू. पी. एस. सी. (मेन्स) ऑप्शनल: मैथिली साहित्य विषयक टेस्ट सीरीज
यू.पी.एस.सी. क प्रिलिमिनरी परीक्षा सम्पन्न भऽ गेल अछि। जे परीक्षार्थी एहि परीक्षामे उत्तीर्ण करताह आ जँ मेन्समे हुनकर ऑप्शनल विषय मैथिली साहित्य हेतन्हि तँ ओ एहि टेस्ट-सीरीजमे सम्मिलित भऽ सकैत छथि। टेस्ट सीरीजक प्रारम्भ प्रिलिम्सक रिजल्टक तत्काल बाद होयत। टेस्ट-सीरीजक उत्तर विद्यार्थी स्कैन कऽ editorial.staff.videha@zohomail.in पर पठा सकैत छथि, जँ मेलसँ पठेबामे असोकर्ज होइन्हि तँ ओ हमर ह्वाट्सएप नम्बर 9560960721 पर सेहो प्रश्नोत्तर पठा सकैत छथि। संगमे ओ अपन प्रिलिम्सक एडमिट कार्डक स्कैन कएल कॉपी सेहो वेरीफिकेशन लेल पठाबथि। परीक्षामे सभ प्रश्नक उत्तर नहि देमय पड़ैत छैक मुदा जँ टेस्ट सीरीजमे विद्यार्थी सभ प्रश्नक उत्तर देताह तँ हुनका लेल श्रेयस्कर रहतन्हि। विदेहक सभ स्कीम जेकाँ ईहो पूर्णतः निःशुल्क अछि।- गजेन्द्र ठाकुर
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सर्विसेज (मुख्य) परीक्षा, मैथिली (ऐच्छिक) लेल टेस्ट सीरीज/ प्रश्न-पत्र- १ आ २
Test Series-1- गजेन्द्र ठाकुर
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NTA-UGC/ UPSC/ BPSC Maithili Optional- गजेन्द्र ठाकुर
मैथिली समीक्षाशास्त्र (तिरहुता)
मैथिली समीक्षाशास्त्र (भाग-२, अनुप्रयोग)
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भारतक संविधान (सौजन्य
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दत्त-वतीक वस्तु कौशल- डॊ. श्रीरामदेवझा
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English Maithili Computer Dictionary (Complete)- Gajendra Thakur
Maithili English Dictionary- गोविंद झा
राधाकृष्ण चौधरी- A Survey of Maithili Literature
राधाकृष्ण चौधरी- मिथिलाक इतिहास
जयकान्त मिश्र- A History of Maithili Literature Vol. I
राजेश्वर झा- मिथिलाक्षरक उद्भव ओ विकास (मैथिली साहित्य संस्थान आर्काइव) (यू.पी.एस.सी. सिलेबस)
दत्त-वती (मूल)- श्री सुरेन्द्र झा सुमन (यू.पी.एस.सी. सिलेबस)
डॉ. रमानन्द झा 'रमण'
फेर एहि मनलग्गू फाइल सभकेँ सेहो पढ़ू:-
कुमार पवन (साभार अंतिका)
अनूदित साहित्य (आन भाषासँ)- गजेन्द्र ठाकुर
विदेह:सदेह २७ (गजेन्द्र ठाकुर आ रवि भूषण पाठकक आन भाषासँ अनूदित गद्य आ पद्य- अंक १-३५० सँ)
बाल साहित्य (अनुवाद- द्विभाषिक- मैथिली-अंग्रेजी)- गजेन्द्र ठाकुर
अनुवाद (मैथिली):
1. भारतोल्लक राजकुमारी, (बिनु शब्दक), (बाल साहित्य), (2022)
2. मू परियोजना (तिरहुता लिपि), (2023)
3. मू परियोजना (देवनागरी लिपि), (2023)
4. मसाई केर परिवर्तनकारी रेबेका, (बाल साहित्य), (2022)
5. सुनू , (बाल साहित्य), (2022)
6. घर सभ , (बाल साहित्य), (2022)
7. एकटा नीक दिन, (बाल साहित्य), (2022)
8. चलू हम तँ ठीक छी ने! , (बाल साहित्य) ,(2022)
9. की अहाँ ऐ चिड़ै सभकेँ देखने छी?, (बाल साहित्य), (2022)
10. टोस्ट , (बाल साहित्य), (2022)
11. बड़ीटा! कनियेटा!, (बाल साहित्य), (2022)
12. एतऽ हम सभ रहै छी , (बाल साहित्य), (2022)
13. भारतोल्लक राजकुमारी, (बाल साहित्य), (2022)
14. वुयो , (बाल साहित्य), (2022)
15. कच-कच कचाक, (बाल साहित्य), (2022)
16. चुन्नू-मुन्नूक नहेनाइ, (बाल साहित्य), (2022)
17. नेना जे बैलूनसँ डेराइत छल , (बाल साहित्य) ,(2022)
18. अद्भुत फिबोनाची अंक-शृंखला, (बाल साहित्य), (2022)
19. हारू , (बाल साहित्य), (2022)
20. अखन नै, अखन नै!, (बाल साहित्य), (2022)
21. जन्मदिनक उत्सव भोज, (बाल साहित्य), (2022)
22. मोट राजा पातर-दुब्बड़ कुकुड़, (बाल साहित्य), (2022)
23. बचिया जे अपन हँसी नै रोकि सकैत छलि , (बाल साहित्य), (2022)
24. अंग्रेजी, (बाल साहित्य), (2022)
25. हम सूँघि सकै छी, (बाल साहित्य), (2022)
26. छोट लाल-टुहटुह डोरी, (बाल साहित्य), (2022)
27. करू नीक, भोगू नीक , (बाल साहित्य) , (2022)
28. ई सभटा बिलाड़िक दोख अछि! , (बाल साहित्य) , (2022)
29. चोभा आम!, (बाल साहित्य), (2022)
30. हमर टोलक बाट , (बाल साहित्य) , (2022)
31. जखन इकड़ू स्कूल गेल, (बाल साहित्य), (2022)
32. माछी फेर आउ टाटा!, (बाल साहित्य), (2022)
33. अमाचीक जुलुम मशीन सभ , (बाल साहित्य) ,(2022)
34. टिंग टोंग, (बाल साहित्य), (2022)
35. पाउ-म्याऊ-वाह, (बाल साहित्य), (2022)
36. कुकुड़क एकटा दिन, (बाल साहित्य), (2022)
37. हमरा नीक लगैए, (बाल साहित्य), (2022)
38. रीताक नव-स्कूलमे पहिल दिन, (बाल साहित्य), (2022)
39. कनी हँसियौ ने! , (बाल साहित्य) ,(2022)
40. लाल बरसाती, (बाल साहित्य), (2022)
41. भूत-प्रेतक नाट्यशाला, (बाल साहित्य), (2022)
42. आउ पएर गानी, (बाल साहित्य), (2022)
43. कतऽ अछि ई अंक 5?, (बाल साहित्य), (2022)
मैथिली-अंग्रेजी टॉकिंग रीड-अलाउड ऑडियो बुक:
1. https://bloomlibrary.org/player/Wcf6zr5CoF (मसाई केर परिवर्तनकारी रेबेका), (बाल साहित्य), (2022)
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3. https://bloomlibrary.org/player/f19pSdhGMo (एकटा नीक दिन), (बाल साहित्य), (2022)
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5. https://bloomlibrary.org/player/dAzC0Fubt7 (की अहाँ ऐ चिड़ै सभकेँ देखने छी?), (बाल साहित्य), (2022),
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