अंक ४२५ पर टिप्पणी
आशीष अनचिन्हार
विदेहक अंक 425 मे प्रकाशित कुमार मनोज काश्यपक लघुकथा "साँझक भोर" मार्मिक
अछि। पाठक ई सोचबा लेल बाध्य भऽ जाइत अछि जे ओकर एक्सीटेंड भेल छलै वा कि
मुआवजाक भरोसपर ओ अपने कारक निच्चा आबि गेल? मैथिलीमे एहन-एहन रचनाक
आवश्यकता छै।
अही अंकमे प्रणव कुमार झा भारतमे क्रिटिकल केयरसँ संबंधित नीक जानकारी देने
छथि। विदेह जँ एहि प्रकारक आलेख प्रकाशित करैत चलि जाएत तँ निश्चिते पाठक
लेल ई एकटा 'अथाह ज्ञान स्रोत' बनि जाएत।
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