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पवन मिश्र 'गोनौली'

मिथिलाक संस्कृति आ परिवर्तनक स्वरूप
(पद्यमय)

१.
परिवर्तन सृष्टिक अछि आधार,
पल- पल घटित होइत रहैछ |
सृष्टिक कोनो अवयव एहिसँ नञ फराक
परिवर्तनक बिना जीवन तथा
प्रकृतिक कल्पना नञ भऽ सकैछ ||

ज्ञान, अनुभव, अनुभूति आ प्रयोजन
भेल करैछ समयक सापेक्ष |
परिवर्तन किछु सार्थक किछु निरर्थक,
सार्थक परिवर्तन जीवनक प्राण होइछ ||

नजरि घुरा कऽ देखि तँ,
मानव जीवनक परिवर्तन, पहिरन- ओढ़न,
सभ्यताक आरंभहिसँ |
खान- पीन, रहन- सहन आ मनोरंजन,
सामूहिकतासँ निजताक दिश क्रमशः प्रारमभहिसँ||

सभ्यता आ संस्कृतिक सदति रहल
अन्योन्याश्रित अछि सम्बन्ध |
एकक परिवर्तन दोसरकें,
व्यावहारिक क्रियाकलाप,
सोच आ जीबाक बदलय ढंग ||

२.

सबसँ पहिने,
लोक आस्था ओ विश्वासक करब बात |
वेद- पुराण, सनातन धर्म, तांत्रिक मत
आ लोकधर्मक विशेष प्रभाव ||

लोकधर्मक महत्व सबसँ अधिक,
लोकवेदक मान्यता प्रबल थिक |
पहिने लोक तखन वेद,
एहि क्षेत्रमे समय- समय पर भेल परिवर्तन,
आस्था आ विश्वासमे प्रभावित भेल जन-जन ||

वैदिकालमे छलाह जे देवतागण,
पछाति भेल बढ़ोतरी अहुमे आ परिवर्तन |
नव- नव देवी- देवता अबैत गेलाह,
अवतारवादक मान्यता पबैत गेलाह ||

तंत्र में नव- नव प्रयोगक भेल चलनसारि,
सिद्ध संतलोकनिक खास कए बढ़ल प्रभाव |
एहि सभक भेल परिणाम,
मिथिला आस्थाक क्षेत्र सेहो नहि रहल वाम ||

वाममार्गी तंत्रक चलनसारि,
मिथिलामे रहल सीमित |
तहिना लौकिक धर्म क्षेत्रमे,
नित नव- नव लोकदेवता आ देवी भेलथि पूजित ||

एखनहु ग्रामदेवता डीहवार,
यानी लोकदेवता कहबै छथि |
कुलदेवता या कुलदेवी,
सेहो तांत्रिके देवी भेल करै छथि ||

समय- समय पर, खास देवी-देवताक
चला-चलती देखबामे अबैत- रहल |
एहि श्रेणीमे, संतोषीमाता, वृहस्पतिदेव आ
महुआगाछ पर्यन्त सम्मिलित होइत रहल ||

तहिना पंचदेवोपासक मिथिला
शैव, वैष्णव आ शाक्तमे विभक्त भेल |
वैष्णवमे मात्र छलाह सीतारामक पूजक,
पछाति, राधाकृष्णक उपासनाक हेतु
कैयेक सम्प्रदाय अपनाओल गेल ||

३.

मिथिलामे जैन धर्मक सेहो छल प्रभाव,
कएक मुनि, साध्वी आ तीर्थंकरक भेल प्रादुर्भाव |
जखन बौद्धक भेल चला-चलती,
मिथिला सेहो नहि रहल अछूति ||

आइ मिथिलामे जैनक,
रहल नहि कोनो अस्तित्व |
बौद्धक प्रभावकें नगण्य केलनि,
मिथिलेक विद्वान आ दार्शनिक व्यक्तित्व ||

एहिठाम,
कबीर पंथकें माननिहार छथि पर्याप्त |
हुनका लोकनिक आस्थामे मुदा,
कबीरक संग आन देवी- देवता सेहो छथि व्याप्त ||

४.

मध्य कालमे भारतमे जखन,
इस्लामक भेल छल आगमन |
भेल मिथिला सेहो बेस प्रभावित,
मारितेरास लोकक भेल धर्म परिवर्तन ||

हिनका लोकनिक,
धर्म आ संस्कृतिमे भेल मौलिक परिवर्तन |
मुदा, पूर्वक संस्कृतिसँ साफ भ' क'
नहि कटि सकलाह,
अपना जीवनमे कइएकटा पुरना वस्तु
रखनहि रहलाह ||

जेना, स्त्रीगणक द्वारा
नूआ, सेनूर आ चूड़ीक बेबहार |
आँगी ई लोकनि भरि देहक पहिरथि,
बुरकाक प्रयोग बिरलाएके देखार ||

पुरुख लोकनि, लूँगी आ पैजामाक संग
किछु लोक धोतियो अपनौलनि |
पहिरन- ओढ़नमे फराक अबस्से
मुदा संस्कृतिसँ साफ नहि कटि पौलनि ||

मुसलमान शासक राज- काजमे,
फारसीक कएल प्रयोग |
रोजी- रोटीक भाषा भेल फारसी,
मैथिलीकें बिगड़ल संजोग ||

मुसलमान लोकनिक दाहा,
हिन्दूक लेल सेहो भेल पूज्य |
दाहा दलाने- दलाने घूमय लागल,
चढ़ौआ चढ़ए लागल, कबुलापाती होमय लागल,
मुसलमानक मजार हिन्दू लोकनिक तीर्थ बनल ||

मुसलमानक आगमनससँ,
पर्दा प्रथाक भेल आरम्भ |
गोदना गोदेबाक परम्परा सेहो आएल,
जे अंतिम साँस गनि रहल,
ओना, गोदनाक आधुनिक रूपक
चलन भेल प्रारम्भ ||

मिथिलामे पुत्रक जन्म पर,
छल पमरिया नाचक परम्परा |
ई सब मुसलमाने छल,
ई प्रथा आइ भ' चुकल अधमरा ||

मिथिलाक खानपीन पर सेहो
पड़ल मुसलमानक प्रभाव |
सेबइके खीर आ पराठा,
प्रमुख, भोजनक बनल स्वभाव ||

मुर्गा खेबाक चलनसारि,
आस्ते- आस्ते आम भ' गेल |
खस्सीक हलाली माउस अधिकांश हिन्दूक,
घर- घर सरेआम भ' गेल ||

खानपीनमे अल्लू आ टमाटरके,
मध्यकालमे भेल चलन |
तमाकू सेहो एहि समयक,
शुरू भेल हुक्का पीबक प्रचलन ||

मुसलमानक आगमनक एकटा पैघ प्रभाव,
पहिरना पर सेहो पड़ल |
सियाओल वस्त्रक उपयोग वर्जित छल,
मुदा, मुसलमानक देखाँउसे-
सियाकए कुर्ता पहिरबाक प्रथा चलल ||

मिथिलामे एखनो कपड़ा सीबाक उद्यममे,
मुसलमाने छथि लागल |
जोड़ल काठक उपयोग सेहो वर्जित छल,
धरि, ताहि सब रेबाजकें लोकसब त्यागल ||

५.

औद्योगिक क्रांति, खोजी प्रवृत्तिक कारण,
अंग्रेजक प्रभाव विश्व सहित मिथिलो पर पड़ल |
भारतमे अंग्रेजी राजक फलस्वरूप,
रेलवेक विकास आ पक्की सड़क सेहो बनल

अंग्रेजी लोक पढ़य लागल,अंग्रेजी बढ़य लागल,
विश्वक नव-नव ज्ञान मिथिलामे आबय लागल |
लोकक पहिरन- ओढ़न भेल अंग्रेजी
अंग्रेजी शब्द सेहो मैथिली मे आबय लागल ||

अंग्रेजी नववर्ष बनल एक पावनि,
केक काटि जन्मदिन मनावनि |
पश्चिमी रेबाज आइ बनि गेल विधान,
मिथिलोमे अंग्रेजियाकें बड्डे सम्मान ||

६.

मिथिलाक लोकविश्वासमे छल अंधविश्वास,
जाहिसँ अवरुद्ध छल समाजक विकास |
समयक संग बहुत रास मान्यता विस्मृत भ' गेल,
जे एखनहु होइछ दृष्टिगोचर सेहो नामे लेल ||

छिक्के नहि निकलब, नहि भदबामे बहरायब,
यात्राकाल टोकबकें मानब अधलाह |
भूत- प्रेत, डाइन- योगिन आ भगताक,
तंत्र- मंत्र आ झाड़- फूकक रहै छल खगता ||

हैजा, कोदबा आ चेचककें,
मानल जाइ छल देवीक प्रकोप |
धियापूताकें पाच दिअयबाक,
रेबाज बनल छल बड़ अनमोल ||

ई सब बहुत हद धरि,
आइ गेल बदलि |
तहिना,
जीवन विधवाक छल अति दयनीय,
विधवाक विवाह बुझल जाइ छल अधलाह
आइ ओकरो जीवन गेल सुधरि ||

बाल विवाह आ अनमेल विवाहक,
बदलि गेल अछि पुरना कुरीति |
बहुपत्नीक रेबाज सेहो उठल,
बदलल काटर - दहेज आ छुआछूतक रीति ||

बदलि गेल समाजक लोकव्यवहार,
सामाजिकताक भावना भेल कमजोर |
नहि रहल श्रेष्ठ आ समाजक कोनो लेहाज,
जेठकें पएर छुबि नवतुरिया नहि लागऽ चाहए गोड़ ||

अतिथिक सत्कार आ समस्त समाजक संग,
बूढ़- बुढानुसक मोजर पूर्णतः घटिगेल |
अपनैती घटल आ बढ़ल स्वार्थ अहंकार
लोक- लोकमे आब ओ सलुकता नै रहि गेल ||

७.

आधुनिकता आ सुखक उजाहिमे,
भेल पलायन गाम- गामसँ |
जाति - जातिमे छल जे पारस्परिक सरोकार,
से सामाजिकताक बेस ह्रास भेल धरामसँ ||

औद्योगीकरण ओ मशीनीकरणक युगमे,
बहुत रास सुविधा ओ आराम भेटल |
जिनगी जिनाइ सहज भए गेल,
तैं बहुत चलनसारक विघटन घटल ||

कम लोक आ कम समयमे,
काज अधिक होमए लागल |
ताहि कारणे बहुत रास साबिकक
आचार- विचार बदलए लागल ||

बड़दक दाउनी, करीन पटौनी,
बिला गेल बटगमनी ओ लगनी गीत |
चूड़ा कूटब, धान कूटब आ कोल्हुआड़क संग,
पचनियाँ आ गोदनाक गीत ||

सब क्रियाक संग,
जुड़ल अछि संस्कृतिक घनिष्ठता |
महफा- खरखरिया ओ बैलगाड़ीमे ओहार,
होइत छल द्विरागमन आ विदागरी,
ई छल मिथिलाक व्यवहारिक संस्कार ||

नवकनियाँक विदागरीक दिन मनायब,
आब भए गेल खिस्सा |
दिन फेरब, लिआओन करायब, बेटीकें
छओ मास नैहर राखब,
आब सिर्फ अभिलाषा ||

माल- जाल नगण्य भए गेल,
माल संदर्भित मारिते ज्ञान खतम भए गेल |
ओकर उपयोगक वस्तु,
आब सभ धरोहर रहि गेल ||

८.

लोक ओ पारम्परिक गीतमे,
बहुत समृद्ध रहल मिथिला |
कोनो सांस्कृतिक समाजक लेल,
कठिन रहल मोकाबिला ||

चन्दा झा जतेक तरहक,
लोकराग आ भासक केने छथि चर्चा |
आस्ते- आस्ते बहुत रास अलोपित भऽ गेल,
शेष बाँचल राग - भासक अछि अन्तिम अवस्था ||

किछु तऽ साफे खतम भए गेल,
लगनी, बटगमनी ओ पचनियाँक गीत |
निर्गुण आदि आब भेटब दुर्लभ,
अलोपित भए गेल गोदनाक गीत ||

तहिना पमार, ग्वालरि आ तिरहुत आदि,
खिस्सा त' एहिठामक कहल नहि जाए |
के धियापूताकें मलार गाबि सुतबैथ,
मिथिलानीक कंठसँ आब सुनल नहि जाए!!

९.

भरि सालक विभिन्न पावनि- तिहारक,
आयुर्दा सेहो अछि लगिचिआएले |
लोकगाथाक गायन मंचनक परम्परा टूटल,
विभिन्न लोकनाट्य ग्रसित कालक गाले ||

पहिने टेप, टीवी, भिसीआर आ विडियो सिलेमा,
आब आरकेस्ट्रा आ इंटरनेट पर
परसाइत सामग्रीक चलनसार |
गाम- गाम एके लेखा,
सम्पूर्ण मिथिलाक इएह बेबहार ||

१०.

लोकक खानपीन आ पहिरन- ओढ़न सेहो बदलल,
भात, दालि,तरकारी, चटनी आओर पापड़ अचार |
तरुआ,दही, दूध, घी, साग, बड़- बड़ी आदि,
ई मिथिलाक मुख्य भोजनक सचार ||

विशिष्ट रूपें- फुलकी, पूड़ी, सोहारी, मालपूआ,
खीर, पोछुआ-पू, सकरौरी,मखानक खीर ओ खोआ |
मड़ुआ, मकइ, चाउर आदिक रोटी,
अल्हुआ, कोदो, भातक संग प्रिय माछमे पोठी ||

बलिप्रदान वला माउस लोक सब खाइ छल,
परबा,पौरकी,सिल्ही, बगेरी,साही आदिक माउस
सेहो साइत संजोगे खाएल जाइत छल |
रातिक बाँचल भोरमे होइ छल बसिया जलखै,
चूड़ा- दही, फुटहा, मुरही आदि सेहो प्रिय छलै ||

आब गहूमक रोटी,
मुख्य भोजनमे सामिल भए गेल |
बासि- बेरहटक सामग्रीमे
सेहो बदलाउ आबि गेल ||

मुर्गा, अण्डा आब खुलि कऽ खाइ छथि,
ताहि संग, देशक विभिन्न प्रांतक भोज्य वस्तु
खेबाक प्रचलन शुरू अछि |
इडली, डोसा, सांभर आ उतपम,
हलुआ, पराठा, पापड़, सेबइ, नूडल्स, चाउमिन
पोलाउ आदिक बेस होइछ संगम ||

मधुर खेबाक रेबाज अछि अनामति,
नहि मिठाइ त' चीनियों चाहबे करी |
मीठक लोभ तेजल नहि जाए,
अंततः गुड़ोसॅ काज चलेबे करी ||

११.

मिथिलामे पहिरन- ओढ़न
सेहो खूबे बदलल |
मुसलमानक एलाक बाद,
सियाओल वस्त्र पहिरबाक रेबाज बनल ||

पुरुख कुर्ता, मिरजइ, गोलगंजी पहिरय लगलाह,
पछाति पैजामा, लूंगीसँ सेहो परहेज नहि रखलाह |
अंग्रेजक बुस्सट,पेन्ट, कोट- सूट, टाइ चलल,
सैंडो,टीशर्ट आर अनेक तरहक परिधान बनल ||

पाग,पगड़ी आ चादर- दोपटा,
ई आब अवसर विशेषक मात्र शोभाटा |
स्त्रीगण आँगी, कुर्ती आ समीज-सलवार,
घघरी, लहँगा, पेन्ट- शर्ट सेहो पहिरथि भरमार ||

ओना स्त्रीगणक मुख्य पहिरना,
एखनहु धरि अछि नूआ |
हालाॅकि सुनटा आँचर कम,
आ उनटा आँचरक प्रचलन बनल हउआ ||

आब पुरनका गहना सेहो उठि गेल,
मंगलसूत्र, झुमका, हारक चलनसारि भऽ गेल |
बुलकी,बाजूबन, सूति,पाइत आ काड़ा,
उठल माकड़ी, डँड़कस, पहुँची, मोहरमाला ||

बाली, नथुनी, पायल, हार, छक,
बिछिया, औंठी एखनहु चल |
सिथीक विन्यास नव- नव भेल,
पुरुखक कनौसी, कुंडल, मट्ठा, हलुमानी
आ काँड़ा सेहो अलोपित भऽ गेल ||

पुरुख लोकनि बाबरी सीटै छथि
मिथिलाक प्रसिद्ध त्रिपुंड छोड़ि देल |
टीक, टीका कम्मे लोक राखथि,
नव- नव फैसनक विन्यास आबि गेल ||

१२.

नव-नौतारमे फैसनक मोह तेहन बेसम्हार
छुतिकोमे केस कटेबासँ छिटकय चाहथि |
छुतिकामे तेल, साबुन, आ श्रृंगार वर्जित छल,
केसक मोहमे नवतुरिया कठियारियो नहि जाए चाहथि ||

श्राद्धकर्म सोड़ह संस्कारमे,
अंतिम संस्कार थिक |
शास्त्रीय विधिसँ बेसी,
प्रदर्शनक बढ़ल बेबहार थिक ||

भोज- भातमे खूब खर्च कएल जाइछ,
एकरा सामाजिक सम्मानसँ जोड़ल जाइछ |
छठिहार, विवाह आ श्राद्धकर्म आडम्बर भए गेल,
मृत्युभोजक विरोध सेहो कतहु-कतहु शुरू भए गेल ||

देखाबा आनो संस्कार सभमे बढ़ि रहल,
पारम्परिक बिधसँ बेसी प्रदर्शनक महत्व बढ़ल |
वैवाहिक वर्षगाँठ आब लोकप्रिय भए रहल,
एहिमे एखन खूब खर्च- बर्च कएल जा रहल ||

जे लोकनि रहैत छलाह अकछल,
अपन प्रचलित बिध- बेभारसँ |
सएह लोकनि करै छथि देखाँउस,
आन संस्कृतिक आडम्बर अपना कऽ ||

सूट, शेरवानी पहिरि,
होमय लागल विवाह |
जयमालक परम्परा सेहो आरम्भ भेल,
आजन- बाजनक चलनसारमे
रहैछ भेल सब तबाह ||

कमी भेल विश्वास ओ आस्थाक,
देव-पितर, पावनि- तिहारमे |
घटि रहल पावनिक संख्या,
साबिकक निष्ठा नहि रहल बेबहारमे ||

गाममे लोकक कमीक कारणे,
गोसाउनि- कुलदेवताक पूजा नहि भए रहल |
डीहबार किंबा ब्रह्म बाबाक पूजाक प्रति
आब नहि पहिने सन उत्साह रहल ||

१३.

भार- चँगेरा साँठ- उसारक,
साफे खतम भए गेल रेबाज |
टोल- पड़ोस आ हित- अपेक्षितकें
बएन पठेनाइ बन्ने भए गेल सकल समाज ||

पहिने दसगर्दा या सामाजिक काज करबामे,
बुझै छल लोक अपन प्रतिष्ठा |
परिश्रमसँ ल' धन तक करै छल अर्पित,
दान दए समाजक प्रति रखै छल निष्ठा ||

भूमिहीनकें दऽ कऽ घराड़ी,
सम्मान सहित जाइ छल बसाओल |
मुदा आब सब अपनहिमे मस्त,
कौओ- कुकूरकें एक मुठ्ठी अन्नक नहि ठौर ||

कोठी, ढक, बखारीक बदला,
धातुक ड्रामक भए रहल उपयोग |
माटि,बाँस, काठ, सिक्की आदिक
कोहा, खापड़ि, घैल, अथरा, पथियाक
नहि रहल दैनिक प्रयोग ||

चँगेरी, मौनी, कठौत, ढाकन,
दाबि, सरबा आदि गेल बिलाय |
सेज, गोनरि, पटिया, सितलपाटी निपत्ता
धातु आ प्लास्टिकक वस्तुक भेल उपाय ||

१४.

पड़ैत अछि घर- आंगनमे एखनहु अरिपन
मुदा, कोबर कागते पर बना साटल जाइत अछि |
लिखिया लिखबाक परम्परा छल दिवाल पर,
सेहो बिरलैके कतहु देखबामे अबैत अछि ||

मिथिला चित्रकलाक रूपमे,
कपड़ा पर उतारि जरूर भए रहल व्यवसाय |
मिथिला पेंटिंग पारम्परिक विषयक संगहि
नित्य नव बनि रहल चित्रकलाक विषय ||

मिथिला आ बाहर सेहो,
बहुत रास तैलीय रंगमे चित्रकारी भए रहल |
मिथिलाक गौरवमयी मंजूषा चित्रकला,
प्रोत्साहनक बेगरतामे अधमरा अछि पड़ल ||

आब नहि देखल जाइत अछि,
मिथिलाक पारम्परिक लूड़ि- भास |
कतऽ गेल सुजनी, कुरुसक सजावटी वस्तु,
स्वेटर- गुलेबन्द, झोरा- झपना,
डाली, चंगेरी, धुथरी जकर मूल छल-
रारी, खढ़ आ खजूरक पात ||

मिथिलाक वास्तुकलाक छल अपन विशिष्टता,
फूस, भीत, पक्का घर किंवा मकान |
एतय नीकसँ अकानल जा सकैछ,
कोठाघर आ मंदिरक निर्माण ||

आकार- प्रकारकें ठीकसँ बेकछायब,
आब तँ नहि रहल फूस आ भीतक घर |
नहि रहल ओ निर्माण शैली,
मिथिलामे वास्तुकलाक विशिष्टता जे छल ||

१५.

बहुत रास खेलधूप, जे
जोड़ैत छल संस्कृति आ व्यक्तित्वक विकाससँ |
अटकन-मटकन, चोरानुक्की, रुमालचोरी,
कबड्डी, टालगुल्ली आ पचीसीक आशसँ ||

छल मारिते प्रचलित,
फकरा ओ शिशु गीत |
मुदा पहिने क्रिकेट, पछाति
मोबाईल सबकें केलक चीत ||

सुखराती दिन हूराहूरी,
आ जूड़शीतलमे शिकार |
ई संस्कृति उचिते समाप्त भेल,
मुदा, कमि गेल फगुआक ओ रेबाज ||

तहिना कमि गेल जट- जटीन आ सामा- चकेबा,
आर झिझिया खेलेनहार |
बोलीक मधुरतामे सेहो ह्रास भेल,
आब नहि फकरा- खिस्सा कहनिहार ||

१६.

मिथिलाक संस्कृतिमे कैल गेल अछि,
अनेक सम्बन्ध आ अवसरक व्यवस्था |
ननदि- भाउजि,सरहोजि-ननदोसि,
सार आ सारि- बहनोईमे हँस्सी-ठट्ठा,
पुरुख सासुरमे सहजहिं आनन्दित रहता ||

छठियार, मूड़न, विवाह, चतुर्थी,
द्विरागमन, भरफोड़ी आ बरियातिक स्वागत |
बरियातिक भोजन आ समधिक सौजनके
अवसर पर अलोपित हास-परिहासक आदत ||

एहि सब अवसर पर हँसी- मजाकक लेल,
डहकन आ अन्य गीतक छल रेबाज |
मुदा समयक चोट एतहु पड़ल,
पहिने जकाँ चौलक नहि रहल बेबहार ||

१७.

मिथिलामे कनबाक छल संस्कृति,
बेटीक द्विरागमनक दिन मनाओल जेबासँ |
द्विरागमन काल माए-बेटी ओ परिजनक कानब सुनि,
धैर्य कियो नहि राखि सकथि बेटीक घानासँ ||

किन्तु, कनबाक ई परम्परा,
क्षीण भए गेल आधुनिकताक प्रभावे |
मेला- ठेलामे माए- पितियाइन भेंटि गेने,
बन्न भेल घेंटा- जोड़ी कए कनबाक स्वभावे ||

बहुत रास मेला लगैछ एखनो मिथिलामे,
एक दिनक मेलासँ मास दिनक मेला धरि |
कमला मेला, मेला देवघरक, सिमरिया घाटक,
बड़द- महींसक मेला साँपक मेला सिंघियाघाटक ||

१८.

ई विषय मात्र लेख या पद्यक नहि,
संस्कृति परिचय होइछ मनुक्खक |
एकर विशालकाय सरूप होइछ,
समृद्ध संस्कृति प्राचीन मिथिला भूभागक ||

वर्तमान मिथिलाक संस्कृति,
बहुत गेल अछि बदलि |
एहि बदलल स्वरूपमे,
अंधविश्वास, देखाँउस, बड़प्पनक लोभ
आ अज्ञान अछि कारण बनल ||

कमी रहल गौरव बोधक,
प्रदर्शनक प्रवृत्ति बढ़ल |
परिवर्तन स्वभाविक छल
मुदा, संस्कृतिक मूल तत्व अपमानित
आर जड़ि उखड़ि रहल ||



- हाटगछिया, धारा, कोलकाता- 700105, 9433746295; सहायक शिक्षक, श्री उमापति विद्यामंदिर, पश्चिम बंगाल सरकार, कोलकाता|

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