जगदीश प्रसाद मण्डल
मोड़पर (धारावाहिक उपन्यास)
एगारहम पड़ाव
सत्तैर बर्खक अवस्थामे कामेसर पहुँच गेला अछि। सरकारी सेवा तँ रहलैन नहि जे
अवकाशक संग पेंशन भेटितैन। जेते वेतन तेते ड्यूटी तँ करइ पड़ि रहल छैन।
लगातार बारह घन्टा ड्यूटी केलाक पछाइत कामेसर डेरा पहुँचला। चूरम-चूर जहिना
देह भेल छैन तहिना काजक ओझराहटिसँ मनो भइये गेल छैन। परिवारमे मात्र दुइये
गोरे छैथ, अपने आ पत्नी। पाँचो बेटी अपन-अपन सासुर बसै छैन आ समुचित जिनगी
नहि भेटने बेटा, गुलाब दिल्लीमे रहै छैन।
समुचित जिनगीक माने भेल जे जखन गुलाब स्कूलमे जाइ-जोकर भेल तखन कामेसरक
आर्थिक स्थिति पतरा गेल छेलैन। ओना, बेटाक जन्मक उपलक्ष्यमे नीक जकाँ
भोज-भात केने छला आ भोज खेनिहारो सभ माथपर हाथ दैत कहने रहबे करथिन जे
'बौआ पितोसँ पैघ पदो पेबह आ पैघ इंजीनियरो हेबह.!' मुदा जहिना वायु स्वरूप वचन
छेलैन तहिना वायुमे मिलि वायुमण्डल बनि गेलैन। एकलौता बेटा होइक कारणेँ,
दुनू बेकतीक माने माता-पिताक पूर्ण इच्छा रहैन जे गुलाबकेँ नीक रहन-सहन आ
नीक शिक्षा दियाबी मुदा जीवनक आर्थिक प्रवाह तँ कामेसरक सुखि गेल छेलैन,
तँए विचारक धार सेहो म्रियमाण होइत ओतए पहुँच गेलैन जैठाम बेटाक प्रति
सेवाक भावना मनमे भरपूर रहितो कामेसर नहि कऽ सकला।
डेरा पहुँचिते कामेसर देखलैन जे पत्नी दर्दसँ छटपटा रहली अछि, कियो
देखनिहार नहि जे डॉक्टरो बजा अनितैन। थकानसँ कामेसरक देह अपने चूरम-चूर भेल,
बेहोशीक अवस्थामे, दुनू आँखिसँ नोर टघरए लगलैन। अपने मन कहए लगलैन जे
जिनगीक कोन मोड़पर, कोन रस्ता छुटल आ कोन पकड़ाएल से अखनो नहि बुझि पेब रहल
छी। पुन: अपने मन कहलकैन, पचास बर्खसँ ऊपर धरिक ने अपन विचारक जिनगी छल,
मुदा पछातिक तँ पत्नीक विचारक रहल। ओहो ने स्नातक छथिए।
हारल-थाकल कामेसरक मुहसँ अपने निकललैन-
"यएह छी जीवन, कानि जीबू कि हँसि
जीबू.!"
(समाप्त)
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