कल्पना झा
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-७
जनक
सन सफल गृहस्थ : 'व्यास' जी'
मैथिली अकादमी द्वारा साल 2020 मे मैथिलीक वरेण्य रचनाकार, गीतकार प्रदीपक
मृत्युपरान्त "मैथिली पुत्र प्रदीप स्मृति अंक"क घोषणा कएल गेल छलए जे ओही
साल दिसम्बर मे प्रकाशित भेल। एहि "मैथिली पुत्र प्रदीप स्मृति अंक" मे
हमरहु छोट - सन श्रद्धांजलि लेख प्रकाशित भेल छलए, जे कोनो पत्रिका मे
प्रकाशित हमर 'पहिल' लेख अछि। आ तैँ ओ पत्रिका हमरा अति प्रिय अछि। सम्हारि
क' राखल अछि घर मे। रहरहाँ कोनो सर-कुटुम्ब पटना अएलाह तँ हुनका पढ़बालेल,
देखबालेल देलहुँ, ई सभ बचकाना हरकत करैत रहलहुँ। ओना ओ अंक वास्तव मे
संग्रहणीय अछि। मात्र बारह गोट लेख केर संकलन सँ युक्त एहि अंक केँ पढ़ि
प्रदीप जीक व्यक्तित्व ओ कृतित्वक सभ आयाम संँ परिचित भ' सकैत छथि पाठकगण।
एहि "मैथिली पुत्र प्रदीप स्मृति अंक" मे सियाराम झा 'सरस' जी बड़ा बढ़ियाँ
सँ हुनकर व्यक्तित्वक विविध आयाम केँ चारि भाग मे विभक्त क' पाठकक सोझाँ
रखलनि अछि। शिक्षक प्रदीप, पारिवारिक प्रदीप, सामाजिक प्रदीप आ कवि प्रदीप।
ई वर्गीकरण करब सुविधाजनक बुझना गेल, पाठकक लेल सेहो आ लेखकक लेल सेहो।
तँ से एही तर्ज पर हम आइ गृहस्थ 'व्यास' जीक चर्चा करबाक नेआर कएल अछि।
वस्तुत: गृहस्थ 'व्यास' जीक नहि; जनक सन सफल गृहस्थ 'व्यास' जीक चर्चा
करबाक अछि। एखन धरि क्रमवार नेना उपेन्द्र सँ ल' क' युवा उपेन्द्र आ लेखक
उपेन्द्रक व्यक्तित्व-निर्माणक प्रकरणे टाक गप्प कएल अछि। उपेन्द्र नाथ झा
'व्यास' जीक व्यक्तिगत पारिवारिक जीवनक चर्चा करब रहि गेल। उपरोक्त भूमिका
बान्हब आवश्यक नहि छलए प्रायः। खैर, जे-से। आब बान्हि देल तँ बान्हि देल।
'व्यास' जी गृहस्थ-जीवन मे प्रवेश कएलनि 1946 ई. मे उनतीस बरखक अवस्था मे।
ताहि दिन जखन बेसी-सँ-बेसी मैट्रिक वा इंटरमीडिएट धरि पढ़ैत-पढ़ैत वरक
विवाह भ' जाइत रहैक; ताहि समय मे उनतीस बरखक अवस्था मे विवाह करब अजगुत बला
बात लगतनि लोक केँ। भव्य मुख-मण्डलक, देखनुक, प्रतिभाशाली युवा उपेन्द्र
नाथक नीक रिजल्ट सेहो रहलनि सभदिन; स्कूल सँ कॉलेज धरि...तखन एतेक विलम्ब
किऐक ? एकर पाछाँ एकटा रहस्यमूलक घटना अछि।
असल मे एहि रहस्यक संबंध अछि हस्तरेखा सँ। रमानाथ बाबू सभ भाए हाथ देखबा मे
पारंगत छलाह। राँची मे हुनक भाइ बोध नाथ जी सँ 'व्यास' जीक बड़ घनिष्ठता रहनि।
ओ तँ एकदम एक्सपर्ट ! शचीनाथ जी सेहो हस्तरेखाक ज्ञाता छलाह। विशेषज्ञे बुझू
! एक दिन हुनकर तरहत्थी पर अपन तरहत्थी राखि देलथिन 'व्यास' जी। कहलथिन, "हमर
हाथ देखू !"
जेना होइत छैक, हाथ देखबैत काल; नौकरी, मान-सम्मान, परीक्षाफल, घर-घराड़ी,
यश आ तकर बाद लजाइत-सन 'व्यास' जी पुछलथिन - हमर विवाह ? ... शचीनाथ जी
हुनकर दहिना हाथक तरहत्थीक रेखा केँ विभिन्न कोण सँ देखए लगलथिन - एक
अंगुरीक दूरी केँ भजियौलनि आ तखन गम्भीर मुखाकृति कएने बाजि उठलाह - व्यास
! अहाँकें दूटा विवाह होएत । 'व्यास' जी सन्न रहि गेलाह । हतप्रभ । विस्मित
आ स्तब्ध !
कनि कालक बाद शचीनाथजी केँ अभिरोष भरल मुद्रा मे कहलथिन - "एना नहि भ' सकैत
छैक... अहाँ फेर सँ गणना देखिऔक ....फेर सँ गणना करिऔक।"
शचीनाथ जी फेर सँ देखलथिन, फेर सँ गणना कएलनि आ तखन पुनः गम्भीर मुखाकृति
कएने बजलाह - "व्यास ! अहाँ कें दू टा विवाह तँ निश्चित होएत !"
तखन 'व्यास' जी एहि दू विवाह सँ बचबाक तोड़ ताकबा पर फोकस कएलनि। शचीमाथ
जी सँ पुछलथिन, "बढिञा सँ गणनाक उपरान्त कहू जे हमर पहिल विवाह कोन अवस्था
मे होएत ?" शचीनाथ जी पुनः तरहत्थीक रेखा केँ विभिन्न कोण सँ देखए लगलाह ।
एक अंगुरी आ दोसर अंगुरीक दूरीक गणना कएल आ तखन कहलथिन - "तइसम बरखक अवस्था
मे व्यास ! अहाँक पहिल वियाह तइसम बरख मे होएत !"
एहि भविष्यवाणीक प्रभाव 'व्यास' जीक मनःस्थिति पर केहन आ कतेक पड़ल हेतनि,
से कहबाक बेगरता नहि।
एकदम बेचैन भ' गेलाह। गंगाकात घुमैत-रहलाह.... एकांत मे...। दिमाग शून्य सन
लागए लगलनि .... अन्हार भ' गेलाक बाद, बहुत राति बितलाक बाद 'व्यास' जी
होस्टल आपस अएलाह । ओही राति निर्णय लेलनि जे "हम तइसम बरखक अवस्थाक बादे
विवाह करब ।"
तइसम समाप्त भ' जाएत तखन पहिल विवाहक कोनो अर्थ नहि रहि जाएत, से सोचि ई
निर्णय लेलनि। आ से तइसम बितलाक बादहु, चौबीसम पचीसम मे के कहए उनतीसम बरख
मे विवाह कएलनि। बेस ! विवाह भेलनि आ एकटा प्रतिष्ठित घरक खूब बुधियारि, सभ
लूड़ि-व्यवहार मे दक्ष, बहुत नीक ज्ञान-बुद्धि सँ युक्त जीवनसंगिनीक
पदार्पण भेलनि 'व्यास' जीक जीवन मे। 'देर आए दुरुस्त आए' बला बात चरितार्थ
होइत सन प्रतीत भेलैक लोक केँ।
'व्यास' जीक धर्मपत्नीक नाम अमरावती देवी छलनि। पुकारू नाम हीरा दाइ। अथरी
(बेलसंड) जिला-सीतामढ़ीक पं. टेकनाथ मिश्रक सुपुत्री। पं. टेकनाथ मिश्र
डिस्ट्रिक्ट जजक रुप मे अवकाश ग्रहण कएने छलाह। पहिल मैथिल ब्राह्मण जज
छलाह ओ ।
कालक्रमेण 'व्यास' जीक गृहस्थीक गाड़ी रफ्तार पकड़ैत गेलनि। गृहस्थाश्रम
नमहर होइत गेलनि। गृहस्थी मे नब-नब सदस्यक आगमन होइत गेलनि। उनतीस जून 1960
ई. धरि 'व्यास' जी पाँच गोट पुत्र आ एक गोट पुत्रीक पिता बनि चुकल छलाह।
दोसर दिस उपेन्द्र नाथ जीक अनुज महेन्द्र नाथ सेहो गृहस्थ जीवन मे प्रवेश
कएलथिन। दुनू भाएक धिया-पूता एकतुरिए सन। अनुज महेन्द्र तीन गोट पुत्र आ
तीन गोट पुत्रीक पिता बनलाह। दुनू भाएक कुल बारह गोट संतान सभ केँ देखि
पितामही आनन्दी देवीक करेजा सूप सन होइत रहैत छलनि। अपन तेरह गोट संतान मे
सँ मात्र दू टा बालक उपेन्द्र आ महेन्द्र बचलथिन। से एहि दुनू भाएक संतान
सभ सँ भरल घर देखि आनन्दी देवीक आनन्दक पारावार नहि रहनि।
कर्मकाण्डक अनुसरण कएनिहार 'व्यास' जी भोर-साँझ सभ धिया पूता केँ अपना संग
बैसाए संस्कृतक श्लोकादिक नियमित पाठ करबैत छलाह। स्वयं सभदिन अनुशासित रहए
बला पिता अपन संतान सभ केँ अनुशासनक महत्व, अनुशासनक पाठ पढ़ाएब सभ सँ जरूरी
बुझलनि। जे बात नैतिक शिक्षाक पोथी मे पढ़ैत छलहुँ हमसभ, से श्री भवन ('व्यास'
जीक पटना स्थित आवास) जाइ तँ प्रत्यक्ष देखबालेल भेटए। प्रातःकाल सूति क'
उठितहि सभ धिया-पूता अपन माता-पिताक चरणस्पर्श करथि। फूसि नहि कहब, हमसभ एना
कहियो नहि कएलहुँ। बस जाहि दिन कोनो परीक्षा रहैत रहए, ताहि दिन चरणस्पर्श
करियनि हमसभ भाए-बहिन अपन माता-पिताक।
ओना अत्यधिक अनुशासन मे राखब धिया-पूताक भीतर एकटा विद्रोही भाव सेहो आनैत
छैक। कखनोकाल डॉमिनेटिंग नेचर वा हुनकर श्रेष्ठताक भाव सँ घरक लोक त्रस्त
सन अनुभव करैत छलाह। धिया-पूता पर शासन करब सेहो एक सीमे धरि उचित छैक ने !
ओना आबक समय तँ एकदम्मे बदलि गेल अछि, मुदा ताहू दिनक हिसाबेँ किछु
बात-व्यवहार खटकए बला होइत रहलनि। कोनहुँ मनुष्य सर्वगुणी होएत वा सभ केँ
प्रसन्न राखि लेत, से संभवो नहि छैक। ई एकटा कटु सत्य अछि।
गृहस्थ जीवनक आधार छैक धर्म, अर्थ, काम आ मोक्ष। ई बात बूझल तँ सभकेँ रहैत
छैक; मुदा बुझने की....जीवन मे उतारैत छथि बड़ थोड़ लोक। से 'व्यास' जी
तेहन गृहस्थ मे सँ छथि, जे धर्मक पालन करैत, धर्मक अनुसरण करैत अर्थोपार्जन
कएलनि। धिया-पूता केँ नीक शिक्षा-दीक्षा, नीक संस्कार दैत अपन जिम्मेवारीक
निर्वहन कुशलतापूर्वक कएलनि। अपने टा नहि, अनुज महेन्द्र नाथ झाक
धिया-पूताक पढाइ-लिखाइ सँ ल' क' विवाह-दान धरि सभटा जिम्मेवारी 'व्यास' जी
स्वयं निर्वहन कएलनि। अनमन राजा जनक सन। जहिना राजा जनक दू भाए, तहिना 'व्यास'
जी सेहो। बहुत समानता देखाइत अछि जेना। न्यायप्रिय आ धार्मिक शासक जनक केर
वास्तविक नाम सीरध्वज छलनि। सीरध्वज आ कुशध्वज दुनू भाए मे चारि गोट कन्या
सीता, उर्मिला, मांडवी आ श्रुतकीर्ति। चारूक विवाहक कर्तव्य जहिना राजा जनक
निभओने छलाह, तहिना 'व्यास' जी सेहो एकटा अपन आ तीन गोट अनुजक धियाक
कन्यादान क' अपन जिम्मेवारीक निर्वहन काएलनि। आ से सहर्ष कएलनि।
कन्यादाने टा नहि, पारिवारिक अन्यान्य काज-प्रयोजनक बात-व्यवस्थाक सभटा भार
रहलनि 'व्यास' जी पर। धर्मक बाट धएने, शास्त्र-पुराणक पालन करैत,
देवता-पितरक प्रति श्रद्धा ओ सम्मान राखैत ब्राह्मण-भोजन, दानादि सभ किछु
बड़ श्रद्धापूर्वक करैत छलाह ओ। यज्ञ, हवनादि मे सम्मिलित होएब, दान-पुण्य
करब, माने एकटा गृहस्थ केर जतेक कर्तव्य छैक, से ओ कत्तहु रहलाह तँ तकर
पालन कएलनि। राँची, सिन्दरी, गया, कइअक ठाम पोस्टिंग रहलनि। सभठाम सभ तरहक
बात-व्यवस्था क' लैत छलाह।
पारिवारिक संग सामाजिक जिम्मेवारी सेहो कुशलतापूर्वक निभाबैत अपना संग-संग
अपन कुल-खानदान केर मान-प्रतिष्ठा बढ़ौलनि। कत्तहु रहलाह, अपन परिवारक
अतिरिक्त पाँच-सात गोटे तँ सभदिन रहिते टा छलनि डेरा पर। केओ पढ़बाले माने
विद्यार्थी सभ, केओ डागदर-वैद्यक फेरा मे रहल, केओ कोनो कार्यालयी काज सँ।
आ ताहि पर सँ अतिथिक अवरजात। अतिथिक सम्मान आ स्वागत लेल जतबा 'व्यास' जी
तत्पर रहैत छलाह ताहि सँ बेसी जीवनसंगिनी अमरावती देवी। पतिक
मान-प्रतिष्ठाक ध्यान राखब पत्नीक धर्म छैक, से हुनका खूब नीक जकाँ बूझल
छलनि। डिग्री भले ही बड़का-बड़का नहि छलनि, मुदा व्यावहारिक ज्ञान अद्भुत !
सेवा निवृत्तिक उपरान्त धर्म-कर्म, पूजा पाठ आरो बढ़ि गेल छलनि 'व्यास' जीक।
मोक्षमार्ग पर चलबाक प्रयास रहल हेतनि प्रायः।ज्ञानक भंडार तँ छलनिहेँ।
पौराणिक ग्रन्थ सभ तँ बाल्यकालहि सँ पढ़ैत रहल छलाह। हुनका नीक जकाँ बूझल
छलनि जे ज्ञान आ कर्मक माध्यम सँ मोक्ष प्राप्तिक बाट खूजत। योग सेहो एहि
प्रक्रियाक एकटा घटक अछि, सेहो बूझल छलनि। तँ से धर्म, कर्म, योग, अभ्यास
सभ किछु हुनकर दिनचर्या मे सम्मिलित रहलनि, आजीवन।
'व्यास' जी सात्विक विचारधाराक लोक छलाह, से हुनकर सान्निध्य मे रहनिहार
लोकसभ एहि बात सँ अनभिज्ञ नहि हेताह। सात्विक आहार-विहार-आचरण हुनकर
व्यक्तित्व केँ एकटा विशिष्ट "औरा" प्रदान करैत छलनि, ई बात कतेको गोटेक
मुहेँ सुनल अछि हमरा। आ से ई सात्विक आहारक परम्परा श्री भवन मे कायम रहल
सभदिन।
सफल गृहस्थ जीवन जीबैत, पारिवारिक-सामाजिक सभ तरहक दायित्व केर सफलतापूर्वक
निर्वहन करैत, मातृभाषाक भंडार केँ समय-समय पर अपन लेखनी सँ सम्पुष्ट करैत
रहलाह 'व्यास' जी। ई बहुत पैघ उपलब्धि कहल जाएत, हमरा हिसाब सँ।
संपादकीय सूचना-एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-
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