हितनाथ झा
मैथिली साहित्यमे
तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-२
तारानाथ झाक वंशावली पहिल अंकमे प्रकाशित भेल छल। अपन स्थिति हम कहने रही जे जहिया हमर पिताक निधन भेल रहनि, ओहि समय हम बहुत छोट रही। दू वर्षक नेनाक की अवगति रहल हेतैक, स्वतः अनुमान कैल जा सकैछ। पहिल अंकक लेखमे सेहो हम स्पष्ट केने छी।
आशीष अनचिन्हार जीक तगेदा जखन तेज भेलनि आ हमरा पिताक प्रारम्भिक जीवनक विषयमे बहुत कम सुनल छल, माँ अथवा अनके किनकोसँ पुछबाक साहस कहियो हमरामे नहि आयल, जे कतहु-कतहु सुनने छलहुँ, ओतबे टा बुझल छल। ओहिपर जीवनक प्रारंभिक अंश लिखब उचित नहि बुझायल। भाइजी(प्रो. भीमनाथ झा)सँ सेहो कहियो नहि पुछने छलियनि। एहि बीच भाइजी सेहो किछु दिनसँ अस्वस्थ छलाह। दिल्लीसँ जखन दरभंगा घुरलाह तँ एक दिन कहलियनि-बाबूजीक प्रारम्भिक जीवनक विषयमे जानकारी देबाक लेल। ओहो तँ बाबूजीक निधनक समय एगारहे-साढ़े एगारह वर्षक रहल हेताह, तथापि कहलनि, जतबा जेना बूझल अछि, लिखि पठा रहल छी, आब तँ बिसरितो बहुत छियैक। भाइजी जे लिखि क' पठेलनि, ओकरा हम अविकल एतs प्रस्तुत क' रहल छी।
बाबूजी
बाबूजीक देहान्त जहिया भेल रहनि तहिया हम एगारह वर्षक रही। तेँ, तखन हुनक जीवन-प्रसंग ने बुझल छल, ने बुझबाक ऊहि छल। एतबे बुझैत रहिऐ जे ओ सहोदर तीन भाइ रहथि। स्मृतिमे स्पष्ट उभड़ैत अछि ओ पोखरापाटन खपड़ैल घर, जाहिमे रहै जाथि बड़का काका (चन्द्रनाथ झा), दादा (सूर्यनाथ झा)आ बाबू (तारानाथ झा), बड़की काकी, काकीमाँ आ माँ, भौजी (बड़का काकाक जेठ पुत्र उपेन्द्रनाथ झाक विधवा) तथा हमरा लगा सात टा धीयापुता (बड़का काकाक जीवनाथ, दादाक माया, वीणा, तीर्थनाथ, भवनाथ। बाबूक हम भीमनाथ आ मित्रनाथ। हितनाथक जन्म बहुत बादमे भेलनि)। साझी आश्रम। तीनटा बखाड़ी, दूटा महीस, एक जोडा बड़द, एकटा आदमी (खबास)। कमनिहारि भोर-साँझ। प्रशस्त दलान, खरिहान। सटले, पोखरिक मोहारपर पैघ बहरघरा। ओतहु चौकी, सितलपाटी, खिनहरि। लोकक अवर्यात, खासक' जाड़मे भोर-साँझ घुड़ारी, ओत' लोक सभ आगि ताप' अबथिन। पीपरक गाछ लग मालक घर। जहिया हमरा ऊहि भेल, ताहिसँ पहिनहि बाबू काशी चल गेल रहथिन श्यामा मन्दिरमे एकाउंटेंट पदपर नोकरी कर'। ईस्वी रहल हेतै 1944-45। 1947 मे पचमे (पाँचम वर्षमे) हमर मूड़न-कर्णबेध भेल। तकर स्मृति हमरा नहिएँ जेकाँ। जेहो, से झलफल। 1949 मे ओ हमरो काशी ल' गेला। ओहिँ पहिने ककहरो लिखब सिखने रही कि नहि, सेहो मन नहि अछि। तेँ एक तरहेँ हमर विद्यारम्भ काशिएमे भेल- श्यामा मन्दिर, कचौड़ीगलीमे। श्यामा मन्दिर तँ आइयो अछि, मुदा आइ ओत' अमावास्या छैक, हमर बाबूजीक समयमे पूर्णिमा रहैक। श्यामा मन्दिर माने खाली मन्दिरे नहि। चारि टा मन्दिर तथा एक टा अति विशाल पचमहला मकान। मैथिलक सभसँ बड़का गढ़। चारि मन्दिरमे तीन एक पतियानीमे, एकटा बगलमे। पतियानीवलाक बीचमे श्यामा माइ, तकर पश्चिम चन्द्रेश्वर महादेव (पाथर-निर्मित ई दुनू पैघ मन्दिर) तथा पूबमे लक्ष्मी माइ। बगलवलामे राम लक्ष्मण सीता हनुमान (ई दुनू संगमर्मरक अपेक्षाकृत छोट मन्दिर)। सम्पूर्ण आलय श्यामामन्दिरसँ विख्यात।
दू टा पुजेगरी अनवरत देवार्चनमे निरत। देवताकेँ राजसी भोग-राग। समय-समयपर नाच-तमासा, उत्सव। बरखमा दिनपर काशीक हजारो कंगालकेँ द्रव्य आ अन्नदान। दातव्य औखधालय, एक चिकित्सक सतत तत्पर। (कहियो डा. काञ्चीनाथ झा किरणजी सेहो छलाह।) सं्कृत महाविद्यालय, जाहिमे सात-आठ विषयक आचार्य धरिक अध्यापन। मिथिलाक नामी विद्वान् ओकर अध्यापक- पं. उग्रानन्द झा नैयायिक (प्रधानाचार्य), पं. मधुकान्त झा ज्योतिषी, पं. गणेश दत्त झा वैयाकरण प्रभृति। विशाल पुस्तकालय। सैकड़ो छात्रक हेतु नि:शुल्क अध्ययन आ दिनका भोजनक व्यवस्था। नि:शुल्क छात्रावास श्यामा छात्रावास लगेमे अवस्थित। केओ मैथिल काशी पहुँचलाह तँ श्यामा मन्दिर अयलापर हुनका तीन दिन धरि दिनका भोजन। कोनो मैथिलक निधन भेलनि तँ हुनक दाहसंस्कार लेल लगले आर्थिक साहाय्य। काशीस्थ सकल पण्डित समाजक वर्षमे एक बेर सम्मेलन, शास्त्रार्थ, हुनका लोकनिक पूजन, हुनका लोकनिकेँ दक्षिणा। महामहोपाध्याय गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, म.म. गोपीनाथ कविराज, पण्डितराज राजेश्वर शास्त्री, पण्डितप्रवर भूपनारायण झा, पं.आनन्द झा न्यायाचार्य, ज्योतिषी पं. सीताराम झा प्रभृति विद्वानक शास्त्रार्थ देखबा योग्य होइत छल। समस्त मैथिलानी विधवा तथा गरीब मैथिल ब्राह्मणकेँ मासिक साहाय्य। काशीक बाहरो जे गरीब छात्र पढ़ैत छलाह, आवेदन कयलापर हुनको लोकनिकेँ आर्थिक साहाय्य देल जाइत छलनि। कतेक कहू। ताहि समयक श्यामा मन्दिर तत्रस्थ समस्त मैथिलक केन्द्रस्थल रहैक आ छोट-पैघ सभ मैथिलजन ओत' जुटबे करथि। श्यामा मन्दिरक जे विशाल मकान छैक, तहिया ताहिमे नीचाँक महलमे डेरा रहनि पं. घनश्याम सुन्दर झाक (ओ मामाजी कहाबथि)। ओही विशाल बरंडापर सभक बैसार-स्थल, मन्दिरक सोझाँ-सोझी। दोसर अलंगमे भनसाघर, भोजनालय तथा पुजेगरी आ भनसीया सभक निवास। दू टा भनसीया आ चारि टा नोकर सदिखन कार्यरत। दोसर महलपर पं. काशीनाथ झा, मैनेजरक निवास। दोसर अलंगमे हमर बाबूजी आ पं. बालादत्त झा (सुविख्यात पण्डितप्रवर खुद्दी झाक छोट पुत्र, मन्दिरक क्लर्क)क निवास सेहो। तेसर महल महाविद्यालय तथा पुस्तकालय। दोसर अलंगमे अतिविशिष्ट अभ्यागतक निवास-व्यवस्था। चारिम महलपर छात्रक भोजनालय, भनसाघर। पाँचम महल छत। 1949 सँ बाबूजी हमरा संग राख' लगला। संध्याकालकेँ सभ दिन जुटान होइक नीचाँमे, बरंडापर। नाना प्रकारक गप्प, हँसी-ठट्ठा, शास्त्रचर्चा, समस्त शहरक गतिविधि बैसले ठाम प्राप्त। से, ओही ठाम हमर प्राथमिक शिक्षाक श्रीगणेश भेल।
मैनेजर पं. काशीनाथ झाजी (जे हमर आचार्यगुरु सेहो रहथि। हमर उपनयन 1953 मे भेल रहय) वयोवृद्ध, योगाभ्यासी आ'रिजर्व' रहथिन। दोसर वरिष्ठ अधिकारी बाबुएजी रहथिन, तेँ व्यवहारतः सकल प्रशासनिक आ सामाजिक दायित्वक निर्वहन-भार हुनके जिम्मा रहनि। फलतः काशीक तत्कालीन व्यापक मैथिल समाज ओ सारस्वत संसारसँ हुनका साक्षात् सम्पर्क बनल रहैत छलनि। मन पड़ैत अछि, कविवर सीताराम झा, डा.सुभद्र झा ओ पं.आनन्द झा न्यायाचार्य प्रभृतिक आगमन तँ अव्याहत होइत छलनि। हमहूँ, बिना माँक, ओही ठाम रह' लगलहुँ, पढ़' लगलहुँ। प्रतिदिन प्रात:काल बाबूक संग मणिकर्णिका घाटपर जाय गंगास्नान कयलाक बाद बाबा विश्वनाथ, माता अन्नपूर्णा आ ढुंढिराजक दर्शन करैत श्यामा मन्दिरक सभ देवताकेँ गंगाजल चढ़ओलाक बाद रतुका भोगक प्रसाद राखल पूरी-हलुआक जलपान करैत रही। तकर बाद पढ़ाइ-लिखाइ होइ। स्कूलमे नाम नहि लिखाओल गेल। मन्दिरमे चहल-पहल, हरदम लोकक आबरजात बनले। हमरा नीक लागय। गामक ध्यान बेसीकाल नहि आबय। बाबूजी सालमे दू बेर गाम जाथिन एक-डेढ़ मास लेल एक बेर धनरोपनी बेरमे, दोसर बेर धनकटनी बेरमे। हमहूँ संगहि जाइ-आबी। 1954क अन्तमे कि 55क शुरूमे हुनक बामा बाँहिमे दर्द उठलनि, झुनझुनी। कतेको उपचार कयलनि, दबि जाइन, फेर उखड़ि जाइन। छुटनि नहि। गाममे बड़ जोर दुखित पड़लाह। गामक सरकारी अस्पतालक यशस्वी डाक्टर बालेश्वर झाजी हुनका गोटेक मासमे ठीक क' देलथिन। दुखित पड़बासँ पहिने, जेँ कि ओही बेर हमरा हरिश्चन्द्र कालेजिएट स्कूलमे नवम वर्गमे नाम लिखबा देने रहथि, तेँ स्कूल खुजि गेलापर पहिल बेर, टोलबैया पड़ोसी श्री अरुण कुमार झा बच्चन'जीक संग, जे बी.एच.यू.क छात्र रहथि, हमरा काशी पठबा देने रहथि। तकर बाद गाममे दुखित पडला। निकेँ भेलाक बाद काशी गेला। ओत' मास-डेढ़ मासक बाद फेर दुखित पड़ि गेला। प्रसिद्ध डाक्टर खन्नासँ इलाज शुरू भेलनि। सप्ताहक भीतरे, एक नवम्बर 1955क भोरहरबामे, कोजागराक प्रात रहै, आँखि मुनि लेलनि। ओहि काल हम सुतल रही। गलगुलक आहटिपर आँखि खुजल तँ डाक्टर साहेब सहित मन्दिरक सभ गोटेकेँ बेचैन देखलियनि। बादमे जाक' बात बुझलिऐ। श्राद्धकर्म काशिएमे भेलनि। तकर लगले बाद हम सभ दिन ले' गाम आबि गेलहुँ।
बड़का काका एक साल पहिनहि (1954 मे) दिवंगत भ' गेल रहथि। दुखित पड़लथिन तँ बाबू काशी बजा लेलथिन। ओतहि प्राणत्याग कयलथिन। हुनक पुत्र एक-सावा वर्षक छलथिन, सेहो गाममे रहथिन आ हमर उपनयनक वर्ष लागि गेल छल, तेँ आगि हमरेसँ देआओल गेलनि। काशिएमे श्राद्धो हमहीँ कयलियनि। दुर्भाग्य ई जे वर्ष बितलाक लगले बाद अपन बाबुओक श्राद्ध कर' पड़ल।
गाम घुरलापर नवम वर्गमे हमरा राखि देल गेल। अगिला सत्रमे दसममे नाम लिखाओल गेल। मैट्रिक एगारहम रहै। घरमे प्रतिष्ठित पुरुषमे दादा मात्र रहथि। आङनमे दाइ रहय, जकरा वर्षे दिनमे दूटा डाङ लागि गेल छलै। दू काकी, एक भौजी आ माँ रहथि। आर सभ नेने-भुटका। दादा पक्का गृहस्थ रहथि। ताहि दिनुका पढ़ल चिट्ठी-पतरी, हिसाब-बाड़ी, खाता-खेसरा आदि। किछुए दिनक बाद भिनाउज भ' गेलै, मेलेसँ। तीनू भाइक हिस्सामे वैह दू-दू घर पड़लनि, जाहिमे पहिनेसँ जे रहैत रहथि। हमरा ने ऊहि रहय, ने जिज्ञासे। काशीक पोथी-पढाइ आ गामक पोथी-पढाइमे कत्तौ मेल नहि। हम ओहीमे लटपटायल। अपनहि गाममे अनभुआर सन। तेँ, बाबूजीक पूर्वजिनगी जनबाक ने ध्यानमे कहियो अपना आयल, ने क्यो कहलनि। कोनो प्रकरणमे दादाकेँ ककरो कहैत सुनने रहियनि जे हुनक अपन जन्म 1901 मे छलनि। बाबू हुनक पीठेपर भेलथिन। तेँ, बादमे हम अनुमान कयलहुँ जे बाबूजी 1903 क रहल हेता। जखन किछु छेटगर भेलहुँ, कालेज जाय लगलहुँ, किछु-किछु कवितो लिख' लगलहुँ, साहित्य पढ़ब नीक लाग' लागल, तखन एक दिन भड़ार घरक देबालक एक कोनमे बनल मचानपर मोटरी-चोटरीक नीचाँमे मारते रास अखबार आ मोट-मोट कापीक संगहि किछु आनो मुद्रित आ हस्तलिखित कागत, जे अस्तव्यस्त जकाँ पड़ल छलै, तकरा देखबाक उत्सुकता भेल। ताहिमे छलै, जतबा मन अछि, कलकत्तासँ प्रकाशित 'विश्वमित्र' अखबारक बहुतो प्रति- दू-तीन बंडलमे। दू-चारिटा पत्रिका, जकर नाम नहि ठेकान अछि। 'प्रभात'क प्रतिसभ, जतबा बाँचल रहलै से। किछु हाइ स्कूलक कोर्सबुक, सभ अङरेजीमे। किछु बाबूजीक लिखल प्रश्नोत्तरी अङरेजिएमे। किछु अर्धवार्षिक आ वार्षिक परीक्षाक मुद्रित प्रश्नपत्र, हाइ स्कूलक। सभ विषयक प्रश्नपत्र अङरेजीमे। बाबूजी वाटसन स्कूल मधुबनीमे पढ़ने छला, हुनक टिक कैलहा 1919 क मेट्रिकक प्रश्नपत्र देखि एते तँ निश्चय भ' गेल जे ओ मेट्रिकमे परीक्षा देने रहथिन। पास कयलनि की नहि, तकर कोनो प्रमाण नहि भेटल। मुदा, ई तँ प्रमाणित अछिए जे ओ गृहस्थे टा नहि रहथि, अपितु गामक सार्वजनिक उत्थान लेल व्याकुल आ सचेष्ट ताहि दिनुक किछु जागल नवयुवक दलमे चर्चितो रहथि। ओ फुटबौलक नीक खेलाड़ी रहथि, जकर उल्लेख प्रो. जयदेव मिश्रजी अपन कोनो एक लेखमे कयने छथिन। अपन गामक टीम के.डी.क्लब (अर्थात् कोइलखदेवी क्लब)क ओ प्रमुख सदस्य रहथि, जे टूर्नामेंटक मैच खेलाय आनो गाम जाइ छल आ शिल्ड जीतिक' अनै छल। लोकसेवक रहथि, 1934 क भूकम्पमे औखध, अन्न-पानि आ आनो अपेक्षित सेवाकार्यमे ओ अग्रसर रहै छला। साहित्यिक अभिरुचि, लेखन-प्रकाशन- संगठन-जागरणक प्रति रुझान आरम्भेसँ रहलनि। कविचूड़ामणि मधुपजी अपन संस्मरणात्मक पोथी 'प्रेरणापुंज'मे अनेक ठाम, अनेक प्रसंगमे हुनक प्रशंसात्मक उल्लेख कयने छथिन। आचार्य सुमनजी अपन आत्मकथा 'मन पड़ैत अछि'मे कोइलखमे बिताओल अपन आरम्भिक छात्रावस्थाक स्मृतिकेँ जगबैत गामक जाहि किछु तहियाक प्रतिष्ठित व्यक्तिक नाम लेने छथि, ताहिमे एक नाम हुनको छनि। गामक सर्वविध विकासक लक्ष्यसँ ओ नवयुवक दलक संगठन 'युवक संघ' नामसँ स्थापित कयलनि, जकर अध्यक्ष रहथिन उमानाथ झा, जे गामक पहिल इंजिनियर भेलाह। ओही संस्थाक तत्त्वावधानमे 'प्रभात' नामक हस्तलिखित मासिक पत्रिका लगातार दू वर्ष धरि (1933-34) प्रकाशित होइत रहल। ठामठीम किछु चर्चा भेलो अछि, भैयो रहल अछि, तेँ एत' ताहि प्रसंग किछु कहबाक प्रयोजन नहि बुझैत छी।
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आब ने ताहि दिनुक 'युवक संघ' अछि, ने 'के.डी.क्लब' अछि, ने तहियाक लोके छथि, किन्तु जे बचलहा 'प्रभात' अछि से आइयो समाजक प्रबुद्ध लोककेँ, खासक' कोइलखवासीकेँ की जगा नहि रहल अछि? सुनल जाय ओकर उद्घोष-
खिलल कमल गुंजित मधुप
रवि-छवि शोणिम भेल।
ठरर दैत की छी पडल?
उठु 'प्रभात' भय गेल।
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अग्रिम अंकमे बाबूजी(तारानाथ झा)क प्रसंग जे कविचूड़ामणि काशीकान्त मिश्र 'मधुप'जीक प्रेरणापुंज (संस्मरणात्मक पद्यकथा), 'मधुपक पत्र : भीमनाथ झा'क नाम, आचार्य सुरेन्द्र झा 'सुमन'क पोथी 'मन पड़ैत अछि'(आत्मकथा) आ प्रो. जयदेव मिश्र लिखने छथि, ओहि विषयमे लिखब।
संपादकीय सूचना-एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-
मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-1
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