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संस्कृति मिश्र

गुरुत्वाकर्षण (कथा)

            विनायक पुरीक आद्यापीठमे आइ बेसी भीड़ छैक। आइ गुरुमाइक जन्मदिन छियैक। भक्त सभकेँ मना कएलहु पर के मानै छैक। रुचि मुम्बईसँ चारि घंटा कार चलाकेँ आद्यापीठ पहुँचल रहथि। गुरुमाइ व्यासपीठ पर बैसिकेँ प्रवचन दऽ रहल छलथिन-देहक प्रत्येक रोमक पृथक आ निजी स्मृति होइत छैक। तैँ देहक कोनो अंग पर भेल स्पर्श वा आघात ताहि अंगक स्मृति-कोषमे चिर-संचित रहैत छै। कहियो ओ मेटाइ नहि छैक। अति संवेदनशील अंगक आघात जन्म-जन्मांतर धरि मोन रहैत छैक। स्त्रीक देह बेसी संवेदनशील होइछै, तैँ ओकरा अप्रिय स्पर्शो करवाक शास्त्रीय निषेध छैक। जे वस्तु जतेक बहुमूल्य, तकरा लेल ततेक सुरक्षित राखवाक प्रयत्न लोक करैत छैक। पुरुषक तुलनामे जनीजातिके झाँपन-तोपनक व्यवस्था अही लेल छैक। युवकक तुलनामे युवतीकेँ किछु बेसी प्रतिबंध छैक। तकरा लऽ कऽ मोनमे प्रतिहिंसक भावना नहि उठवाक चाही। शास्त्रीय निर्देश हमरा सभक कल्याणेक लेल अछि।..

       रुचि सभसँ पाछाँक सीट पर आबिकेँ बैसि गेल छलीह, मुदा गुरुमाइक नजरिमे पड़िये गेलीह। किछुए कालमे प्रवचन समाप्त भेल। आरती भेलैक आ भक्तगण प्रसाद लेवाक लेल भोजनालय दिस विदा भऽ गेलाह। रुचि आइ प्रसाद लेमय नहि गेलीह। अपना सीटपर बैसले रहलीह। कने कालमे गुरुमाइक सहायिका आयल-'गुरुमाइ अहाँकेँ अपना कक्षमे बजा रहल छथि।' रुचि ओकरा पाछाँ-पाछाँ साधना-कक्ष पहुँच गेलीह। एहिसँ पहिनहुँ ओ एहि कक्षमे अनेक बेर आबिकेँ बैसल छथि आ अपन जीवनक लेल मार्गदर्शन प्राप्त कएने छथि।

एकटा सात्विक मुस्कीसँ गुरुमाइ हुनक स्वागत कएल। रुचि हुनका विधिवत प्रणाम कऽ कुशक पटिया पर बैसि रहलीह।

- कहू रुचि, अहाँक काज-धंधा कोना चलि रहल अछि। सुनलहुँ जे अहाँ हीरानंदानी सोसाइटीमे फ्लैट किनलहुँ अछि। ओ तँ बड़ महग पड़ल होयत।

- जी गुरुमाँ। अपनेक आशीर्वाद सँ भऽ गेलैक। आरबीआइ क नोकरी आ एसबीआइ क लोन।

- बियाह नहिये कएलहुँ?

- अपना भरि प्रयास तँ करबे कएलहुँ, मुदा तेहन क्यो भेटबे नहि कएल। 'यो मे प्रतिबलो लोके स मे भर्ता भविष्यति।' पतिक इ फार्मूला स्वयं भगवती देने छथि। आब एकसरे रहबाक अभ्यास भऽ गेल अछि। बियाहक मतलब आधा स्वतंत्रता घटायब आ दुन्ना दायित्व बढ़ायब हेतैक। ताहूमे जँ वर विपरीत स्वभावक भेट गेल, तँ दौड़ैत रहू सालक साल कोट-कचहरी। जीवन नरक भऽ जाइत छैक।

- अहाँ गुरुमाँ, किएक संन्यासिनी भऽ गेलियैक? अहाँक समयमे बीटेक कियो-कियो कन्या करैत छलैक।

- धुर जाउ, सैह डिग्री तँ गराक फाँस भऽ गेल। बीटेको लड़काक बाप तेहन घमंडमे चूर, जेना ओकर बेटा असर्फी दऽ कऽ पढ़लकैक आ हम गुड़-चाउरक सनिचरा दऽ कऽ। कतौ-कतौ बाबू झुकियो जाथिन, मुदा हम मना कऽ दियैक।

- तखन साध्वी कोना भऽ गेलियैक?

- हमरा सुरुए सँ भगवानक पूजा - पाठमे मोन लागैत छल। दोसर बात जे क्यो आन पुरुष जँ देह छूबि दैक, तँ चकेत्ता भऽ जाय। तकर बाद तँ संन्यासे रस्ता छलैक।

- ई किएक होइत छलै, से डाक्टरसँ नहि देखाओल गेलैक?

- मनुक्खक देह अनेक द्वन्द्वात्मक आ रहस्यमय पदार्थसँ बनल जटिल यौगिक होइत छैक। हम सभ अपन लघु जीवनमे जे काज करैत छी, से किएक, से नहि सोचैत छी। काज भऽ गेलाक बादे ओकर औचित्य आ कारण ताकैत छी।

- गुरुमाँ, कोनो काजक आरंभ जँ सहज आवेशमे होइ, तँ ओकरा की कहल जाय? आजुक लोक तँ मानव देहकेँ मात्र भौतिक वस्तु मानिकेँ तकर उपयोग करैत अछि।

- के कहैत अछि, जे हमर सभक देह आध्यात्मिक नहि, मात्र भौतिक अछि? ओना तँ हम-अहाँ ओहि गौरवसँ वंचित छी, मुदा सच मानू तँ मातृत्व एहि क्षत-विक्षत धरतीपर वरदान अछि। पवित्रता, सौन्दर्य, वत्सलताक जेहन विकास मातृ-हृदय मे होइत छैक, तेहन कतहुँ नहि।

- गुरुमाँ, की जीवनमे रति-सुखक एकमात्र उद्देश्य मातृत्व पदक प्राप्ति छै, यौवनक आनंद नहि?

- जँ विधाताक दृष्टिसँ देखी तँ यएह स्वीकार करय पड़त। मुदा ओहि आनंदक कारणे प्रत्येक जीव सृजनमे प्रवृत्त होइछैक।

- गुरुमाँ, हम सभ विधाता नहि छी। अल्पायु जीव छी। अल्प समयमे बेसीसँ बेसी सुख प्राप्त करय चाहैत छी। आ जँ एहि सुखसँ किछु हितकारी काज भ जाय, तँ की हर्ज?

- जेना?

- साफहि कहैत छी। जेना कोनो युवती अपन मादक देहकेँ ककरो समर्पित कए अपन पदोन्नति करा लैक वा कोनो अधिकारीकेँ खुश कए अपना पक्षमे दस-बीस करोड़क निविदा निकलवा लैक? तँ की हर्ज? मनु स्मृतिक अनुसारे प्रत्येक मासक पश्चात स्त्री तहिना पवित्र भऽ जाइछैक, जेना बाढ़िक बाद नदी।

- देहक उपयोग कोनो छोट स्वार्थ लेल करब अधम कोटिक मानसिकता अछि। शास्त्र एकर अनुमति किन्नहु नहि देत। किन्तु यएह समर्पण जँ प्रेमी-प्रेमिकाक बीच अछि, तँ ओ दिव्य भऽ जाइछैक। मनुस्मृतिक श्लोकक प्रयोजन ई छै जे, जँ कोनो युवतीक संग अप्रिय घटना भऽ जाइछैक, तँ ताहिसँ ओकर जीवन नष्ट नहि भऽ जाइछैक। मासिक धर्मक पश्चात ओकर देह पुनः पवित्र भऽ जाइछैक। हँ, जँ गर्भ रहि गेलैक, तखन ओ एकटा सामाजिक समस्या उत्पन्न करैछैक। ओ शिशु जिनगी भरि टुअरे टापर रहैत अछि। 

- एहि दृष्टिसँ मनु महाराज बेसी आधुनिक आ व्यावहारिक छथि। कतेक ठाम ओ आजुक भोथहा कानूनक तुलनामे अधिक संवेदनशील छथि।

- गुरुमाँ, हमर मूल प्रश्न तँ अनुत्तरिते रहि गेल। आइ वएह प्रश्न हमर मोनकेँ मथि रहल अछि। अहाँ बरमहल कहैत छियैक जे स्त्रीक सौन्दर्य विधाताक सभसँ उत्तम वरदान छियैक। इहो एकटा कमलक फूले होइत छैक, जे भोरे फुलाइत छैक आ साँझ धरि मौला जाइत छैक। दुपहरमे ओहि फूलसँ कोनो प्रिय जनकेँ सुख देनाइ कोनो अपराध छियैक की? इहो तँ उपकारे भेलैक।

- ताही लेल तँ गृहस्थ आश्रम क व्यवस्था छैक दाइ। यौवनक उन्माद स्त्री-पुरुष दूनूमे होइत छैक। पुरुष बहिर्मुखी होइत छैक। तैँ ओ तुरंत उत्तेजित भऽ जाइत छैक। स्त्रीक प्रवृत्ति अंतर्मुखी छैक। ओ देरीसँ आ देरी तक उत्तेजित रहैत छैक। अहाँक संयमित जीवनक यएह कारण अछि।

- किंतु एक बेर हमर संयमक बान्ह टूटि गेल छल गुरुमाँ। सएह मधुर स्मृति रहि-रहि कऽ कचोटैत अछि।

- अच्छा! से कोना?

- ओहि घटना केँ बारह साल भऽ गेलैक अछि। हमरा बैंकमे नया नोकरी लागले छल। एक दिन कानपुर आइआइटीक एकटा हमर प्रोफेसर साहेबक फोन आयल जे- रुचि, हम एकटा तकनीकी संगोष्ठीमे मुंबई आबि रहल छी। अहाँ अपन गेस्ट हाउसमे एकटा रूम हमरा लेल बुक करा देब? आइआइटीमे सभसँ मोहक आ शालीन व्यक्तित्व हुनके छलनि। खूब लोकमिल्लू। तैँ छात्र-छात्राक बीच बेसी लोकप्रिय। हम सभ बहुत नकल करियनि हुनकर। ओ आबि रहल छथि, से सोचियेकेँ देहमे झुरझुरी बरि गेल। जेना अतीतक एकटा श्वेत मेघ-खंड हमरा आगाँ आबिकेँ पसरि गेल हो। हम बिना एको पल गमैने हुनका कहि देलियनि जे भऽ जेतैक सर। अहाँ निश्चिंत भऽ कऽ आउ।

      संयोग सँ, गेस्ट हाउसमे ओहि तारीखमे कोनो रूम खाली नहि छलैक। तखन हम अपने फ्लैटमे हुनका राखबाक विचार कएल। दू बेडरूमक फ्लैटमे एकसरि रहैत रही। सर हमरा एतेक लगीच आबि जैताह, से कल्पने कए रोमांचित भऽ गेलहुँ। सरकेँ आनवाक लेल हम स्वयं एयरपोर्ट चलि गेल रही। सर, लखनऊ क भोरका फ्लाइटसँ एयरपोर्ट पर उतरि कऽ बाहर निकललाह, तँ आवेशमे आबिकऽ हम धिया-पुता जकाँ हुनका छातीसँ चिपकि गेलियैक। टैक्सी कऽ घर ऐलहुँ। जल्दीसँ दूनू गोटे तैयार भऽ कऽ आइआइटी विदा भेलहुँ। रस्ता भरि कखनो हुनकर हाथ आ कखनो हमर हाथ एक दोसरासँ छुआ जाइ तँ सौंसे देह करेंट लागि जाइ। सभागारमे ओ मंच पर चलि गेलाह आ हम दर्शक दीर्घाक पहिल पाँतिमे बैसल सदिखन हुनके दिस एकटक ताकैत रहलहुँ।

  साँझमे घुरलाक बाद सरक अटैची हम अपन बेडरूममे राखि देलियनि। एसी ओही रूममे छलैक। टॉयलेट सेहो ओकरे नीक छलैक। सर बाथरूमसँ नहा कऽ  निकललाह, तँ हमहू ओहीमे नहाइ लेल चलि गेलहुँ। सर ड्राइंग रूममे बैसिकऽ संगोष्ठीक पेपर सभ तावत देखैत रहलाह। नहाकेँ महीन अद्धीक कुर्ती-पैजामा पहिरि कऽ जखन हम निकललहुँ, तँ भीजल केशक पानिसँ कुर्तियो कने भीज गेल छल, जाहिसँ छातीक उभार भीतरसँ झलकय लागल। हमरासँ गप करैत काल, सरक नजरि बेर-बेरि ओही दिस उठि जाइत छलनि, से हमरा अनुभूति भेल। हम अनबारीसँ एकटा ओढ़नी आनिकऽ ओढ़ि लेल। मुदा पुरुषक परिकल नजरि रहि-रहि कऽ ओम्हरे बढ़ि जाय। आ ताहिसँ हमर छातीक धुकधुकियो बढ़ि जाइत छल। 

 

    कालोनीक गेस्ट हाउसमे बैंकक कैंटीन छलैक। दूनू गोटे ओतहि रातुक भोजन कएल। काउंटर पर सौंफ लऽ कऽ सरकेँ देलियनि, तँ हुनक हाथक स्पर्श असामान्य लागल। ओ बजलाह-आइ अहाँ बहुत क्यूट, बहुत स्मार्ट लागैत छी।' हम एहि पर 'से बात! 'कहिकऽ हँसि देलियैक, हुनकर मारुक वाक्यक प्रभाव कम करवाक लेल। घर आबिकऽ किछु काल आजुक संगोष्ठी पर आ तकर बाद हमर काज सँ होइत देशक अर्थ व्यवस्था धरि वार्ता पहुँचि गेलैक। राति बारह बाजि गेल छलैक।दूनू गोटे अपन-अपन रूममे सूतय लेल चलि गेलहुँ। हम ओछाइन धरियो नेने रही कि मोन पड़ल जे दवाइ नहि खैलहुँ आइ। दवाइ दोसर रूममे छलैक। उठिकेँ ओहि सर वला रूम गेलहुँ। जीरो वाटक नील रोसनीमे सर अनठेने पड़ल छलाह। ड्राअरसँ दवाइ निकालवाक आवाज सुनि सर उठिकेँ बैस रहलाह। दवाइ खाकऽ जाइत रही कि सर हमर हाथ पकड़िकेँ बैसा लेलनि। हाथ तेना हल्लुक पकड़ने छलाह जे हम छोड़ाकऽ भागियो सकैत छलहुँ। मुदा भागि नहि भेल। हमर आँखि मुना गेल। हुनकर हाथ हमरा हाथ, बाँहि, पीठकेँ हँसोथय लागल। फेर हमर केस, माथ, गाल, गरा सभ हुनकर स्पर्शसँ रोमांचित होमय लागल। तकर बाद हुनकर छाती हमरा छातीसँ आ ठोर हमरा ठोरसँ सटि गेल। पश्चात हुनकर हाथ हमर दूनू वक्षसँ एकाँएकी खेलय लागल। एहि क्रीड़ामे हमरा एकटा अद्भुत स्वाद भेटि रहल छल।

 एकटा अपूर्व गुरुत्वाकर्षणमे हमर सौंसे अंग-प्रत्यंग बरकय लागल। देहक भीतर ज्वालामुखी जखन असह भऽ गेल, तखन हम अपने कुर्ती उतारि देलियैक आ तकरे संगे हुनकर गंजियो। धधरा पसरलै तँ हम अपन पैजामा आ हुनक डाँढ़मे लपटल धोती सेहो हटा देलियैक। दूनू क ठोरसँ लऽ कऽ पैर धरि छुआइते देरी टेहरी बान्हक सभ दरवाजा खुलि गेलैक आ भागीरथीक तेज जलधारमे सभ किछु भसिया गेल। तकर बाद निच्चाँ पसरल धरती आ उप्पर आरूढ़ आकाश। मोन रहल केवल परकाया प्रवेश, जे कष्ट दैतो खूब नीक लागैत छल। प्रबल उत्तेजनाक धारमे कतेक काल धरि बहैत रहलहुँ, से होस नहि रहल। ज्वालामुखी शांत भेला पर छातीसँ छाती सटा कऽ दूनू सूति रहलहुँ। दूनू निश्शब्द। लाजसँ हमर आँखि मुनले रहल।

    भोरमे आलसे देह ततेक टुटैत छल जे उठवाक मोने नहि होइत छल। सर बाथरूमसँ नहाकऽ बाहर ऐलाह। तखन अपना गाल पर हुनक ठोरक ठंढा स्पर्शसँ हमर नीन टूटल। तकर बाद जेना राति किछु भेले नहि हो, तेना जकाँ हम नहा-सोना कऽ तैयार भेलहुँ। नाश्ता कैंटीनसँ मँगा लेल गेलैक। सरकेँ नौ बजे 'ओला' कैबसँ एयरपोर्ट विदा कऽ हमहूँ ऑफिस चलि गेलहुँ। किंतु दिन भरि रातुक एक-एक क्षण हमरा पाछाँ करैत रहल। ओही दिन नहि। आइयो धरि जखन-तखन ओ राति मोन पड़ि जाइत अछि आ भीतरक चोर ओकर पुनरावृत्ति करैक लेल उकसावैत अछि।

-अही द्वंद्व कऽ निस्तारणक लेल गुरुमाँ, हम अहाँक शरण आयल छी।

   आँखि मुनने रुचि पूरा वृत्तांत तहिना सुनेलनि जेना इसाई सभ चर्चमे कन्फेस करैत छैक। गुरुमाँ पलथी मारने ध्यानस्थ। मुँह रक्तकमल भेल, किंतु परम शांत। आँखि मुनने गुरुमाँ बजलीह-तकर बाद कोनो संवाद 'सरजी' सँ?

-शुरूमे दस-पंद्रह दिन दूनू दिससँ फोन भेलैक। मुदा ओहि रातिक घटनाक कोनो चर्चा नहि। एकाध बेर प्रशंसात्मक स्वरमे ओ प्रसंग उठैलनि, मुदा हमहीं अनठा देलियैक। भरिसक पत्नीक डरे ओ फोनो बंद कऽ देलनि।

गुरुमाइ आँखि खोललनि। पुछलीह- तखन आब आगाँ की चाहै छी? 

- सैह पूछय आयल छी। कारण, हमर शरीर ओहि स्वादकेँ पुनः चाखि कऽ पूर्ण तृप्त होमय चाहैत अछि। राति-बिराति हमर कामना प्रचंड भऽ जाइए।

-कामाग्नि मिझैलाक प्रयत्नसँ आर बढ़िये जाइत छैक, रुचि। गोस्वामी जी कहैत छथि- बुझै न काम अगिनि कह तुलसी विषय भोग बहु घी ते। एहि मे पाप-पुण्यक यएह निकर्ष छैक जे जाहि काजसँ आह्लादित भेलहुँ से भेल पुण्य आ जाहि काज कएलासँ ग्लानि भेल से पाप अछि। अहाँसँ कोनो पाप नहि भेल अछि। इहो जीवनक एकटा अनुभव छियैक। अहाँ कहियो एकरा बिसरि नहि सकैत छी। प्रत्येक अंगमे ओ स्मृति एहि जन्मकेँ के कहय, अगिलो जन्ममे बनल रहत। अहाँक संयमकेँ धन्यवाद जे ओ स्वाद चस्का नहि बनल। ओहि राति अहाँक संयोग प्रेमीसँ नहि, ओहि अध्यापकसँ भेल छल, जे अहाँक जीवनमे आदर्श छल। तैँ ओ घटना तात्कालिक भावना छलैक। आकाशकेँ छूबि लेवाक धरतीक सहज उत्कंठा। वएह क्रम जँ आगाँ बढ़ि जैतैक छल, तँ व्यभिचार होइतैक। ई देह ईश्वरक वरदान छियैक। एकर दुरुपयोग कोनो प्रकारक स्वार्थ-साधनक रूपमे करब अधम विचार भेल। ताहि दिस सोचबो पाप होयत। 

अहाँ मुक्त छी, निष्पाप छी। सभक देहक तापमान एक नहि होइत छैक। तहिना मोनक भावनो सभ समय एक रंग नहि होइत छैक। एहि संसारमे सभसँ सौभाग्यशाली वएह होइत अछि, जेकरा प्रेमक प्रतिदान कएनिहार सुच्चा प्रेमी भेटि जाइत छैक। से प्रेमिका निश्चय राधा स्वरूप अछि।

    सहसा गुरुमाइ उठिकेँ अपन भीतरी प्रकोष्ठमे चलि गेलीह। रुचि एकसरिए बड़ी काल धरि गुरुमाइक बातक ओझरायल सूत्रकेँ सरियवैत रहलीह। किछु कालक बाद गुरुमाइ स्नान-ध्यान कऽ साधना-कक्षमे ऐलीह। एकवस्त्रा गुरुमाइक सुगठित देहक दिव्य सौन्दर्य देखि रुचि चकित भऽ गेलीह। हुनका झकझोरैत गुरुमाइ बजलीह- जाउ, अहूँ स्नानक लिअ। हमरे गेरुआ चीर पहीर लेब।

 चारि लोटा ढारिकेँ रुचि जल्दिये आबि गेलीह।

तत्पश्चात केराक पात पर दूनू प्रसाद पएलनि। 

-आइ अहाँ हमरे संग सूति रहू। एखन दूनू संन्यासिनी छी। 

अनुशासित कन्या जकाँ रुचि हुनका ओछाइन पर अत्यंत संकोचसँ सूति रहलीह। गुरुमाइ रुचिक माथ हँसोथैत बजलीह- रुचि, शास्त्रक निर्देश छैक जे एकांतमे युवतीकेँ अपन भाइयो बापक संग नहि रहवाक चाही। अहाँक यएह गलती छल जे एकसरे घरमे पर-पुरुषकेँ बजा लेलियैक। ई कदापि नहि करवाक चाही छल। अहाँ सिंगल छी। तैँ ई बात ध्यान राखब। अन्यथा समाजक गिद्ध सभ बुट्टी-बुट्टी नोचि लेत आ अहाँकेँ पतो नहि चलत। पुरुष अंततः पुरुष होइत छैक आ स्त्री अंततः स्त्री। भावनाक संगे बुद्धियो भगवान देने छथिन। तकर प्रयोग करवाक चाही।

      गुरुमाइ स्नेहसँ हुनका माथकेँ चूमि लेलखिन। रुचिकेँ किछु आर मोन पड़ि गेलनि। बड़ी काल धरि अपन माथपर ओ कोनो तृतीय पुरुषक चुम्बन अनुभव करैत रहलीह। गुरुमाइ सत्ते कहने छलथिन जे देहक अंग-प्रत्यंग अपन स्पर्शकेँ जन्म-जन्मांतर धरि मोन राखैत छैक।

 

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