कल्पना झा
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-१५
दू
पत्र : 'व्यास' जीक चर्चित लघु उपन्यास
सन् 1968 मे प्रकाशित आ सन् 1969 क साहित्य अकादेमी पुरस्कार सँ पुरस्कृत 'व्यास'
जीक लघु उपन्यास "दू पत्र" बेस चर्चित रहलनि। चर्चित रहबाक कइअक टा कारण
रहल। जाहि मे निस्संदेह मुख्य कारण रहल एहि पोथी के साहित्य अकादमी
पुरस्कार भेटब।
"दू पत्र" की अछि, सेहो चर्चाक विषय रहल। मतलब उपन्यास अछि, कि लघु उपन्यास
अछि। नब प्रयोग अछि, सेहो मानबा लेल सभ तैयार नहि। "मैथिली साहित्य मे ई एक
नब प्रयोग थिक", से लेखक स्वयं तँ कहलनि अछि, अपन लिखल "दू शब्द" मे। मुदा
हरिमोहन झाक "पाँच पत्र" शीर्षक कथा पहिनहि लिखल जा चुकल छलए, तैँ किछु
लोकक कहब छलनि जे "दू पत्र" हरिमोहन झाक कथा "पाँच पत्र"क तर्ज पर लिखल गेल
अछि। पुस्तकक आकार, मतलब पृष्ठ संख्या सेहो चर्चाक कारण बनल। माने ई
उपन्यास कहएबाक पात्रता राखैत अछि कि नहि, सेहो दुविधा छलनि साहित्यकार
लोकनि केँ। मात्र 88 पन्नाक पोथी "दू पत्र" लिखलाक बाद रमानाथ बाबू केँ
देखए देने छलथिन 'व्यास' जी। रमानाथ बाबू कहलथिन - कनेक छोट अछि। ताहि पर 'व्यास'
जी हुनका कहलथिन जे हेमिंग्वे द्वारा लिखित Old Man and the sea एहिसँ पैघ
नहि छैक।
अंततः लघु उपन्यास रूप मे स्वीकारल गेल "दू पत्र" केँ।
ओना सत्य कही तँ, मैथिली साहित्य मे ई एक नव प्रयोग तँ ठीके छलए। एहि मे
वर्णित विषय, कथा-वस्तु आधुनिक समाज मे सहजहि देखबा मे आबि जाइत अछि। ताहि
दिन एहेन घटना कम होइत छलैक, जखन ई पोथी लिखल गेल छलए। "एहि लघु उपन्यासक
स्थान, काल, पात्र, सभ कल्पित अछि।" इहो बात चर्चाक विषय रहल। बाहरक लोक मे
रहल कि नहि, से तँ नहि कहि; मुदा घरक लोक मे एहि बात पर अवश्य चर्चा होइत
रहल यदा कदा। असल मे "दू पत्र"क मुख्य पात्र श्रीमती इन्दु देवी 'व्यास'
जीक दूरक संबंधे मे छलथिन। सरहोजि। जनिकर पति विदेश जाए, ओत्तहि के भ' क'
रहि गेलाह। अपना देश मे एकटा अबोध बालकक संग रहैत इन्दु देवीक संग जखन ई
घटना भेलनि, तखन ओ मात्र मैट्रिक पास छलीह। परित्यक्ता भेलाक उपरान्त आगाँ
आइ. ए. , बी. ए., बी. एड. आ एम. ए. धरि पढ़ाइ कएलीह ओ। हुनकर पढ़ाइ-लिखाइ
मे 'व्यास' जीक भरपूर सहयोग रहलनि। मतलब 'व्यास' जीक सहयोग सँ पढ़ि-लिखि
आत्मनिर्भर भ' गेलीह आ पटरी पर सँ उतरि चुकल जीवनक गाड़ी पुनः पटरी पर आबि
गेलनि। आगाँ जा क' हुनका "मिथिला पुत्री" सम्मान सँ सेहो सम्मानित कएल गेलनि।
मतलब, धन-वित्त, मान-सम्मान, सभ किछु पर्याप्त भेटलनि। पैघ भ' क' बेटा सेहो
पढ़ि-लिखि नीक पोस्ट पर कार्यरत भेलथिन। बहुत दिन धरि 'व्यास' जीक घरक
सदस्य जकाँ संग रहलथिन दुनू माए-बेटा। लगभग पन्द्रह बर्ख। एहि ठाम हम 'व्यास'
जीक धर्मपत्नी अमरावती देवीक प्रशंसा करए चाहब। पत्नीक सहमति आ सहयोगक बिना
ई संभव नहि छलनि 'व्यास' जी लेल जे पति द्वारा परित्यक्त एकटा स्त्रीक जीवन
सही रस्ता पर आनि सकितथिन।
आब गप्प ओहि प्रसंगक, जाहि कारणेँ सभ सँ बेसी चर्चा मे रहलनि 'व्यास' जीक
पोथी "दू पत्र"। जखन पोथीक चयन भेल साहित्य अकादमी पुरस्कार लेल, तखन ई पोथी
चर्चित विषय बनल रहल साहित्यिक गलियारा मे। जेना कि सभ साल पुरस्कारक
घोषणाक बाद घोंघाउजक परम्परा सन देखि रहल छी, कइअक साल सँ फेसबुक पर हम सभ।
ठीक तहिना, ओहि समय मे बिनु फेसबुकेक घोंघाउज भेल छलए, एहन सुनैत छी। किछु
गोटे बड़ गंजन करैत गेलथिन 'व्यास' जीक। सुधांशु शेखर चौधरीक प्रतिक्रिया
छलनि जे 'व्यास'जी तँ इंजीनियर छथि, कोनो गरीब साहित्यकार केँ पुरस्कार
भेटितैक तँ आर्थिक लाभ होइतैक।'
किछु गोटे कहलथिन जे 'व्यास' जी गुटबाजी सँ पुरस्कार प्राप्त कएलनि अछि।
रमानाथ बाबूक गुट मे छथि तेंँ पुरस्कार भेटलनि। जखन कि ओहि समयक नियमक
अनुसारे तीन सालक कालखण्ड मे प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ पोथी पर पुरस्कार भेटैत
छलैक। यदि काशीकान्त मिश्र 'मधुप' आ सुरेन्द्र झा 'सुमन'क पुस्तक रहितनि आ
तखन 'व्यास' जीक पोथी केँ भेटितनि तँ गलत कहल जा सकैत छलए। मुदा से तँ रहनि
नहि। तखनहुंँ ईर्ष्या, द्वेषक अधीन किछु लोक बहुत दिन धरि विरोध करैत
रहलथिन।किछु साहित्यकार एकटा पत्रिका तीन अंक धरि 'व्यास' जीक खिलाफ छापि
हुनकर पता पर घर पठा दैत छलथिन।
मुदा एहि सभ बातक कोनो प्रभाव नहि पड़लनि 'व्यास' जी पर। सुबल गांगुली सन
निष्णात पत्रकार दू दिन 'व्यास' जीक आवास पर अएलाह आ तखन विस्तृत रिपोर्ट
हुनका पर आ हुनकर पोथी पर "द इलस्ट्रेटेड वीकली" मे प्रकाशित भेल छलए।
'व्यास' जी सभ दिन सँ तपस्या मे लागल छलाह, लागल रहलाह। माँ मैथिलीक तपस्या
। यश-अपयश, निन्दा-प्रशंसा सँ उपर ओ बस साहित्य-साधना मे निमग्न रहलाह....आजीवन।
संपादकीय सूचना-एहि
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मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-1
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