नित नवल सुशील (लेखक गजेन्द्र ठाकुर)
सुशीलक रचना संसार: हुनकर रचना संसार छन्हि- घराड़ी (उपन्यास) (१९७३), गामबाली (उपन्यास) (१९८२), भामती (नाटक) (पहिल मंचन १९९१, प्रकाशन २०१३) आ अस्मिता (लघुकथा संग्रह) (२०१६) आ ई चारू पोथी हुनकर अनुमतिसँ विदेह पेटारमे उपलब्ध अछि लिंक www.videha.co.in/pothi.htm पर।
कमलानन्द झाक पोथी "मैथिली उपन्यास: समय समाज आ सवाल" (२०२१) मे लिखै छथि- "मैथिली उपन्यास-यात्राक लगभग सय वर्षक बाद मैथिल अन्तरजातीय विवाहक सपना, संघर्ष आ विडम्बना पर गरिमायुक्त उपन्यास लिखबाक श्रेय गौरीनाथकेँ जाइत छनि।" तँ की कमलानन्द झा सुशीलसँ ई श्रेय छीनि लेलनि? चलू अहाँकेँ लऽ चली कमलानन्द झा केर स्वार्थी दुनियाँसँ दूर, छल-छद्मसँ दूर सुशीलक जादूबला साहित्यक निश्छल दुनियाँमे।
गामबाली (उपन्यास)- सुशील (पछिला अंकसँ आगाँ)
सभक आँखिक काँट गामबाली आइ ओ बबूर सेहो कटि गेल!
ओकरा चाहऽ बला, नै चाहऽ बला आ कात रहनिहार, तीनू तरहक लोक खुश अछि। ओकर अन्तिम संस्कार के करतै? जादव समाज आकि ब्राह्मण समाज। जादव समाज आ ब्राह्मण समाजक लोक पहुँचै छथि मालिक माने सोनमनि झा लग, ओ छथि पाउ-पाउ करैत, मसलनमे ओङठल।
गामबालीक संस्कार जादव समाज मिलि कऽ करतै।
गोअर टोलीक लोक ओकरा गामबाली कहब शुरू केलकै आ फेर बभनटोली, कैथटोली, जोलहा टोलीक लोक सेहो ओकरा गामबाली कहऽ लगलै।
गामबालीक वर बूढ़, ओ तेसर बहु छली, पहिलसँ बच्चा नै भेलै तँ दोसर बियाह आ फेर दोसरोमे बच्चा आ पहिलोमे। आ फेर तेसर बियाह सौख लेल। बाबू पैरुखक गप छै, के कत्ते बहु डेबि सकैए।
ज्ञानचन यादव माने ज्ञनचनमाकेँ लोक मरखाह बना देलकै, अपने बलजोरी ओकरा घरो कऽ दऽ जाइ गेलै आ तहन लाहेब मचा दइ गेलै गाममे।
गामबाली जीवित रहलि, ओकर जिजीविषा आर प्रबल भऽ गेलै बादमे। बड़े शानसँ आवाजाही करैत रहलि, कोनो अरचन नै एलै। आमिल पिनहार समाङ लेल धनसन, कुलटा बुझिनिहार लेल कत्तौ किछु नै। जे ओकरा संगे भौजीक सम्बन्धे हँसी ठट्ठा करै तकर ओ जवाब दै हँसि कऽ। गुअरटोलीसँ ओकरा गामबाली कहबाक प्रचार भेलै आ सौंसे गाम पसरि गेलै।
मुदा गामबालीक कोनो सम्बन्ध अपन ऐ गामक अपन पुरान सासुरक परिवारसँ नै रहलै। मुदा खान-पान, लेब देब सौंसे बाभन-गच्छसँ छूटल रहलै।
आइ ओकर मृत्युक बाद ओकर प्रशंसक कम नै छै, शानसँ आयलि आ शानसँ चलि गेलि।
धनक ऐंठल बूढ़ संगे गामबालीक बियाह भेल रहै, पतिक तेसर पत्नी। सखा-पात लेल बूढ़ दोसर बियाह केलनि फेर दोसरो आ पहिलोसँ बच्चा भेलनि। तेसर पत्नी सख लेल, लौल लेल केलन्हि।
छिनरबा मनसा सभ ओकरा दूरि करऽ चाहलकै आ ज्ञानचनमाकेँ मरखाह बना देलकै।
आ उपन्यासकार शुरू करै छथि ज्ञानचन यादवक खिस्सा।
ओ पैघकेँ बाबा, काका, भाइ आ छोटकेँ बौआ, बच्चा आ नूनू कहय। कोनो आंगन नै रहै जतऽ ओकर प्रवेश नै रहै। दाइ, काकी, बहिन, बचियासँ ओकर मुँह टूटै। मुदा कनियाँ-पुतराक अंगनामे हठ दऽ जाइत साइते कियो देखने हेतै। बूढ़ि-पुरैनियाँक हठ केलोपर भावहुक अंगना ओ धखाइते जाइ छल। बाबी, माय आ पिउस श्रेणीक स्त्री कहितथिन- एहेन लजकोटर भऽ कऽ बैदगिरी केना करै छह।
(अगिला अंकमे जारी)
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