लालदेव कामत
आर्यावर्तके कौटिल्य'क दृष्टि ओ कूटनीति
चाणक्य मात्रे मानवतावादिए टा नहि रहथि,ओ प्रकृति केर समस्त वस्तुमे
गुरूत्तर विचार संयोगने छलाह। जीव - जन्तु धरि सँ सीख लेमय गुणग्रहण करबाक
अनुसंशा कयलन्हि।
चिन्तन - मनन चाणक्यके पकठोस हुनक विचार! अध्ययन - अनुकरण जे करय, निखसय
सकल बिकार!!
मैथिली साहित्यकार चन्द्रनाथ मिश्र 'अमर' चाणक्य मादे कहने रहथि-:
"महाकाव्य 'क संदर्भमे लगधक ६० साल पूरवहि दीनानाथ पाठक 'वन्धूक' मैथिली
पोथी बीर रसक महाकाव्य लक्षणामे जतबा कहल गेल छैक,तकर सम्पूर्णक पूर्ति तँ
कम्मे ठाम भेटत। एहिमे संक्षिप्तीकरण आ कविता तंँ आब छन्दोक बन्हन सँ मुक्त
रहैछ। तेँ छन्दोवध्द काव्य रचना कयनिहार प्राचिनवादी कहेबाक उपहास सँ नहीं
बँचैतछथि।"
रवि आ अनल पर कवि जीके व्याख्यान ओहि पोथीमे सुधि पाठक पढ़ि ताहिक ब्राह्मण
समाजमे उपादेयता बढ़ल देखल रहल अछि। तकर व्यापक चर्चा पुर्न प्रकाशित
अनुप्रास प्रकाशन सं दू शाल पूर्व पोथी छपला पर भेल रहैक। जँ जग जल नहिं
होइत, उर्जस्विता केर वाद आब श्री राजकिशोर मिश्र जी सम्पूर्ण मानव समाज
लेल कौटिल्य : विष्णुगुप्त केर जीवन गाथाकेँ मैथिली खण्ड काव्य रूपेँ
'आचार्य - चाणक्य ' नवारम्भ - दिल्ली सँ मई २०२५ मेँ छपौलनि हेन। एहि
ग्रन्थमे १२० पृष्ठ छैक,जकर किमत ३०० टाका लागल गेलैक। नीक कागतमे छपाई
आर.के. ऑफसेट प्रोसेस, नवीन शाहदरा - पुरना डिल्ली सँ भेल छैक।
सद्यप्रकाशित " आचार्य - चाणक्य " केँ कविवर राजकिशोर मिश्र जी अपन पितामह
स्व० कलाधर मिश्र साकिन - अड़ेर डीहटोल केँ समर्पित कयलाह अछि। मुद्रण सँ
पूर्व ऐहिक पाण्डुलिपिक शिघ्रता सं टंकण काज लेल अपन धर्मपत्नी श्रीमती
अनीता मिश्र जीकेँ धैनवाद देवा सँ नहिं चुकल छथि। कथाभाग आओर आखरि छठम्
सर्गमे कौटिल्य नीतिक प्रचलित विवरण दैत प्रबन्ध - काव्य पूर्ण कयलाह अछि।
बहुआयामी व्यक्तित्वक धनि विष्णु गुप्तक उर्फ आचार्य चाणक्य जिनका कौटिल्य
नामे सेहो जानल गेल रहय,तिनका उपर श्री मिश्र जी खण्ड काव्य रचना कऽ
उत्कृष्ट कार्य कयनिहारमे अपन नाम शुमार करौलाह अछि। अर्थ शास्त्र, बौद्ध
ग्रंथ-'महावंश' ,जैन ग्रंथ 'परिशिष्ट पर्वन' , विशाखदत्तक लिखल '
मुद्राराक्षस ' नाटक , मेगास्थनीज द्वारा लिखित पोथी 'इंडिका ' आ किछु
पुराण सभक विशद् अध्ययन कय राजकिशोर मिश्र जी एक अभिनव प्रयोग कय मातृभाषा
मैथिली क अक्षय भंडार केँ भरलाह अछि। सनातन धर्मक लोक लगधक ३७५ ई० पूर्वके
एम्हर २३०० लगायत पूर्वके बरख सं समाजमे चलैत व्यवहारिक पक्षकेँ प्रणयन कय
अपन नैतिक कर्तव्यक एक शोध कवित रुपेँ कयलाह हेन। हिनक रचनामे जे लालित्य आ
तथ्य छन्हि से हमरा बुते अकथ्ये रहि जाएत। तकर कारण जे मूल पोथी तँ मनोयोग
पूर्वक पढ़ि गेलहुँ आ पाठकीय प्रतिक्रिया लेखन काज आरम्भ करय सँ पहिनेहि १०
जून -२५ केँ आठ बजे रौंद ४२° रहैक आ खेरही खेतमे आधहा दवाय छिटल पार लगले
छल कि लूह लागि गेल। अचेत अवस्थामे मोटर बाइक सँ भातीज आ छोटपुत्र प्राथमिक
उपचार लेल अमही बाध सँ गामपर लाधि अनलक। १५ दिन सँ अशक्तपना द्वारे दोहरौनी
पोथी पढनाई बाँकिये रखने छी,आ किछु - किछु पाँति देख मनन करयमे लागल छी।
कलहन्त मोनमे स्वस्थ्य बुध्दि सेहो तँ निपत्ता भ' जाई छैक किनै। तैयो
साहित्यिक प्रसंग - विचार हमरा नीक लगैत य, बनसवृत राजनीतिक संवाद मोबाइल
पर नहिं अरघैत अछि। मुदा जिला जबारक सह संयोजक आ अपना विधानसभा'क कार्यक्रम
प्रभारी नियुक्त रहने तँ कोनू दिन एहन नहिं बितैत अछि जे दूसय गोटेय सँ
वार्ता नहिं करैत होय! ताहि पर सँ संस्था- समितिक' जुरावक जे दायित्व थोपल
अछि सेहो सक्रियता पूर्वक निमाहैत रहलहुं अछि। मुदा फेसबुक 'क ५००० मित्रगण
जेकाँ जिगेसा करय धरातल पर अपवाद छोड़ि नहियें कियो देखय आयल। आ जे सभ
अयलाह हुनका प्रति विनम्र भावे आभार अछि। पोथी'क पाठकीय प्रतिक्रिया समय सँ
लिखब मुख्य विषय थीक, आन बात ओनहिना अपनेकेँ बुझेबा लेल लिख देल,कृपा कऽ के
अन्यथा नहिं लेब! हँ तँ कहय चाहैत रही आचार्य चाणक्य पर ई एकटा पैघ काज
कयलाह श्रध्देय राज किशोर मिश्रजी। हिनक बहुत रास प्रकाशित पोथी हमरा पढ़ल
अछि आ बेसितर पोथीक समीक्षा सेहो लिख विभिन्न पत्र-पत्रिका आओर इन्टरनेट
पत्रिकामे प्रकाशनार्थ पठोने छलहुँ। अभिलाषा तं मोनमे विशेष औंटने- पौरने
छी, कदाचित ई आलेख हम छपल देख पाएब वा नहिं? अद्भुत साहित्यिक उल्लास सँ
रचल एहि पोथीक पन्ना- पन्नाक पावस ऋतुक मन्द- मन्द वसात सं तरंगीत होइए। आ
पाठककेँ ई पोथी पढ़ैत सेहो मोन कम तरंगीत नहिं हेतन्हि। कविवर श्री मिश्रजी
अपन दू आखरके माध्यम चाणक्य ओ चन्द्रगुप्त मौर्य सँ संबंधित ग्रन्थ सभमे
उपलब्ध जनतबमे एकरूपता ओ समानताक सर्वथा अभाव गच्छलनि हेन। तें एहि विषय पर
विद्वान लोकनिक बीच मैतक्य रहला कारणेँ कथामे सर्वमान्य जनतबकेँ आधार
बनाबैत एहि खण्ड काव्यके पाठक हाथमे देलनि अछि। मानव समाजक बीच एहन
अद्वितीय विद्वान, कूटनीतिज्ञ ओ कालद्रष्टा पर वृहद् काव्य -रचना करैत पोथी
विलक्षण पोथी उपस्थित कयलाह से स्तुत्य काज हमरा नजैरमे भेल य।
भारत देश स्वतंत्र भेलासन्ता आजादी आन्दोलनके सर्वश्रेष्ठ प्रणेता महात्मा
गांधी जी - बापू कहौलाह,परंच ओ संवैधानिक पदधारी कथमपि नहिं बनलाह। ओ
भारतीय मीशन केर रहस्य बुझि जेना आचार्य चाणक्य चाहितथि तँ नरेश स्वयं बनि
सकैत छलाह,मुदा ओ शिष्य केँ राजा रूपें देखलनि। तें कवि जीक एहि संदर्भ म
पाँति जे सृजल गेल छैक से हृदयके अतरतल केँ छुबैत छैक। यथा-: नहिं चाही
जिनका सिंहासन
नहिं सुख - सुविधाकेँ सोह
लोक - हित लेल निज ज़िन्दगी सँ
जिनका नहि कनिको मोह 1
एकटा दोसरो पाँति देखू -:
....... ओ जुग - द्रष्टा , ओ जुग - स्रष्टा
भारत भूखण्डक स्वाभिमान
सहस्त्राब्दीमे कहियो - कहियो
लै छथि जनम एहन श्रीमान l
मगध सम्राट धननन्द ,हुनक महाअमात्य राक्षस आ साम्राज्यक मंत्री शकटार केर
अछैत मौर्य साम्राज्यक निर्माता रूपेँ चाणक्य,एहि वंशक मगध सम्राट
चन्द्रगुप्त मौर्य , तक्षशीलाक राजकुमर - आम्भीक मादे विस्तृत प्रसंग पाठक
पढ़ि गुणताह। दोसर दिस पंजाबक राजा - पर्वतेश्वर (पोरस,पौरव) आ यवन सम्राट
- सिकन्दर ,तकर सेनापति सिल्यूकस'क पारिवारिक सदस्यक दुश्मनी केँ कोना
मैत्री आ संवंधीधरि बनाओल गेलैक से पाठक बुझि अचंभित रहताह। खूब गहींरपन सँ
प्रायः सब पात्रक भूमिका'क निर्वहन आ समन्वय सँ नेपथ्यक चाणक्य कूटनीति
सुस्पष्ट झलकैत बुझाइछ। आचार्य चाणक्य बावत जे समान्य मान्यता बौद्ध
धर्मावलंबी'क बीच आयल अछि,ताहि सँ अन्तर जैन समाजमे मानता छैक। मुदा सनातन
धर्मक अनुयायी संहार करैत नहिं पाबि बंदी रूपेँ वादमे दृष्टांत देखाईछ।
आर्यावर्तक ऐयाशी पूर्वक राजपाट करयबाला राजा सबमें आपसी दुश्मनी सँ फराक
संबंध रहैत आयल छैक। तेँ विदेशी आक्रमणकारी शत्रु राजा केँ फबि जाए। चेतौनी
कयलोपर मानै ले तैयार नहिं होइक। पाँति द्रष्टव्य -:
महाराज ! ई बात सुनय जाए
आर्यावर्त अछि बड़ विपतिमे
यवन - सेना पश्चिम - उत्तर मह
ओतऽ मेल ने कोनो - नृपत्तिमे ।
देखू तँ आर्यावर्तके हितमे एकोटा युद्ध नहिं छैक। आ एहि तरहेँ कथाक्रम
बढ़ैत छैक। सब सर्गमे पांतिक निमन झलक पाबि पाठक नेहाल भ' उठता आ पाठकके
सराहला सँ श्रीमिश्रजी कृत-कृत्य भऽ उठताह। हुनक पत्थलतोर श्रम सँ ई समग्र
रचना स्वयंमे पुलकित भ' रहल अछि अतिशय रोचकता सं भरल सम्पूर्ण खिस्सा आ
कत्थेतर पात्रक चरित्र चित्रण तथा भाउ सुस्पष्ट रहला सँ पाठककेँ कतहुँ कोनू
प्रसंग बुझबामे जटिल नहिं लगैत छैक।यथा -:
बीतल बेसीए दूं सहस्त्राब्दी
मुदा ,जीबते अछि चाणक्य - नीति
सद्नीति , अर्थनीति , राजनीति
ओहिमे सनातनक जीवन- रीति।
एक समय महाकवि पं० लाल दास जी ,जे मैथिली रामायण ' रमेसर- चरीत' के रचनाकार
,कविश्वर चन्दा झाक समकालीन भेल छलाह; कियाक तँ ओही राज आश्रित रहथि आ कयने
रहथि मैथिलीमे रामायण'क रचना। से लाल दास जी सबसँ बढ़िकय एक पृथक सँ पाठ-
पुष्कर कांड लिखकय। तहिना कवि राजकिशोर जी अपन नविनतम रचना ' आचार्य चाणक्य
' मेँ पृथक सँ छठम् सर्ग आखरिमे जोड़ैत प्रचलित चाणक्य नीति केँ काव्य
रुपेँ प्रस्तुत कय वर्तमान समाज आ भविष्यक अध्येता- शोधार्थिगण लेल एक
अनुपम दृष्टांत धरि दैत भविष्यक चिन्ता कयलाह हेन। जेना -: बेटा ओ जे
बातकेँ मानथि
दोस ओ जे होअय विशबासी
भार्या पति- सुख बुझथि महान।
ऐ तरहें पृष्ठ ११३ सँ १२० धरिमे अनेकों चयनित अंशक अवलोकन पाठक कऽ सकैत छी।
दोसरो एकटा सिरजल पाँति देखल जाए-:
सुन्दर वचन सुनि ककर नहि
हरखित होइत अछि मोन ?
बाजयमे कोन कैंचा - कौड़ी ?
किरपनताक परोजन कोन ?
मैथिली लेखनक प्रेरणा स्रोत हिनका किनकर रचना प्रेरित कयलकन्हि जे हिन्दीक
बाट छोड़ि मातृभाषामे श्रीमान मिश्र जी कविता संग्रह मेघपुष्प,चाननि, नव
पात- नव बात, उपायन, सप्तपर्ण,नव घर उठय- पुरान घर खसय ,प्रलय पाश,
टेमी,जिनगीक सोनसन पाँखि ,उबेर, कनक कदलि, उगरास, सभ्यताक भ्रम , ई
संसार,नहि रहतै आब गाम पोथी रचलनि। आचार्य चाणक्य सृजन कय लेखकीय उर्जा अपन
चौथापन वयक्रम अजस्र रूपें आरो बढ़ा लेलनि से झलक अगिला पोथी बहराईते थाह
चलि जाएत।
-लाल देव कामत, नौआबाखर
अपन
मंतव्य
editorial.staff.videha@gmail.com
पर पठाउ।