१.७.पंडित भवनाथ झा–मिथिलाक जीवित मानव धरोहर- डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
(मानवशास्त्री, भारतक विभिन्न अदिवासी समूहक विद्वान, शोधकर्ता। संपर्क-8076208498)
पंडित भवनाथ झा – मिथिलाक जीवित मानव धरोहर
जखन हमरा कहल गेल जे पंडित भवनाथ झा पर किछु लिखबाक अछि ताहि समय लागल “हिनका पर लिखब सहज काज थिक”। जखन लिख’ लगलहुँ तखन अनुभव भेल जे कोनो व्यक्ति सँ बहुत संपर्क मात्र सँ हुनका पर लिखब सहज काज नहि। पंडित भवनाथ झा के हम गुरुतुल्य सम्मान करैत छियनि आ गुरूजी कहि संबोधित करैत छियनि, यद्यपि हम हुनक कहियो प्रत्यक्ष आ परोक्ष रूप सँ शिष्य नहि रहल छी। अनेक विषय पर हुनक सोचब, ज्ञान आ ज्ञान संग लोक परंपरा संग हुनक समर्पण हमरा हुनका समीप अनैत अछि। आइयो भवनाथ जी सहज आ अति साधारण जीवन जीबैत अध्ययन आ कर्मकांड केर प्रति अहर्निश समर्पित छथि।
पंडित भवनाथ झा पर किछु बात विस्तार सँ लिखब सँ पहिने एक संस्मरण केर स्मरण करब आवश्यक अछि। प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई केर शासन मे राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (नेशनल मैन्युस्क्रिपट मिशन) केर विचार भेलैक। ईहो निर्णय भेलैक जे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र केर परिसर (दिल्ली) मे एहि मिशन केर मुख्यालय रहतैक। ताहि समय केर सदस्य सचिव के कहल गेलनि जे शीघ्र अहि मिशन केर उदेश्य, लक्ष्य, एम्स आ मिशन वक्तव्य संग एकर भविष्यक रूप रेखा केर खाका, समय सीमा, कोन तरहक विद्वान, शोधछात्र के जोड़ल जाए आदि पर विस्तारपूर्वक एक परियोजना केर निर्माण कएल जाए। कला केंद्र मे एक विदुषी छलीह जिनकर नाम छलनि डॉ सुधा गोपालकृष्ण। हम रिसर्च ऑफिसर रही। सुधा जी बहुत विनम्र आ ज्ञान परंपराक सम्मान करऽ वाली विदुषी छलीह। हुनकार पति केरल कैडर केर आईएएस अधिकारी छलथिन जे ताहि समय प्रधानमंत्री कार्यालय मे ज्वाइंट सेक्रेटरी केर ओहदा पर नियुक्त छलाह। सुधा जी के पाण्डुलिपि मिशन (मैन्युस्क्रिपट मिशन) केर पूरा परियोजना संग ओकर रूप रेखा तैयार करक छलनि। सुधा जी हमरा लग अवैत बजलीह: "कैलाश जी, ई परियोजना तुरत तैयार करक अछि। अहाँक सहयोग हमरा चाही। सहयोग मतलब सोरह आना सहयोग।"
हमर उत्तर छल: "जाहि तरहक बात अहाँ कहि रहल छी ताहि सँ लगैत अछि जे हम यहि परियोजना केर पात्र नहि छी। कारण हमरा जनैत अधिकांश पाण्डुलिपि संस्कृत केर हेतैक, आ शेष भाग तमिल, तेलगु, मलयालम, बंगला, उड़िया, मराठी, मिथिलाक्षर, नेपाली, पाली, तिब्बत, शारदा आदि लिपि मे हेतैक जकर जानकारी हमरा एकौ रत्ती नहि अछि। दोसर महत्वपूर्ण काज हमरा बुझा रहल अछि जे पाण्डुलिपि अथवा बहुत पुरान छपल रेयर आ अनुपलब्ध पोथी सभक डीजीटाइजेशन केर छैक। ई काज पुनः इंजीनियरिंग आ कंप्यूटर विज्ञान केर विद्वान केर छैक।”
सुधा जी मंद-मंद बिहुँसैत हमरा कहलनि: “कैलाश जी, पाण्डुलिपि केर चयन, भाषा अथवा लिपि बोध, डीजीटाइजेशन, ओकर व्यवस्थापन आदि तँ परियोजना जखन अपन स्वरुप पर आबि जेतैक तकर बाद तकनीकी आ अकादमिक लोक केर सहयोग सँ हेतैक। एखन अहाँ केर जरुरत अहि बात लेल अछि जे हम सभ एकर उदेश्य, दिशा आदि निर्धारित कऽ सकी। स्थिति गंभीर छैक कारण जे एक मासक भीतर पूरा रूप रेखा एकर तैयार करक अछि आ संस्कृति सचिव केर सहमति भेटला पर प्रधानमंत्री कार्यालय अंतिम स्वीकृति लेल भेजबाक अछि। ताहिं अहाँ अगर-मगर छोडू आ एहि कार्यक हिस्सा बनु। एखने सँ।”
आब हमरा लग सुधा जी केर प्रस्ताव के अस्वीकार करबाक तर्क नहि छल। हुनक संग हम राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन केर रूप रेखा केर प्रारूप केर निर्माण मे लागि गेलहुँ। जखन ओहि पर काज करैत रही त' मंथन केर प्रक्रिया मे ई अनुभव भेल जे पाण्डुलिपि मिशन तखन अपन उदेश्य पूर्ण करत जखन संस्कृत, प्राकृत, पाली, तिब्बतन, मिथिलाक्षर, अरबिक, पर्शियन, तमिल, कन्नड़, मराठी, गुजराती, शारदा, आदि लिपि मे उपलब्ध दुर्लभ पाण्डुलिपि आ पोथी सभक अर्थ, ओहि मे उकेरल, छवि, बिंब, ओहि प्रयुक्त ज्ञान, सूत्र, गणित, विज्ञान, साहित्य, आयुर्वेद, धर्म दर्शन, लोक ज्ञान, मौसम विज्ञान, आर्किटेक्चर, मंदिर निर्माण, गृह निर्माण, खगोलशास्त्र, ज्योतिष, तंत्र, जैनिज़्म, बुद्धिज़्म, आदि पर निरंतर शोध करैत रही। जखन सब पाण्डुलिपि अपन डिजिटल प्रारूप मे शोधकर्मी, शोध संस्थान लेल ऑनलाइन फॉर्मेट मे इंडेक्सिंग, लघु जानकारी, ऐनोटेटेड बिबलियोग्राफी संग उपलब्ध रहतैक तखन लोक सभक भक्क खुजैत रहतैक. कहबाक तात्पर्य जे लोक सभ सँ बात चित केलाक बाद, उपलब्ध सन्दर्भ पढलाक बाद ई अनुभव भेल जे ई परियोजना त' बहुत पैघ परियोजना छैक। भारतीय ज्ञान परंपरा केर संवर्धन, संरक्षण, ओकर प्रसार आ भारतीय ज्ञान केर एक-एक बात के जानकारी प्रमाण संग समस्त संसार के लोक के देल जा सकैत छैक। हमरा स्मरण आबि गेल अपन मिथिला जतए गामक गाम केर पाण्डुलिपि कखनो अतिवृष्टि तँ कतहुँ आगिलग्गी सँ समाप्त भऽ जाइत छल। एहनो बात सुनल आ देखल अछि जे बहुत पैघ विद्वान सभक अकर्मण्य संतति हुनक पाण्डुलिपि के रहस्यमय बनबैत पेटी, संदूक, बक्सा आदि मे सड़ा-गला दैत छलाह मुदा विद्वत समाज लग नहि आबय दैत छलथिन्ह। हमरा ई परियोजना बहुत महत्वपूर्ण परियोजना लागल। सभ किछु तैयार होमए लगलैक। ओकर निर्माण मे भले न्युन मुदा योगदान हमरो छल। जखन सभ ठाम सँ स्वीकृति भऽ गेलैक तखन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी केर निवास पर एकर विधिवत घोषणा भेलैक। ओहि उत्सव केर साक्षी हमहुँ रहल छी। यद्यपि अपन अनेक अन्य कार्यक व्यस्तता केर कारणे हम पाण्डुलिपि मिशन संग जुड़ल नहि रहि सकल रही। सुधा गोपालकृष्ण राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन केर प्रथम मिशन डायरेक्टर भेलीह।
आब एक प्रश्न भऽ सकैत अछि जे भवनाथ झा जी केर बात करैत काल पाण्डुलिपि मिशन केर की दरकार? एकर बहुत पैघ प्रयोजन हमरा जनैत छैक। पहिल ई जे हिनका मे मिथिलाक्षर, बंगला, उड़िया, संस्कृत, आदि अनेक पाण्डुलिपि केर लिपि पढबाक आ ओकर प्रसंग विस्तार करबाक क्षमता आ ऊर्जा छनि। हिनक ज्ञान धर्म शास्त्र, साहित्य, मैथिली, लोक, इतिहास, पुराण, आदि के पढबाक, बुझबाक क्षमता छनि। पंडित भवनाथ झा जेना कि पाण्डुलिपि मिशन केर बारे मे कल्पना कएल गेल रहैक अहि शास्त्र अथवा विज्ञान, पाण्डुलिपि विज्ञान अथवा Manuscriptology केर आधिकारिक विद्वान, शोधकर्मी, विशेषज्ञ आ गुरु छथि। हिनकर एहि गुण सभ सँ प्रभावित होइत पाण्डुलिपि केर पढ़ब, संरक्षण करब, ओकर वेशेष पोथी केर चयन करब, ओकर अनेक भाषा मे अनुवाद, ओकर पाठकीय टिप्पणी संग आन लोक संग संपादक केर रूप मे छापैत अथवा प्रकशित करैत छथि। एहने किछु नहि अपितु अनेक काजक संपादन ई पटना मे महावीर मंदिर आर्काइव्ज आ प्रकाशन विभाग लेल लेल बहुत दिन सँ करैत आबि रहल छथि।
पंडित भवनाथ झा आजुक समय मे अपितु समस्त बिहार मे पाण्डुलिपि विज्ञान अथवा शास्त्र केर सर्वश्रेष्ट ज्ञाता आ अधिकारिक विद्वान छथि। कोनो तरहक पाण्डुलिपि अथवा प्रस्तरलिपि पढ़बाक लेल आ ओकर अर्थ स्पष्ट करबा लेल, संगहि लिपि मे विखंडन होबाक कारणे जे अक्षर शब्द छुटल छैक तकर स्पष्ट आ वैज्ञानिक अथवा न्याय संगत अनुमान लगेबा लेल बहुत अध्ययन आ नियमित अभ्यास केर दरकार होइत छैक। विद्वानक समर्पण अपन विषय आ योजना केर प्रति 100 प्रतिशत भेनाइ जरुरी छैक। ताहि मे कोनो अगर-मगर, इम्हर-उम्हर केर स्थान नहि छैक। जरुरी छैक जे जतेक नव-नव शिलालेख, पाण्डुलिपि केर विश्व केर विद्वान सभ अलग-अलग कालखंड सँ प्रारंभ करैत एखन धरि काज कऽ रहल छथि तकर अपडेट आ उद्धरण केर जानकारी ओहि विद्वान के होबाक चाही। हमर व्यक्तिगत अनुभव अछि जे पंडित भवनाथ झा ई सभ गुण सँ परिपूर्ण छथि। परिपूर्णता संग विनम्रता आ सहज उपलब्धता हिनकर विशेष गुण छनि। अहाँ अपन ज्ञान केर कोनो शंका केर समाधान लेल कखनो हिनका सँ संपर्क कऽ सकैत छी। पंडित भवनाथ झा सदैव बहुत विनम्रता सँ अहाँक प्रश्न, जिज्ञासा, अथवा शंका केर समाधान हेतु उपलब्ध रहताह। ईहो बात हम कोनो पोथी केर लेखी अथवा ककरो सँ सुनिकऽ नहि कहि रहल छी, अपितु अपन व्यक्तिगत अनुभव सँ कहि रहल छी। अनेक बेर हम बिना समय केर चिंता केने जखन कखनो प्रयोजन भेल हिनका दूरभाष पर संपर्क करैत छी। ई तुरत फ़ोन उठबैत छथि आ हमर जिज्ञासा केर समाधान करैत छथि। जखन ई हमर जिज्ञासा केर समाधान करैत छथि तखन हमरा एना बुझना जाइत अछि जेना हम उपनिषद युग मे रहैत छी। हमर जिज्ञासा पंडित भवनाथ झा सँ ओहिना होइत अछि जेना उपनिषद केर एक शिष्य घनघोर अविद्या केर अवस्था मे अपन गुरु सँ करैत छथि। आश्चर्य त ई जे भवनाथ जी हमर जिज्ञासा केर समाधान उपनिषद केर अति ज्ञानी गुरु जकाँ दैत छथि। हमर एक जिज्ञासा मात्र सँ ओ हमर मोनक अनेक जिज्ञासा केर अनुमान लगा लैत छथि। हमर मूल जिज्ञासा के समाधान करैत ओ कहैत छथि: “कैलाश जी, अहाँक मोन मे ईहो शंका भऽ सकैत अछि जे ई एना केना भेलैक? तँ एकर समाधान एना छैक.” अहि तरहें हमर सभक दू मिनट केर बात कखनो काल घंटो धरि चलैत रहैत अछि। फोन रखितहि लगैत अछि जेना भक सँ अन्हार घर मे इजोत जगमग भऽ गेल! देखल जाइत अछि जे नीक-सँ-नीक विद्वान ज्ञानक घमंड अथवा उन्माद मे आबि जाइत छथि। संस्कृत जगत मे एहन बहुत उदाहरण भेटत मुदा भवनाथ जी मे हमरा कहियो कोनो तरहक ज्ञानक घमंड नहि भेटैत अछि। ई हमरा हिसाबे हिनकर दुर्लभ गुण छनि।
एक बात जे हमरा पंडित भवनाथ झा दिस अधिक आकर्षित करैत अछि ओ छनि हिनक समावेशी व्यक्तित्व। हम साहित्य अथवा संस्कृत केर लोक नहि छी। मानव विज्ञान, लोक विद्या आदि पर किछु काज करैत छी। हम जखन कखनो कोनो संस्कृत अथवा क्लासिकल विषय केर विद्वान सभ सँ बात करैत छी तँ सामान्यतया ओ सभ लोक अथवा फ़ोक के बहुत निम्न कोटि केर विषय बुझैत छथि। हुनका होइत छनि जेना फ़ोक केर अर्थ भेल निम्न, मुर्ख, असभ्य केर परंपरा अथवा क्षद्म ज्ञान जे संस्कृत अथवा क्लासिक सँ लेल गेल छैक। लोक केर अपन मूल सोच, चिंतन, ज्ञान, वैविध्य, दर्शन, इतिहास आदि नहि छैक। ओ सब कखनो ई बात स्वीकार नहि कऽ सकैत छथि जे शास्त्र कखनो कुनो बात, ज्ञान, परंपरा, विद्या, विज्ञान आदि लोक सँ लऽ सकैत अछि। एकर विपरीत शास्त्र केर विद्वान आ ज्ञाता लोकक पैघ आ प्रतिष्ठित विद्वान, ज्ञानी, वैज्ञानिक के अनेक कहानी आ इतिहास गढ़ि शास्त्र केर अंग बना लैत छथि। एकर सभ सँ नीक उदाहरण छथि मौसम विज्ञान केर लोक विज्ञानी डाक। डाक वचन पर जखन संस्कृत केर विद्वान काज करैत छथि तँ अनर्गल प्रलाप करैत अनेक बात संस्कृत सँ जोड़ैत डाक के या तँ संस्कृत केर ज्ञाता प्रमाणित करैत छथि आ कहैत छथि जे सर्व सामान्य हेतु ओ गूढ़ संस्कृत केर वैज्ञानिक बात सभ लोक भाषा मे सहज शब्दावली केर सहयोग सँ लोक कवित्त केर मादे प्रेषित करैत छथि। किछु विद्वान जिनकर नाम लेब उचित नहि, तँ डाक केर मूल, जाति सभ किछु बदलि दैत छथि। अतए भवनाथ जी कनेक समावेशी छथि।
हमरा एक प्रकरण स्मरण अछि जाहि केर हम पात्र सेहो छी तकर वर्णन अथवा दृष्टांत सँ ई बात स्पष्ट भ’ सकैत अछि। भेलैक ई जे स्वर्गीय किशोर कुणाल जी केर अभिभावकत्व मे महावीर मंदिर पटना सँ पंडित भवनाथ झा एक पत्रिका निकालैत छथि जकर नाम छैक धर्मायण पत्रिका। ओना तँ एकर नाम संग पत्रिका शब्द जुड़ल छैक मुदा एकर हरेक अंक बहुत महत्वपूर्ण आ संग्रहणीय होइत छैक। धर्मायण पत्रिका हरेक अंश मे कोनो विशेष बिंदु संग अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य के रखैत विभिन्न विधा केर विद्वान सभ सँ प्रमाणित आलेख संकलित करैत अछि आ छपैत अछि । पंडित भवनाथ झा धर्मायण पत्रिका स जुडल विद्वान सभक एकटा व्हाट्सएप समूह से बनेने छथि। एहि समूह में धर्म शास्त्र, वेद, ज्योतिष, इतिहास, साहित्य, आयुर्वेद, जैन, बुद्धिज़्म आदि केर विद्वान सभ छथि। एक बेर ई सभ निर्णय केलनि जे एक अंक पितर तर्पण आ पितर पूजा पर केंद्रित करैत प्रकाशित करताह। संयोग सँ ताहि समय हम एक लघु पोस्ट फेसबुक मे किछु आदिवासी समाज मे पितर पूजा, तर्पण आ स्मरण पर अपन फील्ड विजिट केर आधार पर अंग्रेजी मे केने रही। पंडित भवनाथ झा जी केर ध्यान हमर पोस्ट पर पड़लनि। ओ हमरा तुरत फोन करैत आग्रह केलाह जे हम एक विस्तृत आलेख आदिवासी समाज मे व्याप्त पितर केर अवधारणा, पितर पक्ष, पितर पूजा, अर्चना इत्यादि पर केंद्रित करैत लिखी। हम हुनक आग्रह के गुरु केर आदेश बुझैत एक आलेख तैयार कएल जकरा भवनाथ झा जी अपन पत्रिका धर्मायण पत्रिका मे यथावत हमर परिचय संग छपलाह। चूंकि हमर आलेख लोक अवधारणा पर छल तँ ई स्वाभाविक छैक जे हमर आलेख मे लोक विद्या (फ़ॉल्कलोर) केर विधि, चिंतन, स्टाइल आ फॉर्मेट छल हेतैक, तथापि हमर आलेख मे भवनाथ जी कोनो तरहक जोड़ तोड़ नहि केलनि। हमरा लेल ई सुखद आश्चर्य छल। ई घटना ईहो बतबैत अछि जे हिनक व्यक्तित्व कतेक समावेशी छनि।
हम जाबत धरि दिल्ली सरकार केर मैथिली भोजपुरी अकादमी केर परामर्शदाता रहुलहुँ आ जखन कखनो मिथिलाक्षर लिपि सँ संबंधित कोनो बात पर संशय भेल, बिना कोनो चिंतन आ अल्टरनेटिव सोच केर जे एक नाम हमरा माथ मे अबैत छल से छथि पंडित भवनाथ झा। ओ हमर संकटमोचन जका ठाढ रहैत छलाह। कहब तँ ईहो आवश्यक अछि जे मिथिलाक्षर लिपि पर जे अपना आप के बड़का बड़का मठाधीश आ विद्वान बुझैत छथि, ताहि मे अधिकांश लोक ओ नहि छथि जे दावा करैत छथि, विपरीत एकर पंडित भवनाथ झा अपना के बहुत लो प्रोफाइल मे रखैत छथि आ आजुक समय मे मिथिलाक्षर लिपि, ओकर इतिहास, ओकर अनेक स्वरूप, मिथिलाक्षर लिपि मे उपलब्ध संस्कृत, मैथिली, इतिहास, कर्मकांड, धर्म, न्याय आदि पर उपलब्ध पांडुलिपि आर तँ आर शिलालेख तक पढ़बाक, ओकर समय निर्धारण करवाक, तुलनात्मक विवेचना करवाक प्रमाणित विद्वान छथि । हमरा हिसाबे ई मिथिला केर जीवित ह्यूमन हेरिटेज या मानवीय धरोहर छथि।
मैथिली प्राच्य विद्या, आ मैथिली भाषा पर हिनक अधिकार छनि। कखनो काल यद्यपि ई अतिशय शुद्धतावादी या प्यूरिटन जकाँ व्यवहार करैत छथि। ई मानवीय गुण भेल आ विषय संग व्यक्तित्व केर ढालब भेल। एकरा सहज भाव सँ लेबाक चाही।
आर बात सभ छोड़ियो दी, पंडित भवनाथ झा केर फेसबुक वाल सँ पता चलत जे मिथिलाक सांस्कृतिक परंपरा आ धरोहर केर ई सजग प्रहरी थिकाह। कोनो तरहक गलत प्रयोग, प्रचार, अशुद्धि आदि के ठीक अथवा निवारण त्वरित आ प्रमाणिक उदाहरण सँ करैत छथि। विनोदी तँ छथिए।
विद्या व्यसनी होबाक कारणे आ सतत पाण्डुलिपि सभक ज्ञान बुझबाक प्रयत्न मे लागल रहला सँ एकाधिक विषय, भाषा, लिपि पर हिनक असाधारण अधिकार भऽ गेल छनि। चूँकि पाण्डुलिपि धीरे-धीरे एक स्थापित विज्ञान केर स्वरुप लेने जा रहल अछि, एकर अपन मेथड, तकनिकी, विधान ठाढ़ भऽ रहल छैक, ताहि कारण सँ हिनक बात अपन प्रमाणिकता सँ ठोस भेल जा रहल छनि।
जतबे योगदान हिनक पाण्डुलिपि संरक्षण, प्रशिक्षण, ज्ञान केर दोसर तेसर पीढ़ी मे हस्तांतरण मे छनि ततबे पैघ भूमिका मिथिलाक्षर लिपि के प्रचार प्रसार मे।
सभ बातक चिंतन करैत आ तथ्यक अवलोकन करैत हमर ई सोचब अछि जे पंडित भवनाथ मिश्र मैथिली ज्ञान परंपरा केर जीवित मानवीय धरोहर छथि।
हिनक योगदान दिस ध्यान देब तँ लागत जे 33 मूल शोध आलेख जे विभिन्न विषय पर विभिन्न शोध पत्रिका मे छपल छनि केर अतिरिक्त ई अनेक अनुदित, समादित, पाण्डुलिपि सँ पहिल बेर संपादित ग्रन्थ केर रचना केने छथि। हिनक रचना आ लेखन केर गति लगातार चलि रहल छनि। पंडित भवनाथ झा केर पाण्डुलिपि सँ पहिल बेर सम्पादित पोथी केर संख्या छनि पन्द्रह। ई अपना आपमे हिनक यशक गीत गबैत अछि।
संपादकीय टिप्पणी- एहि आलेखमे भवनाथजीक किछु पोथीक नाम सभ देल गेल छल जकर उल्लेख भवनाथजीक परिचय बला खंडमे भेले छै। दोहरावसँ बचबाक लेल एहिठाम एकरा संपादित कएल गेल अछि।
अपन
मंतव्य
editorial.staff.videha@zohomail.in
पर पठाउ।