प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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परमानन्द लाल कर्ण

तीर्थक्षेत्रक माहात्म्य- ८ (पद्म पुराण उत्तर खंड) (गतांक सँ आगु ……..)


तत्पश्चात् तीर्थ यात्री सप्तधार तीर्थक यात्रा करथि । ओ सव तीर्थ में उत्तम तीर्थ अछि । एहि तीर्थ केर मुनिलोकनि सप्त सारस्वत नाम देलनि अछि । त्रेतायुग में महर्षि मंकि एहि ठाम संकितीर्थक निर्माण केने छलाह । फेर द्वापर में पाण्डव एकरा सप्तधार तीर्थ में प्रवृत्त केने छलाह । भगवान शंकरक जटा सँ निकलैत गंगाजल एहि ठाम सात धारा में प्रकट भेलीह,तें ई सप्तधार कहावैत अछि । सातु लोक में जे गंगाजीक सात रूप सुनल जायत अछि, ओ एहि सप्तधार नाम सँ तीर्थ में अपन पवित्र जल प्रवाहित करैत छथि । सप्तधार तीर्थ में कएल गेल श्राद्ध पितरक तृप्ति प्रदायक होयत अछि ।

देवेश्वरी ! ओहि ठाम सँ ब्रह्मवल्ली नाम सँ महान तीर्थक यात्रा करी । जाहि ठाम साभ्रमती नदीक जल ब्रह्मवल्लीक जल सँ मिलैत अछि, ओ स्थान ब्रह्मतीर्थ कहावैत अछि । एकर महत्त्व प्रयाग सन मानल गेल अछि । ब्रह्माजीक कथन अछि जे ओहि ठाम पिण्डदान करला सँ पितर केर बारह बरख धरि तृप्ति बनल रहैत अछि । विशेषतः ब्रह्मवल्ली मे पिण्डदान गया श्राद्ध सन पुण्य मानल गेल अछि । पुष्कर, गंगानदी आ अमरकण्टक क्षेत्र में गेला सँ जे फल मिलैत अछि, ओ ब्रह्मवल्ली मे विशेषरूप सँ मिलैत अछि । चंद्रग्रहण आ सूर्यग्रहणक काल मे जे केओ दान दैत छथि, ताहि सँ मिलs वाला फल ब्रह्मवल्ली मे स्वतः मिल जायत अछि । ब्रह्मवल्ली मे स्नान कs तुलसीक माला धारण केने भगवान नारायणक स्मरण करैत लोकनि वैकुंठधाम जायत छथि, जे आनंदस्वरूप आ अविनाशी पद अछि ।
तत्पश्चात् वृषतीर्थ दिस जाय केर चाही, जे खण्डतीर्थ नाम सँ सेहो प्रसिद्ध अछि । पूर्वकाल में गाय एहि ठाम स्नान कs दिव्य गोलोकधाम गेल छल । एहि तीर्थ में निराहार रहि जे केओ गौ माताक लेल पिण्डदान करैत छथि, ओ चौदह इंद्रक आयुपर्यंत सुखी आ अभ्युदशाली होयत छथि । खण्डतीर्थ सँ बेसी कोनो दोसर तीर्थ नहि तs भेल अछि आ नहि होयत । पार्वती ! जे लोकनि एहि ठामक यात्रा करैत छथि , ओ पुण्यक भागी होयत छथि । ओहि ठाम जा के गाय केर पूजन करवाक चाही । तकर बाद वृषभक पूजा कs स्नान करवाक चाही । गौ पूजन सँ लोकनि गोलोक जायत छथि , तहि मे कोनो संदेह नहि अछि । जे केओ ओहि ठाम पाँच टा औराक गाछ लगवैत छथि, ओ एहि लोक में सुख भोगि अंत मे श्रीहरिक धाम जायत छथि ।

तदनंतर संगमेश्वर नाम सँ उत्तम तीर्थक यात्रा करी । ई बड्ड पैघ तीर्थ स्थल अछि । एहि ठाम पुण्यमयी हस्तिमती नदी साभ्रमती नदी सँ मिलैत अछि । ई नदी कौण्डिन्य मुनिक शाप सँ सूखि गेलीह।तत्पश्चात् लोक मे बहिश्चर्या नाम सँ विख्यात भेलीह। ओ त्रिलोक विख्यात तीर्थ परम पावन आ समस्त पापक नाशक अछि । लोकनि एहि तीर्थ मे स्नान आ महेश्वरक दर्शन कs सव पाप सँ मुक्त भs रुद्र लोक जायत छथि । देवी ! जाहि शापक कारण नदीक जल सूखि गेल छल , ओ प्रसंग बतावैत छी , सुनु ! जाहि ठाम परम पावन महानदी साभ्रमती गंगा आ हस्तिमती नदीक संगम भेल छल , ओहि ठाम मुनिवर कौण्डिन्य कठिन तप शुरू केने छलाह । बहुत काल भगवान नारायणक आराधाना करैत छलाह । एक समयक बात अछि दैवयोग सँ अतिवृष्टि भेलाक कारण नदी जल सँ भरि गेल । तहन मुनि कौण्डिन्य एहि स्थान केर परित्याग कs देलनि; मुदा राति में नदीक बाढ़ि सँ बड्ड कष्ट भेलनि । हुनक आश्रम दिव्य शोभा सम्पन्न आ महान छल; मुदा जलक वेग मे फल ,मूल आ पोथी सवटा नदी मे बहि गेल । तखन मुनिश्रेष्ठ कौण्डिन्य नदीक शाप देलनि - “तौं कलियुग मे बिना जलक भs जायव ।” एहि प्रकार हस्तिमती केर शाप दs विप्रवर कौण्डिन्य सनातन विष्णुधाम चलि गेलाह । अखनो संगमेश्वर नाम सँ तीर्थ मौजूद अछि , जेकर दर्शन कs पापी लोकनि ब्रह्महत्या आदि पाप सँ मुक्त भs जायत छथि ।
देवेश्वरी ! ओहि ठाम सँ तीर्थ यात्री रुद्रमहालय तीर्थक यात्रा करथि । ई केदारनाथ तीर्थ सन अनुपम अछि । साक्षात् रुद्रदेव एकर निर्माण केलनि अछि । ओहि ठाम श्राद्ध कर्म अवश्य करी; किएक तs ई पितरक पूर्ण तृप्तिक कारण अछि । एहि तीर्थ स्थल पर श्राद्ध करला सँ पितर आ पितामह तृप्त भs रुद्रक परम पावन पद पावैत छथि । जे केओ रुद्रमहालय तीर्थ मे कातिक आ वैशाख मासक पूर्णिमा केर वृषोत्सर्ग करैत छथि, ओ रुद्रक संग आनंदक भागी होयत छथि । केदार तीर्थ मे जलखई करला सँ लोकनि केर पुनर्जन्म नहि होयत अछि ।ओहि ठाम स्नान करला सँ ओ मोक्षक भागी होयत छथि । देवी ! एक समय हम साभ्रमती नाम सँ महागंगाक महत्त्व जानि कैलाश छोड़ि एहि ठाम आयल छलहुँ आ लोक हितक लेल एहि ठाम स्नान आ जलखई कs एकरा परम तीर्थ बना के फेर अपन कैलाश चलि एलहुँ । तखन सँ महालय परम पुण्यमय तीर्थ भs गेल अछि । देवी ! जे केओ कातिक आ वैशाख मासक पूर्णिमा केर एहि ठामक यात्रा करैत छथि , हुनका फेर कखनहु संसार जनित दुःख नहि होयत छैन ।

पार्वती ! आव देवगणक लेल सेहो दुर्लभ उत्तम तीर्थक वर्णन सुनु । ओ खंगतीर्थ नाम सँ विख्यात आ समस्त पापक नाशक अछि । खंगतीर्थ में स्नान कs खंगेश्वर शिवक दर्शन करला सँ लोकनि कखनहु दुर्गति मे पड़ैत छथि आ अन्त मे स्वर्गलोक जायत छथि । जे खंगधारेश्वर महादेवक दर्शन करैत छथि आ कातिक मासक पूर्णिमा केर हुनक विशेष पूजा करैत छथि, हुनका सर्वेश्वर भगवान विश्वनाथ सदिखन एहि पृथ्वी पर सव प्रकारक सुख दैत छथिन; किएक ई मनोवाछित फल दैत छथिन ।

साभ्रमतीक तट पर चित्रांगवदन नाम सँ एकटा तीर्थ स्थल अछि, जे गया सँ सेहो श्रेष्ठ अछि ।एहि शुभकारक तीर्थक अधिष्ठातृ देवता मालार्क नाम सँ सूर्य छथि । जिनका कोढ़ि भs गेल अछि, ओ जौं एहि तीर्थ मे जायत छथि तहन भगवान मालार्क हुनका कोढ़ि मुक्त कs दैत छथिन । जे महिला शास्त्रोकत विधि सँ ओहि ठाम अभिषेक करैत छथिन, ओ मृतवत्सा व बंध्या भेलाक वादहुँ पुत्रवती भs जायत छथि । एहि तीर्थ स्थल पर रवि कें जौं स्नान, संध्या, जप ,होम, स्वाध्याय
आ देवपूजन कएल जाय तs ओ अक्षय भs जायत अछि । ओहि ठाम सूर्यव्रत करवाक चाही । एना करला सँ लोकनि एहि लोक मे सुख भोगि सुर्यलोक जायत छथि । जे केओ एहि तीर्थ स्थल पर जा के विशेषरूप सँ उपवास करैत अछि आ इंद्रिक वश में कs भगवान मालार्कक पूजा करैत छथि, ओ निश्चय मोक्षक भागी होयत छथि ।

मालार्क तीर्थ स्थलक उत्तरबारी कात चंदनेश्वर तीर्थ अछि। ओ उत्तम स्थान सदिखन चंदनक सुगंध सँ सुवासित रहैत अछि । ओहि ठाम स्नान ,जलपान आ पितृतर्पण करला सँ लोकनि कखनहु नरक में नहि जायत छथि आ हुनका रुद्रलोक मे स्थान मिलैत छैन । ओहि ठाम जगतक कल्याणकारी विश्वक स्वामी भगवान चंदनेश्वरक दर्शन कs रुद्रलोकक इच्छित लोकनि यथाशक्ति हुनक पूजन करथि । एहि तीर्थ स्थल पर कल्याणकारी साक्षात् परमात्मा श्रीविष्णु नित्य निवास करैत छथिन ।

ओहि ठाम सँ जम्बूतीर्थ मे स्नान करs क लेल जाय केर चाही । कलियुग मे ई तीर्थ मानुषक लेल स्वर्गक सीढी सन अछि । पूर्वकाल मे भगवान जामबवान एहि ठाम दशांग पर्वत पर अपना नाम सँ एक टा शिवलिंगक स्थापना केने छलथि । एहि ठाम स्नान कs श्रीराम आ लक्ष्मणक स्मरण करी आ जाम्बावतेश्वर शिव केर नत मस्तक भेला पर लोकनि रुद्रलोक मे प्रतिष्ठित होयत छथि । जाहि जाहि ठाम श्रीरामचंद्रजीक स्मरण कएल जायत अछि ओहि ठाम समस्त चराचर जगत् मे भव बंधन सँ मुक्ति देखल जायत अछि । हमरे राम बुझी आ श्रीराम रुद्र छथि - ई जानि कतहुँ भेद दृष्टि नहि राखी । जे मने-मन ‘राम ! राम ! राम’ एना जप करैत छथि , हुनक समस्त मनोरथ सव युग मे सिद्ध भेल अछि । देवी ! हम सदिखन श्रीरामचंद्रजीक स्मरण करैत छी ।श्रीरामचंद्रजीक नामक श्रवण करला सँ कखनहु भव - बंधन मे लोकनि नहि पड़ैत अछि । पार्वती ! हम काशी मे रहि सवदिन भक्तिभाव सँ कमल नयन श्री रघुनाथजीक निरंतर स्मरण करैत छलहुँ । पूर्वकाल मे जाम्बवान् परम पावन श्रीरामचंद्रजीक स्मरण कs जम्बूतीर्थ मे जाम्बवत नाम सँ प्रसिद्ध शिवलिंग स्थापित केने छलाह । ओहि ठाम स्नान,देवपूजन आ भोजन करला सँ लोकनि शिवलोक जायत छथि । ओहि ठाम सँ इंद्रग्राम नाम सँ उत्तम तीर्थ स्थलक यात्रा करी , जाहि ठाम पूर्वकाल मे स्नान कs इंद्र घोरपाप सँ मुक्त भेल छलाह ।

श्रीपार्वतीजी पूछलखिन - भगवन् ! इंद्र केर कोन कर्मक घोर पाप लागल छल आ ओ कोना पापरहित भेलाह । एहि प्रसंग केर विस्तार सँ सुनाउ ।

श्रीमहादेवजी कहलखिन - देवी ! पूर्वकाल मे देवराज इंद्र आ असुरक स्वामी नमुचि आपस मे प्रतिज्ञा केलनि जे हम दूनु गोटे एक-दोसरा केर बिना कोनो शस्त्रक सहायताक वध करव; मुदा इंद्र आकाशवाणीक कथनानुसार जलक फेन सँ नमुचिक हत्या कs देलखिन । तहन इंद्र केर ब्रह्महत्या लागि गेलनि । ओ गुरु सँ अपन पापक शांतिक उपाय पूछलखिन। फेर वृहस्पतिजीक आज्ञानुसार साभ्रमतीक उत्तरबारी घाट पर एलाह आ ओहि ठाम स्नान केलथि । एहि सँ हुनक सव पाप तत्काल नष्ट भs गेल । शरीर चान सँ भs गेल , तहन ओ ओहि ठाम धवलेश्वर नाम सँ शिवक स्थापना केलनि ।

ओ शिवलिंग एहि पृथ्वी पर इंद्रक नाम सँ प्रसिद्ध भेल । ओहि ठाम पूर्णिमा, अमावस, संक्रांति आ गहनक दिन श्राद्ध करला पर पितर केर बारह बरख धरि तृप्ति बनल रहैत अछि । जे केओ धवलेश्वर लग जा केर बाभन भोजन करावैत छथि, हुनका एक टा बाभन भोजन करेला पर सहस्र बाभन भोजनक फल मिलैत अछि । जे ब्राह्मण एहि ठाम आवि रुद्रमंत्रक जाप करैत छथि , हुनका भगवान् शंकरक प्रसाद सँ कोटिगुना फल मिलैत छैंन ।जे केओ एहि तीर्थ स्थल पर आवि उपवास करैत छथि, हुनक समस्त कामनाक पूर्ति निसंदेह भs जायत छैन । जे केओ बेलक पात लावि भगवान् धवलेश्वरक पूजा करैत छथि, ओ एहि पृथ्वी पर धर्म, अर्थ, आ काम तीनु पावि लैत छथि । बिशेषतः सोम दिन जे केओ ओहि ठामक यात्रा करैत छथि, हुनका भगवान् धवलेश्वर सव रोग दुःखक निवारण करैत छथिन, जे सव रवि केर हुनक विशेष पूजा करैत छथिन, हुनक महिमाक ज्ञान हमरा कखनहु नहि भेल । जे केओ दुव, आकक फूल, करवीरक फूल आ पात सँ
श्रीधवलेश्वरक पूजन करैत छथि , ओ पुण्यक भागी होयत छथि । जे केओ उज्जर आकक फूल लावि भगवान् धवलेश्वरक पूजा करैत छथि, हुनका मनोवांछित फल मिलैत छैन । सतयुग मे भगवान् नीलकंठ नाम सँ प्रसिद्ध भs सबहक कल्याण करैत छथिन । त्रेतायुग मे भगवान् हर नाम सँ विख्यात भेलाह , द्वापर मे हुनक संज्ञा शर्व छल आ कलियुग मे भगवान् धवलेश्वर नाम सँ प्रसिद्ध भेलथि । जे श्रेष्ठ लोकनि एहि ठाम स्नान आ दान करैत छथि, ओ धर्म, अर्थ आ कामक उपभोग कs शिवधाम जायत छथि । चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण आ बाबूजीक बरखी पर श्राद्ध करला सँ जे फल मिलैत अछि, ओ धवलेश्वर तीर्थ में अनायास मिल जायत अछि । धवलेश्वर मे काल सँ प्रेरित जिनकर प्राण पखेरू उड़ि जायत अछि, जखन धरि सूरज चान रहत तखन धरि ओ शिवधाम मे निवास करताह ।

श्रीमहादेवजी आगु कहैत छथिन - साभ्रमतीक तट पर बालार्क नाम सँ श्रेष्ठ तीर्थ स्थल अछि, जे भोग आ मोक्षदायी अछि । जे केओ बालार्क तीर्थ में स्नान कs तीन राति रुकि भोर मे बाल सूर्यक दर्शन करैत छथि,ओ निश्चय सूर्यलोक जायत छथि । रवि दिन , संक्रांति, सप्तमी तिथि,विषुव योग, अयनक शुरुआती दिन, चंद्रग्रहण आ सूर्यग्रहण केर स्नान कs देव,पितर आ पितामहक तर्पण करी । फेर ब्राह्मण केर धेनु आ गुड़-भातक दान करी । तत्पश्चात् कनेर आ जापक फूल सँ बाल सूर्यक पूजन करी । जे केओ एना करैत छथि , ओ सुर्यलोक मे निवास करैत छथि ।जे केओ एहि ठान लाल रंगक दुधारू गाय आ जवान एक टा बरदक दान करैत अछि, ओ यज्ञक फल पावैत छथि आ कखनहु नरकगामी नहि होयत छथि । एतवे नहि, रोगी रोग सँ आ कैदी बंधन मुक्त भs जायत अछि । एहि तीर्थ में पिण्डदान करला सँ पितामहगण पूर्ण तृप्त भs जायत छथि ।

पूर्वकालक बात अछि , एक टा बुढ महिष वृद्धावस्थाक कारण जर्जर भs गेल छल , जे बोझा नहि उठा सकैत छल । ई देखि व्यापारी ओकरा रास्ता मे त्यागि देलक गर्मीक महीना छल, ओ साभ्रमतीक तट पर पानी पीवाक इच्छा सँ आयल। दैववश ओ महिष कादो मे फँसि गेल आ ओ ओहि ठाम मरि गेल । नदीक पवित्र जल में ओकर हाड़ बहि गेल । एकर प्रभाव सँ ओ महिष कान्यकुब्ज देशक राजकुमार भेल , पैघ भेला पर राजसिंहासन पर बैसल। ओकरा पूर्वजन्मक स्मरण बनल छल । ओ अपन पूर्व बात केर यादि कs एहि तीर्थक प्रभाव सँ अभिभूत भs , उक्त तीर्थ स्थल पर आवि स्नान कs दान देलनि संगही संग ओहि ठाम देवाधिदेव महेश्वरक स्थापना केलनि ।ओहि ठाम स्नान कs महिषेश्वरक पूजन आ बाल सूर्यक दर्शन कs लोकनि सव पाप सँ मुक्त भs जायत अछि ।

 

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