प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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परमानन्द लाल कर्ण                                                                         

उड़ान
सरस्वती जी भोरे भोर भनसा घर सँ दुई कप चाय बना कऽ हॉल मे आवैत छलीह तहन पति कें आवाज लगावैत छलीह - सुनै छी ? सुनै छी ? चाय बनि गेल अछि । रमेशजी तहन बिछौना पर सँ आँखि मिजैत उठैत छलाह ।फेर दूनु आदमी गप्प-सप्प करैत चाय पिबैत छलथि ।मुदा आई एक कप चाय बना कऽ हॉल मे बैसलथि । सोफाक ऊपर दीवार पर नजरि गेलनि तऽ हृदय विदीर्ण भऽ गेलनि । किछु दिन पूर्व हुनकर पतिदेवक स्वर्गवास भऽ गेल छल । पतिक फोटो देखैत सरस्वती जीक आँखि सँ ढ़व -ढ़व नोर गिरऽ लागल। सरस्वती जी नौकरी करैत छलीह आव ओ सेवानिवृत्त भऽ घर पर रहैत छलीह । पतिक संग भरि दिन बातचीत करैत समय कटैत छल ।ओ सोचैत छलीह जे सेवानिवृत्त भेलाक बाद दूनु बेटाक संग सुखमय जिनगी वितायव ।के जानैत छल जे विधना की लिखने छथिन ? उमरक एहि पड़ाव मे ओ अकेले भऽ गेल छलीह । हुनका जीवन मे खालीपनक दर्द छल।कुर्सी पर बैसल पुरान सव बात एकाएक ध्यान मे आवऽ लाग्लैन । ओ सोचैत छलीह जे एतेक पैघ घर मे घरक सव कोन हँसी-खुशी सँ भरल छल । दूनु बच्चाक पढ़ाई पर ध्यान दैत छलहुँ । घरक कामक अलावा दूनु बच्चाक सव सुख सुविधाक ख्याल राखैत छलहुँ ।

एक समयक बात अछि जखन दूनु बेटा जेकर नाम अमित आ सुमित छल । रमेश जी चाहैत छलाह जे पैघ बेटा जेकर नाम अमित छल ओ हमर कारोबार संभालैथि मुदा हुनकर दिलचस्पी कारोबार मे नहि छलनि ।ओ विदेश मे नौकरी करऽ चाहैत छलाह ।ओ चाहैत छलाह जे एहन नौकरी करी जाहि सँ भविष्य आ सफल जीवनक गारंटी होय । एक दिन ओ अपना बाबुजी सँ कहलखिन - बाबुजी ! हम कारोबार नहि करव । हमर इच्छा अछि जे हम विदेश मे नौकरी करी । ई सुनि रमेशजी परेशान भऽ गेलाह । ओ कहलनि - बेटा ! अहाँ विदेश जायव तहन ई कारोबार के संभालत ? हम सोचने छलहुँ जे अहाँ पैघ भऽ जायव तहन अहाँ सवहक बाल पर हम अपन कारोबार आगु बढ़ायव । बेटा ! नौकरी तऽ नौकरी होयत अछि , एहि अहाँ किछु हजार कमा सकैत छी । जौं अहाँ व्यापार करव तहन अहाँ लाखो रुपया कमायव । अमित कहलनि - बाबुजी ! अहाँक इएह इच्छा छल तऽ हमरा एतेक नीक सँ नहि पढ़ेवतहुँ । व्यापार तऽ अनपढ़ सेहो कऽ सकैत अछि । नीक पढ़ाई केलहुँ अछि तहन हमर इच्छा अछि जे विदेश जा के कोनो नीक नौकरी करी आ अपन आश-खाप विदेश मे राखी । रमेश बाबु कहलखिन - बेटा ! अहाँ हमर बात समझवाक कोशिश करु । नीक सँ पढ़ाई लिखाई एहि लेल कएल जायत अछि ताकि लोकनि मे समझदारी होय ।कोनो काम पढ़ल लिखल लोकनि जेना नव तकनीक आ तजुर्वा सँ कऽ सकैत अछि ओ अनपढ़ नहि कऽ सकैत अछि । कारोबार करनाई अनपढ़क काम नहि अछि आ नहि पढ़ाई लिखाई केवल नौकरीक लेल कएल जायत अछि । भाग- दौड़ करवाक लेल तऽ हमरा लग कतेको कर्मचारी लागल रहैत अछि । हम तऽ अहाँ के हिसाब-किताब सम्भालऽ कहि रहल छी । जौं अहाँक ई कारोबार पसंद नहि अछि तऽ दोसर कारोबार करु ।कारोबार करवाक इच्छा नहि अछि तऽ हमरा एतराज नहि अछि । अहाँ अपना देश मे कोनो नौकरी करु ताकि हम सव अहाँ के देख सकी । रमेश जी आमित के बहुत समझेलखिन मुदा अमित अपना बात पर अड़ल रहलाह । अमितक छोट भाई सुमित ई सुनि कहलनि - भैया ! बाबुजी तऽ नीक कहैत छथिन । जे माय- बाबुजी अपन सर्वस्व हमरा सव पर लूटा देने छथि । अपन पुरा जीवन लगा देने छथिन । अहाँ हुनका बात काटि विदेश जाय चाहैत छी से नीक अहि अछि । ई सुनि अमित अपना छोट भाई सँ कहलनि - अहाँ तऽ सदिखन माँ-बाबुजीक आंगुर पकड़ने रहैत छी । अहाँ एहन लोकनि कखनहुँ कामयाव नहि भऽ सकैत अछि । दुनिया कतऽ सँ कतऽ चलि गेल अछि ,अहाँ ईनारक बेंग बनल रहु । हम अहाँ एहन नहि छी जे मायक कोंचा पकड़ने रही।अमित किनको बात सुनवाक लेल तैयार नहि छलथि । एहन परिस्थिति मे हुनक माय बाबुजी चुप रहनाई ठीक सोचलथि ।अमित पासपोर्टक लेल आवेदन देलखिन । पुलिस सत्यापन भेलाक उपरांत हुनकर पासपोर्ट आवि गेलनि । पासपोर्ट मिललाक बाद अमेरिकाक लेल वीजा बना कऽ अमेरिका चलि गेलाह । अमित के अमेरिका चलि गेला पर सरस्वतीजी बड्ड दुःखित भेलीह । रमेश जी हुनका कहलखिन जे अहाँ एहि बातक चिंता नहि करु ।आई-काल्हि धीया-पुता अपना हिसाब सँ जीअ चाहैत अछि । एहि पर सरस्वती जी कहलनि - हमसव बच्चाक लेल जी जान लगा देने छलहुँ , अपन जिनगीक हर पल हुनका पर बीतेलहुँ । जाहिया सँ एकर जन्म भेल हम अपन सव शौख -मनोरथ ताख पर राखि बच्चाक भविष्यक लेल सोचलहुँ मुदा आव बच्चा अपन मनचाही जिनगीक अलावा किछु नहि सोचैत अछि । ई कहि सरस्वती जीक आँखि मे नोर ढ़व -ढ़वा गेलनि । रमेश जी कहलनि - अहाँ चिंता नहि करु ।अमित जेना जीवऽ चाहैत अछि तेना जीवऽ दिअऊ ।

अमित के विदेश गेलाक उपरांत हुनक छोट भाई सुमित हुनका लग रहैत छलाह । सरस्वती जीक भरोसा सुमित पर छल । सुमितक स्वभाव अमित सँ उल्टा छल । ओ शर्मिला आ माय- बाबुजीक आज्ञाकारी बालक सेहो छलाह । माय-बाबुजी जे कहैत छलखिन सएह करैत छलाह । रमेश जी के आव हुनका पर उम्मीद छलैन । ओ सोचैत छलाह जे बड़का बेटा जकाँ ई स्वार्थी नहि छथि । सुमित सदिखन कहैत छलाह जे दुनियाक कतवो सुख हमरा दऽ देल जाय तैयो हम माय- बाबुजी के नहि छोड़व । स्कूली पढ़ाई समाप्त भेला पर हुनकर नामांकन कॉलेज मे भेल । कॉलेज जखन लीजर घंटी छल तखन ओ कॉमन रूम मे आवि अकेले बैसल रहैत छलाह । स्वभाववश ओ केकरो सँ बेसी बात नहि करैत छलाह । एक दिनक बात अछि , कॉमन रूम मे सुमित असगरे बैसल पत्रिका पढ़ैत छलाह । हुनकर क्लासक एकटा संगी हुनका लग आवि के बैसलखिन जिनकर नाम सुलेखा छल । सुलेखा अमित सँ कहलखिन - अहाँ चुपचाप एक कात मे किएक बैसल छी । चलु केंटिन मे दूनु आदमी चाय पीयव । पहिले तऽ एहि बात के स्वीकार नहि केलखिन मुदा सुलेखाक जिद्दक आगु हुनकर किछु नहि चलल । ओ नहि चाहैत सुलेखा संग केंटिन चलि गेलाह । आव सव दिन दूनु लोकनि केंटिन में आवि घंटो गप्प-सप्प करैत छलैथि ।कहियो एहन भऽ जायत छल जे घंटी सेहो छुटि जानि । धीरे-धीरे ओ सुमितक स्वभाव सँ परिचित भऽ गेलीह । सुलेखा एहन लड़काक तलाश मे छलीह जेकरा अपन कोनो सोच नहि होय । लड़का के हम जेना नचावी तेना ओ करथि आ अपना मनमर्जीक अनुरूप ढ़ालि सकी । सुलेखा देखवा मे ततेक सुन्नर छलीह जे कॉलेजक लड़का हुनका पर फिदा छल । एहि परिस्थिति मे सुमित सोचैत छलाह जे सुलेखा जौं हमरा सँ विआहक लेल तैयार भऽ जाय तऽ नीक रहत । मुदा सुमित अपन इच्छा हुनका सँ व्यक्त नहि केलखिन । जाहि दिन सुमित सुलेखा के नहि देखैत छलाह ताहि दिन ओ परेशान भऽ जायत छलाह ।तहिना जाहि दिन सुमित नहि आवैत छलखिन ताहि दिन सुलेखा सेहो परेशान भऽ जायत छलीह । आव एक दोसरक बिना समय काटऽ मुश्किल लागैत छलनि । एक दिनक बात अछि सुलेखा आ सुमित दूनु लोकनि केंटिन मे चाय पी रहल छलथि तहन सुलेखा सुमित सँ कहलखिन - अहाँक बाबुजी सँ हमर बाबुजी मिलऽ चाहैत छथि से अहाँ अपना बाबुजी सँ वतायव । सुमित कहलनि - अहाँक बाबुजी किए मिलऽ चाहैत छथिन ? सुलेखा कहलनि - हम एक दोसरा कें जानवे करैत छी । जौं दूनु गोटेक विआह भऽ जायत तऽ नीक रहत तें हम अहाँक बारे मे हम अपन बाबुजी सँ बात केलहुँ अछि । राति मे बाबुजी सँ कहलहुँ जे हम आ सुमित विआह करऽ चाहैत छी । हमर बाबुजी तऽ सहमत भऽ गेलाह मुदा अहाँ अपन बाबुजी सँ बात करतहुँ तऽ नीक रहत ।सुमित कलहनि - हम कोना कही, हमर विआह कोन ठाम होयत से माय-बाबुजी जानथिन हम अखन धरि एहि सम्बन्ध मे हुनका सँ बात नहि केलहुँ अछि ।हम सोचैत छी जे हम अपन विआहक बात हुनका सँ कोना कहु । सुलेखा कहलनि - ठीक अछि, अहाँ बात नहि करु हमर बाबुजी अहाँक बाबुजी सँ मिल लेताह ।अहाँ अपन घरक पता लिखा दिअ । हम अपना बाबुजी सँ बात कऽ लेव । सुलेखा घर पर आवि अपना बाबुजी सँ कहलखिन । सुलेखाक बाबुजी कहलनि जे हम रमेश बाबू सँ मिलैत छी तहन किछु कहव, जौं ओ एहि रिश्ताक लेल तैयार भऽ जेताह तहन हमहुँ तैयार भऽ जायव । सुलेखाक बाबुजी रमेशजीक घर आवि एहि रिश्ताक लेल कहलखिन । रमेश बाबू के एहि सम्बन्ध मे कोनो जानकारी नहि छलनि । रमेश बाबू कहलखिन जे दूनु एक दोसर सँ विआह करऽ चाहैत छथि । दूनु एकहि क्लास मे पढ़ैत छथि । हमरा सवहक जिम्मेवारी अछि जे दुनु के विआहक बन्धन मे बाँधि दी । रमेश बाबू कहलखिन जे हमरा कोनो एतराज नहि अछि मुदा दूनुक पढ़ाई भऽ जायत तहन ठीक रहत । सुमितक पढ़ाई भेलाक उपरान्त विआहक दिन निश्चय भेल । रमेश अपन पैघ बालक अमित के एहि सम्बन्ध मे कहलखिन मुदा अमित एकर कोनो प्रकारक उत्तर नहि देलखिन । रमेश जी जखन एहि अवसर पर सम्मिलित होयवाक लेल कहलखिन तहन ओ साफ मना करैत कहलनि - बाबुजी ! हमरा अखन छुट्टी नहि मिलत तें हम नहि आवि सकव । सुमित आ सुलेखाक विआह धूमधाम सँ कराओल गेल । सुलेखा सुमितक घर आवि गेलीह । सुलेखा एक अमीर घरक लड़की छलीह । हुनकर बाबुजीक कारोबार देश-विदेश मे फैलल छल । दोसर दिस सुमितक बाबुजी के सेहो एहि ठाम कारोबार छल ।सुमित अपना बाबुजीक कारोबार मे साथ दिअ लगलाह । सवेरे नाश्ता कऽ सुमित दुकान पर चलि जायत छलाह । दुपहरिया मे जखन रमेश जी आवैत छलाह तहन सुमित भोजन करवाक लेल आबैत छलाह । सुमित के देखि रमेश आ सरस्वती जी दूनु खुश छलथि । ओ सोचैत छलाह जे अमित चलि गेला पर कम सँ कम एकटा बेटा तऽ साथ मे अछि मुदा घर पर सुलेखा के मन नहि लागैन । सुलेखाक इच्छा होयत छलैन जे हम अपना बाबुजीक विदेश वाला कारोबार सम्भाली ।

एक दिनक बात अछि सुलेखा सुमित सँ कहलखिन - हमर बाबुजी चाहैत छथि जे हम सव हुनकर अमेरिकावाला कारोबार सम्भाली । किएक तऽ ओहि ठाम एक योग्य आदमीक आवश्यकता अछि । अहाँ अहु ठाम कारोबार करैत छी आ अमेरिका मे सेहो इएह काम करव । सुमित कहलखिन जे एहि ठामक कारोबार के सम्भालत ? हम एहि ठाम छी तहन बाबुजी के आराम मिलैत छैन । हम आ बाबुजी रहव तहन ई कारोबार आओर आगु बढ़त । ई बात सुनि सुलेखा तमतमा गेलीह आ कहलनि जे हम अमेरिका अवश्य जायव । एहि ठाम हमरा मन नहि लागैत अछि । अहाँ अपना माय-बाबुजी के कहि अमेरिका चलु । अच्छा किछु दिन रुकि जाऊ तहन हम हुनका कहैत छी । सुमित सोचलैथि जे अखन सुलेखा नव स्थान पर एलीह अछि तें मन नहि लागैत छैन । किछु दिन मे सव किछु ठीक भऽ जायत । किछु दिनक बाद सुलेखा फेर सुमित सँ कहलखिन जे आई बाबुजीक फोन आयल छल । ओ कहैत छलखिन जे अहाँ सव अमेरिका चलि जाऊ ताकि ओहि ठामक कारोबार ठीक ढंग सँ चलि सके । एहि पर सुमित कोनो उत्तर नहि देलखिन । साँझ मे जखन सुमित दुकान बंद कऽ घर पर एलाह तहन सुलेखा कहलखिन जे अहाँ माँ-बाबुजी सँ जौं नहि कहव तहन हम हुनका सँ कहैत छी । सुलेखाक जिद्द करला पर सुमित अपना माय-बाबुजी के कहलखिन जे सुलेखा अमेरिका जायवाक लेल जिद्द कऽ छथि । की कएल जाय से समझ मे नहि आवि रहल अछि । रमेशबाबू कहलखिन जाऊ दूनु आदमी अमेरिका सँ घुमि आवु । कनियाक मन पूरा भऽ जेतनि । एहि पर सुमित कहलखिन - नहि बाबुजी ! ओ कहैत छथिन जे सुलेखाक बाबुजीक कारोबार जे अमेरिका मे चलैत छैन तकरा हम जा के सम्भाली । ई सुनि रमेश बाबुजी आश्चर्य मे पड़ि गेलाह । ओ सोचैत छलाह जे सुमित आव हमरा लग रहत मुदा हुनकर ई सोचनाई गलत साबित भऽ रहल अछि । सरस्वती जी कहलखिन - बौआ ! हम सब कोना रहव । एहि ठाम रहव से नीक नहि अछि की ? सुमित कहलनि - हाँ माँ ! अहु ठाम कोनो दिक्कत नहि अछि मुदा सुलेखा ई बात मनवाक लेल तैयार नहि छथिन। सुमित माय-बाबुजी सँ ई बात करैत छलाह कि गामक डाकिया पासपोर्ट देवाक लेल आवि गेल । सुमित दूनु पासपोर्ट डाकिया सँ लऽ लेलनि । किछु दिन मे दूनुक अमेरिकाक वीजा सेहो आवि गेल । सुमित आ सुलेखा दूनु अमेरिका चलि गेलाह ।

सुमित के अमेरिका चलि गेला पर रमेशबाबू के गहरा सदमा लागलनि । एहि शोक सँ हुनकर स्वास्थय सेहो खराब रहऽ लागलनि । स्वास्थय खराब भेलाक कारण आब ओ दुकान सेहो नहि जायत छलाह । धीरे-धीरे कारोबार बंद भऽ गेल सरस्वतीजी दुकान बेचि के रमेश बाबू मे लगा देलखिन । अंततः रमेश बाबू एहि दुनिया मे नहि रहलाह । रमेशजीक मरलाक बाद सरस्वती जी टुटि गेलीह । दूनु बेटा पहिले घर छोड़ि विदेश चलि गेल छलाह आव पति सेहो संग छोड़ि देलखिन । घरक दिवार हुनका काटऽ दौड़ैत छलनि । इएह सोचैत सोचैत आँखि सँ नोर गिरऽ लागलनि । टेबुल पर राखल चाय ठंढा भऽ गेलनि । भोर सँ बैसल -बैसल दिनक चारि बजि गेल । सरस्वतीजी पतिक देहान्त आ बच्चाक कुआथ सँ चिंतित छलीह । तखनहि ओ घंटीक आवाज सुनलखिन । घंटिक आवाज सुनि ओ घरक किवाड़ खोललखिन तहन देखैत छथिन जे बचपनक संगी जेकर नाम सुषमा छल से ठाढ़ छथि । सुषमा सरस्वती जीक चेहरा देखैत बड्ड दुःखित भेलीह । ओ कहलनि - अहाँ अपन वेश-भूषा एहन किएक बनेने छी । ईश्वरक इच्छाक आगु अपन अपन कोनो वश नहि चलैत अछि । देखु हमर घरवाला पंद्रह बरीख पहिले एहि संसार मे हमरा अकेले छोड़ि चलि गेलाह । तहन अपन रास्ता खोजि जीवन यापन कऽ रहल छी । हुनका गुजरलाक बाद हम सोचलहुँ जे हमर जीवन कोना चलत आ हमरा समय कोना कटत ? ताहि लेल हम ट्यूशन कऽ रहल छी । घरक काम कऽ हम ट्यूशन मे लगि जायत छी । एहि सँ एक दिस हमर समय नीक सँ कटि जायत अछि तऽ दोसर दिस आमदनी सेहो होयत अछि । तें अहाँ अखन हिम्मत सँ काम लिअ । एहि ठाम अहाँक नाम नीक शिक्षिका मे छल । अहाँ तऽ हमरा सँ नीक पढ़ा सकैत छी । एहि सँ समय सेहो कटि जायत आ आमदनी सेहो होयत । गप्प-सप्प कऽ सुषमा चलि गेलीह । हुनका चलि गेलाक बाद सरस्वती जी सोचलीह जे सुषमाक कहनाई ठीक अछि । हमहुँ कोनो काम में लगि जायव तहन एहि शोक सँ उबरि सकैत छी । ई शोचि ओ अपना घर पर एक स्कूल खोललथि । जाहि मे प्राइमरी धरिक बच्चा पढ़ैत छल । पढ़ाई देखि मोहल्लाक सव बच्चा हुनका स्कूल मे आवऽ लागलनि । ओ सुषमाजी के सेहो कहलनि जे अहाँ हमर एहि काम मे साथ देव तहन नीक रहत । सुषमा जी सेहो हुनका संग स्कूल मे पढ़ावऽ लागलखिन । धीरे -धीरे स्कूलक ख्याति कतेको गाम मे फैल गेल। सरकार सँ मान्यता सेहो मिल गेलनि ।

सुमित के अमेरिका गेला पर ओहि ठाम ससुरक काम सम्भालऽ लगलाह । दूनु प्राणी खुशहाल जीवन व्यतीत करैत छलाह मुदा किछु बरख बाद ससुरक देहांत भऽ गेलनि । तकर बाद सुषमाक भाई सव मे बटवारा भऽ गेल । बटवारा भेलाक कारण अमेरिकाक कारोबार मे कमी भऽ गेल, जाहि सँ आमदनी सेहो कम भऽ गेलनि। दोसर दिस सुषमाक भौजाई सेहो सदि खन ताना मारैत छलखिन जे अहाँ अपन घर छोड़ि हमरा सवहक घर पर रहैत छी । अहाँ अपना सासुर किएक नहि जायत छी ? ओहि ठाम सेहो ससुरक नीक कारोबार अछि । सव दिनक कीच-कीच सँ सुमित परेशान भऽ सुषमा सँ कहलखिन किएक नहि हम सव गाम चलि जाय । एहि पर सुषमा जी कहलखिन जे गामक जमीन आ घर बेच लिअ आ एहि ठाम अपन कारोबार करु , हम गाम नहि जायव । ई सुनि सुमित अपन पैघ भाय अमित के फोन केलखिन । सुमितक फोन सुनि ओ बड्ड खुशी भेलाह । हाल समाचार जनलाक बाद सुमित कहलखिन जे भैया हमर स्थिति अखन ठीक अछि । हमर ससुरक कारोबार मे सार सव दखल दऽ देलखिन जाहि सँ कारोबार ठीक सँ नहि चलैत अछि । हमर इच्छा होयत अछि जे गाम परक जमीन आ घर बेच देतहुँ तऽ किछु पाई भऽ जायत तहन कारोबार नीक सँ चलि सकत । एहि पर अमित कहलखिन जे अखन हमरहु काम छुटि गेल अछि । हमहुँ सोचि रहल छी जे की करी ? जौं अहाँक इच्छा अछि तहन गाम चलु । ई सोचि दुनु भाय अमेरिका सँ गाम एलाह तऽ घरक नक्शा बदलल छल । एहि ठाम एकटा पैघ स्कूल खुलल छल । दुनु भाई टेम्पू सँ उतरलाह तऽ माय के गोर लागलखिन ।कोना एलहुँ अछि ? कोनो विशेष काम छल की? सरस्वती जी टहलूक के कहलखिन जे हिनका सवके घर लऽ जाऊ आ भोजन कराऊ । हम स्कूल सँ आबैत छी तहन गप्प -सप्प होयत । स्कूल बन्द भेलाक बाद ओ घर पर एलीह तहन सव आदमी एक ठाम बैसलथि । गप्प-सप्पक दौरान अमित कहलखिन माँ हमर सवहक स्थिति नीक नहि अछि । हम अँहि सँ भेंट करऽ एलहुँ अछि। सरस्वती जी कहलखिन की भेल ? अमित कलहखिन जे अमेरिका मे अखन मंदी चलि रहल अछि , हमरा जे नौकरी छल ओ छूटि गेल अछि । कोनाहु समय काटि रहल छी । एहि पर सरस्वती जी कहलखिन अहाँ सव जे ई सोचि कऽ एलहुँ अछि जे एहि ठामक जमीन आ घर बेचव से सम्भव नहि अछि । हम जानैत छी जे अहाँक बाबुजी मरलथि तखन तऽ अहाँ सव के छुटि नहि छल जे बापक मुखाग्नि दी । जखन अहाँक अमेरिका मे दिक्कत भेल तहन अहाँ सवके गाम मन परल । अहाँ सव जे रास्ता चुनलहुँ अछि ओ नीक अछि । एहि ठामक सव जमीन हम बेच कऽ एहि स्कूल मे लगा देलहुँ अछि आ एहि स्कूल के ट्रस्टक नाम कऽ देने छी । एहि ठामसँ अहाँ सवके कोनो सहायता नहि मिलत । ई सुनि दुनु भाय चुप भऽ गेलाह । भिनसरे दुनु भाय माय के गोर लागि फेर अमेरिका चलि गेलाह ।         

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