
परमानन्द लाल कर्ण
स्वावलम्बन
मोहल्ला मे चमकैत मकान इंगित कऽ रहल अछि जे ई कोनो नीक काम करऽ वाला लोकनिकक घर अछि ।जे केओ ओहि रास्ता सँ गुजरैत छलाह । हुनक ध्यान मकान आकर्षित कऽ लैत छल । मकान एक मास्टर साहवक छल जिनका दरमाहाक अलावा नीक कोचिंग सेंटर सँ आमदनी आवैत छल । शहरक नीक मास्टर मे हुनकर गिनती छलनि । हुनकर नाम छल ईश्वरचंद । ईश्वरचंदक पिताजी रेलवे मे काम करैत छलाह । सेवानिवृत्तक सव पाई ओ एहि मकान मे लगा देने छलखिन ।ईश्वरचंद मकान के नीक सँ ख्याल राखैत छलाह । मकानक मरम्मत आ रंग रोगन मे कखनहु समझौता नहि करैत छलाह । ईश्वरचंदक शादी प्रमिला सँ भेल छल । हुनका एकटा लड़का छलनि, जेकर नाम रवि छल । रविक देखभाल प्रमिला करैत छलखिन । रविक होमवर्क करेनाई, खाना बनेनाई आ घरक दोसर काम मे भरि दिन लागल रहैत छलीह । एतेक कि स्कूल मे जखन अविभावकक मीटिंग राखल जायत छल ताहु मे प्रमिला जायत छलीह । रविक पढ़ाई लिखाई भऽ गेला पर नीक नौकरी मिल गेलनि ।प्रमिलाक घर आनंद सँ भरल छल । तकर वाद रविक विआह नीक घर मे तय केलीह । पुतोहु पढ़ल लिखल छलीह । प्रमिला सोचलथि जे नीक घरक बेटी आओत तहन हमर घर एहिना खुशहाल रहत । पड़ोसी सव सेहो जे देखैत छलखिन से प्रमिला सँ कहैत छलखिन जे अहाँक पुतोहु बड्ड सुन्नर छथि । प्रमिला सेहो गर्व सँ कहैत छलीह जे हमर पुतोहु खरा सोना अछि । एक तऽ मोहल्ला मे ओ सबसँ बेसी पढ़ल लिखल रहवे करथिन दोसर देखवा मे सेहो परी सन छलखिन । विआहक वाद पुतोहुक खूव मान-दान कऽ रहल छलीह । विवाहक वाद रविक नौकरी मे सेहो तरक्की भऽ गेल छल । एहि सँ प्रमिला कहैत छलखिन जे हमरा घर में कनियाक एला सँ सरस्वती आ लक्ष्मी दुनुक आगमन भऽ गेल अछि । दोसर दिस रविक दरमाहा सेहो वढ़ि गेलनि । किछु दिनक बाद रविक जौंआ बच्चा भेलनि । जाहि मे एकटा बौआ छल तऽ दोसर बुच्ची छलीह । बौआक नाम पंकज राखलथि आ बुच्चीक नाम पंखुरी । जौंआ बच्चाक पलनाई रविक लेल एक समस्या भऽ गेल । प्रमिला कहलखिन अहाँ सव हमरा अच्छैत कोनो चिंता नहि करु । भगवान जे करैत छथिन से नीक करैत छथिन । दूनु बच्चाक देखभाल प्रमिला नीक सँ करैत छलखिन । पंकज आ पंखुरी पैघ भऽ स्कूल जाय लागल । पोता -पोती सँ हुनका ततेक प्रेम छलनि जे जखन हुनकर स्कूलक छुट्टी होयत छल तखन ओ मकानक गेट पकड़ि ठाढ़ भऽ जायत छलीह आ सड़क दिस देखैत रहैत छलीह । दूनु हाथ मे चाकलेट लेने बेसब्री सँ इंतजार करैत छलीह । एकटा आटो रिक्शा आवैत देखथिन तऽ प्रमिला गेट सँ बाहर आवि सोचैत छलीह जे हुनकर पोता-पोती एहि आटो रिक्शा मे अछि । मुदा लग एला पर निराश भऽ जायत छलीह । थोड़े देरक वाद जखन आटो हुनका गेट पर आवि रुकैत छल तहन पंकज आ पंखुरी दादी माँ ! दादी माँ ! कहि दुनु बच्चा दौड़ि के आवैत छल आ दादी माँक पाइर लग ठाढ़ भऽ जायत छल । प्रमिला तुरंत हाथक चाकलेट हुनका दैत छलखिन । दादी माँक ममता पूरा मोहल्ला मे नामी छल । तकर वाद दुनु बच्चाक बस्ता राखि खिला-पिला कऽ प्रमिला आराम करैत छलीह ।प्रमिलाक इएह दिनचर्या छल ।
किछु दिनक वाद रवि नीक कालोनीक एपार्टमेंट मे एकटा फ़्लैट खरीदलथि । माँ रवि सँ कहलखिन जे माँ आब अहुँ हमरे सवहक संग चलु । नया घर में सव आदमी एक ठाम रहव । प्रमिला सोचलखिन जे हम एहि ठाम रहि की करव ? हमहुँ बेटा पुतोहु लग रहव सएह नीक होयत । पूरा परिवार नीक सँ नव घर मे रहऽ लागलथि । चारु दिस खुशहाली छल मुदा ई खुशी बेसी दिन नहि रहि सकल । अचानक समयक कूचक्र एहन भेल जे सव किछु उल्टा भऽ गेल । चान सँ पुतोहु पता नहि अचानक ज्वालामुखी मे परिणत भऽ गेलीह । दोसर दिश रविक स्वभाव सेहो बदलि गेल । छोट-छोट बात पर ओ माय कें डाँटि दैत छलखिन । प्रमिलाक समझ मे नहि आवैत छल जे की भऽ गेल अछि? ओ सोचैत छलीह जे घरक पैघ आदमी भेलाक कारण हम अपन अनुभव हुनका कहैत छी, मुदा बेटा पुतोहु कें ई नीक नहि लागैत छलनि । ओ दुनु चाहैत छलैथ जे माँ खाना का कऽ अपना घर मे चुपचाप बैसल रहथि । कोनो बात पर हमरा अपन राय नहि दैथि । पुतोहुक स्कूलक एकटा संगी सेहो कातक घर मे रहैत छलीह । आव ओ सव दिन संगी लग जायत छलीह । रवि एम्हर अपना काम पर जायत छलाह तऽ एम्हर हुनकर पुतोहु अपना संगी लग चलि जायत छलीह । एक दिन भिनसरे ओ संगीक घर गेलीह मुदा देर राति ओ घर पर नहि एलीह , तहन रवि ओसारा मे ठाढ़ भऽ हुनकर रास्ता देखैत छलाह । लगभग ग्यारह बजे राति मे जखन ओ घर एलीह तहन प्रमिलाक जान मे जान आयल । प्रमिला अपना पुतोहु के कहलखिन जे कनिया एतेक राति धरि घर सँ बाहर रहनाई नीक बात नहि अछि । नीक घरक लोकनि कें ई शोभा नहि दैत अछि । आजुक दिन-दुनिया बड्ड खराब अछि से अहाँ जानवे करैत छी । एहि बात पर ओ घर मे बबाल कऽ देलखिन ।पुतोहु मुँह फूला कऽ घर चलि गेलीह आओर तऽ आओर रवि सेहो हुनका नहि समझा कऽ अपना माय पर बरसि पड़लाह ताहि दिन सँ हुनक व्यवहार प्रमिलाक प्रति ठीक नहि रहैत छल । रवि सदिखन अपन कनियाक पक्ष लैत छलाह ।
एक दिनक बात अछि जे बेटा -पुतोहु घर मे बैसि बात करैत छलाह । बात-चीतक क्रम मे प्रमिलाक पुतोहु कहलखिन जे दुनु बच्चा सदिखन अपना दादी मे लागल रहैत अछि। आव दुनु पैघ भऽ गेल अछि । पढ़ाई पर हिनका सव कें कम ध्यान रहैत छैन आ दादी पर बेसी । तैं हमर विचार अछि जे अहाँ कोनो एहन व्यवस्था करु जे बच्चाक पढ़ाई लिखाई ढंग सँ भऽ सके । हमर विचार अछि जे माँ के वृद्धाआश्रम मे दऽ दीओन । ओहि ठाम रहथिन आ दु -चारि बुढ-बुढ़ानुश लग अपन बातचीत करैत हुनकर दिन नीक सँ कटि जेतनि । माँ के मन सेहो लागल रहतनि । ई बात प्रमिला सुनि लेलखिन । ओ सोचलथि जे आव हमरा एहि ठाम रहनाई ठीक नहि अछि ।
दोसर दिन प्रमिला अपना बेटा सँ कहलखिन जे हम किछु दिन पुरनका घर मे रहऽ चाहैत छी । घर कतेक दिन सँ बंद अछि ,किछु दिन घर पर रहव तऽ घरक देखभाल नीक सँ भऽ सकत । ई सुनि रवि दुनु प्राणी सोचलथि जे मायक विचार नीक अछि , किएक तऽ हम सव दिनक कीच कीच सँ छुट्टी पा जायव । ई हमर सव बात पर ध्यान दैत रहैत छथि कोनो काम करऽ चाहैत छी तहन ई टोका-टोकी करैत रहैत छथि । रवि कहलखिन माँ ठीक अछि । जाहि दिन अहाँक इच्छा होय हमरा कहव हम घर पर पहुँचा देव । एहि पर प्रमिला कहलखिन जे हम आईये चलि जायत छी । रवि कहलखिन,”ठीक अछि ।” प्रमिला अपना पुरनका घर पर चलि एलीह ।
प्रमिला घर पर आराम सँ जीवन वसर करऽ लागलीह । प्रमिला जाहि मोहल्ला रहैत छलीह ओहि मोहल्ला मे एकटा संस्था खुलल छल । संस्था मे बुजुर्ग लोकनि आवैत छल आ अपन सुख -दु:ख एक दोसरा सँ कहैत छल । एक दिन एकटा बुजुर्ग हुनका सँ कहलखिन,”अहाँ तऽ पहिले अचार बनवैत छलहुँ । आव नहि बनवैत छी की ?” प्रमिला कहलखिन, “हाँ ! हम तऽ अखनहु अचार अपना लेल बना के राखैत छी । अहाँ खायव तऽ हम काल्हि लेने आयव ।” ओ अचार आनि किछु लोकनि के देलखिन । दोसर दिन एकटा बुजुर्ग कहलखिन जे अहाँक तऽ नीक हुनर अछि किएक नहि एकर उपयोग करैत छी । प्रमिला सोचलथि जे हम घर पर बैसल रहैत छी , अपन आमक गाछ अछि । अखन किछु बेसी अचार बना लैत छी । अचार बना कऽ संस्था मे लऽ गेलीह । संस्थाक आओर लोकनि के अचार दैत कहलखिन जे अहाँ एहि अचार के टेस्ट करु । सव लोकनि हुनकर अचारक बड्ड प्रशंसा केलखिन । संस्था मे एकटा बुजुर्ग कहलखिन जे एना अचार अहाँ कतेक दिन बाँटव । अहाँक जे पाई लागैत अछि ओ तऽ अहाँ लऽ लिअ आ अचार हमरा सव के पाई लऽ के दिअ । एहि प्रस्ताव पर प्रमिला कहलखिन जे हम प्रयास करैत छी । आव ओ बेसी मात्रा मे बनावऽ लागलथि आ संस्था मे बेचऽ लागलथि । धीरे -धीरे जे केओ संस्था मे आवैत छलाह प्रमिलाक अचार अवश्य खरीदैत छलाह । संस्थाक एक सदस्यक बालक जिनकर नाम बिपिन बिहारी छल , ओ अचारक कारखाना लगेने छलाह जाहि मे कतेको मजदूर काम करैत छल । बिपिन बिहारी एक दिन प्रमिलाक अचार देखलखिन । अचारक स्वाद चखि ओ अपना बाबुजी सँ पुछलखिन जे अहाँ ई अचार कोन ठाम खरीदलहुँ अछि । एहि अचारक स्वाद नीक अछि । ताहि पर ओ कहलखिन-बौआ हम जाहि संस्था मे सव दिन जायत छी ,ओहि मे एक सदस्य अचार बनाबैत छथिन । संस्थाक सव सदस्य अचारक बड्ड गुणगान करैत रहैत छल । तैं हमहुँ आई ई अचार खरीदलहुँ अछि । बिपिन बिहारी कें प्रमिला सँ मिलवाक इच्छा भेलनि । प्रमिला सँ मिल ओ अपना कारखाना मे काम करवाक लेल कहलखिन । प्रमिला कहलनि, “बौआ ! एहि उमिर मे हम कोन काम कऽ सकैत छी ।” बिपिन बिहारी कहलनि, माँ जी ! अहाँ बैसल रहव , अचार जेना बनवैत छी तकर तरीक़ा केवल मज़दूर सँ बता देवै । कतेक सामान कखन अचार मे देल जा सएह बतावैत रहवै ।” प्रमिला सोचलीह जे एहि ठाम बैसल रहैत छी आ ओहु ठाम बैसल रहव किएक नहि ओहि ठाम चलि जाऊ । मन सेहो लागत आ समय नीक सँ कटि जायत । प्रमिला हुनका हाँ कहि देलखिन । दोसर दिन बिपिन बिहारीजी अपन कार प्रमिलाक घर पर भेज देलखिन । प्रमिला अपन नुआ एक बैग मे लऽ कारखाना चलि एलीह । आव कारखाना मे अचार हिनका निर्देशन मे बनऽ लागल । अचारक गुणवत्ता मे सुधार भेलाक कारण अचारक माँग बढ़ि गेल जाहि सँ अचारक उत्पादन सेहो बढ़ऽ लागल । किछु दिन मे बिपिन बिहारीक कारखानाक अचार मशहूर भऽ गेल । तकर बाद बिपिन बिहारी जी “दादी माँक अचार” नाम सँ ब्रांड कऽ ओकर बिक्री करऽ लगलाह संगहि संग पैकेट पर प्रमिलाक फोटो अंकित कऽ देलखिन । दोसर दिस प्रमिलक दरमाहा मे सेहो बढ़ोतरी भऽ गेल । बिपिन बिहारी जी अचारक प्रचार यूट्यूव पर देलखिन , जाहि मे प्रमिलाक फोटो सेहो छल ।
एक दिन रवि मोबाइल मे प्रमिलाक फोटो देखलखिन तऽ ओ चौंकि गेलाह । अपना पत्नी सँ कहलखिन, “ मोबाईल मे माँक फोटो देखा रहल अछि । माँ सँ बात करैत छी जे अखन ओ कोन ठाम छथिन ।” ई कहि रवि माँ के फोन लगेलखिन । रवि कहलनि, “हेलो माँ ! गोर लगै छी ।” ओम्हर सँ आवाज़ आयल नीके रहु । रवि कहलनि ,”माँ अहाँक फोटो मोबाईल मे देखलहुँ अछि । कुशल मंगल सँ छी ने । एहि पर प्रमिला जबाव देलखिन हाँ बौआ हम ठीक छी । अहाँ सव ठीक छी ने । बौआ-बुच्ची ठीक अछि ने ।” रवि कहलनि, “ हाँ माँ सव किछु ठीक अछि ।” हाल-चाल जानलाक बाद फोन राखि देलखिन । प्रमिला भिनसरे तैयार भऽ कारखाना पर जायत छलीह । घर पर रसोईया टिफिन पैक कऽ दैत छलनि , दुपहरियाक खाना कारखाना पर खायत छलीह। साँझ के ओ घर आवैत छलीह । थाकल रहलाक कारण कतहुँ बात नहि करैत छलीह ।
एक दिन प्रमिलाक पुतोहुक फोन आयल । फोन पर भोकारि पारि कानऽ लगलीह । प्रमिला पूछलखिन, “ कनिया की भेल ?” ओम्हर सँ जबाव आयल जे काल्हि खन मोटर साईकिल सँ अहाँक बौआ आबैत छलाह तऽ हुनका दोसर मोटरसाईकिल वाला ठोकर मारि देलकनि । जाहि मे पाईरक हड्डी टुटि गेल अछि । ओ हॉस्पिटल मे भर्ती छथि ।” ई सुनि प्रमिलाक बड्ड दु:ख भेलनि । कारखाना मे कर्मचारी के काम समझा बुझा कऽ गाड़ी सँ हॉस्पिटल एलीह । हुनका देखि रवि आ हुनकर कनिया दुनु कानऽ लागल । ओ कहलखिन, “माय ! आव हम की करी । डाक्टर साहेब कहैत छथिन जे एहि मे कम सँ कम दुई लाख रुपया लागत । आव तऽ समस्या ई अछि जे बच्चाक स्कूलक फीस आ घरक खर्चा कोना चलत । आव तीन महीना कतहुँ जाय वाला नहि छी । आव की करि से नहि बुझा रहल अछि ।” प्रमिला कहलखिन जे अहाँ सव पाईक चिंता नहि करु । हम हॉस्पिटल मे बात कऽ लैत छी । अहाँ सव केवल अपना पर ध्यान दिअ । अखन हम एक लाख टका दैत छी जाहि मे बच्चा सवहक स्कूलक फीस आ घरक काम चलाऊ । हॉस्पिटलक खर्चा हम अदा कऽ दैत छी । ई सुनि रवि आ हुनकर कनिया चौंकि गेलखिन । रवि कहलनि, “माँ ! अहाँ एतेक पाई कतऽ सँ आनव ? जमीन बेचव की ?” एहि पर प्रमिला कहलनि, “नहि बाऊ ! हमरा तऽ कारखाना सँ ततेक पाई मिलैत अछि जे हम खर्चा नहि कऽ सकैत छी । बैंक मे पाई अछि, घर पर एतवे पाई छल जे लऽ के हम एलहुँ अछि ।अहाँ कोनो बातक चिंता नहि करु ।”
किछु दिनक बाद जखन रवि ठीक भऽ गेलाह तऽ माँ सँ कहलनि, “माँ ! आव अहाँ घर पर रहु ।” प्रमिला साफ मना करैत कहलनि जे नहि बौआ हम एहि ठाम ठीक छी । जखन धरि हाथ पाईर चलैत अछि । हमरा कोनो सहारा नहि चाही । ई कहि प्रमिला अपना घर पर हँसी-खुशी जीवन यापन करऽ लगलीह ।
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