
परमानन्द लाल कर्ण
मायक लाल
घर मे पतिदेवक तस्वीर पर लागल हार सुधाजी के डोला के राखि देने छल । बुढ़ापा मे असगर पीड़ा असहनीय आ हृदय विदारक होयत अछि ।किछु सोचैत सोचैत सुधाजीक दिल दर्द सँ भरि गेल छल आ आँखि सँ ढ़व-ढ़व नोर गिर रहल छल । हुनकर घरवाला सँ जुड़ल सव चीज समेट बटोरि के आलमारी मे राखि देने छलथि । जे घर कहियो परिवारक खिलखिलाहट सँ गुलजार छल आई ओ एकदम शांत भऽ गेल अछि । ई सन्नाटा सुधाजी के काटऽ दौड़ैत छल । सुधाजीक पति रमेशजीक गुजरला किछु मास भेल छल । हुनकर क्रिया-कर्म में सव रिश्तेदार आयल छलाह ,मुदा आव सव रिश्तेदार अपना अपना घर चलि गेल छलाह । एहन नहि छल जे सुधाजी अकेले छलीह । हुनका दु टा बालक छलैन। दूनुक वियाह नीक परिवार मे भेल छल । पैघ बेटा सौरभक अपन कारोबार छल, हुनक कनिया रोहिणी गृहणी छलीह । छोट बेटा सुमन बाहर काज करैत छलाह । जाहि अफिस मे काज करैत छलाह ओहि ओफिस मे एकटा लड़की सँ हुनका प्रेम भऽ गेलनि । सौरभक वियाह भेलाक बाद रमेशजी के एहि सम्बन्ध मे पता चलल, तहन ओ सुधाजी सँ कहलखिन जे अहाँ सुमन से पुछू जे ई बात सही अछि। एक दिन सुधाजी फोन पर सुमनजी सँ पूछलखिन जे हमरा सबके सुनऽ मे आवैत अछि जे अहाँ कोनो लड़की पसंद केने छी । जौं ई बात सत्य अछि तऽ हमरा सबके वताऊ । हम सव पता लगावी जे ओ केहेन खानदान के छथि । एहि पर सौरभ कहलखिन,”माय ! हम अहाँ सँ किएक छुपायव, एकटा लड़की अछि जे अपने एरियाक अछि । मुदा बिना अहाँ सवहक सहमतिक हम कोनो बात नहि कहि सकैत छी ।” एहि पर हुनकर माय कहलखिन ओ तऽ ठीक अछि, मुदा जौं लड़की ठीक ठाक अछि आ परिवार ठीक अछि तऽ वियाह मे कोन अड़चन अछि । हमरा लड़कीक वायोडाटा भेजू आ लड़की के कहु जे
अपना घर मे बात करथीन । सुमनजी ई बात अपन प्रेमिका सँ कहलखिन तहन ओ राजी भऽ गेलीह । घर पर ओ फोनक माध्यम सँ अपना माय के कहलखिन, “माय ! सुमन नामक एकटा लड़का हमरा ओफिस मे काज करैत अछि । हुनकर स्वभाव बड्ड नीक अछि, जौं अहाँ हुनका बाबुजी आ माँ सँ बात करतहुँ तऽ नीक रहितै। ओना अहाँ सव सोचि लिअ।” लड़कीक बाबुजी सुमनजीक बाबुजी सँ बात कऽ शादीक लेल तैयार भऽ गेलाह । एहि प्रकार सुमनजीक वियाह भेल छल । वास्तव मे सुमनजीक कनिया सुंदर आ शुशील छलीह । सुमनजी दूनु प्राणी माय-बाबुजीक महत्त्व बुझैत छलाह । हुनकर शादीक किछु दिन भेल छल । परिवार मे एक दोसर सँ मिलान सेहो रहैत छल । सुधाजीक तबीयत खराब रहैत छल । जखन धरि रमेश जिवैत छलाह, खान-पान आ दवाईक पूरा ध्यान रखैत छलाह ।सुधाजी के कोनो तरहक असुविधा नहि होयत छलैन। मुदा रमेश जीक गुजरलाक बाद हुनकर जीवन अस्त व्यस्त भऽ गेल छल । बाबुजीक क्रिया कर्मक बाद सुमनजी आ हुनकर घरवाली के नौकरी पर जेनाई जरूरी छल । तैं ओ दूनु प्राणी ड्यूटी पर चलि गेलाह । हुनका दूनु आदमीक इच्छा छल जे माय हमरा संग रहथि । मुदा जखन ई बात परिवार मे राखलथि तहन सुधाजीक बड़की बहु कहलखिन, “देवर जी अहाँ दूनु गोटे तऽ नौकरी पर चलि जायव,माँ जी अकेले घर पर बोर हेथिन तैं हुनका एहि ठाम रहऽ दिअऊ । हम नीक सँ हिनकर देखभाल करव । एहि लेल अहाँ चिंता नहि करु । ओ ई बात एहि लेल कहलखिन जे बाबुजीक पेन्शन आव माय के मिलतैन ,जौं ई सुमनजी लग चलि जेतीह तहन पेन्शनक पाई तऽ सुमनजी लऽ लेथिन, तैं ओ सोचलथि जे माय के हम अपना पास राखी । धीरे-धीरे समय व्यतीत भेल सुमनजी माय के दवाई-वीरोक लेल सव महिना भैयाक खाता मे पाई भेज दैत छलखिन। सव किछु ठीक ठाक चलि रहल छल ।
समयक संग सुधाजीक तबीयत पहिले सँ खराब रहऽ लागल । सौरभ आ हुनकर घरवाली धीरे-धीरे एना मुँह मोड़ऽ लागलखिन जे मानु सुधाजी सँ हुनका कोनो सरोकार नहि छैन आ ओ अपना जिंदगी मे मस्त छलाह । एक दिन सुधाजी अपन पैघ बालक सौरभ के कहलखिन, “ बौआ हमर तबीयत ठीक नहि लागि रहल अछि । एक बेर डाक्टर सँ हमरा दिखा दिअ ।” एहि पर सौरभ जी कहलनि, “माय ! हमरा लग अखन समय नहि अछि । अहाँ अपने चलि जाउ ।” ताहि पर सुधाजी कहलखिन, “ बौआ ! अहाँ तऽ जानैत छी जे हमर हालत ठीक नहि अछि । कतहुँ चक्कर खा के गिर जायत छी ।” तखन सौरभ कहलनि, “माय सुमन के फोन कऽ हुनका सँ पाई मँगवा लिअ । ओ पाई भेज देताह तहन हम अहाँक डाक्टर लग लऽ जायव ।”
सौरभक बात सुनि सुधाजी हैरान रहि गेलीह आ कहलखिन-बौआ ! अखन तऽ सव महीना अहाँक बाबुजीक पेन्शन आवैत अछि, सुमन सेहो भेजने हेताह, अहाँ सेहो कमा रहल छी, तैयो अहाँ लग हमरा लेल पाई नहि अछि । सुधाजी ई बात सुनि बड़की बहू कहलखिन - “केहन अहाँ माय छी जे अपना बेटाक पाई पर नजरि राखैत छी । अखन कोरोनाक कारण सव काम धंधा चौपट भऽ गेल अछि आ सुमनजी तऽ नीक दरमाहा पावैत छथिन, हुनका लेल कोनो परेशानी नहि हेतनि ।” बहूक बात सुनि सुधाजी कहलखिन। “कनिया ठीक अछि । हमरा कनि सुमन सँ बात करा देव ।” ई सुनैत ओ अपना दीअर के फोन लगा कऽ सुधाजी के पकड़ा देलखिन । सुमनजी फोन उठेलखिन तहन सुधाजी कहलखिन, “हेलो बौआ सुमन !” ओम्हर सँ आवाज आयल, “माँ गोर लगै छी की हाल चाल । अहाँ कुशल मंगल सँ छी ने ? भैया भाभी कुशल मंगल सँ छथि ने ?” एहि पर सुधा जी कहलखिन, “बौआ हमर तबीयत ठीक नहि अछि तऽ हम सोचलहुँ जे डाक्टर सँ देखवा ली ।” एहि पर सुमनजी कहलखिन, “माय अहाँक तबीयत खराब अछि आ अहाँ अखन धरि सोचि रहल छी जे डाक्टर सँ देखवावी ।” एहि पर सुधाजी कहलखिन, “बौआ ई बात नहि अछि हमरा थोड़ेक पाईक आवश्यकता छल ।” एहि पर सुमनजी कहलखिन, “माँ ई बात पहिले बता देवाक चाही । ठीक अछि अखन हम भैयाक खाता मे पाई भेज दैत छी । अहाँ तुरंत डाक्टर सँ देखा लेव । हम अहाँ सँ बाद मे बात करव, पहिले भैयाक खाता मे पाई भेज दैत छी ।”ई कहि सुमन जी फोन राखि देलखिन आ सौरभक खाता मे पाई भेज देलखिन । दुपहर मे भोजनक समय मे जखन सौरभ खाना वास्ते घर एलाह तहन सुधाजी कहलखिन जे सुमन पाई भेजलक अछि । मोबाईल मे चेक करव पाई आयल अछि की नहि ? सौरभ अपन मोबाईल मे देखलैथि आ माँ के कहलखिन जे हाँ माँ मेसेज आयल अछि । सुमन पाई भेज देलक अछि, मुदा अखन डाक्टर लग नहि जा सकव किएक तऽ किछु ज़रूरी काम आयव गेल अछि, कनेक देर मे आवि रहल छी तहन अहाँ के डाक्टर लग लऽ जायव । सुधा जी मायूस भऽ बिछौना पर पड़ि रहलीह आ बेटाक अयवाक इंतजार करऽ लागलीह ।बहुत देर इंतजार करला पर जखन सौरभजी नहि एलाह तहन ओ अपना बहू सँ कहलखिन जे कनिया ! बौआ अखन धरि नहि आयल । अहीं डाक्टर लग हमरा लऽ चलू आ डाक्टर सँ दिखा दिअ । बुखार सँ हमर शरीर तपि रहल अछि आ देह सेहो तोड़ि रहल अछि । ई सुनि बड़की बहू कहलखिन, “अहाँ के तऽ दोसर कोनो काम तऽ नहि अछि , थोड़े थोड़े देर पर दर्द लऽ के बैसि जायत छी । अखन एक ठाम दर्द होयत अछि तऽ अखन दोसर ठाम दर्द होयत अछि । बुढ़ारी मे ई सव आम बात अछि आ ई लागले रहत । सदिखन अहींक सेवा सुश्रुषा मे लागल रहव तहन घरक काम कोना होयत ?” एहि पर सुधा जी कहलनि - कनिया हम सौरभ के कहने छलहुँ मुदा जरूरी काम पड़ि गेल हेतनि तैं ओ नहि एलाह अछि । सुमन सेहो हुनका पाई भेज देलकैन अछि ।” ई बात सुनैत ओ आगि बबूला भऽ गेलीह आ झल्लाईत कहलखिन जे हम की करी ? बाहर कोनो काम सँ गेलखिन अछि,जहन एताह तहन अहाँ के डाक्टर पास लऽ जेताह ।हम घर सम्भाली की अहाँक डाक्टर लग लऽ जाऊ । बिछौना पर पड़ल रहू । बेटा आवैत छनि तहन डाक्टर लग लऽ जेतनि ।एकहि बात के बेर बेर कहि हमर दिमाग खराब नहि करु । सुधाजी बहूक बात सुनि चुप भऽ गेलीह आ बिछौना पर लेट गेलीह । लेटल अपन हालत आ भाग्य पर सोचैत छलीह आ बेटाक इंतजार कऽ रहल छलीह जे कखन ओ घर एताह जे हम कहव बौआ हमरा डाक्टर सँ देखा दिअ ।इंतजार करैत-करैत सुधाजी थकि गेलीह राति भऽ गेल मुदा ओ घर नहि एलाह । राति मे लगभग ११ बजे घंटी बजल तहन ओ बुझलथि जे सौरभ एलाह अछि । ओ शराबक नशा मे धूत छलाह । चुपचाप अपना कमरा मे चलि गेलाह । एकहु बेर नहि पुछलखिन जे माय अहाँक तबीयत केहन अछि । सुधाजी सौरभक आवाज सुनि समझि गेलीह जे सौरभ आई नशाक हालत मे छथि ।एहि स्थिति मे हुनका कहनाई ठीक नहि छल तैं ओ चुपचाप बिछौना पर पड़ल रहलीह । दोसर दिश सुधाजीक देह मे जकड़न महसूस भऽ रहल छलनि । मन ठीक नहि रहलाक कारण ओ राति मे खाना सेहो नहि खेलीह । बिना खेने बिछौना पर दर्द सँ कराह रहल छलीह एहि बातक मलाल नहि तऽ सौरभ के छल आ नहि हुनका कनिया के छलनि ।
दोसर दिश सुमनजी दूनु प्राणी काम मे व्यस्त छलथि । देर राति घर एलाह तऽ हुनका ध्यान मे आयल जे मायक मन खराब छल । भैया के पाई भेजने छलहुँ जे माय के डाक्टर सँ देखा देवै । पता नहि ओ देखलखिन की नहि ? ओ सोचैत छलाह जे ओफिसक काम मे ततेक व्यस्त भऽ गेलहुँ जे मायक हाल-चाल सेहो नहि लऽ सकलहुँ। सुमनजी अपना घरवाली के कहलखिन, “देखु ने ! आई मायक तबीयत खराब छल । हमरा ओफिस मे फोन केने छलीह जे पाई भेज दिअ । हम डाक्टर सँ देखायव। हमर तबबीयत अखन ठीक नहि अछि । हम भैयाके पाई भेज देने छलियेन । पता नहि हुनकर तबीयत केहन अछि ।” एहि पर सुमनजीक धर्मपत्नी कहलखिन जे हम माँ के फोन लगा कऽ हुनकर हाल-चाल बुझैत छी । सुमनजी कहलखिन नहि अखन नहि । किएक तऽ अखन राति बेसी भऽ गेल अछि । माय सवेरे सुति रहैत छथिन । हुनका नहि उठाउ । भिनसरे माय सँ बात करव अखन चलु खाना बनाऊ तहन दूनु आदमी सोचैत छी जे की कएल जाय ? ई बातचीत करैत दूनु प्राणी खाना बनावऽ मे जुटि गेलीह । खाना बना कऽ दूनु आदमी खायत छलाह तखने सुमनजी कहलखिन जे हमर इच्छा होयत अछि जे कनि माय सँ भेंट कऽ आवि । रुकु कनि हम ओफिस मे बात करैत छी जे ओम्हर कम्पनी के कोनो काम अछि की नहि ? जौं ओम्हर कम्पनीक कोनो काम होयत तऽ कम्पनीक काम सँ चलि जायव । ई सुमन जी खाना खा कऽ अपना बॉस के फोन लगेलखिन जे ओम्हर कोनो काम वांचल अछि । हुनका पता चलल जे एक प्रोजेक्ट पर किछु आदमी काम कऽ रहल अछि मुदा प्रोजेक्ट पूरा नहि भऽ रहल अछि । बॉस कहलखिन जे हम तऽ चाहैत छलहुँ जे २-३ दिनक लेल अहाँ देख लेतहुँ तहन ठीके रहत। ओना एहि ठामक काम देख लिअ । एहि पर सुमन जी कहलखिन जे ठीक अछि हम ओझाजी सँ बात करैत छी जे एहि ठाम कोनो काम फँसल तऽ नहि अछि । जौं फँसल नहि होयत तहन हम ओम्हरे चलि जायत छी । सुमनजी ओझाजी सँ पुछि फेर बॉस के फोन केलनि जे एहि ठाम कोनो काम नहि फँसल अछि । हम काल्हि ओम्हरे चलि जायत छी । एहि पर बॉस कहलखिन जे ठीक अछि, अहाँ चलि जाउ देखव जे प्रोजेक्ट मे किएक देर भऽ रहल अछि । ओफिस मे बात करलाक बाद अपना कनिया सँ कहलखिन जे भिनसरे हम गाम दिश जा रहल छी । माय के सेहो देख लेव। ओहि ठाम एकटा प्रोजेक्ट पर काम रूकल अछि, सेहो देख लेव । ई सुनला पर सुमनजीक कनिया सेहो कहलखिन चलु ने हमहु एकटा मेल कम्पनी के डालि देवै । हमहुँ माँजी के देख आवैत छी । दूनु प्राणी अपन किछु कपड़ा बैग मे राखलथि आ भिनसरे गाम जयवाक लेल सोचलथि । भिनसरे दूनु प्राणी गाम आवि गेलाह । गाम मे सव सुतले छल । सौरभ हुनका देख चौंक गेलाह आ कहलनि, “छोटे ! अचानक गाम एलहुँ अछि, कोनो खास बात तऽ नहि अछि । सुमनजी हुनका गोर लागि कहलखिन, “नहि भैया ! हमर कम्पनीक एकटा प्रोजेक्ट अपने गामक बगल मे चलैत अछि,ओहि ठाम किछु काम अछि तऽ सोचलहुँ जे अहुँ सव सँ भेंट कऽ ली ।” सौरभजी कहलनि जे नीक केलहुँ,अपन घर एहिना यादि रखवाक चाही । जन्म स्थान बड्ड पैघ होयत छै ।
तकर बाद सुमनजी अपना माय के कमरा मे गेलाह । ओ सुतल छलीह, दूनु प्राणी हुनका उठा के गोर लागलखिन तऽ महसूस भेलनि जे मायक शरीर तऽ बुखार सँ तपि रहल अछि आ हुनका लग कोनो तरहक दवाई वगैरह सेहो नहि अछि । सुमनजी बेचैन भऽ कहलखिन - माय अहाँक देह तऽ तपि रहल अछि । अगल-बगल दवाई सेहो नहि देख रहल छी । काल्हि अहाँ डाक्टर सँ नहि देखेने छलहुँ की ? एहि पर सुधाजी कहलखिन जे काल्हि बौआ कोनो काम मे उलझि गेल छल, तैं हुनका फुर्सत नहि मिललैन । आई डाक्टर सँ देखा देथिन । सुमनजी जोर सँ सौरभ के कहलखिन - भैया ! कनी एम्हर आउ। सौरभ कहलनि - हाँ छोटे ! आवि रहल छी ।सौरभ के एलाक बाद सुमन जोर सँ कहलखिन - भैया देखू तऽ मायक देह तपि रहल अछि । अहाँ डाक्टर सँ नहि देखेने छलहुँ की ? एहि सौरभ जी कहलखिन - दरअसल में काल्हि हम एक जरूरी काम मे फँसि गेल छलहुँ । आई हम देखा दैत छी । ओना अहाँक भाभी सँ कहने छलहुँ जे जौं हमरा लेट भऽ जायत तहन माँ के डाक्टर सँ देखा देवै मुदा हुनका घरक काम सँ मौका नहि मिललैन । सुमनजी दूनु प्राणी चुपचाप सुधा जी के डाक्टर लग लऽ गेलखिन । ओहि ठाम बी पी चेक कएल गेल तऽ पता चलल जे बीपी बढ़ल अछि । डाक्टर साहब आओर टेस्ट लिखलखिन । सुमनजी टेस्ट रिपोर्ट डाक्टर के देलखिन । डाक्टर साहब कहलनि -मौसमी बुख़ार अछि , एक दु दिन मे ठीक भऽ जायत । बीपी आ शुगर दूनु बढ़ल अछि तैं आब हिनका बीपी आ शुगरक दवाई सेहो चलत । एहि पर सुमनजी कहलखिन - बीपी आ शुगरक दवाई तऽ चलि रहल अछि । सुमनजी माँ सँ पूछलखिन - माँ ! अहाँ बीपी आ शुगरक दवाई तऽ लैत छी ने ? एहि पर ओ बजलीह - हाँ बौआ ! पहिले तऽ लैत छलहुँ मुदा पिछला महीना दवाई खत्म भऽ गेल , तहिया सँ दवाई नहि खा रहलहुँ अछि । ई सुनि दूनु प्राणी अवाक रहि गेलाह । सुमनजी सव दवाई लऽ के माँ के घर आनलथि आ फेर अपना प्रोजेक्ट पर चलि गेलाह । हुनकर धर्मपत्नी सुधा के खाना खिला कऽ दवाई देलखिन । थोड़ेक देरक बुखार कमि गेलनि आ सुधा जी के नीन सेहो आवि गेलनि । प्रोजेक्ट पर सँ एलाक बाद सुमनजी सौरभजी के कहलखिन - भैया ! माय के सव महीना पेन्शन मिलैत अछि , दोसर दिश मायक दवाई- वीरोक लेल हम सव महीना पाई भेजैत छी । तैयो अहाँ माय के पिछला एक माह सँ बीपी आ शुगरक दवाई नहि दैत छी । आई धरि अहाँ सँ ई नहि पुछलहुँ अछि जे भैया अहाँ मायक पेन्शनक पाई की करैत छी ? हमरा कोनो आवश्यकता सेहो नहि छल, मुदा अहाँ के तऽ माय पर ख्याल रखवाक चाही । एहि पर सौरभ जी कहलखिन जे हम सव महीना दवाई तऽ आनवे करैत छलहुँ,पिछला महीना हमरा ध्यान पर नहि रहल तैं दवाई नहि आवि सकल।
दोसर दिन सुमनजी माय सँ कहलखिन - माय आव अहाँ हमरा लग रहु ।अहाँ के कोनो तरहक परेशानी नहि होयत । अहाँक तबीयत ठीक भऽ जायत तखनहि हम दूनु आदमी अहाँ के लऽ के जायव । सुमनजी दूनु प्राणी ओफिस सँ छुट्टी लऽ लेलथि आ गाम मे रुकि गेलाह दु दिनक बाद सुधाजी बुखार ठीक भऽ गेलनि तहन सुमन जी अपना भाई आ भाभी सँ कहलखिन जे हम माई के अपना लग लऽ जायत छी । एहि पर सौरभजी कहलनि - छोटे ! माय के एहि ठाम रहऽ दिअउ , ओहि ठाम हुनका दिक्कत हेतनि । आव बुढ़क शरीर अछि, अहाँ दूनु आदमी ओफिस चलि जायव,माय घर मे अकेले की करथिन । ई सुनि सुधाजी कहलखिन - नहि बौआ , हम सुमन संगे रहव हमरा एहि ठाम दिक्कत होयत अछि । अहाँ के तऽ हमरा डाक्टर सँ देखेवाक फुर्सत नहि रहैत अछि । सुमनजी दोसर दिन सुधाजी के अपना फ्लेट पर लऽ आनलखिन ओहि ठाम एक दाई ठीक केलनि जे दिन भरि हुनक देखभाल करथिन । साँझ मे दूनु प्राणी आवैत छलाह तऽ मायक संगे खाना खायत छलाह । आव सुधाजी आराम सँ छोट बेटाक संग रहैत छलीह ।
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