प्रमोद झा 'गोकुल'
आगाँ बढ़ल जारहल छी
ककरा कहू ?
के पतियायत ??
पतिया लिखि
अपने हाथे
पतिया कटै छी ।
दिन राति झटैछी
माथ अपन
भाउ ने क्यो दियय
तैयो भाव तकैछी ।
उधिया रहल मन मे
हठात बात वसात
झिज्झुर कोना कहि कहि
ओ कहय पू झात
बन्न बकार मुहँ मे
किछु नहिं कहि पबै छी
अपने हाथे अपन हाथ मचोड़ै छी ।
आगाँ सजल चिन्ताक तप्त पथ
निर्धूम अनल करय कह कह
जड़य तन सदिखन धह धह
इस्स !तक नै कहि पबै छी
आँखि मूनि आगाँ बढ़ल जा रहल छी ।
-प्रमोद झा 'गोकुल', दीप,मधुवनी (विहार), फोन-9871779851
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