
आशीष अनचिन्हार
दू टा गजल
१
उम्हर उड़लै लाखो जी
इम्हर टुटलै आसो जी
असगर बैसल आँगनमे
माटिक मूरत माधो जी
नहिए भेलै पुण्य शून्य
चलिते रहलै पापो जी
ईहो देखब जीवनमे
अपनो हँसतै आनो जी
हुनकर कर्मक पोखरिमे
नहिए लगलै थाहो जी
सभ पाँतिमे 22-22-22-2 मात्राक्रम अछि। दू अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट
लेल गेल अछि। ई बहरे मीर अछि।
२
पूरा धरती नापल ओ
चुप्पे चुप्पे कानल ओ
सुर लयकारी अनकर छै
अनके आशे नाचल ओ
सभटा माया हुनके छनि
चट हारल पट जीतल ओ
बिख माहुर ओ कीदन खा
कनियें कनियें बाँचल ओ
बड़का दुख अनचिन्हारक
चिन्हारक छै दागल ओ
सभ पाँतिमे 222-222-2 मात्राक्रम अछि (बहरे मीर)।
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