१५.कुमार विक्रमादित्य-गद्य सं पद्य धरिक सर्जन केर लेखा जोखा प्रस्तुत करैत पोथी-लेख रेख
कुमार विक्रमादित्य -संपर्क-7631713526
गद्य सं पद्य धरिक सर्जन केर लेखा जोखा प्रस्तुत करैत पोथी-लेख रेख
आजुक समय मे समय निकालि पोथी पढ़ब जतबे कठिन अछि ओहियो सं बेसी दुष्कर अछि ओहि पोथी पर नीक बेजाय लिखब । मैथिली मे समीक्षा आ समालोचनाक स्थिति ककरो सं नुकाओल नहि अछि । ओहो मे नीक लिखब तं आसान अछि मुदा मैथिली मे कोनो लेखनी मे कमी देखायब माने ओहि लेखक वा कवि सं सीधा दुश्मनी मोल लेब । वर्तमान शताब्दी धरि अबैत- अबैत मैथिली साहित्य मे सभ विधा आब अपन उन्नयन पर गर्व करबाक स्थिति मे अछि । मैथिली साहित्य मे उपन्यास, कथा, नाटक, कविता, निबंध, संस्मरण, आत्मकथा, जीवनी, ललित निबंध, गाम-नगरगाथा सभ विधा मे उन्नति भेल अछि ।
एहि पोथी मे लेखक प्रायः सभ विधा मे अपन समीक्षात्मक दृष्टि डालबाक प्रयास केने छथि । मैथिली साहित्य रसे-रसे सभ विधा मे अपन पएर पसारि रहल अछि । प्रकाशन सं पाठक धरि भने मूल्य खर्च क’ कें बेचबाक आ पढबाक प्रवृति नहि जागल होमय मुदा प्रयोगधर्मिता, भाषांतर, कथ्य, शिल्प मे नवीनताक बोध स्वाभाविक रूपे अकानल जा सकैत अछि ।
आलोचना- समालोचनाक काज दुरूह छै किएक तं हरेक दृष्टि सं धैर्यपूर्वक काज श्रमसाध्य होइत अछि । कोन चीज समाज कें दशा दिखाओत वा ओ समाज कें ग्राह्य अछि एकर निर्धारण आवश्यक होइत अछि । एहि लेल आवश्यक अछि पोथी केर अन्दर घुसि कें तथ्य कें बहार आनब ।ई पोथी सभ मिथकीय धारणा कें तोड़ि कें सोझा आओल अछि जाहि मे लगभग सभ ज्ञात विधाक पोथी समीक्षा के’ल गेल अछि ।हितनाथ झा जी एहि पोथी मे विगत दु-तीन दशकक कृति केर साहित्यिक विवेचन आ विश्लेषण केने छथि ।हिनक तथ्य केर उपस्थापनक ढंग विशेष रूपें परिचयात्मक अछि । जतय नव-पुरान सभ लेखक केर कृति एक ठाम पर देखार पड़त ।विभिन्न ठाम पर हिनक खोजि दृष्टि सं अभिभूत लेखनी हिनक पोथी कें आन पोथी सं फराक करैत छैक ।
कुल अठ्ठावन टा पोथी कें एक ठाम बान्हि कें राखल गेल अछि एहि पोथी मे ।नौ गोट उपन्यास, आठ गोट कथा संग्रह, एक टा नाटक, उन्नीस गोट कविता संग्रह, दु टा निबंध संग्रह, पाँच टा संस्मरण, छः टा समीक्षा केर पोथी, एक टा आत्मकथा, एक टा जीवनी, एक टा ललित निबंध, एक टा व्यंग्य, तीन टा नगरगाथा आ एक टा पत्रिका केर सुन्दरताक बखान अछि ई पोथी ।किछु पोथी दु तीन दशक केर पार सेहो जाएत अछि ई जेना बंगट बाबूक अंगरेजी उपन्यास भनहिं काया मे छोट होइत मुदा आइ सं सौ बरखक पहिलुका समाजक चित्रण अपने आप मे महत्वपूर्ण अछि । नन्दीपति दासक ई हास्य उपन्यास मैथिल लोकक नज़रि सं साफे दूर अछि मुदा, एही पोथी केर माध्यमे दोसर हरिमोहन झा कें तँ अकानल जा सकैत अछि ।लेखक लिखैत छथि जे ई पोथी समाजक कुप्रथा पर जबर्दस्त प्रहार करैत अछि।एहि पोथी मे हास्य तँ अछिये, चुभन सेहो, घुटन सेहो, चिंतन- मनन सेहो । येह अछि समीक्षक केर परिपक्व्ताक पहचान । चूँकि लेखक मैथिली मे बहुत दिन सं सक्रिय छथि तें हिनकर परिपक्व नज़रि सं सभ किछु फह्फह देखार पड़ैत अछि ।
उपन्यास कोनो कालखंडक वर्णन होइत अछि । नीक उपन्यास ओकरे कहल जाइत अछि जाहि मे पाठक कें अपनत्व बोधक भाव साफ़ झलकैत होमय। समीक्षाक पोथी जखन लिखल जाइत अछि तें एकर ध्यान अवश्य राखल जाइत अछि जे कोन पोथीक चयन केल जाय । ताहि मे लेखक निपुण छथि । केदारनाथ चौधरी केर उपन्यास अयनाक चयन तें लेखक केने हेताह ।अपन समीक्षाक क्रम मे ओएहि पोथी केर चर्चा करैत लिखैत छथि मिथिलाक सामाजिक – आर्थिक- साहित्यिक- सांस्कृतिक व्यथा कथा प्रेम अनुराग- विरागक सचित्र चित्रण, ह्रास होइत सभ्यता संस्कृतिक इतिवृति, हाहाकार करैत जीवनक मर्मस्पर्शी कथाक वर्णन ठीक ओहने जेहेन अयनाक प्रतिच्छवि देखार पड़ैत अछि । आगाँ ओ लिखैत छथि बिनु कोनो काट छाँटक, बिनु कोनो कृत्रिमताक भानक, बिनु कोनो आयात निर्यातक लिखल गेल अछि ई उपन्यास जकरा एहि पोथी केर माध्यमे साहित्यिक पुष्टता प्रदान के’ल गेल अछि ।आगां ओ लिखैत छथि जे अयना उपन्यासक शब्द लालित्य अद्भुत अछि । निश्चिते जाहि कथा आ उपन्यासक शब्द लालित्य नीक होइत अछि से उपन्यास नीके टा नहि दीर्घकालिक होइत अछि ।एहि पोथी केर माध्यमे केदारनाथ चौधरी केर वर्णन करैत लेखक लिखैत छथि जे मैथिली केर पहिल सिनेमा “ममता गाबय गीत”लेखक आ निर्माता केदारनाथ चौधरी छथि से महत्वपूर्ण । समीक्षा केर एक पहलू ईहो होइत अछि सूचना सम्प्रेषण-से एहि पोथी मे ठामे ठाम झलकैत अछि ।
हितनाथ झा जीक धियान मडर उपन्यास पर साफ छैन। भने सुभाषचंद्र यादव जी मडरक बहन्ने गारि कें सेहो उद्धरित कयने छथि आ ओ वेह लिखने छथि जे ओ सुनने छथि। मुदा, इशारा मे कहय सं भी काज चलि सकैत छल। मडरक मुख्य विन्दु अछि अविश्वास आ संदेह जकरा लेखक स्पष्ट करैत अछि। निश्चित रूपे ई काज एकटा सुयोग्य समीक्षक केर बुते ही संभव अछि। मिच्छामी दुक्कड़म उपन्यास केर समीक्षा काल मे हिनक लेखनी केर आरम्भ होइत अछि हुनका भेटल कीर्तिनारायण सम्मान कालक संस्मरण सं जे चेतना समिति केर मंच सं- जे महत्वपूर्ण अछि मनीष अरविन्द जीक परिचयक लेल। आगाँ ओ एक आदिवासी लड़की केर कथाक वर्णन केने छथि जे आदिवासी होइतों अहिंसाक पुजारी अछि। तहिना ओ नामवर सिंहक कथन केर चर्चा केने छथि जाहि मे हुनक मुँह सं निकलल वाक्य कतेक आह्लादित करैत अछि। आश्रयणी की यह शाम अविस्मरणीय है। समीक्षक आ पाठक मे बड़ पैघ अंतर होइत छैक । समीक्षक गुण -दोषक विवेचना करैत अछि आ आम पाठक मात्र लेखकक दृष्टि, लेखकक व्यापक सोच, लेखन शैली, विषयक ज्ञान, शब्दक चयन, संप्रेषणीयता, सत्यक निकटताक वातावरण निर्माण आदिक समावेशक संग उपयुक्त विधा कें चुनि-ओहि विधामे पाठक लग अपन रचना कें जं लेखक ठीक ढंग सं परसि दैत अछि आ पाठक कें पढ़बाक उत्सुकता जगबैत अछि, ओकरा जं पाठक सुरुचिपूर्वक ग्रहण क लैत अछि, तखने भेलाह लेखक सफल। तहिना नीक समीक्षकक काज सभ सं पहिने नीक पोथी केर चयन अछि एहि विशाल समुन्दर मे जे अनवरत बढ़ल जा रहल अछि। तकर बाद नीक सं पढ़ि कें महत्वपूर्ण बिंदु कें बहार आनब। कोन तत्व मे सम्पूर्ण किताबक सार पैसल अछि ओकरा फरिछायब। पंकज पराशरक जलप्रान्तर केर समीक्षाक क्रम मे हितनाथ झा जी लिखैत अछि जे ई किताब नहि दस्तावेज अछि जतय एक एक शब्दक महत्व अछि, एतय एको टा वाक्य नहि बेसी अछि आ नहि कम। एहि तरहक उपमा पोथी कें नीक सं मथलाक बादे देल जा सकैत अछि।
एहिना हिनक समीक्षाक कलम खाली पेज पर खूब चललनि अछि। भवेश चंद्र शिवांशुक उपन्यास सोनचिड़ैया मे हिनक कलम सुखान्त कहैत रुकैत अछि तं धीरेन्द्र कुमार झाक उपन्यास उत्तरार्द्ध मे कोर्टक गप्प करैत रुकैत अछि।
तहिना हिनक दृष्टि दिलीप झा जी केर उपन्यास सिराउर पर ई कहैत रुकैत अछि जे ई उपन्यास पलायन रोकबाक़ एक सफल कथ्यात्मक संग क़ृषि क्षेत्र मे तकनीकक दृष्टि सं सक्षम शिक्षित युवकक एहि दिस प्रेरणा जगेबाक सुंदर प्रयास छनि।
जखन हिनक कथा दृष्टि कें देखब तँ पोथी चयनक उत्कृष्टता नीक जकां जगजियार होइत अछि ।हिनक पोथी चयन एहि दृष्टि सं फराक अछि की फलना साहित्यकार बहुत पोथी लिखने छथि तें हुनके पोथी पर लिखब ।गपाष्टक केर अगर बात करी तँ ओ दमनकान्त झा जी केर छनि जे हुनक पहिल आ अंतिम पोथी अछि ।एहि पोथी केर चर्चा करैत ओ आकाशवाणी पटना आ दरभंगा केर चर्चा मोन पाड़ैत छथि जाहि मेकोनो महत्वपूर्ण बात कें हास्यक पुट दय श्रोताक लेल मनोरंजन प्रस्तुत कैल जाइतअछि ।ओहि चर्चा मे प्रो हरिमोहन झा, पंडित चन्द्रनाथ मिश्र अमर, डॉ भवनाथ मिश्र, प्रो शंकर कुमार झा आ दमनकान्त झा महत्वपूर्ण गप्प केनिहार छल । दमनकान्त झा जी केर एहि पोथी मे आठो कथा पर हास्यक स्पष्ट मुहर लागल अछि ।
ग्रिभांसक चर्चा करैत ई भीमनाथ झा जी केर वक्तव्य लिखैत छथि जे-'बहुतो लोक एहन छथि, जिनका कहबा लेल किछु छनिहो तँ समाजक डरें आ कि रोचें मुँह सीनहि रह' चाहैत छथि। मुदा, साहित्यकार जे होयत, से चुप नहि रहत, मुँह खोलबे करत, साहसपूर्वक अपन भावना कागतपर उतारबे करत। अमलजी से कयलनि अछि। बाजि तँ सकैत अछि सभ, मुदा कहय थोड़कें अबैत छैक। जकरा कहयाक लूरि छैक, ओकर बात फोंक नहि जाइत छैक, लोक बिच्चेमे छोड़ि के उठि नहि सकैत छैक। से जँ उठि गेल तँ बूझू कह' नहि अयलैक। हम नहि बुझेत छी जे अपने एहि संग्रहक कथा सभकें पढ़ब शुरू करव तँ बिच्चेमे उठि जायब। नहि उठि सकब । आ, सम्पन्न कयलाक बाद मनमे किछु अबस्से घुरघुराय लागत। से भेल तँ म' गेलाह लेखक सफल । पढ़लापर अपनहुँ मानब जे अमलजीक कथा निर्मल छनि-एकदम झकझक, पारदर्शी ।'वस्तुतः हिनक कथा एहि बिंदु केर आस पास मे घुमैत अछि ।समीक्षक केर नज़रि एलेक्शनक ड्यूटी सं आशादीप कथाधरि मे कथ्य मे विश्वसनीयता पर पड़ैत अछि।
ओहिना हिनक नज़रि अमरनाथ जीक कबकब कथा संग्रह पर बिनु नेमो केर बहुत बात कहि जाइत अछि ।मुदा मित्रताक बन्हन पुरनो पोथी कें हिनक सोझाँ आनने अछि से समीक्षक अपने स्वीकारैत अछि ।मंतोड़िया(महेंद्र नारायण राम) , चित्रांगदा(भवेश चन्द्रद् शिवांशु) , किछु नहि कहब(वीरेंद्र झा), ई फूलक गुलदस्ता(ऋषि वशिष्ठ)सं सोनू कुमार झा केर गस्सा धरि मे जतेक कथा अछि सभ पर हितनाथ झा केरअपन विमर्श अछि । बिना कोनो उपरागक ओ लगातार बढ़ि जाइत अछि ।
एहि पोथी मे एक गोट नाटक केर सेहो व्याख्या भेल अछि ।कमल मोहन चुन्नू केर नाटक ऑब्जेक्शन मी लार्ड पर हिनक विचार स्पष्ट छनि जे नाटक तँ देखबाक आ मंचनक चीज छी तें एहिपर विशेष तँ नहि मुदा,ई जरूर जे एहि नाटक कें समाजक बीच मंचन अवश्य हेबाक चाही जाहि सं स्पष्ट सन्देश लोक तक पहुंचे ।
हितनाथ झा जी एहि पोथी मे उपराग (रमानाथ मिश्र 'मिहिर'), अमरवाणी (वाणी मिश्र), आकार लैत शब्द, व्योममे शब्द (केदार कानन), जिनगीक ओरिआओन करैत (कुमार मनीष अरविन्द), सोनहुला इजोतवला खिड़की (सियाराम झा 'सरस'), दकचल समय पर रेख (कृष्णमोहन झा 'मोहन'),दुःस्वप्नक बाद (रमण कुमार सिंह), उजरा परबाक खोज (विनय भूषण ठाकुर), महानगरमे कवि (विनोद कुमार झा), चल जंगल चल, नशामुक्ति हित गाबी गीत (कुमार मनीष अरविन्द, कल्पना झा), नदीघाटी सभ्यता (रिंकी झा ऋषिका), बदलैत गाम (नवीन कुमार झा शरद), सोना आखर (मिथिलेश कुमार झा), राग उपराग (अमित पाठक), जन अरण्यक बीच (संतोष कुमार झा), औनी पथारी (सोनी नीलू झा), विनतीमे विश्वास (पूनम झा सुधा), कुरल (अनुवाद: कीर्तिनाथ झा) पर जे चर्चा अछि सभ परिचयात्मक अंदाज मे के’ल गेल अछि ।
एहि पोथी मे ज्योतिष बलदेव मिश्रक निबंध आखर अनंत केर संग चतुरानन मिश्रक विचारार्थ पर सेहो अपन विचार हितनाथ झा जी व्यक्त केने छथि ।तहिना समीक्षाक पोथी मैथिल यादव महासभाक योगदान (कैलासनाथ झा), रचना रसायन (ललितेश मिश्र), अनुसन्धान-प्रतिमान(रमानंद झा रमण), कालजयी कवियत्री(रामचंद्र मिश्र मधुकर), सामाजिक असंतोष आ मैथिली साहित्य(नीता झा), समालोचना श्री(अरविन्द कुमार सिंह झा) पर हिनक विचार किछु हद तक खुजलनि अछि ।किछु कमी सेहो परिलक्षित भेल अछि जे समीक्षाक महत्वपूर्ण आ सबल पक्ष होइत अछि ।
तहिना उदयचन्द्र झा विनोदक आत्मकथा हम परिनाम निराशा, मुरलीधर झा केर जीवनीक पोथी राष्ट्रपुजारी अटल बिहारी, नन्द कुमार मिश्र नंदनक ललित निबंध दिल्ली पार्क, अशोक जीक व्यंग्य नीक दिनक बायस्कोप, गाम नगर्गाथा सिरीज मे महेंद्र जीक धत्रीपात सन गाम, गिरीशचंद्रक शिवनगर आ वीरेंद्र झाक जयनगरक संग पंचानन मिश्र द्वारा सम्पादित पत्रिका बागमती दामोदर टाइम्स पर समीक्षक समीक्षाक पक्ष एहि पोथीक माध्यमे राखलैथ अछि।
एहि पोथी केर सृजनकर्ता हितनाथ झा जी केर पठनीयता केर हम दाद दै छियनि जे एक संगे विभिन्न स्वादक रसास्वादन निधोखे ओ केलैथ अछि । ई कोनो साधारण बात नहि छी । आजुक मोबाइल आ इंटरनेटक दुनिया मे समय निकलब लोक कें मोसकिल अछि मुदा क्यो एकांत मे पालथी मारि कें पोथी गुनय मे लागल अछि से महत्वपूर्ण । बैंकिंग सेवा सन मशीनी काज मे जिनगीक महत्वपूर्ण क्षण बितेलाक बाद पोथी पढ़ब, ओहि पर चिंतन करब आ फेर लिखब वस्तुतः हिनक विशेषता छनि । एहि पोथीक मादे नुकायल ढेर रास बात कें बहार आनि पाठकक सोझाँ आनब हिनकर जीवनक पैघ सफलता थिक । हम आशा करैत छी जे एहिना हिनक पोथी सभ बहरायत रहय ।ओनाहियोमैथिली केर समीक्षा क्षेत्र सीमित अछि ।एहि ठाम एहन साहित्यिक सोच बला केर बड्ड आवश्यकता अछि । प्रत्येक लेखक केर ई आश होइत अछि जे क्यो हुनक पोथी पर लिखय । बेसी लेखक केर प्रशंसासुनि मोन प्रफुल्लित भ’ जाइत अछि ।अगर क्यो कोनो कमी केर चर्च करय तँ लेखक केर मोन दुखी भ’ जाइत अछि ।शायद येह सोचि कें हितनाथ झा जी केरकलम समीक्षा केर परिचय करैत रुकि जाइत अछि ।ई लेखक केर मोन रखबाक वास्ते भनहि नीक होमय जे के संबंध करय मुदा समीक्षक अपन एकटा दायित्व सेहो होइत अछि । वास्तव मे स्वस्थ समीक्षा साहित्यकारक लेल एकटा आयना होइत अछि जाहि केंदेखि ओ अपन लेखनी मे सुधार आनैत अछि । खाली नीके नीक सुनि लेखकक धार कुंड होमय लागैत अछि से कोनो साहित्यक लेल नीक नहि । हमर कहबाक तात्पर्य ई कथमपि नहि बूझब जे समालोचनाक अर्थ जबरदस्ती कोनो विधा मे कमी ताकि साहित्यकार कें हतोत्साहित करब अछि । मुदा कमी कें बिना कोनो दुविधाक लेखक केर सोझाँ राखब समीक्षाक प्रथम दायित्व अछि नहि तँ- ओ समीक्षा प्रशंसात्मक वापरिचयात्मक रहि जाएत अछि । अस्तु !
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