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१७.डा. आभा झा -भाषांतरणक उत्कृष्ट प्रयास -कविता शम्भु बादलक

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डॉ. आभा झा

भाषांतरणक उत्कृष्ट प्रयास -कविता शम्भु बादलक

कोनो भाषाक साहित्यकेँ समृद्ध करबामे जहिना विशिष्ट मौलिक साहित्यक योगदान होइत छैक,तहिना नीक अनूदित रचनाक सेहो।जे अपन भाषा संस्कृतिसॅं प्रेम करैत छथि, भाषिक गौरव-बोधसॅं आप्लावित रहैत छथि आन भाषाक ज्ञान रखैत छथि ओहन नीक पाठक-लेखकक दायित्व होयबाक चाही जे कोनो उपादेय सामग्री जॅं कत्तहु देखना जाइ ओहिसॅं अपन भाषाक पाठककेँ लाभान्वित करथि। अनुवाद मात्र दोसर भाषा- भाषी पाठके टा लेल उपयोगी नहि होइछ, ज्ञानक प्रचार- प्रसार, सामाजिक सद्भाव सांस्कृतिक एकताकेँ सेहो रेखांकित करैत अछि।दू भाषाक मध्य परस्पर एकता विभिन्नता सेहो अनुवादक माध्यमसॅं स्पष्ट होइत अछि।

हॅं,एहिमे संदेह नहि जे अनुवादक काज मूल लेखनसॅं बेशी श्रमसाध्य होइत छैक।एहिमे मूल भाषा लक्ष्य भाषा दुहूक ज्ञान अभिव्यक्ति कौशलक अपरिहार्य आवश्यकता होइत छैक। जॅं नहि ’ परमहंस ‘Great goose’ सेहो बनि सकैत अछि।कथ्य एतबहि जे दुहू भाषाक स्वरूप , प्रकृति प्रवृत्तिक गहन अध्ययन-मनन कइएक’  अनुवादक सफल होइत अछि।

अनुवादक प्रसंग एतेक गप लिखबाक उद्देश्य मात्र एतबहि जे हाथमे एकटा महत्त्वपूर्ण अनूदित पोथी अछि जकर लेखक छथि हिन्दीक जानल मानल कवि ‘शम्भु बादल’,जे जनसरोकारक कवि छथि,उपेक्षितक नोर पोछनिहार कवि छथि, यथास्थितिवादसॅं मुक्तिक आग्रही कवि छथि। अनुवादक छथि ख्यात मैथिली कवि-लेखक-आलोचक ‘श्री हितनाथ झा’ यद्यपि गणित पढ़निहार अथवा बैंकिग सेवामे योगदान देनिहार लोककेँ सामान्यतया नीरस साहित्यसॅं विरत मानल जाइत छैक, मुदा मैथिली भाषा लेल सुखद संयोग अछि जे मैथिली लेल आत्मना समर्पित बैंककर्मी सभ सेवाकालहुमे उल्लेखनीय योगदान दए प्रशंसित भेलाह सेवानिवृत्तिक बाद ’ सहजहिॅं। आदरणीय रमानन्द झा रमण, आदरणीय प्रदीप बिहारी,श्री राजकिशोर मिश्र, श्री हीरेन्द्र कुमार झा, श्री उमेश मिश्र एहि श्रेणीक आन मैथिलीसेवीक शृंखलामे श्री हितनाथ झा जीक नाम जुड़ब सौभाग्यक गप। हितनाथ झाजीक विशेषता लेखन संपादन ’ छनिहे मुदा हिनका आमसॅं फराक बनबैत छनि हिनक त्वरित पठन पाठकीय टिप्पणी। प्रायः सभ विधाक पोथी रुचिपूर्वक पढ़ब ओहि मादेँ सामाजिक संजाल पर लिखब एतेक उपयोगी काज छैक जे सामान्य पाठक ’ रचनासॅं ’ परिचित होइते अछि, संगहिॅं ओकर विशेषता सेहो बूझि कए पोथी किनबा लेल प्रवृत्त होइत अछि। हमरा स्वयं इच्छा रहैत अछि जे किछु पढ़ी ’ ओहि पोथीक प्रसंग अपन बुद्धिक सीमामे दू आखर लिखी, मुदा अनेकानेक काजमे बाझल रहबाक कारण कतेक बेर संभव नहि भए पबैत अछि। किछु तेहने सन अहू पोथीक प्रसंगे भेल। पोथी भेटल फरबरीमे पढ़ि सकलहुँ जूनमे

मूल ’ सोझाँ अछि नहि, मुदा कविता सभ पढ़ैत काल अनुभवो कतए भेल जे भाषांतर पढ़ि रहल छी ।ई निराधार प्रशस्ति नहि अपितु अनुभूत तथ्य अछि जे क्यो एकरा पढ़ताह, अवश्य समानुभूति रखताह।

कविता सभमे सामाजिक विषमताक  सघन पीड़ा ,स्थानीय लोकक ’नमे संसाधनक अधिग्रहणक असंतोष आक्रोश तज्जन्य  प्रतिहिंसाक भावना कविक सहज अभिव्यक्ति ओहि पीड़ासॅं पाठकक तादात्म्य स्थापित कए दैत छैक तैं मोनमे प्रश्न उठिते नहि छैक जे लेखक हिनक कविता सभकेँ अनुवाद हेतु किऐक चुनलनि? हृदयकेँ स्पर्श करक क्षमता जाहि रचनामे हो रचना अपन मातृभाषामे सेहो आबओ, इच्छा सहज क्षमता सम्पन्न लोक द्वारा ओकर करणीयता अभिनन्दनीय अछि।

एहि पोथीक विषयमे आदरणीय कीर्तिनाथ झाक ‘जिनगीक रोशनी’ कहने छथि ’ आदरणीय केदार कानन नव स्वर-नव संधान कहने छथि।हुनकहि शब्दमे-

 ‘विश्वास अछि जे एहि अनूदित मैथिली कवितामे मानवीय जीवनक नव स्वर-संधान, नव आरोह-अवरोह, एकटा नव सुगंधक विस्तृत व्याप्ति रचल-बसल भेटतनि मैथिलीक पाठककें।’

झारखण्ड प्रदेश मात्र वन-सम्पदासॅं नहि, अपितु खनिजसॅं सेहो सम्पन्न रहल अछि।यदि वनप्रान्तीय जीवनक कष्ट सहब ओकर नियति ’ ओहि संपदासॅं प्राप्त धन सुविधा पर सेहो ओकर अधिकार होयब उचित। जॅं खनिज-क्षेत्रमे खेतीक अन्न पायब कठिन ’ ओहि प्राकृतिक उत्पादक मूल्यमे भाग भेटब सेहो जरूरी। किन्तु ’ की रहलैय’ - स्थानीय आबादी सभसॅं वंचित अछि, सुख-सुविधा ओकर हिस्सामे नहि बाहरी लोक ओतए मालिक बनि बैसल अछि।ई स्थिति ककरो विचलित-अधीर कए सकैत अछि परिणामत: नक्सलवाद पनपि,पसरि रहल अछि। जखन समस्या Survival केर हो ’ नीति-अनीति, उचित -अनुचितक बोध हेरायब स्वाभाविक।मुदा आजादीक एतेक बर्ख बितलाक बादो स्थितिमे बहुत परिवर्तन कतए आबि सकलै,सरकारो स्थानीय लोकक शिक्षा किंवा रोजगार लेल ’नसॅं  प्रयास कतए केलक,बस आश्वासनक ढोल टा बजबैत रहल अछि। सभ देखि कविक ’नमे  उद्भूत समानुभूति कविताक रूपमे नि:सृत भेल,जाहिमेसॅं किछु कविताक अनुवाद लेल चयन कए लेखक स्वागत योग्य काज कएलनि अछि। किछु कवितांश,जे हमर अन्तस् केँ स्पर्श कएलक,सोझां राखि रहल छी -

कोना सजाओल जायत अपन शहर?

नव कली

टटका फूल

मौलायल महुआक सवाल अछि।

विकासक नाम पर प्राकृतिक संसाधनक सीमातीत दोहन बाहरी भोगवादी संस्कृतिक पसार कतेक कष्टकारी होइछ बूझल जा सकैत अछि।

‘कोल्हा मोची’ बेटाक ढोल फोड़ब एक वाक्यमे उपेक्षा, असमानता अन्यायक भूमि पर विद्रोहक चिंगारीक खेरहा कहैत अछि।

परिस्थितिक अनुकूलताक निष्क्रिय प्रतीक्षासॅं नीक होइत छैक ओहि लेल कएल गेल संघर्ष - गप प्रतीकात्मक रूपमे कवि कहैत छथि- ‘मौसमकेँ हाँकि लाउ’ कवितामे

‘आउ बाघ’ शीर्षक कविता स्थानीय लोकक हितकेँ कात राखि बाहरी उद्योगपति लोकनिक आमंत्रणक माध्यमसॅं प्रभुवर्गक  लोभ, स्वार्थ जनताक संग अन्यायकेँ उघाड़ करैत अछि। एहि तरहेँ चहकैत चिड़ै,बुधन सपना देखलक,गुजरा आदि कविता अपन सम्प्रेषणीयताक कारण बहुत प्रभावी बनल अछि।

संक्षेपमे एतबहि जे अन्यायक अति सदैव प्रतिक्रियाकेँ जन्म दैत छैक।ई प्रतिक्रिया जॅं तन्त्र तन्त्रक तथाकथित पैरोकारक दृष्टिसॅं अनजाने अथवा स्वार्थक कारण जानि कए उपेक्षित होइत छैक,तखन समाजक समरसता शान्तिक गप दिवास्वप्न बनि जाइत छैक।त’शोषण दमनसॅं नक्सलवादक अंत संभव नहि, संभव छैक सामाजिक न्यायसॅं,संसाधनक समुचित वितरणसॅं सभक लेल मूलभूत आवश्यकताक पूर्त्ति सुनिश्चित कए। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहने छथि –

शांति नहीं तब तक जब तक
सुख -भाग सबका सम हो
नहीं किसी को बहुत अधिक हो
नहीं किसी को कम हो।

धृतराष्ट्र दुर्योधनक सभ किछु हड़प' बला प्रवृत्ति केहन विनाशक बीआ बाउगि कएलक, ककरहुसॅं नुकायल नहि। साहित्यकार समाजकेँ दिशा देबाक संग सत्ता केन्द्रकेँ ऐना देखबैत छैक,सावधान सेहो करैत छैक, हॅं गजबहीर लेखे धन सन!अस्तु।

कवि अनुवादक दुहूक प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करैत लेखनीकेँ विराम देब एहि कवितांशक संग -

रत्नगर्भा
हरियर-हरियर
उर्वर धरतीपर
भूखक ज्वाला
अपमानित करुणा
क्रान्तिकारी लालसा
फुलवा ' गेल कम्युनिस्ट
व्यवस्थाक विरोधमे।

 

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