प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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प्रणव कुमार झा

एक कप चाह 

 एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

हमर ठोरहक पुरना प्यास मेटा देलक ।

 

हृदयक कोठली मे पसरल छल गुज अन्हरिया

अहाँक नैनक जादू से ओ क्षण मे जगमगा उठल

अहाँक मुख पर देखायल जे चंद्रमा सन मुस्की

शोणितक कण मे बिजुरि बनि जगमगा उठल।

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक।

 

सखी! अहाँक हमरा सं आँखि चोरेनाइ

लजा क हमरा से एना रोज नुकेनाइ

हृदय मे कतेको चाकू-छुरी चला देलक

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक।

 चाहक प्याली में बसल अहाँक एहसास,

घूँट- घूँट में भफाइत अछि हमर जज़्बात,

सौंधगर भाप में घोराइल अहिंक मिठास,

गाछ तर भोरे खसल जेना महुआ के बास।

चाहक संग नै जानि की की पिया देलहु !

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक।

 
अहाँक उँगरीक अरहुल सन स्पर्श,

कप पकड़ाबैत ओ मनोरम संदर्श,

भऽ गेल जेना हृदय पर अंकित,

स्थिर मोनक स्पंदन बढ़ा देलक।

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक।

 

अहाँक ठोरह पर जखन चाहक कप सटल,

ओ सिहरन, ओ गर्मी, ओ एहसास अटल,

काश हमहु ओहि कप सन बनि जाय,

अहाँक ठोरह से छू के, अहीं मे समाय।

नैन मिलल त अहाँ फेर से लजा गेलहु

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक।

 

साँझक झरोख में जखन याद लुकायत अछि,

अहाँक मुस्की से फेर राति  जगमगायत अछि,

एक कप चाह आ एकटा मीठगर सन बात,

जेना प्रेम में घोराइत होय मधुरक सौगात।

यथार्थ से होइत स्वप्नमे ओझरा देलक

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक।

 

हमर निष्ठा पर आब तऽ विश्वास कऽ लिय

चाह त पिया देलहु, आब प्यार कऽ लिय

मानलहु अहाँक अछि, किछु सिहंता किछु इच्छा

पूरब अहाँक इच्छा, ई सिहंता जागा देलक

एक कप चाह अहाँक हाथ केर

जिनगी मे नव ताजगी जगा देलक।

 

-        प्रणव कुमार झा , राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड, नई दिल्ली

 

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