
लालदेव कामत
२ टा लघुकथा- अगों आ
वन्देमातरम
१
अगों (लघुकथा)
मिथिलांचल सँ बरदक संगे की - की ने उपटि गेलैक हेन। अगहन मास आबै सँ पहिने
बीबी गोल्ड धानक कटनी हटनीमे भ' गेल रहैक। गिरहत सब दौनी कराबय वर्गादार
केँ तगेदा कयल। थ्रेसर पर धरि एक खलिया बोरा लऽ गेल छल। से पाँचो कोला खेतक
मनजय देखय- सुनय लेल फराक - फराक दौनी कराओल गेल। आब नापी टीन सं करय लेल
उद्यत भेल नेवतिया तँ कुला बाबू हाँ- हाँ.... कहैत मना केलाह आ पाँच सूप
धान पृथक क' राखै ले कहलनि। हेमन्त ऋतु क' सुआगत धी- बेटी ऐ अगौं बाला धान
सँ गामपर करतीह। बेटेदारनि बजलीह बाबू यौ हमरो पोती मुरही किनय ले अँगो दू
सूप धान लिअ कहि गेल रहय से एकरंगकेँ दूठाम बाँटि दैत छीयैन। धरि अगों पहिले
जेकाँ आब जगजियार शव्द उच्चारित लऽ कछमछाईत रहल।
२
वन्देमातरम (लघुकथा)
पचता गहुंमक बौग भ' चुकल छैक। आरिक पछवरिया खेतिहर कमाल आ बकिम सेहो जऊ
बुनलक आ सुभाष केर जनमल बिहैन केँ धांगैत ट्रेक्टर पूभर ल' गेल। धरि पह -
नाला बनबैत अरविन - रविनके कवित् सुनि सबके सब मगन भऽ उठल रहय। जजात नोकसान
करबाक गप्प तर पड़ि गेलैक। केम्हरो सँ मोहन सेहो धराक दऽ आबि कहलक हौ कविजी
मदरसा टोलमे गाबल भ' गेलह तँ हमरा सँगे चलह ने। इयह धरती माय बाला गीत- वंदे
मातरम्..….. गाबि शिवालय पर सुनबिहय! ऐ सँ तँ एकता बढ़ै छै ने।
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