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कल्पना झा- मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान -18

कल्पना झा

(उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास' साहित्य अध्येता, आलोचक एवं कथाकार)

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान -18

मैथिली महाभारतक रचयिता 'व्यास' जी

 

किछु लोक 'व्यास' जी रचित मैथिली महाभारत केँ अनुवादेक रूप मे देखैत छथि। मुदा वास्तविकता की अछि से हुनकहि शब्द मे देखल जाए-

"हम महाभारतक अनुवाद नहि कएल अछि। मूल महाभारत (गीता प्रेस) केँ आगाँ राखि, ओकर यथासंभव सभ मुख्य बात केँ ध्यान रखैत, अपना हिसाबेँ सरिअबैत लिखैत गेलहुँ। हमरा विश्वास अछि, हमरा बुतें जे ई काज भेल से 'विष्णु-रूप व्यास'क कृपा सँ - ओएह जेना प्रेरित करैत होथि। तुलसीदास जेना लिखने छथि-'तस कहिहहुँ हिय हरि के प्रेरे। लिखैत काल प्रवाह मे जे छन्द जेना आएल गेल तेना लिखैत गेलहुँ। मैथिली मे '', '' एक मात्रिक एवं द्विमात्रिक दुनू होइत छैक। तदनुसार मैथिली शब्द सभ आबि गेलैक अछि। प्रेस कॉपी तैयार करैत काल आ मुद्रण करैत काल सेहो ई ध्यान राखल गेल जे जतए छन्द बदलैक, ततए किछु स्थान छोड़ि आगाँ बढ़ी। (संभवतः कतहु छुटिओ गेल हो) विज्ञ पाठक पढ़ैत काल छन्द पकड़ि लेताह, से विश्वास अछि। साधारणतः पूर्वक चौपाइ वा आनो भाषा छन्द रचना सभ मे प्रत्येक पाँती मे प्रायः पूर्ण अर्थ देबाक चेष्टा कएल जाइत छल। एहि मे ओहि रूपक बाध्यता नहि राखल गेल अछि, भाव आ प्रवाह केँ ध्यान मे राखि कए।"

'व्यास' जीक उक्त वक्तव्य सँ स्पष्ट अछि जे मैथिली महाभारत अनुवाद नहि अछि। वस्तुत: ई 'व्यास' जीक मौलिक कृति छनि। दू भाग मे लिखल गेल मैथिली महाभारतक पहिल भाग अछि 'आदि पर्व' आ दोसर भाग अछि, 'सभा पर्व; वन पर्व' महाभारतक रचना क' वस्तुत: अपन नामक सार्थकता सिद्ध कएने छथि 'व्यास' जी। एहि प्रसंगक चर्चा अपन लिखल "दू शब्द"क शुरुआते मे कएने छथि 'व्यास' जी। एक दिन गप्पक प्रसंग मे खरड़ख के श्री दयानाथ झा हँसैत कहने छलथिन, "हम अहाँ केँ 'व्यास' तखन बूझब जखन अहाँ 'महाभारत' लिखब।" से हुनकर बात 'व्यास' जीक मोन मे बैसि गेलनि जेना। आ ओ अपन नामक सार्थकता सिद्ध क' ' रहलाह।

'व्यास' जी रचित महाभारतक दुनू भाग अनुवाद तँ नहिए अछि, एकरा भावानुवादो नहि कहल जा सकैछ। ओ गीता प्रेस सँ प्रकाशित महाभारतक अध्ययन करैत रहलाह आ ओकर भाव ग्रहण कए अपन भाषा मे किछु नवीनता, किछु विशिष्टताक संग रचना प्रारम्भ कएलनि। जेना रामायण कइअक गोटे लिखलनि आ सभ रामायण मूले कहबैत अछि। जखन कि आदि काव्य तँ श्रीमद्वाल्मीकि रामायण अछि। तथापि बादक लिखल सभ रामायण मूले कहबैत अछि, चाहे ओ तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस होअए कि अद्भुत रामायण, आ कि कम्ब रामायण। मिथिलाभाषा रामायण होअए कि रमेश्वरचरित मिथिला रामायण। तहिना सभ महाभारत मूले कहल जाएत। चाहे ईशनाथ झा कृत होअए कि उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' कृत आ कि बुद्धिनाथ झा कृत ॐ महाभारत होअए। एहि मैथिली महाभारत मे 'व्यास' जी महाकाव्यक अनुरूपेँ अनेक छन्दक प्रयोग कएलनि अछि। ठाम-ठाम पर पाठक केँ अति-आकर्षक दोहा सभ भेटतनि पढ़बा लेल। तहिना रूपक आ अलंकार युक्त दोहा सेहो अभरतनि पाठक केँ। माने पढ़ि क' आनन्द आबि जेतनि, से निश्चित बात!

'व्यास' जीक अधिकतर मूल पोथी, जेना उपन्यास, कथा-संग्रह, कविता-संग्रह, खण्ड-काव्य, सभटा पातर-पातर पोथी सभ छनि। माने सए सँ कम पृष्ठक। मुदा महाभारतक दुनू भाग लगभग 270-270 पृष्ठक छनि। पहिल भाग, 'आदि पर्व' केँ दू पृष्ठक "दू शब्द"क अतिरिक्त 269 पृष्ठ मे समेटल गेल अछि। दोसर भाग लेल 'सभा पर्व' लिखलनि। 'आदि पर्व'क अपेक्षा 'सभा पर्व' बहुत छोट बुझना गेलनि। तैँ इच्छा भेलनि जे दोसर भाग मे 'वन पर्व'क ओतेक अंश द' देल जाए, जाहि सँ पुस्तक रूप मे 'आदि पर्व'क पुस्तक जकाँ, माने ओतबे मोटगर पोथी भ' जाए। आ सएह भेलनि अंततः। महाभारतक दुनू भाग लगभग समान आकार-प्रकारक पोथी अछि। दोसर भाग मे 'सभा पर्व' 'वन पर्व' मिला क' 265 पृष्ठ अछि। "दू शब्द"क चारि पृष्ठ छोड़ि क'। माने कुल 269 पृष्ठ दोसरो भाग मे। प्रायः दुनू पोथीक समान आकार-प्रकार पर ध्यान दैत 'वन पर्व'क किछुए अंश 'महाभारत'क दोसर भाग मे आबि सकल। दुनू 'महाभारत'क प्रकाशन सेहो संग-संग भेल अछि, एहन अनुमान लागि रहल अछि। ओना 'व्यास' जीक कोनो पोथी मे प्रकाशन वर्ष नहि भेटैत अछि। लेखक द्वारा लिखल "दू शब्द" मे निचाँ देल तिथिए केँ प्रकाशन तिथि मानल जाइत रहल अछि। तदनुसार पहिल भागक प्रकाशन 23 जून 1994 मे भेल अछि। एहि पोथीक विमोचन 'व्यास' जीक पटना स्थित निवास स्थान पर भेल छलए। विमोचनकर्ता छलाह सुरेन्द्र झा 'सुमन' आ विमोचनक तिथि छलए 22 जुलाइ 1994। से उक्त पोथीक इनर कवर पर भीमनाथ झाक कलम सँ अंकित अछि। एहि बात सभ सँ पोथीक प्रकाशन वर्ष 1994 होएबाक पुष्टि होइत अछि। आ 'महाभारत'क दोसर भाग 'सभा पर्व; वन पर्व' प्रकाशित भेल अछि सन् 1999 मे।

'व्यास' जीक इच्छा तँ छलनि जे सम्पूर्ण महाभारत केँ मैथिली साहित्य मे आनथि मुदा महाभारत ग्रन्थक विशाल आकार-प्रकार, श्लोकक भारी संख्या आ बएसक संग हुनकर अपन स्वास्थ्य गड़बड़ा जाएब, कारण रहल जे ई इच्छा अपूर्णे रहि गेलनि हुनकर। मुदा जतबे, जएह दू-तीन 'पर्व' केँ मैथिली मे आनि सकलाह, से हुनक अद्भुत काव्य-कौशलक परिचायक तँ अछिए।

रमण झा जीक पोथी (भारतीय साहित्यक निर्माता : उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास') जे साहित्य अकादमीक सौजन्य सँ सन् 2022 मे प्रकाशित भेलनि अछि, तकर किछु संदर्भ लेलहुँ अछि हम एहि लेख लेल।

 

संपादकीय सूचना-

1) रूबाइ अरबी-फारसी-उर्दूक एकटा कठिन विधा छै। एहि विधाक समग्र जानकारी प्राप्त करबाक लेल आशीष अनचिन्हारक पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास" पढ़ल जा एकै।

2) एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-

 

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-1

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-2

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-3

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-4

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