कल्पना झा- मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान -16

(उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास' साहित्य अध्येता, आलोचक एवं कथाकार)
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान -16
'व्यास' जीक
एकमात्र कविता संग्रह: प्रतीक
"मैथिली
साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा
'व्यास'
एवं हुनक परिवारक योगदान"
पर लिखा रहल सिरीज मे ओना तँ पूर्वहु मे हम
"तन्त्रनाथ-दग्ध
कवि होएबाक आरोप सँ आरोपित
'व्यास'
जी"
शीर्षक सँ एकटा लेख मे
'व्यास'
जीक कविता-लेखन
पर गप्प कएने छी। मुदा
'व्यास'
जीक एकमात्र कविता-संग्रह
"प्रतीक"
पर तेना भ'
क'
चर्चा नहि भेल छल एहि सिरीज मे। आ से चर्चा होएब आवश्यक बुझना गेल।
सैंतीस-अठतीस
वर्षक दीर्घ अवधि मे रचित लगभग सभटा
(किछुए
छूटल हेतनि)
मुक्तक कविता एहि पोथी मे संकलित छनि। कुल
29
गोट कविता मे सभटा कविता अपना तरहक,
विशिष्ट कविता सभ छनि। किछु महत्वपूर्ण कविता मे अछि
"सूर्य्य",
"निर्झर
नीर",
"बनफूल",
"शिशिर
मेघ",
"विद्यापतिक
मृत्यु",
"हरिद्वार"
शीर्षक सँ लिखल दू गोट कविता,
"वसन्त",
"जय
भारत",
"शारदा
विजय",
"मानभूमि",
"कातिक
धवल तिथि त्रयोदशि....",
"जरत्कारु
उपाख्यान",
"सौन्दर्य
बोध",
"प्रतीक",
"मेहक
बड़द जकाँ",
"हत्या",
"अभिनन्दन",
"आउ
दुर्गे",
"अन्तरिक्ष-यात्री",
"बाह
रे संसार,
देखले संसार",
"विद्यापति",
"सान्ध्य-प्रभात-तारा",
"जेठक
दुपहरिआमे",
"कौआ",
"ओ
गाछ"
शीर्षक कविता। सभ सँ नमहर कविता अछि
"शारदा
विजय",
जे शंकराचार्य-मण्डन-भारतीक
शास्त्रार्थ सन लोकप्रिय कथानक पर आधारित
अछि।
उक्त कविता-संग्रह
मे विषयक विविधता देखि पाठक निश्चित रूप सँ संतुष्ट आ उत्साहित होएताह।
किछु कविता ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित भेटतनि,
किछु पौराणिक। किछु कविता,
जेना
"सूर्य्य",
"निर्झर
नीर",
"बनफूल",
"शिशिर
मेघ",
इत्यादि प्राकृतिक विषय-वस्तु
पर आधारित
छनि। किछु कविता सामाजिक,
तँ किछु वैज्ञानिक विषय-वस्तु
पर सेहो लिखलनि अछि कवि। विज्ञानक छात्र रहलाह
'व्यास'
जी आ आगाँ जा क'
अभियंत्रण सेवा मे रहलाह,
तँ से कविता सभ मे यत्र-तत्र
ओकर प्रभाव देखाइ पड़ब अनर्गल नहिए बूझल जेतनि पाठक द्वारा। एहि तरहक
बात
'व्यास'
जी उक्त पोथीक
"दू
शब्द"
मे स्वयं लिखने छथि।
आ जैँ कि अभियंत्रण सेवा मे लागल रहलाह,
बाद मे बहुत नहि लिखि सकलाह। यथा रुचि,
यथा समय थोड़ बहुत लिखाइत रहलनि,
सएह। जे लिखलनि से
"स्वान्त:
सुखाए"
आ अपन जीवनक अभिलाषा जे छलनि,
मातृभाषा मैथिलीक किछु सेवा करी,
ताहि उद्देश्य सँ लिखलाह। अत्यधिक व्यस्तता रहितहुँ किछु-ने-किछु,
कविता वा अन्यान्य विधा मे लेखन-कार्य
करैत रहलाह
'व्यास'
जी। मां मैथिलीक चरण मे जएह किछु अर्पित क'
सकी,
से प्रयास रहलनि। आ ताही प्रयास मे बहुतो विधा पर कलम चलौलनि। उपन्यास,
कथा,
कविता,
खण्डकाव्य,
अनुवाद,
यात्रा-वृत्तान्त,
इत्यादि सभ किछु लिखलनि।
भगवान जानथि;
'व्यास'
जीक प्रारब्ध छलनि कि हुनकर अपन श्रम-साधनाक
फल,
आ कि एहन वरदान प्राप्त छलनि जे जाहि काज मे ओ हाथ लगौताह सफल होएबे-टा
करताह,
नाम-यश
कमएबे करताह। चाहे ओ साहित्य-सृजनक
गप्प हुअए
कि कर्म क्षेत्रक। सभठाम खूब मान-प्रतिष्ठा
भेटलनि हुनका। कोनो तरहक
'रोड-मैप'
होइक,
कि कोनो अन्यान्य पब्लिक सेक्टर संबंधी
'डिजाइन'
बनएबाक काज,
'एक्सपर्ट'
छलाह सभ काज मे। रिटायरमेंटक उपरान्तहु हुनका सँ संपर्क कएल जाइत रहलनि,
कोनो जटिल
'रोड-मैप'
वगैरह मे सलाह लेबाक लेल।
अरे...विषयान्तर
भ'
गेल। गप्प क'
रहल छलहुँ
'व्यास'
जीक एकमात्र कविता-संग्रह
'प्रतीक'क।
एहि संग्रह मे संकलित कविता सभ पढ़ि एकटा बात ईहो स्पष्ट भ'
जेतनि पाठक केँ जे कवि प्रयास कएलनि अछि कविता सभ छन्दोबद्ध रहए।
प्राचीन छन्दक प्रयोग बहुत ठाम देखा पड़त। तथापि छन्दोबद्ध रहबे करए,
आ प्राचीन छन्दक प्रयोग अधिकाधिक हुअए ताहि लेल कटिबद्धता कही कि
कट्टरता,
से नहि देखा पड़त कविक। माने कवि आधुनिकताक पक्षधर सेहो छथि,
आ नब-नब
छन्दक प्रयोग सेहो कएलनि अछि। कहबाक माने विविध विषय,
आ विविध शैली,
सभ किछु केर समावेश सँ स्पष्ट अछि जे कवि उदार नजरिया राखैत छथि। आ इएह
एहि कविता-संग्रह
कें विशेष बनबैत अछि। बल्कि कहबाक चाही,
इएह उदारता
'व्यास'
जीक साहित्य कें विशेष बनबैत अछि। समग्र रूप सँ।
'व्यास'
जी अपन किशोरावस्था मे छलाह,
तखनहि सँ किछु-किछु
लिखब शुरु क'
देने छलाह।
"दू
शब्द"
मे एहि बातक चर्चा ओ स्वयं कएलनि अछि,
"तेरह-चौदह
वर्षक अवस्था मे मिडिल स्कूलक एक पंडित जी हमरा
'व्यास'
कहए लगलाह। एहि आदर्शवादी उपनाम वा मां सरस्वतीक कृपा सँ दू,
तीनि वर्षक बाद हम किछु-किछु
कविता बनबए लगलहुँ।"
मुदा ओहि अल्प बएस सँ कविता लिखब शुरु करबाक
बावजूदो मात्र एकटा कविता-संग्रह
जोगर कविता लिखलनि ओ अपन जीवन-काल
मे,
से कनि अजगुत बला बात तँ बुझाइत अछि। एखनुक समय मे की महिला,
की पुरुष,
केओ जे कविता लिखए लागैत छथि,
तँ कविताक अम्बार लगा दैत छथि। एकहक साल मे दू-तीन
टा कविता-संग्रह
छपवा लैत छथि। आ
'व्यास'
जीक साहित्य-संसार
मे मात्र एकटा कविता-संग्रह।
संख्यात्मक दृष्टि सँ भले कम लिखलनि कथा,
कि कविता,
किछुओ। मुदा गुणात्मक दृष्टिकोण सँ की-केहन
आ कतेक महत्वपूर्ण काज क'
गेलाह,
से कहबाक बेगरता नहि अछि हमरा।
संपादकीय सूचना-एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-1
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-2
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-3
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-4
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