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कल्पना झा- मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान -17

कल्पना झा

(उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास' साहित्य अध्येता, आलोचक एवं कथाकार)

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान -17

अनुवादक 'व्यास' जी

'
अनुवाद' मात्र शब्दक परिवर्तन नहि। माने एक भाषाक शब्दक स्थान पर दोसर भाषाक शब्द लिखि देनाइ 'अनुवाद'क प्रक्रिया नहि। अपितु ई एकटा सृजनात्मक कार्य अछि। जटिल प्रक्रिया होइत छै 'अनुवाद'क। जतेक सहज बुझना जाइत छै लोक केँ, ततेक सहज काज छै नहि ई अनुवाद कार्य। मूल रचनाक आत्मा, भाव आ शिल्प, सभ किछु केँ ध्यान राखैत, दोसर भाषा मे ओहि सभ तत्व केँ जीवन्त राखए पड़ैत छै। कहबाक माने, नीक अनुवादक होएब सहज नहि। श्रमसाध्य काज अछि ई। किछु लोक तँ अनुवाद कार्य केँ मूल रचना सँ बेसी दुरूह कार्य मानैत छथि। अनुवाद विभिन्न भाषाभाषी समुदायक बीच सामाजिक-सांस्कृतिक सेतुक काज करैत अछि। आ तैँ साहित्यिक कृति सभक अनुवाद आवश्यक अछि, जाहि सँ कोनो महत्वपूर्ण कृति अलग-अलग भाषा आ सांस्कृतिक पृष्ठभूमिक लोक धरि पहुँचि सकए। ज्ञान आ कलाक संरक्षण संभव भ' सकए। विकास भ' सकए।
अनुवादकक समक्ष कइअक तरहक चुनौती मुह बओने ठाढ़ रहैत अछि। भाषाक विषमता, सांस्कृतिक संदर्भ, भाव-संप्रेषण आ व्याकरण आदि, सभ किछु केर ध्यान राखब आवश्यक रहैत छै एकटा अनुवादक केँ। संयोगवश कनिके टाक साहित्यिक यात्रा मे हमरहु एकटा मैथिली पोथीक अनुवाद हिन्दी मे करबाक अवसर भेटि चुकल अछि। तैँ हम बुझि सकैत छी/बुझैत छी, एहि प्रक्रिया मे 'की' 'केहन' चुनौतीक सामना करए पड़ैत छै। 'व्यास' जीक रचना-संसार पर नजरि खिराएब तँ सात टा पोथी अनुवादेक भेटत। आ सभटा निस्सन अनुवाद सभ छनि। स्तरीय अनुवाद। माने जतबा मूल रचना छनि हुनकर, बुझू ततबा अनुवादो कार्य कएलनि ओ। 'व्यास' जी द्वारा अनूदित पोथीक लिस्ट देखल जाए -
श्रीमद्भगवद्गीता - 1963
रुबाइयात--ओमर खैयाम - 1966
बाभनक बेटी - 1967
विप्रदास -1977
स्तोत्राञ्जलि - 1980
दो पत्र- 1984 स्वरचित मैथिली लघु उपन्यास "दू पत्र"क हिन्दी अनुवाद
श्रीकान्त प्रथम 'पर्व' - 1997
उक्त सभटा अनूदित प्रकाशित पोथी सँ पहिने विद्यार्थीए जीवन सँ 'व्यास' जी किछु अंग्रेजी कविता सभक मैथिली अनुवाद रहरहाँ करैत रहैत छलाह। माने जहिना 'व्यास' जी विद्यार्थीए जीवन सँ 'व्यास' बनि गेल छलाह, (केवल उपनामे मे नहि, वैचारिकतामे सेहो) तहिना विद्यार्थीए जीवन सँ ओ अनुवादक सेहो बनि गेल छलाह। हमर अनुमान अछि जे हुनकर पसिनक काज छलनि प्रायः अनुवाद करब। मनलग्गू काज।
पहिल अनूदित पोथी जे प्रकाशित भेलनि 'व्यास' जीक, से छलनि श्रीमद्भगवद्गीता। संस्कृतक ज्ञान सेहो नीक छलनि 'व्यास' जी केँ। संस्कृत आ मैथिली दुनू भाषा पर नीक पकड़ छनि अनुवादकक, से स्पष्ट परिलक्षित होएत अनूदित पोथी श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ैत काल। वेदव्यास रचित एहि महत्वपूर्ण पोथीक अनुवाद करैत भाव अक्षुण्ण रखबाक प्रयासे मात्र नहि देखा पड़त, ओहि प्रयास मे पूर्णतः सफल होइत देखा पड़ताह अनुवादक 'व्यास' जी।
आब गप्प दोसर अनूदित पोथी रुबाइयात--ओमर खैयाम पोथीक। 'व्यास' जी रुबाइयात--ओमर खैयाम पोथीक भूमिका लिखैत कहने छथि जे कोना आ कतेक मशक्कत क' ओ एहेन स्तरीय अनुवादक पोथी पाठकक सोझाँ परसि सकलाह। हुनकर कहब छनि, जे ओ अपन अनुवाद मे "रुबाइ"क मर्यादाक रक्षा करबाक भरसक प्रयास कएने छथि। संगहि यत्र-तत्र पद्य सभहिक मात्रा ओ आकार मे किछु विभिन्नता आनि क्रम-शैथिल्य -'मोनोटोनी' हटएबाक सेहो प्रयास कएलनि अछि। पद्यानुवाद मे यथासम्भव भाव एवं अर्थ केँ अक्षुण्ण रखबाक प्रयत्न करैत कतहु-कतहु देश-कालानुसारेँ सौन्दर्य अनबाक हेतु किछु परिवर्तन सेहो करए पड़लनि अछि 'व्यास' जी केँ, से ओ स्वयं स्वीकार कएलनि अछि। उक्त अनूदित पोथी "रुबाइयात--ओमर खैयाम"क संदर्भ मे एकटा गप्प कहब आवश्यक बुझना जाइत अछि। असल मे बहुभाषाविद् डॉ. अमरनाथ झाक इच्छा रहनि मैथिली मे "ओमर खैयाम"क पद्यानुवाद होअए। ई बात रमानाथ बाबू कहियो गप्पक प्रसंग मे कहने छलथिन 'व्यास' जी केँ। आ हुनकहि बातक मान राखैत 'व्यास' जी "रुबाइयात--ओमर खैयाम" पोथीक सृजन कएलनि। एहि पोथी मे 'ओमर खैयाम'क लगभग 800 सँ 1200 (संख्या मे मतैक्य नहि छनि शोधकर्ता लोकनिक) रुबाइ केँ 75 पद मे समेटल गेल अछि। एहि पोथी मे "ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार- किछु परिचय" शीर्षक सँ लिखल गेल 'ओमर खैयाम' सँ जुड़ल बहुत तथ्यपरक बातक चर्चा अछि, जे जिज्ञासु पाठकक मोन-प्राण लेल नीक खोराक कहल जा सकैछ। समग्रता मे कही तँ पठनीय ओ संग्रहणीय अछि ई अनूदित पोथी रुबाइयात--ओमर खैयाम।

'व्यास' जी द्वारा अनूदित तेसर पोथी "बाभनक बेटी" बङ्ग्लाक प्रसिद्ध लेखक शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायक लोकप्रिय उपन्यास 'बामुनेर मेये'क मैथिली अनुवाद थिक। चूंँकि मैथिल समाज मे सेहो बहु-विवाहक कुप्रथा छलए एक समय मे, आ बङ्ग्लाक सामाजिक व्यवस्था सँ अपना सभक साम्यता रहल अछि, तैँ एहि बङ्ग्ला उपन्यासक कथानक मैथिली-भाषी पाठक केँ रोचक लागि सकैत छनि, से सोचि उक्त उपन्यासक मैथिली अनुवाद करबाक विचार अएलनि 'व्यास' जीक मोन मे। सन् 1952 मे कएल एहि बङ्ग्ला पोथीक अनुवाद 1954 मे धारावाहिक रूप मे "मिथिला मिहिर" मे प्रकाशित भेल छल। जकरा बाद मे (1967 मे) बहुत लोकक आग्रह पर पुस्तक रूप मे प्रकाशित करबओलनि 'व्यास' जी। अविकल अनुवादक चेष्टा कएलो उत्तर मैथिल समाज केँ ध्यान मे राखैत कतहु-कतहु किछु-किछु बदलाव करए पड़लनि, से अनुवादक स्वयं स्वीकार कएलनि अछि। नाम ओ उपाधि मूलहि रहए देलनि। एकर पाछाँ कारण ई जे एक-आध बात एहि पोथी मे एहन वर्णित अछि जे मैथिल-ब्राह्मण समाज मे ग्राह्य नहि भ' सकैत अछि। तैँ एहन मे मिश्र, झा, पाठक, करब उचित नहि बुझना गेलनि 'व्यास' जी केँ। मैथिलक मर्यादा पर आघात भ' सकैत अछि, से सोचि बनर्जी, चटर्जी, आदि रहए देलनि अछि। सन् 1920 मे प्रकाशित शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायक लोकप्रिय उपन्यास 'बामुनेर मेये'क विभिन्न भाषा मे अनुवाद पहिनहि भ' चुकल छलए। जे एहि उपन्यासक लोकप्रियता मे बढ़ोतरीक कारण रहल। आ तैँ मैथिली मे अनुवाद करबाक इच्छा जागृत भेलनि 'व्यास' जीक मोन मे।
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व्यास' जी द्वारा अनूदित चारिम पोथी "विप्रदास" सेहो शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायक एकटा उत्कृष्ट बङ्ग्ला उपन्यास छनि। बङ्ग्ला पोथीक नाम सेहो छलए "विप्रदास" माने मैथिली अनुवाद आ मूल पोथी, दुनूक नाम एक्कहि। "विप्रदास" नायक प्रधान उपन्यास अछि। साहित्य सृजन करैत उदात्त चरित्र-चित्रणक पक्षधर रहलाह 'व्यास' जी। पक्षधर रहलाह कहब प्रायः अनुचित होएत, उदात्त चरित्र-चित्रण करब हुनका पसिन छलनि, से कहल जा सकैछ। जेहन ओ स्वयं छलाह। उदात्त चरित्रयुक्त। तेहने चरित्रक चित्रण अछि विप्रदास पोथी मे। आ तैँ 'व्यास' जीक मोन लोभाएल हेतनि एहि पोथीक अनुवाद करबाक लेल।
अगिला, माने पाँचम अनूदित पोथी जे छनि 'व्यास' जीक, से छनि "स्तोत्राञ्जलि" जे सन् 1980 मे प्रकाशित भेल अछि। एहि स्तोत्राञ्जलि पोथी मे संकलित अछि श्रीमद्भागवतक 'श्रुति-स्तुति', 'सौन्दर्य-लहरी' एवं 'शिव-महिम्न'क मैथिली अनुवाद। आ तकरा बाद मूल संस्कृत श्लोक सेहो देल गेल अछि। सर्वविदित अछि जे हमसभ मैथिल वैष्णव, शाक्त आ शैव, तीनू छी। माने हमर सभक परम्परा रहल अछि ई। शक्तिक उपासनाक संग भोला बाबाक भक्ति आ श्रीहरि विष्णु जीक पूजन-वन्दन, सभ किछु करैत आएल छी हम सभ, मैथिलगण। एही बात केँ ध्यान मे राखि 'व्यास' जी 'श्रुति-स्तुति'क अनुवादक बाद महादेवक स्तोत्र 'शिव-महिम्न'क चयन कएलनि आ तकर बाद भगवतीक 'सौन्दर्य-लहरी'क। एहि स्तोत्र सभक अनुवाद करैत 'व्यास' जी मूल भाव केँ अक्षुण्ण रखबा मे पूर्णतः सफल रहलाह अछि। संगहि ओकर अलङ्कारिता केँ विनष्ट नहि होमए देलनि अछि। कहबाक माने अनुवादक सभ तरहेँ नीक, स्तरीय अनुवाद करबा मे सफल रहलाह अछि।
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व्यास' जी द्वारा कएल गेल अनुवादक पोथी मे अगिला पोथी, माने छठम पोथी अछि "दो पत्र" स्वरचित मैथिली लघु उपन्यास "दू पत्र"क हिन्दी अनुवाद। जे 1984 मे प्रकाशित भेलनि। ई तँ स्वरचित मैथिली पोथीक अनुवाद छलनि, तँ स्वाभाविके सहज रहल हेतनि ई काज।

सातम अनूदित पोथी छनि श्रीकान्त (प्रथम 'पर्व') जे सन् 1997 मे प्रकाशित भेलनि। इहो पोथी शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायक एकटा लोकप्रिय बङ्ग्ला पोथी अछि, जे चारि 'पर्व' मे लिखल गेल अछि। तकरहि प्रथम 'पर्व'क अनुवाद कएलनि अछि 'व्यास' जी। एहि उपन्यास कें शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायक आत्मकथा सेहो कहल जाइत छनि। ओना उक्त अनूदित पोथीक 'दू शब्द' मे 'व्यास' जी एहि बातक चर्चा कएलनि अछि जे ओ, उपन्यास लिखबाक कला मे सिद्धहस्त शरत् बाबूक एहि चर्चित उपन्यासक प्रथम आ द्वितीय 'पर्व'क अनुवाद कएलाह अछि। मुदा प्रकाशित तँ मात्र पहिल 'पर्व' भेल छनि। माने दोसर 'पर्व'क अनुवाद 'व्यास' जी कएलनि से हुनकहि कथन सँ स्पष्ट अछि। एकर मतलब दोसर 'पर्व' अप्रकाशिते राखल छनि। मुदा ओहि अनूदित दोसर 'पर्व'क की भेलनि, कतए छनि, एहि संदर्भ मे निजगुत जनतब नहि भेटि सकल हमरा। जँ कतहु सम्हारि क' राखल हेतनि, तँ आबहु प्रकाशित कएल जा सकैत अछि। शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायक लेखनी सँ बेस प्रभावित छलाह 'व्यास' जी। आ तैँ हमर अनुमान अछि, श्रीकान्त उपन्यासक दू 'पर्व'क अनुवाद कएलनि, तँ निश्चिते तेसर आ चारिम 'पर्व'क अनुवाद करबाक इच्छा सेहो छल हेतनि मुदा क' नहि सकलाह, सएह कहबाक चाही।

'व्यास' जी द्वारा अनूदित एकटा आरो पोथीक विषय मे जनतब भेटि रहल अछि। काजी नजरूल इस्लाम जे प्रसिद्धिक शिखर पर पहुँचलाह "विद्रोही" कविता सँ, हुनकहि कविता सभक अनुवाद कएलनि अछि 'व्यास' जी। ई पोथी साहित्य अकादमीक सौजन्य सँ प्रकाशित भेल अछि, एहन सुनलहुँ अछि घरक लोकक मुहेँ। ई अनुवाद पोथी हमर पढ़ल नहि अछि, तैँ एहि पोथीक संदर्भ मे विशेष किछु कहब हमर साध्य नहि। जतबा जनतब हमरा भेटल, से एहिठाम लिखि देलहुँ अछि।

समग्रता मे देखल जाए तँ 'अनुवादक'क रूप मे सेहो 'व्यास' जी बहुत काज कएलनि आ माँ मैथिलीक चरण मे रंग-रंगक कुसुम अर्पित करैत रहलाह। 'व्यास' जी रचित अनूदित कृति सभक अध्ययन करैत कइअक बेर मोन मे आबैत अछि, एखन ओ सशरीर समक्ष रहितथि तँ हम अपन कतेक रास जिज्ञासा हुनका समक्ष राखि सकैत छलहुँ। आ संतोषजनक जवाब प्राप्त क' सकैत छलहुँ। एना अंदाजे हुनकर मनभाव बुझबाक चेष्टा नहि करए पड़ैत हमरा। खैर, जे-से। हमरा सभ लेल, माने हुनकर संततिक लेल गौरवक बात ई जे , ओ जतबा काज क' ' गेलाह से निस्सन काज मे गानल जाइत छनि। मैथिली साहित्य जगत मे जाहि मान-सम्मानक संग समादृत छथि 'व्यास' जी, से सभक भाग्य मे कहाँ!

संपादकीय सूचना-

1) रूबाइ अरबी-फारसी-उर्दूक एकटा कठिन विधा छै। एहि विधाक समग्र जानकारी प्राप्त करबाक लेल आशीष अनचिन्हारक पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास" पढ़ल जा एकै।

2) एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-

 

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-1

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-2

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-3

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-4

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-5

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-6

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-7

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-8

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-9

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मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-11

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मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-14

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-15

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-16

 

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