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निर्मला कर्ण
नारीक सम्मान
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पापी संसार ई सदिखन सँ,
नारी के छथि अपमान केने |
सब छलने छथि हुनका हरदम ,
आ हुनके छथि बदनाम केने |
मानव-दानव के बात छोड़ू,
देवो तs छथि यैह काज केने |
छलना नारी के संग केलनि ,
आ रक्षा सृष्टि के नाम देलनि |
नारी नहीं केलनि भूल मगर ,
सब हक दोषी ओ भs गेली |
पाप केलनि कोई आन मगर ,
नारी पापिन बुझना गेली |
वृंदा के पातिव्रत्य जखनि,
स्वर्गक गर्वत्व हरण केलनि |
पतिव्रत्य हरण के हेतु तखन,
वृन्दा संग गुरुतर छल भेलनि |
क्षण भर के लेल हरि के मन में ,
नहिं वृंदा लेल सन्ताप कोनो |
अपने भक्तक संग छलना में ,
हरि के बुझना नहिं पाप कोनो |
वृंदा के संग छल कs क,
हुनकर पति के संहार केलनि |
जलंधर के रण में वध करवा ,
मानवता के उपकार केलनि |
प्रभु के वरदान पाबि वृंदा ,
प्रातः स्मरणीया देवि भेली |
प्रभु के पटरानी होईतो धरि,
वृन्दा जग में पथभ्रष्टा नाम पेली |
रणनीति बनाक छल केलनि ,
तखनो प्रभु के किछु दोष नहिं |
पावन, सती,अबला वृन्दा के ,
ई जग कहलक निर्दोष नहिं |
हे अखिल विश्व के रचयिता ,
स्वीकार करू करबद्ध नमन |
विनती सुनियौ हे जगतपिता ,
हमर सम्मान राखु हे कमलनयन |
हम सब नारी छी सृष्टि कर्ता ,
निर्देश अहाँ सs पाबि प्रभु |
ई गुरुतर हम भार लेलहुँ,
आदेश अहिं के मानि प्रभु |
बस एक प्रार्थना अछि प्रभुवर ,
निर्दोषे दण्ड ने पाबी हम |
अनकर पापकर्म कलुषित ,
के बोझ ने आब उठाबी हम |
हे जगत नियंता सुनु विनय ,
जग में वितरित करु दिव्यज्ञान |
अहिं सन जग में न्याय होए ,
धरती के नर होय नारायण |
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