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निर्मला कर्ण
ममताक सम्मान करु
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माय के वन्दन के करथि,
माय के अभिनन्दन के करथि |
सब स्वार्थ में छथि भेल दृष्टिहीन,
माय के अवलंबन के बनथि |
माय के रुधिर सँ सिञ्चित भेलथि,
आ रूप मनोहर पाबि लेलथि |
मातृ-स्नेह सँ सज्जित भs क,
प्रज्ञा जखनि निखारि लेलथि |
पाबि जगत सँ सम्मान तखनि,
बिसरा गेल मायक अँचरा छनि |
लक्ष्य अपन पौलथि जखने,
आब कोनो जोकरक नहि ममता छनि |
भूलल बिसरल स्मृति में माय,
एक कोन में आब परल रहली |
अपने सन्तानक सम्मुख माय,
हिरणी सँ भीत बनल रहली |
माय के सुधि लेमय वाला,
नहि आई छथि कोनो सपूत |
मायक दुःख करता की,
देख पराई छथि ओ कपूत |
मायक स्नेह बिसारि अहाँ,
पायब अपन पहचान कहाँ |
किछु श्रेष्ठ जगत के दs पाबी,
आब ततेक रहब ऊर्जावान कहाँ |
जड़-मूल नष्ट तs कय लेलहुँ,
शाख कहाँ रहि पाओत आब |
सब पात तना फल सूखि जायत,
झरि माटि में मिलि जायत आब |
आबहु चेतू आबहु सम्हरु,
ममता के नहि अपमान करु |
माय छथि गँगा जमुना ओ सरस्वती,
एहि सलिल-सँगम में स्नान करु |
ममता छूटत तs जग रुसत,
ओ स्नेह कहाँ फेर पायब मनु |
ईश्वर छथि मायक ममता में,
से कहियो धरि बिसरायब जनु |
माता आओर धरती माता,
दूनू छथि जग के जीवन-दायिनि |
हिनकर रक्षा में तत्पर रहि कs,
रोकब अपना सबहक जीवन-हानि |
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