प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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आभा झा

भाषा आ संस्कृतिक वैश्विक प्रसार लेल दत्तचित्त ठाकुर परिवार

हिन्दीमे कतौ पढ़ल छल-

जीवन हमें भूलता नहीं तीन ही के प्यार से
माता, मातामही औ मातृभाषा ज्ञान से।

एतय हम माताक बाद मातामही किऐक, पितामही किऐक नहि, एहि विवाद में नहि जा मातृभाषाक गौरवपूर्ण स्थान मात्रकेॅं रेखांकित करए जा रहल छी। एहि क्रममे भारतेन्दु हरिश्चन्द्रक- निज भाषा उन्नति अहै सभ उन्नति को मूल- सेहो मोन पाड़ैत चली आ प्रमुख रूपसॅं मोन पाड़ी मैथिलीक प्रकृत कवि सीताराम झाकेॅं,जे लिखने छथि-

" पढ़ि लिखि क' जे नहि बजै छथि निज भाषा मैथिली
मन होइछ जे झिटुका रगड़ि, कान दूनू ऐंठि ली।"

कविवरकेॅं ई लिखबाक आवश्यकता किएक पड़ल हेतनि, तखने न जखन ओ देखने हेथिन तथाकथित पढ़ुआ लोकनिकेॅं हिन्दी- अंग्रेजी छॅंटैत, धिया-पुताकेॅं अपटुडेट बनयबाक क्रममे मातृभाषाक निरादर करैत, अपन जड़िकेॅं बिसरि फुनगी पर चढ़बाक लिलसा पोसैत! ई स्थिति तखनहि अबैत छै, जखन शिक्षा सतही होइ छै, अपन भाषा आ संस्कृतिक प्रति गौरव-बोधक स्थान पर हीनता ग्रन्थि मनमे जड़ि जमौने रहैत छैक।
अपन मूल, अपन भाषा किंवा परंपराक प्रति हीनभावनाक ई स्थिति तखनहि छलैक, से नहि,आबो छैक। कारण की, वैश्विक दुनियांक योग्य अधिकारी बनबा लेल अंग्रेजीक सर्वोच्चताक मानसिक दासता, किछु-किछु विवशतो कहल जा सकैछ। मुदा जे डिग्री आ शिक्षामे,पद आ चरित्रमे,लाभ आ गौरवमे अंतर बुझैत अछि ओ रोजी- रोटी लेल आन विषय वा भाषाक आश्रय लैतो अपन माय आ मातृभाषाक प्रति कर्ममय निष्ठा रखैत अछि, यथाशक्ति ओकर संरक्षण- संवर्धन आ सम्मान लेल प्रयत्न करैत अछि।

प्रश्न उठि सकैछ -एतेक भूमिकाक प्रयोजन की? प्रयोजन मात्र एतबहि जे हम रेखांकित कए सकी गजेन्द्र ठाकुर जीक कर्तृत्वकेॅं जे बिनु हो हल्ला अपन भाषा लेल अभूतपूर्व योगदान देबामे दत्तचित्त छथि, सदेह उपस्थितिसॅं यथाशक्ति बचैत विदेह ई-पत्रिकाक सम्पादन करैत, समयोचित तार्किक लेखकीय आवदानसॅं उपकृत करैत, प्राचीन कालक उपयोगी सामग्रीक संरक्षण करैत, अपन भाषा आ लिपिकेॅं सामान्य आ दिव्यांग दुहूक लेल सुलभ बनबैत वस्तुत: -गजे जकाॅं अपन बाट पर निर्भय चलैत जा रहल छथि। हुनक आ हुनक अर्धाङ्गिनीक विषयमे जे किछु समय- समय पर विभिन्न लेखक द्वारा लिखल गेल आलेखक संचयन कए आशीष अनचिन्हारक सम्पादनमे एकटा वृहत् पोथी आयल जकर उद्देश्य अछि हुनक कर्तृत्वक विभिन्न पक्षकेॅं एकठाम आनि पाठकक सहूलियत।पोथीक नाम अछि -प्रीति कारण सेतु बान्हल।

सभसॅं पहिने नामेक गप! जानि नहि सम्पादक पोथीक नाम की सोचि रखलनि, मुदा हमरा बुझायल जे मातृभाषाक प्रेमक कारण जे भाषाक महार्णव पर कविता,कथा,लेख, सम्पादन, पञ्जी विषयक शोध,लिपिक प्रसार, लिप्यंतरण आदि अनेक मजगूत खाम्हक आधार पर जे मजगूत सेतु बनौलनि,हुनक जीवन वृत्तक विषयमे लोककेॅं ज्ञान होमय,ओहि सेतु पर चलि आगाॅंक बाट अन्वेषण कए सकय। अस्तु,एहि विषयमे प्रामाणिक गप तऽ सम्पादके कि लेखक स्वयं कहि सकै छथि।

आब पोथीक विषयमे संक्षिप्त विचार करब। जे कि ई विभिन्न वरेण्य लेखक गण द्वारा गजेन्द्र ठाकुर एवं हुनक सहगामिनी प्रीति ठाकुरक मैथिली साहित्य एवं मैथिल संस्कृति लेल देल गेल अवदान विषयक लेखक संग्रह अछि, तैं स्वभावत: एहिमे प्रशंसात्मक तथ्यक प्रधानता अछि। गोटेक लेखमे एकाध ठाम प्रश्न अवश्य अछि, मुदा ओ तरकारीमे नून बरोबरि। सत्ताइस टा लेख गजेन्द्र ठाकुरक व्यक्तित्व आ कृतित्वक ऊपर अछि, जाहिमे विदेह डिजिटल पुस्तकालयक विशिष्टता, इंटरनेट मैन रूपमे गजेन्द्र ठाकुरक स्मरण, पञ्जी प्रबंधन संरक्षणमे हिनक भूमिका,पत्रिका, कोश आ साहित्यिक कृतिक मूल्यांकन आदि विषयक सविस्तर उल्लेख अछि। दू टा साक्षात्कार सेहो अछि, गप-शपमे मुन्नाजीक प्रश्नावलीक उत्तर फैलसॅं देने छथि लेखक, मुदा ईमेलक माध्यमसॅं आशीष अनचिन्हारक साक्षात्कारमे प्रश्नक आकार पैघ आ उत्तर अत्यंत संक्षिप्त संतुलित। ई गप सही अछि जे वस्तुत: काज करबाक इच्छा रखै बला लोक आलोचना प्रत्यालोचनासॅं दूर एकनिष्ठ काज करैत रहैत अछि, आत्मप्रशंसाक खगता ओकरे पड़ै छै जकरा स्वयं पर विश्वास नहि रहैत छैक।
लेख सभक विषयमे विस्तृत विवेचन कए हम पाठकक उत्सुकता कम करबाक मंशा नहि रखैत छी। पाठक स्वयं पढ़थि, आन-आन लेखक लोकनिक गजेन्द्र ठाकुरक विषयमे मंतव्य जानथि, विदेह पुस्तकालयमे टहलथि- बूलथि आ अपन मत बनबथि।

हॅं, पोथीक दोसर खण्डमे जतय प्रीति ठाकुरक रचना संसार पर आधृत लेख सभ अछि, अवश्य कनेक बूलय-टहलय चाहब। ई अत्यंत हर्षक गप जे मैथिली चित्रकथाक रूपमे हिनक योगदान, जे एहि क्षेत्रमे प्रथम मानल जाइछ, अत्यधिक लोकप्रिय आ तैं प्रशंसित अछि। एकटा स्त्रीकेॅं नीक जकाॅं बूझल रहैत छैक जे धिया पुताकेॅं कोन चीज बेशी आकर्षित करतै। ताहू पर ओ स्त्री जॅं संवेदनशील हो, साहित्यिक रुचि- प्रवृत्ति रखैत हो आ चित्रकलाक शौकीन हो तखन तऽ बालोपयोगी सामग्री निस्संदेह एबे टा करतै। बाल मनोविज्ञानकेॅं ध्यान रखैत प्रीति जी चित्रकथाक रूपमे प्राचीन जनश्रुति आ लोककथासॅं सेहो परिचित करबैत छथि आ अनुवादक क्रममे सेहो बाल-साहित्येकेॅं प्रमुखता दैत छथि। हिनक रचना- संसार पर आठ गोट महत्त्वपूर्ण लेख पोथीमे समाहित अछि। सत्य कही तऽ हुनक रचनादिक विशेषता बुझबा लेल ई लेख सभ पर्याप्त अछि। जे किछु अनदेखार रहि जाइछ ओ आशीष अनचिन्हारक लेख - मैथिली चित्रकथाक प्रारंभिक इतिहास आ हुनकहि द्वारा लेल प्रीति जीक साक्षात्कारसॅं देखार भए जाइत अछि। हॅं, अहू साक्षात्कारमे प्रश्नकर्ता बेकछा कऽ प्रश्न पुछैत छथि आ प्रीति जी नापि-तौलि कऽ उत्तर दैत छथि। चित्रकार प्रीतिजी अपन शब्दसॅं बेशी तूलिकासॅं भाव व्यञ्जित करैत छथि आ अपन विशिष्ट स्थान बनबैत छथि।

ओना हम उनटा क्रमसॅं चलि रहल छी, तथापि पहिल खण्डकेॅं छाड़ि कथ्य समाप्त करब अनुचित होयत।ओ अछि सियाराम झा सरस केर लेख-करोट फेरैत गामक निदर्शक कृपानन्द ठाकुर। सत्य पूछी तऽ ओहि लेखमे तात्कालिक पृष्ठभूमिक संग कृपानन्द ठाकुर जीक चारित्रिक दृढ़ताक जे वर्णन अछि ओ संकेतक अछि गजेन्द्र ठाकुरक व्यक्तित्वक आधारक। बाढ़हि पूत पिता केर धर्मे- ई कहबी लेखक अनुसार सार्थक भेल अछि हिनक परिवारमे।

आ अन्तमे जॅं आशीष अनचिन्हारक सम्पादनक गुरुतर दायित्वक जॅं चर्च नहि हो तऽ काज अपूर्णे रहि जायत। अपन दू दू टा विस्तृत लेख, साक्षात्कार, चित्र संग्रह आ संयोजनक संग आन आन रचनाकारसॅं लेख लय ओकरा छपबाक सभटा काज नीक जकाॅं निमाहैत ओ साधुवादक अधिकारी छथि। कोरोनाकलमे बेशी काज आनलाइन करबाक कारण आँखि लंबा आनलाइन पाठ्य सामग्री पढ़बाक अनुमति नहि दैत अछि, तैं पोथी रूपमे सामग्री पाबि हम व्यक्तिगत रूपसॅं लाभान्वित भेलहुॅं आ हमरा सन अनेक लोक लेल ई लाभकारी सिद्ध भेल होयत। गतगर पोथी, स्पष्ट छपाइ,पैघ सुपाठ्य फोन्ट आ गंभीर लेख सभसॅं संयुक्त ई पोथी पठनीय आ मननीय अछि।लेखक लोकनिक अभिनंदन, गजेन्द्र ठाकुर जीक हुनक साइलेंट काज लेल वर्धापन आ संपादक मंडलक प्रति धन्यवाद।

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