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निर्मला कर्ण (१९६०- ), शिक्षा - एम. ए., नैहर- खराजपुर, दरभङ्गा, सासुर- गोढ़ियारी (बलहा), वर्त्तमान निवास- राँची, झारखण्ड। झारखंड सरकार महिला एवं बाल विकास सामाजिक सुरक्षा विभागमे बाल विकास परियोजना पदाधिकारी पदसँ सेवानिवृत्ति उपरान्त स्वतंत्र लेखन।
(अग्नि शिखा मूल हिन्दी- स्वर्गीय जितेन्द्र कुमार कर्ण, मैथिली अनुवाद- निर्मला कर्ण)

अग्निशिखा खेप -३८

पूर्वकथा

राजा पुरूरवा के विक्षिप्त अवस्था में सेनापति वन सौं लs कs आपस अबैत छथि, आ हुनक चिकित्सा प्रारंभ होइत अछि l
               
आब आगू

किछु दिन धरि महामात्य एहि आशा में शासन करैत रहलाह जे हुनकर सम्राट ठीक भs जयथिन्ह, मुदा हुनकर आस चकनाचूर भs गेलनि। राजा ठीक नहि भेलाह, ओ ओहिना विक्षिप्त सन रहलथि। अंततः थाकि हारि गेलाक बाद ओ महान विद्वान, ऋषि लोकनि सँ पुछलथि आ कुलपति वशिष्ठ केँ आमंत्रित कs अपन समस्या हुनक सोझाँ राखि राजाक स्थितिक विस्तृत विवरण देलखिन्ह हुनका । पुनः हुनका सँs उचित परामर्श मंगलथि । कारण राज्य चलाबय लेल राजा रहब आवश्यक अछि, सब गोटे आपस में चर्चा कय सर्वसम्मति सँs निर्णय लेलथि जे पुरूरवाक ज्येष्ठ पुत्र आयु के राज्याभिषेक कयल जाय।
आयु केँ कुलपति वशिष्ठ द्वारा श्रेष्ठ ऋषि लोकनिक मार्गदर्शन में राज्याभिषेक कयल गेलनि।ओ राज्यक सिंहासन पर बैसलथि। राज्य केँ राजा भेटलन्हि, मुदा ओ अनुभवहीन आ युवा छलाह । कतय छलाह अनुभवी चक्रवर्ती सम्राट पुरूरवा! आ कतय छथि हुनक युवा आ अनुभवहीन पुत्र आयु ?की ओ सम्पूर्ण धरती पर शासन कs सकैत छथि ?मुदा एतय महामात्य जे राज्यक अनन्य भक्त आ पूर्ण अनुभवी छलाह हुनका सहयोग केलथि । ओ राजा पुरूरवाक शासन काल में हुनक प्रशासन देखने छलथि! एतबहि नहि ओ सहयोगी रहल छलाह ओहि शासन-प्रशासन के।ओ अपन सम्पूर्ण अनुभव लगा देलथि नवयुवक राजा आयु के द्वारा शासन व्यवस्था सुचारू ढंग सौं संचालन करवयवा में। ओ आयु के सुरक्षा देलथि,आ ओहि मात्रि-पितृहीन बालक के एकटा सक्षम सम्राट बनबाक प्रशिक्षण देमय लगलाह।

...

राजा पुरूरवा किछु दिन राजमहल मे रहलाह, मुदा ओतहु ओ अजबे-अजब काज करैत छलथि। कखनो जोर-जोर सँ हँसs लगैथ, कखनो कानs लगैथ! कखनो कपड़ा फाड़s लागथि, तs कखनो उर्वशीक चित्र सँ प्रेम-व्यवहार करs लागैत छलाह। कखनो काल उपदान के सेहो छूबैत छलाह।ओ अपन प्रियतमा बुझि अश्लील काज करैत रहैत छलाह। एहि के अलावा ओ सदिखन महल सs बाहर निकलबाक प्रयास करैत छलथि । एक दिन हुनका अवसर भेटि गेल छलनि ।ओ चोरा-नुका कs महल सौं बाहर आबि गेलाह आ... कोनो अज्ञात लक्ष्य दिस विदा भs गेलथि ।
जखनहि राजभवन में हुनकर अनुपस्थितिक बोध भेलनि, अति शीघ्र राजपुरुष आ सभ कर्मचारीगण हुनकर संधान में जुटि गेलथि। ओहि सब ठाम हुनकर तलाश में अन्वेषक पहुँचि गेल जतय कनिको संभावना हुनका सब केँ लागल जे महाराजा भेटि सकैत छथि मुदा ओ नहि भेटलाह। नहि जानि धरती के कोन छोर पर ओ बिला गेलथि। नहि जानि ओ पृथ्वी पर छथि वा नहि , की जानि कोन काज लेल ओ कतः चलि गेलथि। की जानि उर्वशी केँ तकबाक लेल स्वर्ग तs नहि चलि गेलथि ?
थाकि हारि कs सभ राज्य कर्मचारी आ अधिकारीगण हुनक अन्वेषण बंद कय ईश्वर पर हुनकर रक्षा के दायित्व सौंपि राजकार्य के संचालन में लिप्त भय गेलथि। एक दिन सेनापति अपन सिपाही सभक संग कुमार वन मे क्षेत्र-भ्रमण पर गेल छलाह, तखन हुनकर दृष्टि पूर्व सम्राट राजा पुरूरवा पर अचक्के पड़ल।हुनका देखि ओ सब आश्चर्यचकित भs गेलाथि । हुनकर स्थिति एतेक करुण छल जे सेनापति करुणाद्र भs गेलथि ।एकटा चक्रवर्ती सम्राट आ हुनकर ई स्थिति !
ओ राजा केँ अपना संग राजधानी अनबाक बहुत प्रयास केलथि , मुदा ओ आबय लेल तैयार नहि छलाह, एतेक धरि जे चलैत रथ सँs कूदि गेलाह आ सरपट दौड़य लगलाह। एहि क्रम मे हुनकर देह सेहो घायल भ' गेलनि। ठाम-ठाम सs शोणित के धार छल-छला आयल छलनि।आब सेनापति विवश भय गेलथि। ओ असहाय छलथि! करथि तs कथि करथि ! ओह भगवान ! सेनापति चिंतित ! आब की करबाक चाही ! पूर्व सम्राट केँ बान्हि कs सेहो नहि आनि सकैत छलथि, आखिर हुनकर कोन अपराध छलैन्ह जे बान्हि कs हुनका दण्ड देल जाय! आ ओ बान्हलाक उपरान्त कतेक दिन राजमहल में रहताह तेकर कोन भरोस! कतेक दिन हुनका बान्हि कs राखल जा सकत! हा दैव! ई केहेन दण्ड देलीयन्हि! चक्रवर्ती सम्राट छलाह आ आई हुनक ई दुर्गति! ओ अपराधी नहि छथि जे हुनका बान्हि कऽ आपस लs गेल जाय ।
जखन ओ सभ राजा पुरूरवा के राजधानी लs जयबा में सफल नहि भेलाह तखन ओ अपन सैनिक के राजमहल पठा कs राजसी परिधान मंगवा लेलथि आ कोनो तरहे बल प्रयोग कs राजा के ओ वस्त्र पहिरा देलथि । राजा ओ वस्त्र पहिरबा में कनेको रूचि नहि देखाओल, कारण हुनका ओ वस्त्र पहिरवा में कनिको अभिरुचि नहि छलन्हि। किएक तs ओ अपनहु के बिसरि गेल छलथि । तखन आब हुनका वास्ते वस्त्रक कोन महत्व छलैक ! हुनका वास्ते राजसी परिधान अथवा राजमहलक कोनहु महत्व नहि छल। हुनका लेल वनक कठोर पाथरक भूमि आ राजमहलक कोमल आ गदगर आरामदायक पर्यंक में कोनहु अंतर नहि छलैक। वास्तव मे कहल जा सकैत छलैक जे वन प्रांतक प्रस्तर भूमि हुनका लेल बेसी अनुकूल छल कारण ओतय उर्वशीक आगमनक संभावना छल।
एकर बाद राजपुरुष लोकनि एकटा नियम बनौलनि जे ओ सभ दू-चारि गोट सैनिक केँ गुप्त रूपें हुनकर देखभाल हेतु वन में छोड़ि देलथि। ओ सभ राजाक दृष्टि में बिनु अयनहि गुप्त रूप सँs हुनकर रक्षा में तत्पर रहथि, आ बीच-बीच मे हुनकर आवश्यक सेवा ओ लोकनि करथि, आ स्वच्छ वस्त्र पहिरा दैत छलाथि ।ओ हुनकर समय पर भोजनक नियमित व्यवस्था कs दैत छलथि ।
मुदा राजा केँ एहि सब में कोनो रूचि नहि छलन्हि । हुनका नहि भोजन में कोनो रूचि छलन्हि आ ने वस्त्र में ।हुनका भोजन आ वस्त्र मे रूचि कम भs गेल छलन्हि। ताहि कारण हुनका कनिको रूचि नहि छलन्हि राज कर्मचारी गणक एहि सेवा सत्कार में । अपन दैनिक कर्म में राज कर्मचारीक हस्तक्षेप हुनका रुचइत नहि छलन्हि ।आ एक दिन एहि सेवा सँ तंग आबि ओ ओहि वन केँ सेहो छोड़ि देलथि ।ओ एम्हर-ओम्हर भटकय लगलथि । कखनहु कोनो वन में चलि जाइत छलथि, आ कखनहु काल कोनो पोखरि मे हेलैत रहैत छलाह। कखनहु कोनो नगरक राजमार्ग पर दृष्टिगोचर होइत छलाह । कखनहु उम्मत्त सन दौड़ लगबैत ओ देखाइ पड़ैत छलथि तs कखनहु कोनो नदीक कात मे भटकैत भेटैत छलथि ।एहि तरहेँ एक साल बीति गेल।
एम्हर उर्वशी सँ विरह भेलाक बाद हुनकर पहिल भेंट सरस्वती नदीक कात मे भेलनि, उर्वशी हुनका दोसर साल में सेहो भेंट करबाक समय देने छलाथि, मुदा कतय ? - हँ कुरुक्षेत्र में मोन पड़लन्हि ।

*****
अतीतक बिम्ब आब राजाक मोन सँ विलुप्त भs गेल छलन्हि ।आब हुनकर हालत एहन भs गेल छल जेना एखनहि आकाश सँs खींच कs धरती पर खसा देल गेल होथि।हुनकर मोन एकदम शून्य भs गेल छलन्हि। मात्र उर्वशीक छवि के स्मरण एखनहु ओहि में अवस्थित छल। एकर अतरिक्त ओ सभ किछु बिसरि गेल छलथि।
जखन ओ अपन हृदय केँ अतीतक गर्भ सँs खींच कs अपन हृदय केँ वर्तमान क्रम में एहि वन प्रांत में अनलथि तखन सूर्यक भीषण तप्त किरण अपन तीव्रतम आभा सौं पृथ्वी पर पसरि ओकर आँचर के तप्त कs रहल छल। आकाश में चिड़इ सभ वृक्षक शिखर सौं उड़ि-उड़ि गगन मंडल में एहि वृक्षक शिखर सौं ओहि वृक्षक शिखर पर भागि रहल छल। बुझाइत छल जेना ओ सभ आकाश में कोनहु दौड़ प्रतियोगिता में भाग लs रहल होय,प्रतियोगिता स्थल बनल छल एहि वृक्षक शिखर सौं ओहि वृक्षक शिखर!ओहिना आकाश में सब उड़ि रहल छल । पुरूरवा उठि कs बैसि गेलाह।तखन ओ एकटा अनजान लक्ष्य विहीन बाट पर उद्देश्यहीन चलय लगलथि ।
कियो अचक्के हुनका रोकि देलकैन । ओ व्यक्ति आश्चर्यचकित भs कs हुनका दिस ताकि रहल छल। कनि काल धरि हुनका दिस तकलाक बाद ओ पूछि देलक –
​ " राजेन्द्र अहाँ ? एतय की कs रहल छी? अहाँ हमरा संग आबि जाउ हमर सभहक दरबार में । हमर महाराज अहाँ सँ भेंट कs कs अत्यंत प्रसन्न होयताह।"
पुरूरवा ओहि व्यक्ति दिस ध्यान सँ तकलथि मुदा चिन्हलथि नहि। आ ओ जखन कनिको स्मरण नहि पाइब सकलथि तखन हुनका नहि चिन्हैत पुछलथि –
"अहाँ के थिकहुँ, आ हमरा कतs लs जेबाक अछि?"
"अरे, अहाँ हमरा नहि चिन्हैत छी? हम कश्मीर के राजाक महामात्य छी। हम अहाँ केँ हुनका सँ भेंट कराबs हेतु लs जाय चाहैत छी। अहाँ केँ देखि ओ अत्यंत प्रसन्न होयताह।"
राजा फेर ओहि आदमी दिस ध्यान सँ देखैत पुछलनि, “की अहाँ हमरा कहि सकैत छी जे हम के छी?”
"हँ!- हँ! किएक नहि, अहाँ केँ के नहि चिन्हैत अछि? अहाँ महान चक्रवर्ती सम्राट पुरूरवा छी" - ओ सम्मानपूर्वक उत्तर देलनि |
"हा हा हा हा हा हा...हम...हम...सम्राट छी!...सम्राट पुरूरवा ! महामात्य! एतेक असत्य नहि बाजह!नहि बाजह! पथिक ! हम तs मात्र उर्वशीक प्रेमी छी! उर्वशी...उर्वशी.." स्वर्गक ..... अप्सरा"...त्रिलोक सुन्दरी..."उर्वशी" बुझलह पथिक ! हमरा ओकर प्रेमी, भक्त कहब, आकि हमरा ओकर पुरोहित कहब! ई सभ सत्य होयत! हम ओकर प्रेम मे आकंठ डूबल एकटा सामान्य मनुक्ख थिकहुँ! हम पुरूरवा नहि छी। हमरा कहियो कोनो पुरूरवा सँs कोनो परिचय नहि भेल अछि! हमरा पुरूरवा फूसियो नहि कहब। हा....हा....हा..."
पुरूरवा उन्मत्त सन हँसैत आगू बढ़लाथि । सम्राट पुरूरवा!...जे... छलथि चक्रवर्ती, जिनका सोझाँ पृथ्वी की स्वर्ग पर्यंत नतमस्तक भेल छल ? ओहि सम्राट पुरूरवा के आइ एहेन स्थिति भेल छलनि। हुनका एहि दशा में देखि कश्मीर के राजाक महामात्य अत्यंत उदास भs गेल छलथि। दु:खी मोन सँs ओ अपन लक्ष्य दिस बढ़लथि । पहिने सुनने छलाह आ आइ ओहो अपन नेत्र सs देखलथि राजा पुरूरवक दुर्दशा!
अगिला अंक मे कथा आगू बढ़ैत अछि।
क्रमशः
 

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