प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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सुप्रसन्ना झा
जिनगी ऐह थिक

एक संगीत ,
एक ताल, एक लय
एक थिरकन,
कंदील झंझावात सं
मोनके हटा कनि
हँसि लिअ
गाबि लिअ,
आ किछ नीक
सोचि लिय,
कियेक तं
जीवन अपन प्रवाह मे
चलैत अइछ सतत
अहाके मोनक देहरी सं
हुनका मिसियो भरि नय अइछ मतलब, अहां निरंतर बहैत
एहिमे जिनगीके थाह नहि पाबि सकब,
एक जिजिविषा , एक गुंज
अहाके अंतर मे जिनगी के प्रति होमक चाही ,
तहने विषमता सं सामंजस्य बैसा सकैत छी,
प्रतिकूलता मे अनुकूलता
आनि सकय छी
घुप्प अन्हरियो मे
इजोरक अभिलाषा राखि सकैत छी ,
ई जिनगी छिकै कोना
हाथ पर हाथ दै
निश्चिंत भ सकय छी
एक किरण,
एक ज्योति सतत,
अमावसो म उठबाक कल्पना करैत ,
हां ई जिनगी थिकै


-श्रीमती सुप्रसन्ना झा, जोधपुर, राजस्थान

 

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