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हितनाथ झा- मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-11

हितनाथ झा

(मैथिलीमे ग्रामगाथा विधाकेँ नव जीवन देनिहार, पाठकीय विधाक अगुआ। संपर्क-9430743070)

मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान 11
 

रानी चन्द्रावतीक कीर्तिगाथा  

विगत अंकमे रानी चन्द्रावतीक जीवन-चरित्र 'प्रभात 'क उपलब्ध अंकसँ विभिन्न कवि एवं लेखकक रचना प्रस्तुत कयने रही। काशीकान्त मिश्र 'मधुप' जीक सेहो रानी चन्द्रावती-चरित्र धारावाहिक रूपमे प्रकाशित छलनि। सभ अंक मिला क' कुल पद संख्या 51 रहनि, मुदा 1 सँ 19 धरि अंक उपलब्ध नहि रहलाक कारणसँ 20 सँ 51 धरि प्रस्तुत क' रहल छी। मधुप जीक ई प्रारम्भिक रचना थिकनि। मधुपजी अपन संस्मरणात्मक पोथी ' प्रेरणापुंज' मे स्वीकार कयने छथि जे ई रचना सम्प्रति हुनका लग उपलब्ध नहि छनि। (सन्दर्भ : प्रेरणा-पुंज, पृष्ठ संख्या -50)। मधुपजीक एहि आरम्भिक रचनाक ऐतिहासिक महत्त्वकेँ देखैत, कतहु अन्यत्र उपलब्ध नहि रहलाक कारणसँ एकर महत्व आर बढ़ि जाइछ। एहि अंशकेँ प्रो. भीमनाथ झाक पोथी ' कविचूड़ामणिक काव्यसाधना' मे सेहो प्रस्तुत कयल गेल अछि। (सन्दर्भ: कविचूड़ामणिक काव्यसाधना, पृष्ठ~ 259~260)

एवं क्रमे दश वर्ष मे भेलीह कन्या दान काँ।
योग्या प्रसस्त गुण युक्ता विभूषित बालिका।।
हिनकर सकल गुण केर चर्चा चलल पृथ्वी बीचमे।
ई बात पद्मानन्द सिंह नरेन्द्र सुनेलनि बीचमे।।20।।

अति सुन्दरी गुण शालिनी छथि तैं अहा हो व्याह जौं।
अइ बालिका काँ संग चन्द्रानन्द सिंहक ठीक तौं ।।
कारण निखिल गुण युक्त हमरो पुत्र चन्द्रानन्द छथि।
ई बात रानी सौं बनैली भूप बजला पूज्य मति।।21।।

ई बात सम्यक मध्य पुनि बजलाह भूपति मोद मन।
अनुमोदनो कय देल सभ जे छल सभा काँ सभ्यजन।।
वंश क्वैलखो ई बात पण्डित उग्रनाथ*क कानमे।
नृप केर चर पठबौल जे की टेढ़ जातिक शानमे।।22।।

नहि छोट मे हम देब कन्या ई यदपि बजलाह ओ।
सभ बन्धु गण काँ प्रार्थना सौं कथा मे पड़लाह ओ।।
ओ घटक केँ पठबौल देखै लै वरक गुण रूप केँ।
पहिने यदपि सुनने छला सभ हुनक भव्य स्वरूप केँ।।23।।

झट पाग लट पट माथ धोती फाटले सन हाथ मे।
फाटल फराठी काँख झोरी भष्म लेपल गात मे ।।
चूड़ल सुपाड़ी मूँह बटुआ डॉर चून तमाकुलो।
चुनबैत गप्प गढ़ैत सब टा दाँत मुँहक टूटलो।।24।।

मधबाक आँखिक तुल्य भूर विशिष्ट छाता तानने।
गेला बनैली घटक रुपया लोभसँ हर्षित मने।।
वर देखि केँ चुप्पे भेला गुण केर चर्चा मात्र की ।
गुण रूप वर्णन शेष शारद कै सकै छथि ठीक की।।25।।

बस देखि वर अयलाह क्वैलख घटक गुप्तहि रूप सौं।
कन्या गतक आगू कहल सब बात विस्तर रूप सौं ।।
सौंदर्य हुनिकर की कहू ओ विष्णु कॉ अवतार छथि।
ओ रूपमे कन्दर्प दर्प विनाश काँ हित ऐल छथि।।26।।

आजानि हुनिकर वाहु लोचन कर्ण तक विस्तार छनि।
जनु पाकले तिलकोर काँ फल ठोर दुनू लाल छनि।।
मुख केर सुषमा चन्द्रमा सौं दैत लज्जा व्हैत अछि।
सकलक दिवस मलीन विष काँ बन्धु जै विधु दीन अछि।।27।।

एहनो द्विजेशक जोति सौं अरविन्द पुनि कुम्हलाइ अछि।
उपमा हुनिक की देव् हुनि मुख अनुपमेय यथार्थ अछि।।
रवि तुल्य तेज तथापि मृदुता चन्द्रमा काँ धाम सन।
रिपु रूप कानन केर पंचानन थिका पुन शान्त मन।।28।।

गुरु तुल्य विद्या केर प्रेमी वित्तमे कुबेर सन।
ओ दानमे छथि कर्ण सन रण क्षेत्रमे छथि पार्थ सन।।
ओ गानमे ब्रह्मा तनय सन क्रोधमे यमराज सन।
अत्यन्त चित्त उदार पूजा पाठमे रत राति दिन।।29।।
*
रानी चन्द्रावतीक पिता उग्रनाथ झा
(
वर्ष-2, अंक -4, अप्रिल-1934 .)

हुनि रूप गुण वर्णन अशेष न शेष कै सकइछ सखे।
पुन की कहू हम तदपि किछुओ कहि सुनावल निज मते।?
ई कार्य अपने आशु पण्डित जी पुछै छी बात जौं।
आनन्द पूर्वक कैल जाय विचार दै छी स्वान्त सौं।।30।।

सुनि जा बनैली संग पजियारक नरेशक सामने।
सिद्धान्त करवावल धनो लुटबौल भूपति कंचने।।
जा विन्ध्यपर्वत भेल व्याह परीछ ऐली कामिनी।
सुभै सुहागिनि गीत गाबथि मत्त गज सन गामिनी।।31।।

आहा बनैली केर शोभा ताहि कालुक की कहू।
हेरम्ब शारद शेष कहि न सकैछ पुन हम की कहू।।
यद्यपि सुधांशुक कौमदी छिटकैत छल आकाशमे।
पावस ऋतुक भ्रम छल सकल जन कैं अहा ! तै ठाममे।।32।।

कोठाक ऊपर कामिनी चमकैत छल जनु दामिनी।
घन तुल्य केशक वेश होमक धूम मानू यामिनी।।
ठनका जकाँ आतीस बाजिक शब्द दिव्य गुलाब जल।
छिरकैत छल बरखा जकाँ बुझाइ छल जल वा कि थल।।33।।

गहनाक झझंकार झिंगुर शब्द बूझि पड़ैत छल।
नटुआक चित्र विचित्र वस्त्र मयूर तुल्य बुझाइ छल।।
ओ केश कारी ताहि ऊपर मालती माला कोना।
वक पंक्ति नीलाकाशमे विचरैत अछि मानू जेना।।34।।

ई देखि सब मुग्धे भेला सुत ओ बधू कैं मोद सौं ।
पद्मावती रानी चुमावल दै निछावर प्रेम सौं ।।
बीतैत देरी ह्वैछ की सुख केर वासर यामिनी।
जहिना चमकि घन मध्य शीघ्रहि लोप होइछ दामिनी।।35।।

आनन्द पूर्वक बीति गेल कतेक दिन उत्सव जकाँ।
बहुतोक रंक धनीक भेल बुझैत सुख इन्द्रे जकाँ ।।
हा ! हा ! चानक काल तावत भूप चन्द्रानन्द। कैं।
लै गेल सब दिन हेतु पुष्पक पर चढ़ा बैकुण्ठ कैं।।36।।
(
वर्ष~2,अंक~5, मइ-1934 .)

हा ! शोक मेघक घन घटा आयल बनैली राजमे।
सब केर आँखिक नोर धारा बहि चलल तइ कालमे।।
हा ! बृद्ध भूपति बृद्ध रानी केर हम की कहू दशा।
दुनूक कानक शब्द सै लगलीह हा ! उलटै रशा।।37।।

दिन मध्य जम्बुक केर रजनी मध्य कौआ शब्द सौं।
दोसर जनक नहि शब्द सूनल जाइ छल अति जोर सौं।।
शुक आदि पक्षी तक्क दाना खैब। दुख सौं छोड़लक।
गज अश्व बिनु मालीक वत जैबाक हित रजु तोड़लक।।38।।

वैधव्य नव दुख दुःखिता चन्द्रावती रानीक की ।
दुःख केर हम लीखू दशा जे सभ छली मानीक की ।।
पर्यक सौं उतरैत छली नहि जे अहाँ ! एक छल।
से मुर्छिता पृथ्वी पड़लि नहि ह्वैछ चेष्टा एक छल।।39।।

सखि वर्ग शीतल वारि चन्दन आदि काँ उपचार सौं।
मूर्छा छोड़ावल जागली नाना सुतर्क प्रचार सौं।।
जगलीह पुन खसलीह बहुतो काल ओ पड़ले छली।
तर्की जनक शुभ तर्क नासौं जागृताsवस्था भेली।।40।।

जगितैहें ओ बजलीह हम पति संग जरबे प्रेम सौं।
गुरु वर्ग आबि निवारि देलन्हि बहु प्रकारक युक्ति सौं।।
कारण अहाँ काँ भार मिथिला पालवा काँ अछि सुनू।
तैं बात मानू पुत्रि के ई धर्म काँ मारग सुनू।।41

सुनि कै अगत्या मानि बहुतो दिन छली शोकाकुला।
अछि भार मिथिला केर लगली अनमनामे दुर्बला।।
श्री भद्रकाली केर मठ बनबौल क्वैलख गाममे।
खुनबौल सुन्दर एक पोखरि माइ सौं तइ ठाममे।।42।।

ओ माइनर तक पाठशाला फीस बिनु कय देल अछि।
मैट्रीक होएत फीस बिनु ई घोषणा भय गेल अछि।।
चरवाह तक जनिक प्रसादें पास सम्प्रति माइनर।
अछि गाम क्वैलख मध्य ई गप के कहू नहि जान नर।।43।।
(
वर्ष-2, अंक-6, जून-1934 .)

ओ अस्पताल बनाय रोगी हेतु राखल डाकटर।
तजि देल रोगो बाट क्वैलख केर जनिकर मानि डर।।
निज भाइ लोकनि हेतु बहुतो कीनि पृथ्वी छथि देने।
आवास हेतुक उच्च उच्च प्रसाद छथि बनबा देने।।44।।

बहिनौत बाबू मोद एफे पास इंजिनियर विषय।
हुनके प्रसादे गेल छथि जे विज्ञ पटनामे पढ़य।।
भतिजीक कन्यादनमे जे खर्च लाखों कैल अछि।
परिवार वर्गक बात की खा। खा कतेक अघैल अछि।।45।।

दिन राति दीनक हेतु ताला की लगै अछि कोषमे।
की दान भागक कर्मचारी रहि सकै छथि रोषमे।।
द्विज केर मुख सँ शब्द होइत किच्छु देरी होइछ की।
नभ थल रसातल केर वस्तुक हेतु नहि ई ह्वैछ की ।।46।।

गुरु सौं कमी की द्वार पंडित हुन न अल्पो मात्र छथि।
निज योग्यता अनुसार के सत्कार के पाबैत छथि।।
हुनि माम काघिषणकनेको शुक्र सौं छनि की कमी।
जे इम्तिजाम करैछ बहुतो कालमे सुन्दर दमी।।47।।

हुनि यश पताका देश मिथिला मात्र मे फहराइछ की।
देखू अहाँ वाराणसी चलि यौत सम्प्रति ह्वैछ की ।।
श्यामा तथा शिव केर मन्दिर श्रीमती वनवौलअछि।
परकाश हेतुक दिव्य विजुली ज्यौतिके जरवौल अछि।।48।।

विद्या भवन वनवौल पढ़बा हेतु मैथिल छात्र कै।
भोजन अनेक प्रकार काँ ओ दैत छथि निज छात्र कै।।
यदि श्रीमती सौं होइत नहि शुभ खर्च मैथिल छात्रके।
पढ़नाइ काशीमे कठिन भै जाइत विद्वच्छात्रके।।49।।

मैनेजरो अति योग्य सिंहवार कै छथि बाबू तहाँ।
रहतैक मैथिल छात्र के पूण लेश क्लेशक की तहाँ।।
सब केर अछि जड़ि धर्म्म से विद्याक द्वारा होइत छथि।
से पढ़थू मैथिल हेतु तैं श्री श्रीमती तैयार छथि।।50।।

गंगा*क तुल्या श्रीमती रानी हमर चन्द्रावती।
जीबथु जखन तक गंगजल अक्लेश युक्ता धीमती।
श्री युक्त बबुआ मिश्रकाँ सुत मिश्र काशीकान्त जी।
क्वैलख निवासी तारिणी पदमे निवेदन दैछ ई।।51।।
*
रानी चन्द्रावतीक नैहरक नाम गंगा छलनि।
(
वर्ष~2, अंक~7, जुलाइ 1934 .)

मधुप जीक ई प्रारम्भिक रचना छनि आ 'प्रभात'मे स्वहस्तलिखित छनि, तेँ कोशिश कैल अछि जे ऐतिहासिक महत्वकेँ देखैत हू--हू प्रस्तुत कयल जाय। उतारबामे कतौ जँ व्यतिक्रम भेल हो आ से कतौ-कतौ भेले हैत,एहि हेतु हमरा क्षमा कयल जाय। 'रानी चन्द्रावतीक विषयमे 'प्रभात'क अनेक अंकमे अनेक रचनाकारक गद्य-पद्य रचना अछि। स्वतन्त्र पोथीक रूपमे न्यायाचार्य आनन्द झाक छपल छनि रानी चन्द्रावती चरित। हम रानी चन्द्रावतीक अति संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कय रहल छी,जे हमर पोथी 'कोइलख'मे प्रकाशित अछि। रानी चन्द्रावती बनैली राज(पूर्णियाँ)क रानी छलीह।हिनक नैहर छलनि कोइलख।ई पुबारि टोलक खौआरे नाहस मूलक प. उग्रदत्त झा वैयाकरणक पुत्री रहथि। हिनक जन्म सन 1299 साल चैत्र शुक्ल चतुर्थी 1891.े भेलनि। ई चारि भाइ आ तीन बहिन छलीह। हिनक नैहरक नाम गंगा छलनि। दुनू छोटि बहिनक नाम यमुना एवं सरस्वती छलनि। हिनक विवाह नौ-दस वर्षक वयसमे बनैली(पूर्णिया)क राजा पद्मानन्द सिंहक पुत्र कुमार चन्द्रानन्द सिंहसँ भेलनि। ओहि समय कुमार साहेबक अवस्था करीब पन्द्रह वर्ष छलनि। माझिल बहिन यमुनाक विवाह गामेक पछबारि टोलक प.जानकीनाथ झासँ भेलनि, जनिक बालक भेलथिन उमानाथ झा(इंजीनियर साहेब) एवं रमानाथ झा। छोटि बहिन सरस्वतीक विवाह मनियारीक जमींदार ब्रजनन्दन ठाकुरसँ छलनि। भाइ लोकनि अल्पायु भेलथिन। एक भाइ गीतानाथ झाक बालक छलथिन वीरेन्द्रनाथ झा। गंगादाइक विवाह भेलनि विन्ध्याचलमे। सासुरमे हिनक नाम पड़ि गेलनि पतिक नामपर चन्द्रावती।विवाहक चारिए-पाँच वर्षक बाद, जखन ई लगभग पन्द्रह वर्षक छलीह, विधवा भs गेलीह। हिनका पर तँ विपत्तिक पहाड़े टूटि पड़लनि। अपन योग्यता-क्षमता, चतुरता तथा दृढ़ इच्छाशक्तिक बलपर राज्यक शासन-सूत्र अपन हाथमे लेलनि आ एक-सँ-एक महत्त्वपूर्ण ओ स्थायी कीर्ति स्थापित कs गेलीह, जे आइयो हिनका जीवित रखने छनि। हिनक किछु कीर्तिक उल्लेख एतs कयल जा रहल अछि --

01.
अपन नैहर(कोइलख)मे चन्द्रानन्द फ्री मिड्ल इंग्लिश स्कूलक स्थापना 1924मे कयलनि।
02.
कोइलखक पुबरिया सीमापर माइक नामपर पोखरि आ ओकर पुबरिया मोहारपर भव्य मन्दिरक निर्माण करौलनि, जाहिमे माता-पिताक नामपर उग्रेश्वरी-उग्रेश्वर महादेवक प्राण-प्रतिष्ठा कयलनि।
03.
कामख्यामे रहनिहार लोकक जल-संकट देखि पहाड़पर पोखरि खुनौलनि एवं ओकर रखरखावक व्यवस्था कयलनि।
04.
श्री वैद्यनाथ धाममे अत्यन्त मजबूत सुसज्जित कोठा बनबाय अपन तीर्थ-पुरोहित बदरी द्वारी(पंडा)केँ दानमे दs देलनि।
05.
भागलपुरमे ' शिवतारिणी हॉस्पिटल( स्त्रीचिकित्सालय)क आर्थिक दुर्दशाकेँ देखि लाखो टाका दानमे दs ओहि संस्थाकेँ पुनर्जीवित कयलनि।
06.
वाराणसीमे बनैली राजक कीर्तिमे तीन टा संस्था छल। रानी चन्द्रावती 1934.मे ब्रह्मनाल(कचौड़ी गली)मे श्यामा मन्दिरक स्थापना कयलनि। अनेक दान-धर्मक विभाग रहलाक कारणे एकर विशेष महत्त्व अछि।

श्यामा मन्दिरक प्रसंग ज्ञातव्य थिक जे रानी साहिबा डेढ़ लाख खर्च कs चारि मन्दिर आ एक भव्य विशाल चरिमहला मकान बनबौलनि। चारू मन्दिरमे पहिल-अपन इष्टदेवता श्री 108 श्यामा मन्दिर, दोसर- पतिक नामपर श्री 108 चन्द्रेश्वर महादेवक मन्दिर, तेसर- श्री रामजानकी मन्दिर आ चारिम- अपन भतीजी दिवांगता मालतीक नामपर मालतीश्वरी लक्ष्मीक मन्दिर छनि। मकानमे 'श्यामा महाविद्यालय'क स्थापना कयलनि, जाहिमे वेद,वेदान्त, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष तथा अंग्रेजीक पढ़ाइ होइछ। संस्थाक सुचारु संचालनक हेतु पाँच सदस्यीय मैनेजिंग कमीटी बनौलनि। प्रथम कमीटीमे रहथि - कुमार रमानन्द सिंह(Residing Trustee), काशीनाथ झा, उमानाथ झा, जगदीश ठाकुर तथा भागलपुरक ओकील सूरज प्रसाद। वर्तमान कमीटीमे छथि- श्री राजेन्द्रनाथ झा(Residing Trustee), डा. संतोष सिंह ठाकुर, श्री प्रसन्न कुमार झा, श्री शैलेश्वर मिश्र तथा श्री सत्यनारायण झा। रानी साहिबा प्रत्येक संस्थाकेँ अमर बना देबाक हेतु रजिस्ट्री मोसाबिदामे एहि विषयक स्पष्ट उल्लेख कयने छथि जे मूलधनक कहियो क्यो कोनो हेतुक व्यय नहि कs सकैछ, केवल ओकर सूदसँ कार्यसंचालन होयत। श्यामा मन्दिरकेँ दस लाख दान देलनि आ आगुओ कुल धन एही संस्थाकेँ देबाक वचन देलनि। श्यामा मन्दिरक खर्चक रूपरेखा वर्णित अछि। महगीक कारणे बहुत काज शिथिल पड़ि गेल अछि, किछु बन्दो भs गेल अछि। मद अछि- मन्दिरक संरक्षण आ मरम्मति; देवताक भोग-राग; संस्कृत महाविद्यालयक देखरेख, शिक्षकक वेतन, छात्रलोकनिक भोजन, छात्रावासक खर्च, चिकित्सा आदिक खर्च; काशीसँ अन्यत्रो अंग्रेजी पढनिहार छात्रकेँ वृत्ति देल जाइत छल( हमरो मनीऑर्डरसँ दस टाका मास आबि जाइत छल); अभ्यागतक भोजन खर्च; औषधालय; अनाथ बालककेँ मासिक वृत्ति; विधवा ब्राह्मणीकेँ सहायता; दाहसंस्कारक हेतु मदति आदि।

हिनक कीर्ति देखि लॉर्ड विलमिंगटन(Viceroy and Governor General of India) एक सनद प्रदान कs हिनका 'रानी'क उपाधि दs अलंकृत कयलथिन। सनदमे लिखल अछि: " I hereby confer upon you the title of 'Rani' as a personal distinction." एतs ई कहब अप्रासंगिक नहि होयत जे ओहि समय पर्दाप्रथा एहन छलैक जे सम्राटक प्रतिनिधि बनि आयल भागलपुरक कमिश्नर रानी साहिबाक ड्योढ़ीपर स्वयं आबि पर्दाक बाहरेसँ हुनका ई समाचार देलथिन। रानी साहिबाक निधन माघ शुक्ल नवमी शनि 1342 साल,तदनुसार एक फरबरी 1936 .केँ भs गेलनि। हिनक श्राद्ध माझिल बहिनक जेठ पुत्र उमानाथ झा कयलथिन। (स्रोत:कोइलख( ग्रामगाथा) : लेखक~ हितनाथ झा, पृष्ठ~39-41)

संपादकीय सूचना-एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-

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