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हितनाथ झा- मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-10

हितनाथ झा

(मैथिलीमे ग्रामगाथा विधाकेँ नव जीवन देनिहार, पाठकीय विधाक अगुआ। संपर्क-9430743070)

मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान 10
 

रानी चन्द्रावतीक कीर्तिगाथा      

कोइलखक प.उग्रदत्त झा वैयाकरणक पुत्री रहथि गंगा। हिनक विवाह बनैली राज(पूर्णिया)क कुमार चन्द्रानन्द सिंह संग भेलनि। सासुरमे हिनक नाम पड़ि गेलनि पतिक नामपर चन्द्रावती। दुर्भाग्य, ई बहुत कमहि अवस्थामे विधवा भ' गेलीहि। अपन योग्यता-क्षमता, चतुरता तथा दृढ़ इच्छाशक्तिक बलपर राज्यक शासन-सूत्र अपन हाथमे लेलनि आ एक-सँ-एक महत्वपूर्ण  ओ स्थायी कीर्ति स्थापित कs गेलीहि, जे आइयो हिनका जीवित रखने छनि।

हिनक कीर्ति देखि लॉर्ड विलमिंगटन ( Viceroy and Governor General of India) एक सनद प्रदान कs हिनका 'रानी'क उपाधि दs अलंकृत कयलथिन। सनद मे लिखल अछि- :I hearby confer upon you the title of 'Rani' as a personal distinction."

'प्रभात'क रानीसाहिबाक विषयमे अनेक अंकमे हुनक कीर्ति-यशक आलेख आ कविता ( धारावाहिक सेहो) प्रकाशित अछि,किन्तु सभ अंक उपलब्ध नहि रहलाक कारणसँ ,जतबहि उपलब्ध भ' सकल अछि, ओ एक ठाम समेटि प्रस्तुत क' रहल छी। एक समस्यापूर्तिक सेहो हिनक नामपर राखल गेल अछि ' जत चन्द्रावति रानी', ओ समस्यापूर्ति अध्यायमे पछिला अंकमे प्रकाशित भेल छल। 'प्रभात'मे एक विशेषांक निकलबाक घोषणा भेल छल 'चंद्रांक'जे कुमार चन्द्रानन्द सिंह एवं रानी चन्द्रावतीक कीर्तिगाथा रहत। युवक संघ कोइलख द्वारा प्रदत्त दू अभिनन्दन-पत्रक प्रतिलिपिमे मात्र एक उपलब्ध अछि,दोसर जे अंक नष्ट भ' गेल, ओहीमे रहल हेतैक।

 

श्रीमती रानी साहिबाक चन्द्रावती जीकेँ युवक संघ,कोइलखक तरफसँ दू अभिनन्दन पत्र देल जयतैन्हि। प्रथम अभिनंदन पत्रक प्रतिलिपि निम्नलिखित अछि :- सम्पादक।

श्री ५ मती  रानी चन्द्रावती साहिबा जीक कर कंजमे 'रानी'क उपाधि प्राप्त हयबाक अवसरपर सादर समर्पित।

अभिनन्दन पत्र

दयावति!

अपनेक ' रानी ' उपाधि पयबाक  संवाद द्वारा  जाहि अनिवर्चनीय आनन्दक सृष्टि एहि गामक समस्त आवाल-वृद्ध मण्डलीमे भेल अछि ओकरा व्यक्त करब असम्भव। हृदय  हर्ष व्यक्त करबाक उपयुक्त साधनाभाजें हमरालोकनिक हृदय -साम्राज्य आन्दोलित भय गेल अछि।

अपनेक आकीर्ण -स्वर्गा-कीर्ति-लताक प्रतिनिधि स्वरूप काशीस्थ श्रीश्यामा मन्दिरक गगनमे गुम्बजकेँ देखि साम्प्रतिक भारताधिपति अपना जन्मतिथिक शुभ अवसरपर अपने काँ 'रानी' उपाधि दय अपनाकेँ गौरवान्वित कयलैन्ह अछि।

हे कीर्ति-स्वरूपे !  हे परमोदाराशय !! हमरहु लोकनि अपनेक सन कीर्ति चन्द्र सँ चन्द्रिता, विद्या-बुद्धि,वल-वैभव, प्रभा-प्रतिभा,ज्ञान-विज्ञान आदि देवोचित गुणसँ अलंकृता अधिपतिक छत्रच्छायामे रहबाक सुअवसर पाबि कोइलखकेँ पुनः पूर्ववत विद्या-बुद्धिक केन्द्र बनाय अपनेक जन्मभूमिक गौरव बढ़यबाक इच्छुक छी।

प्राचीन मिथिलाक कुलपति कल्प धर्म    वशिष्ठवत अपना पितृदेवक पद-चिह्नक अनुशरण कय विद्यादानक निमित्त अपने सर्वप्रथम चिरकाल पूर्व उद्यत भेलहुँ।कतेक बाधा कतेक विपर्यय दुर्लध्य गिरिवत अपनेक पथ-रोध कयने ठाढ़ छल परन्तु चिरन्तन अशावादिनी अपने जाहि अदम्य उत्साह, उत्कट अभिलाषा एवं घोर कर्त्तव्य परायणताक अवलम्बन कय यत्न जारी राखल, तकर फलस्वरूप एहि ग्राम मध्य विश्रुतनामा अंगरेजी स्कूल विद्यमान अछि । अपनेक अटल विद्यानुराग देखि हमरा लोकनिकेँ पूर्ण आशा होइछ जे यैह स्कूल विशाल रूप धारण कय ज्ञानक आलोकसँ अज्ञान तिमिराच्छन हमरा लोकनिक मनो मन्दिरकेँ उज्ज्वल करैत अपनेक धर्म्म-कार्यक शास्वत बैजयन्ती बनल रहत।

हे कोइलख-भाग्य-विधात्रि ! हे विद्यादानैक व्रती ! अपनेक उपकारक भार सँ दबल रहलहुँ, सन्तानक भावी उन्नतिक उपकरणक हेतु फेरि आशान्वित नेत्रसँ निश्चल- निष्पन्द रूपेँ अपनहिक दिशि ताकि अपनेक दीर्घ जीवनक हेतु भगवानसँ आन्तरिक प्रार्थना करैत छी।

अपनेक सेवक

युवक-संघ, कोइलख।

(वर्ष-02, अंक-08,अगस्त-1934ई.) 

काशीक यज्ञमे अदम्य उत्साह

श्री रमानन्द झा, कोइलख।

1934 ई.मे ता. 13 जुलाइक श्रीमती रानी चन्द्रावती माहोदाराशया, एहि असार संसारमे केवल धर्महि कॉ सारवान बूझि स्वर्गोपमा काशीस्थ मणिकर्णिका और विश्वनाथ अन्नपूर्णाक सन्निहित में एक मनोहर और अति विशाल स्वनिर्मित मन्दिरमे जगज्जननी जानकी सहित जगन्नियन्ता जगदीश्वर श्री रामचन्द्रक सुदृढ़ और सुन्दर प्रतिमाक तथा लक्ष्मण महावीर और लक्ष्मीक प्रतिमाक स्थापना केने छलीह। एहि अनुपम कीर्त्तिक वृतान्त यज्ञ दिवससँ किछु काल पूर्वहिंसँ मैथिल समाजकेँ कर्णपथ भेल छलैन्ह। अनन्तर ओहि सुअवसर केँ अत्यन्त आसन्न काल बूझि निमन्त्रित गुणी कुटुम्ब सँ अतिरिक्तो हमर मैथिल मण्डली, अत्यावश्यको स्वगृहकार्यकेँ तिलांजलि दय काशीक यात्रा करैत गेलाह किन्तु काशी गमनेच्छुकव्यक्तिसँ स्टेशनपर एक छोट-मोट मेला भ' गेलैक।ओहि मेलाकेँ देखि कतिपय जेंटिलमैन लोकनि द्वि, चारि कोठली रिज़र्व कय लेलैन्ह और बहुत गलहस्तक भोग्य करैत भावी आनन्दक वेगवती धारा मे गोंता खाइत धूम जान सँ विदा भय बनारस पहुँचैत गेलाह। ओहिठाम किछु काल पूर्वहिसँ आगन्तुक व्यक्तिक स्वागतार्थ मोटर,बग्गी,टमटम आदि सवारी लय कर्मचारी लोकनि उपस्थित भ क यथा योग्य स्वागत कय निश्चित स्थानमे पहुँचाय दिव्य प्रासादमे स्थान देलथिन्ह और उपांसुक व्यक्ति सहित सभै गोटा केँ भोजनादिक सुप्रबन्ध यथेच्छानुकुल कय देलथिन्ह।यज्ञ दिवस तँ अति सुदिन छल सुप्रभातक बाद शुभ मुहूर्त मे यज्ञ खूब धूमधामसँ प्रारम्भ भेल।ओहि कालक दृश्य अति रमणिक छल।वेदज्ञ लोकनि मांगलिक मंत्रोच्चारण सँ यज्ञ भवनकेँ गुंजायमान करैत छलाह। कतिपय वेदपाठी लोकनि वेदपाठ  करैत छलाह।क्यो रामायण पाठ करैत छलाह, क्यो दुर्गापाठ करैत छलाह। स्वस्ति वाचकादि बहुसंख्यक ब्राह्मण सभ, समयोचित नूतन सयग्योपवीत कटि सूत्रांगुलीयक वस्त्रावृत्त भय ॐ स्वस्ति इत्यादि मन्त्र  दीर्घस्वरेणोउच्चारण करैत छलाह।आचार्य्य, ब्रह्मा,ऋत्विज,पुरोहित आदि अपन-अपन यथा विहित सालंकरण पट्ट वस्त्रालंकृत भय स्वकार्य मे दत्तचित्त छलाह।प्रज्वलिताग्नि, प्रचुर हवनीय पदार्थसँ जठराग्निकेँ शान्त करैत छलाह। होम धूमन सँ आकाश मण्डल आच्छन्न छल। गानवती ललना गण अपन-अपन वेश धारण कय सुस्वर सँ गान करैत छलीह। क्यो अपन नेत्र केँ आनन्द दैत छलीह। विद्वान लोकनि अपनामे विद्याक विचार करैत छलाह। क्यो यग्योत्सवक सम्यकतया पर्यालोचन करैत छलाह। कतिपय कर्ण सुखद वाद्य समूहक श्रवण करैत छलाह।घर्म पीड़ितजन, बिजली पंखा द्वारा अपन अपन स्थूल काय केँ सुख पहुँचेबैत छलाह।बहुत एहनो महानुभाव लोकनि छलाह जे अपन अपन डेरे पर ऐश आराममे लीन छलाह।बन्दूकक प्रबल आवाज सँ काशी निवासी वधिर प्राय   भै गेल छलाह। मानू ओहि कालक अनुपम शोभाक अवलोकन सँ दर्शकगण, अपनाकेँ जन्म सुफल और अहो भाग्यवान बूझैत छलाह।यज्ञक अवसान करीब चारि बजेमे भेलैक।कर्मान्त मे निमन्त्रित आदि असंख्य ब्राह्मण लोकनि, अमृतप्राय मेवा,मिसरी, मिष्टान्न, पूरी, राबड़ी आदि अनेक विध भक्ष्य पदार्थ सँ  अपव्याप्ति रूपेँ स्वकीयोदर केँ भरलैन्ह। अनन्तर निमन्त्रित गुणी, कुटुम्ब आदि व्यक्ति, यथायोग्य वस्त्र,द्रव्यादि सँ सम्मानित कैल गेलाह।अन्तमे दयाद्र्रहृदया श्रीमती उक्त रानी साहिबा, अनाहुत व्यक्तिक दुःखावलोकन कय मैथिल मात्रक वास्ते एग्यारह रुपयाक महती सभा कय असीम सुयशक भागिनी भेलीह। कर्मचारियो लोकनि केँ यश भेलैन्ह। इत्यलम  । (श्री रमानन्द झा)

(वर्ष-2,अंक-9, सितम्बर-1934 ई.)

बनैली राजवंशक दानशीलता

श्री घनानन्द झा, रानीटोल।

(1924 ई.मे 'घटकराज' (पंजीप्रबन्ध)पुस्तक हिनक प्रकाशित छनि।)

मानव समाजमे नाना तरहक गुण विशिष्ट लोक सब रहैत अछि। ताहि सौं संसारक कार्य सब सम्पन्न भ रहल अछि। नाना प्रकारक गुणमे दया ओ दान सब सौं बढ़ल अछि। जाहि दानक फल सौं भगवान बलिक दरवाजा पर सतत स्थिर रहैत छथिन्ह। तथा अक्षय कीर्ति भूमंडलमे व्याप्त भइछ। से एहि बनैली राजवंशमे जेहेन दानक कीर्ति कौमुदी मिथिला-मैथिल समाजमे व्याप्त छल ओ सम्प्रतिओ अछि।तेहेन कीर्ति अन्य स्थानमे देखयमे देखयमे नहि अछि। यद्यपि उक्त राजवंशक दानशीलताक वर्णन ई छुद्र अनुचर वुते ह्वैव असम्भव, तथापि किछु दिग्दर्शन करबाक प्रबल इच्छा काँ नहि रोकि सकलहुँ। तेँ लिखैत छी जे गत राजा लीलानन्द सिंह केँ नियम छलैन्ह जे प्रति दिन सहत्र रजत मुद्रा दान कय तखन अन्न जल ग्रहण करथि। ओ दरभंगा नरेश केँ बाइस लाख टाकाक रजिस्ट्री दस्तावेज ओहिना असूली लिखि वापस कय देने छलथिन्ह। ताही तरहेँ  राजा पद्मानन्द सिंह प्रत्यह शतावधि टाका दान कय तखन भोजन करथि। हिनका समयमे प्रायः भलमानुस मैथिल वर्ग कियो एहेन नहि छलाह।वो छथि जे हिनक दान पात्र नहि बनल होथि। उक्त राजा साहब काँ  कर्णक उपमा दैत छलैन्ह। वास्तविक हिम ऋतुमे शीताआच्छादन (शाल-दुशाला) प्रति वर्ष हजारों मैथिल पबैत छलाह। एखनि धरि कतेक गोटे काँ हुनक देल शाल-दुशाला वर्तमान अछि। कुमार चन्द्रानंद सिंह सब तरहेँ भोलानाथ जेकाँ औढर दानिये छलाह। जखन जे वस्तुक याचना लोक करैत छल तत्क्षणे भेटि जाइत छलैक। सम्प्रति श्रीमती रानीचंद्रावती साहिबामे उक्त बहुत गुण वर्तमान छैन्ह।हिनक कीर्ति तँ बहुत छैन्ह।तथापि किछु देखबैत छी। जे श्री 108 कामाख्या सिद्ध पीठमे जें कि पहाड़ी भूमि अछि। ताहि ठाम खूब धलधर सरोवर बनवा देने छथि। ओ काशीमे श्यामा मन्दिर बनबाय ताहिमे सय गोटेकेँ  प्रत्यह भोजनाच्छादन भेटि रहल अछि। कोइलखमे पति स्मारक मिड्ल इंग्लिश स्कूल खोलि देने छथि। जाहिमे दू सय लगभग विद्यार्थी पढ़ि रहल अछि।ओ प्रति वर्ष 20,24 विद्यार्थी पास कय हिनक कीर्ति कौमुदीकेँ बढ़बैत अछि। एहि स्कूलमे छात्रवर्गकेँ एको कैंचा स्कूल के फीस नहि लगैत छैक। तथा शिक्षक वर्ग कोनो छात्रसँ कोनो तरहक दबाबट द्रव्यादिक नहि करैत छथिन्ह। श्रीमती रानी साहिबा नब्बे हजार रुपैया जमा कय देने छथिन्ह। तकरे सूदि सँ शिक्षक वर्गकेँ मासिक वेतन पूर्ण रीतिऐं समयपर भेटैत छन्हि वो कतेक सम्बन्धी वर्गक निर्वाह भय रहल अछि। ओ, पुबारि कात जलधर सरोवर अछि। तकर यज्ञमे द्रव्य वितरण कयलैन्ह।तथा 108 कोइलख देवीक मन्दिर बनेबा मे प्रचुर द्रव्य दान कयने छनि। पुनः उक्त मन्दिरक वास्ते विचार- विमर्श कय रहल छथि। वो कोनो अस्पतालमे एक लक्ष टाका दान केने छथि।

(वर्ष-2, अंक-10, अक्टूबर 21934 ई.)

 

बनैली राजवंशक गुणानुवाद

लूटन झा

बनैली राजवंशक गुणानुवाद लिखब सहस्त्र 'वाहु समेत काँ दुर्घट छैन तखन एक हस्त सँ अस्मदादि कहाँ तक लिखि सकै छी । तावतापि दृष्ट और श्रुतगुणक लेख यथा साध्य लिखि अपना चिन्तक वेग काँ पूर्ण करै छी। एहि राजवंश मे राजा सबहिक शिरोमणि दानवीर लीलानन्द सिंह कर्णराजाक अवतार भेलाह। एक सहस्त्र नित्यदान विना कयने अन्नजलहि करथि जाहि हेतु 36 लक्ष  स्टेटमे देनाय भय गेलैक ताहि समयमे दरभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह बहादुरक जिम्मा 22 लक्ष रुपैयाक डिग्री छलैन। उक्त महाराजाधिराज काँ  तकर अदाय करबाक चिन्ता अधिक छलैन परन्तु पूर्णिया कोठीमे जखन मिथिलेश सम्प्राप्त भेलाह, दानवीर राजा लीलानन्द सिंह ओहि डिक्री  काँ साक्षात लक्ष्मीश्वरक बुद्धिसँ पयरपर चढ़ाय दक्षिण हस्त सँ माथपर आशीर्वाद कयलथीन जे हमर समान दान करबाक उत्साह परमेश्वर अहाँ काँ देथि। उक्त मिथिलेश परम् सुप्रसन्न भय यशोगान करैत अपना राज्य काँ कय दरभंगा अयलाह । के दानवीरता राजा लीलानन्द सिंहहि मे छलैन । हिनक आत्मज राजा पद्मानंद सिंह बहादुरहु काँ एक शत नित्य दान करबाक व्रत छलैन। हिनक रानी श्री 108 मती चन्द्रावती अपना वंशक मर्यादा और धर्मक रक्षा करबामे निरन्तर दत्तचित्त रहै छथि।काशीमे श्री 1008 मती काली जीक मन्दिर बनबाय प्रतिष्ठा कय मैथिल विद्यार्थी लोकनिक हेतु पाकशाला कय अन्नदान कय रहल छथि। एहि धर्म्मकर्म्मक मार्ग काँ बनाय अनेक धनवानक चित्तमे उत्साहक उत्पत्ति कय रहल छथि। हिनक धन्यवाद अनन्तानन्त ब्राह्मण कय रहल छथि। हम हृदय सँ आशीर्वाद करै छी ई चिरंजीविनी रहथि।

(वर्ष-01, अंक-12,दिसम्बर 1933 ई.)

बनैली कीर्ति लतिका

रामचन्द्र झा, रानीटोल

धन्य कोइलख ग्राम अछि अरु,
मातु ओ धन्या थिकी।
धन्य नर ओ जनक पुनि,
जनिक चन्द्रावति कन्या थिकी।।
जेहि वंश शोभित छथि श्रीमति,
तकर वर्णन की करू ।
जे भरल अछि सुधा रस सँ तेहि--
वारि कण सौं के भरू ।।
पर छुद्र मति मानैत नहि अछि,
कीर्ति अद्भुत सूनि कय।
तेँ किच्छु हम भाखैत छी,
श्री शक्ति युगपद चूमि कय।।
राजा लीलानन्द सिंह नित,
हजार रुपया दान कय।
सुवर्ण त्यादि भूषण,
दरिद्र के पर दान कय।।
करैत छलाह भोजन आदि, नृप
तखन अति सानन्द भय।।
शासन रीति ओ नृप नीति लखि
प्रजा छल आनन्द मय।।
राजा पद्मानंद सिंहक
प्रख्यात दान शीलता।
कत वृद्ध जन औखन करै छथि,
कर्ण नृपक तुल्यता।।
प्रातः रजत मुद्रा एक सत नित
दान कय विपेन्द्र ओ।
दीन जन सन्तुष्ट कय भोजन
करइ छला नरेन्द्र ओ।।
दरबार त फुजले रहइ छल,
विप्र दुखिया लय सदा।
आजन्म नहि केव घुरि सकला,
पौने विन धन सम्पदा।।
तुम्वा को भर दो बजैत केओ
साधु गेला तहाँ।
रुपया लगा देल ढेर भरि
चलला आनन्दित ह्वै महा।।
के के नहि आनन्द भेल ओहि
नृपति शासन कालमे।
गुण गान घर-घर होइत छल,
नर नारि युवती बाल मे।।
तेहि सिंहासन पर एखन
शोभैत श्री सरकार छथि।
कुल धर्म मे तत्पर अधिक
श्रीमती धर्मागार छथि।।
जनिक उज्ज्वल यश पताका,
अति उच्च भय शोभैतछनि।
काशीक श्यामा भवनमे नित,
द्विजक जय ध्वनि होइत छनि।।
अछि सर सुशोभित सलिल सुन्दर,
स्वच्छ कामाख्या जनिक।
कत औषधालय अनाथालय,
गुणगान होइयै जनिक।।
निज जन्म गाँव फ्री.एम.ई.
स्कूल पति स्मारकी ।
कत छात्र शिक्षा प्राप्त होइ छथि,
ऐ सँ अधिक उपकार की ।।
स्वेत आर्य कुल जॉर्ज पाँसवा
श्रीमतिक गुण सूनि कय।
'
रानी''पद सँ कयल सुशोभित
राष्ट्रपति तिय गूणि कय।।
'
प्रभात ' भेल हिनके कृपा सँ
उठल युवक उत्साह कय।
एकरा निमाहब श्रीमती के--
हाथ छनि प्रोत्साह दय।।
पालित छलाह पूर्वज गण हमर,
जिहि राज्य छायामे सदा।
रामचन्द्र श्रीमतिक दयाक,
अधिकार हमरो सर्वदा।।
श्री रामचन्द्र झा ,रानीटोल।
वर्ष-02, अंक-10,अक्टूबर-1934ई.)
धन्य कोइलख ग्राम अछि अरु,
मातु ओ धन्या थिकी।
धन्य नर ओ जनक पुनि,
जनिक चन्द्रावति कन्या थिकी।।
जेहि वंश शोभित छथि श्रीमति,
तकर वर्णन की करू ।
जे भरल अछि सुधा रस सँ तेहि--
वारि कण सौं के भरू ।।
पर छुद्र मति मानैत नहि अछि,
कीर्ति अद्भुत सूनि कय।
तेँ किच्छु हम भाखैत छी,
श्री शक्ति युगपद चूमि कय।।
राजा लीलानन्द सिंह नित,
हजार रुपया दान कय।
सुवर्ण त्यादि भूषण,
दरिद्र के पर दान कय।।
करैत छलाह भोजन आदि, नृप
तखन अति सानन्द भय।।
शासन रीति ओ नृप नीति लखि
प्रजा छल आनन्द मय।।
राजा पद्मानंद सिंहक
प्रख्यात दान शीलता।
कत वृद्ध जन औखन करै छथि,
कर्ण नृपक तुल्यता।।
प्रातः रजत मुद्रा एक सत नित
दान कय विपेन्द्र ओ।
दीन जन सन्तुष्ट कय भोजन
करइ छला नरेन्द्र ओ।।
दरबार त फुजले रहइ छल,
विप्र दुखिया लय सदा।
आजन्म नहि केव घुरि सकला,
पौने विन धन सम्पदा।।
तुम्वा को भर दो बजैत केओ
साधु गेला तहाँ।
रुपया लगा देल ढेर भरि
चलला आनन्दित ह्वै महा।।
के के नहि आनन्द भेल ओहि
नृपति शासन कालमे।
गुण गान घर-घर होइत छल,
नर नारि युवती बाल मे।।
तेहि सिंहासन पर एखन
शोभैत श्री सरकार छथि।
कुल धर्म मे तत्पर अधिक
श्रीमती धर्मागार छथि।।
जनिक उज्ज्वल यश पताका,
अति उच्च भय शोभैतछनि।
काशीक श्यामा भवनमे नित,
द्विजक जय ध्वनि होइत छनि।।
अछि सर सुशोभित सलिल सुन्दर,
स्वच्छ कामाख्या जनिक।
कत औषधालय अनाथालय,
गुणगान होइयै जनिक।।
निज जन्म गाँव फ्री.एम.ई.
स्कूल पति स्मारकी ।
कत छात्र शिक्षा प्राप्त होइ छथि,
ऐ सँ अधिक उपकार की ।।
स्वेत आर्य कुल जॉर्ज पाँसवा
श्रीमतिक गुण सूनि कय।
'
रानी''पद सँ कयल सुशोभित
राष्ट्रपति तिय गूणि कय।।
'
प्रभात ' भेल हिनके कृपा सँ
उठल युवक उत्साह कय।
एकरा निमाहब श्रीमती के--
हाथ छनि प्रोत्साह दय।।
पालित छलाह पूर्वज गण हमर,
जिहि राज्य छायामे सदा।
रामचन्द्र श्रीमतिक दयाक,
अधिकार हमरो सर्वदा।।
श्री रामचन्द्र झा ,रानीटोल।
वर्ष-02, अंक-10,अक्टूबर-1934ई.)

काशीकान्त मिश्र 'मधुप' जी सेहो रानी चन्द्रावतीक धारावाहिक रूपमे कीर्तिगाथा ' रानी चन्द्रावती चरित ' 'प्रभात'मे लिखने छथि। दुर्भाग्यवश सभ अंक उपलब्ध नहि अछि, तेँ समग्रतामे तँ नहि, आंशिके रूपमे उपलब्ध अछि, जे विदेहक अगिला अंकमे प्रस्तुत करब।

संपादकीय सूचना-एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-

मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-1
मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-2
मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-3
मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-4
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मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-9

 

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