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१.१०.रमेश-'घुरि आउ कमला'

रमेश

(आलोचक, कथाकार, कवि एवं स्वतंत्र विचारक)

'घुरि आउ कमला'

बीसम सदीक अंतिम वर्ष 2000 ई. धरि अबैत-अबैत, मैथिली कथागोष्ठीक अभियान (सगर राति दीप जरय) एतेक जमि गेल छल, जे तकर चयनित अनेक कथा संग्रह छपि चुकल छल। ताही अभियानक कथा संग्रह 'एकैसम शताब्दीक घोषणा-पत्र' (2001ई)क संपादनक क्रम मे, श्री भवनाथ झा 'भवन'क कथा, 'अंइठ' हम ओइ पोथी मे छापि, हिनकर 'लेखकीय प्रति' महावीर मन्दिर, पटना मे, हिनका हस्तगत करौने रही। तहियो मुदा, 'ऐंठ' नहिं, 'अंइठ’, लिखैत छलाह।

से कोनो तेहेन अस्वाभाविको नहिं छल, कारण, एक त' संस्कृतक विद्वान् आ, दोसर, 'सोइतपुराक सम्भ्रांत मैथिलीक’, हिनकर कथाकार पर पड़ल, स्वाभाविक प्रभाव! तें, हिनकर कथाकारक मैथिली भाषाक वर्तनी/लेखन-शैली के, 'हिनकर प्राचीनताक अति-आसक्तिक चलतें', 'पं.गोविन्द झाक वर्तनी-शैली' पर, जेनाइए रहनि। ओ डा.सुभद्र झाक 'मैथिलीक अपन जमीनी ध्वनि-आधारित वर्तनी' (पं.गोविन्द झा स' फराक), डा.रामावतार यादवक 'मिथिलाक निम्नवर्गीय वर्तनी' अथवा यात्री जीक 'जनोन्मुखी वर्तनी', नहिं अपना सकैत छलाह। 'अंइठ' कथा स' ' ', 'घुरि आउ कमला' धरि, हिनकर कथाक वर्तनी, सैह प्रमाणित केलक अछि।

मुदा मध्यवर्त्ती एकटा पैघ अन्तराल मे, हिनकर मैथिली कथालेखन अवरुद्ध रहबाक कारणें, आइयो हमरा सबके अज्ञात अछि। हिनकर कोनो टा कथा संग्रहक प्रकाशनक, कोनो टा सूचना सेहो, अज्ञाते अछि। तें, 'हिनकर कथा लेखनक विकास-यात्राक मूल्यांकन' लेल, यैह दुइये टा कथा, मैथिली मे आइ धरि उपलब्ध रहबाक सूचना अछि।

'घुरि आउ कमला', 'लोककथा-आधारित कथा' थिक, अथवा, 'लोककथा आधारित उपन्यासिका', सेहो विचारणीय थिक। अथवा,'लोककथा-आधारित दीर्घकथा'...? कोनो स्थिति मे, 'कथा' (शौर्ट स्टोरी)त' नहिंएं थिक! ध्यातव्य अछि, जे, 'शौर्ट स्टोरीज', 'लघुकथा' सेहो नहिं थिक। मुदा 'घुरि आउ कमला’, खाहे त' 'दीर्घकथा' थिक, अथवा, 'लघु-आकारीय उपन्यासिका'! हम त' एकर पात्र-संख्या, उपकथाक संख्या, आ संरचनाक संयोजनक आधार पर, अइ कथाक एखनुका स्थिति मे, एकरा एहेन दीर्घकथा मानैत छी, जे 'उपन्यासिका' बनि सकैत छल। मुदा, से बनि नहिं सकल अछि। मुदा, तकरा से एखनहुँ आ आबो बनाओल जा सकैत अछि।

आधुनिक समस्या (जल-संकट)क विश्लेषण हेतु, ई दीर्घकथा लिखायल अछि, से 'मात्र नामकरण' 'पोखरि कटाव- आख्यान' टा स' बुझाइत अछि, अर्थात्, से 'कथाकारिता मे', 'मुख्य कारक नहिं', ' सकल अछि। फेरो 'जल-संकटक' 'कारण' के, 'प्राकृतिक, अथवा 'मानव-निर्मित' नहिं' कहि क', कोनो 'अधलाह राजाक कुकृत्य' के कहल गेल अछि, जे अइ समस्याक किंवदन्तिए बला, अथवा, 'धार्मिके कारण' ' सकैत अछि, 'आधुनिक आ वैज्ञानिक कारण', नहिं! 'आजुक वैज्ञानिक युग' मे, ताहि 'प्राचीन मानसिकता बला कारण' के, कोना स्वीकार कयल जा सकैछ? ई दीर्घकथा त', 'आइ लिखायल अछि'! आजुक कथालेखन हेतु, दन्तकथा आ लोक-कथाक आधार लेब, कोनो बेजाय बात नहिं थिक। मुदा, ताहू मे कथाकार, अपन 'कथ्यक आधुनिकता आ वैज्ञानिकताक अनुकूल', अपन 'दन्त-कथात्मक/लोक-कथात्मक आधार'क आ 'उपयुक्त स्वरुपक' चयन करत। 'राजा-रानी-प्रधान' 'राजतंत्रीय स्वरुप', अइ अत्यंत भयावह आधुनिक समस्याक 'कथा- रूपांतरण हेतु', 'उपयुक्त' नहिं भ' सकल अछि। आबक मैथिली कथालेखन एतेक आगू जा चुकल अछि, जे, 'बैताल पचीसी' 'सिंहासन बत्त्तीसी'-'टाइप-दन्तकथा-आधारित-कथालेखन’, 'एकदम पछुआयल' बुझायल अछि। लोककथा/दन्तकथाक जनसामान्य बला चरित्र सबहक नायकत्व, आजुक कथालेखन लेल उपयुक्त, स्वीकार्य, आ प्रासंगिक अछि।

'अओतीह कमला, जयतीह कमला' (कथा संग्रह, प्रदीप बिहारी), 'ठुमुकि बहू कमला' (उपन्यास, डा. धीरेन्द्र), 'कमला कातक राम, लक्ष्मण आ सीता' (नाटक,श्री महेन्द्र मलंगिया), 'घुरि आउ, मान्या' (उपन्यास,स्व. श्याम दरिहरे) आदि पूर्वक पोथी सबहक नामकरण, अइ दीर्घकथाक नामकरण-शैली के, 'पुराने' साबित केलक अछि। तहिना 'प्रेतक आह्वान पर', 'कमलाक आगमन' के सेहो, 'धार्मिके प्रारुपक' आ अविश्वसनीये आगमन', मानल जायत। तें, 'लोककथा-आधारित फंतासी कथालेखन' सेहो,एकरा मानब कठिन अछि। ई हिन्दीक असगर वजाहत, उदय प्रकाश, आ पंकज विष्ट बला 'यथार्थाधारित फंतासी कथालेखन' नहिंएं टा थिक।

ई दीर्घकथा, श्री भवनाथ झा 'भवन' 'प्राचीन वैचारिकता' 'अनुकूलहिं' अछि, आ तें ओ 'तेहने शिल्प लेल', 'ताहि प्रारुपक तेहने प्राचीन दन्तकथाक चयन' ' सकलाह अछि। मुदा 'अंइठ' कथाक उपरान्त हिनकर कथाकारक विकास, 'राजतंत्रीय अंधयुगबला दन्तकथा' दिस नहिं भेनाइ छल। कथाकारक से विकास 'पंचतंत्रीय लोकयुग' अथवा, 'मिथिलाक लोकगाथा-युगीन नायकगण' दिस, अथवा 'आजुक जननायकगण' दिस भेनाइ, उचित छल। हिनकर कथाकारक मानसिकताक,'आधुनिक कालखण्ड मे उतरबाक', आजुक तिथि मे सहजहिं अपेक्षा कयल जायत। हिनका अपन 'कथा- लेखनक नीति', 'युगीन समय-सापेक्ष' 'आजुक समाज-सापेक्ष', बदलबाक चाहियनि। अइ दीर्घकथा मे, ई कथाकार, मैथिलीक 'देशज शब्द-धनीक' कथाकार, साबित भेलाह अछि। से बहुत प्रसन्नतादायक तथ्य थिक, जकर अभाव मैथिलीक बहुतो कथाकार मे रहैत छनि। मुदा खांटी जमीनी शब्द के, 'डा. रामावतार यादव बला जनवादी वर्तनी' रहने, 'वर्तनी आ शब्दावलीक विरोधाभास' समाप्त भ' सकैछ, संगति बैसि सकैछ। मुदा, मिथिला मिहिरक आ. सुमनजीक वर्तनी, अथवा 'पंचकोसी-दसकोसीक सम्भ्रांत वर्गक वर्तनी', 'एहेन निरैंठ आ ठेंठ शब्दावलीक सौन्दर्य- बोध' के 'पाचन मे अक्षम' अछि।

अइ कथाकार के, अपन धनीक खांटी शब्दावलीक उपयोग, यात्रीजीक वर्तनी मे, करबाक चाहैत छलनि आ वर्त्तमान मे आबि क', निरंतर कथालेखन करबाक चाहियनि। ई कथाकार कथालेखन मे समर्थ छथि। मुदा, एक दशक मे एकटा कथा लिखने, समकालीन कथाधारा स' अपरिचित रहबाक आ कथापाठ मे अद्यतन नहिं रहि सकबाक, जोखिम रहैत अछि। ई कथाकार, मैथिली कथायात्राक अधुनातन विकास-पड़ाव सब स' अपरिचित रहि गेल छथि, 'अपडेट' नहि भ' सकल छथि। ओ अपन 'प्राचीनताक वैचारिक सीमा मे आबद्ध' छथि।

कथालेखन मे निरंतरताक अभावक कारणें, अनेक तरहें तें सक्षम रहितो, अइ दीर्घकथा मे मात्र रोचकता आबि सकल अछि, आधुनिक परिवेशक चित्रण अइ मे संभवे नहिं छल, आ ने संभव भ' सकल अछि। से 'चयनित राजक कथाक सीमा' छल। कथाकारक 'चयन-दृष्टिक सीमा' सेहो, एकरा मानल जा सकैछ। अइ सीमा के, दृष्टिकोणक आधुनिकता आनि, दूर कयल जा सकैछ। मात्र एकटा हिन्दी-शब्द, 'नकदी' (जकरा लेल 'नगदी' मैथिली मे उपलब्ध अछि),पढ़बा काल खैंक जकाँ गड़ैत रहल। शेष सबटा शब्द, हिनकर शब्द-सामर्थ्य के देखाबैत अछि।

हिनकर कथाकार के, 'समकालीन वैचारिकताक परिपाक लेल आ युगानुकूल भविष्य-दृष्टिक विकास'क निमित्त, शुभकामना छनि!

 

संपादकीय टिप्पणी- मिथिलामे जलसंकट बहुत अछि मुदा एहि संकटसँ पार लऽ जेबाक लेल किछुए लोक लागल छथि जाहिमेसँ एकटा छथि नारायणजी चौधरी जे कि मिथिलामे 'पोखरि बचाउ अभियान' केर अगुआ छथि। विदेह अपन एकटा विशेषांक नारायणजी चौधरीपर प्रकाशित केने अछि जकरा एहि लिंकपर देखल जा सकैए-  नारायणजी चौधरी विशेषांक 1 जून 2025 अंक 419, पोथी.कॅम pothi.com

 

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