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रबीन्द्र नारायण मिश्र

सीमाक ओहि पार (धारावाहिक उपन्यास)

हमर ससुर स्वर्गीय गणेश झा (पण्डौल डीहटोल)क स्मृतिमे, सादर ससिनेह समर्पित!


 

-6-

 

दिव्यलोक सर्व संपन्न छल  । एतए सभकिछु स्वचालित छल । नवागन्तुककेँ अबितहि परिचयपत्रसँ लए कए समस्त सुख-सुविधाक व्यवस्था स्वतः भए जाइत छल । मुदा हमर अहिलोकमे अएला कैक दिन भए गेलाक बादो ने परिचयपत्र बनल,ने रहबाक  कोनो ठेकान छल । ई बात अलग छैक जे हमरा कोनो कष्ट नहि भए रहल छल । कारण दिव्यलोकमे ठाम-ठाम चौबटिआ सभपर बहुत रास चीज-वस्तु सुलभ रहैत छल ,ओहिना जेना कोनो नीक क्लबमे होइत अछि । तकर ऊपरो व्यवस्था रहैत छलैक जकर तुलना मृत्युलोकमे रहनिहार नहि कए सकैत छथि,ओ सोचिओ नहि सकैत छथि जे एहनो होइत छैक। इएह थिक मृत्युलोक आ दिव्यलोकक अंतर ।

मुदा दिव्यलोकमे लोक अबैत अछि कोना? की ओ सभ पुण्यात्मा छथि? की ओ सभ ककरो कृपापात्र छथि ? की एतहु हेराफेरी चलैत छैक? किछु नहि कहि सकैत छी कारण हम स्वयं एतए नव छी । एहिठामक तालपातरा बुझबामे किछु समय तँ लगबे करत ।

हम से सभ सोचिते छलहुँ कि आगूमे एकटा चिट्ठी आ एकटा छोटसन पिपही राखल देखाएल । चिट्ठी पढ़ए लगैत छी।

" तोहर मृत्युलोकक फाइल हरा गेल अछि, तेँ तोहर विषयमे निर्णय लेबामे विलंब भए रहल अछि । जाबे किछु फैसला नहि होइत अछि ताबे एहि पिपहीकेँ सम्हारि कए राखह। एकर बटन दबेलासँ समस्याक समाधान होइत रहतह।"

"मुदा हमरा बारेमे कहिआ धरि अंतिम निर्णय होएत आ से के करत?"

"तूँ बड़ मूर्ख छह । व्यर्थक पचड़ामे पड़ल रहबाक हेतु तँ मृत्युलोके पर्याप्त अछि । तूँ अखन दिव्यलोकमे छह । मानलहुँ जे तोरा अखन दिव्यदृष्टि नहि भेटलह अछि । तथापि विचार करहक, अपने अंतर बुझेतह।"

"मुदा तोँ छह के? सामने किएक नहि आबि रहल छह?"

"फेर ओएह बात? एहिठाम आगू-पाछू किछु नहि छैक। जखने तोहर दिव्यदृष्टि जागि जेतह ,सभ भ्रम अपने हटि जेतह ।"

"!"

हम उत्सुकतासँ ओहि पिपहीक बिचला बटन दबओलहुँ । मोनमे सोचिते रही कि कैक दिन सँ रागिनीक किछु समाचार नहि भेटल कि बटन दबबतहि रागिनीकेँ बहुत दूर ककरोसंगे रंग- रभसमे मस्त देखैत छी ।

"ओ के अछि? -हम मोने मोन सोचि रहल छी । ताबते ओ दृश्य फरिछाइत गेल । रागिनी आ शरद हमरा सामनेमे ठाढ़ हँसि रहल छल ।

" की बात छैक, मनोज?"-शरद बाजल ।

"बात की रहतैक । हमरा तँ एहिठामक ताल-पातरा किछु नहि बुझा रहल अछि । तूँ सभ एतेक मौजमे छह आ हमरा अखनो ओएह हाल अछि, से किएक?"-हम बजलहुँ । से सुनितहि रागिनी जोरसँ हँसि देलीह आ शरदकेँ संगे नचैत- गबैत अदृश्य भए गेलीह। "पहिने तँ एकरासभकेँ एतेक झञ्झटि रहैक । आब दुनूकेँ एतेक घेटजोड़ी केना भए गेलैक? शरदसन फसादी दिव्यलोकमे कोना पहुँचि गेल ?"- ई बातसभ हमर मोनमे उठैत रहल । मुदा ई सभ फरिआएत के? मोन व्याकुल भए रहल छल । हम फेरसँ बिचला बटन दबओलहुँ ।

एहिबेर बटन दबबतहि एकटा बिकराल रूपधारी पुरुष उपस्थित भेलाह। हम हुनका देखितहि सकपका गेलहुँ । हमर माथा जोरसँ घुमए लागल । एहन भयावह लोकक कल्पना हमरा नहि छल । ई पिपही तँ आफदक जड़ि बनि गेल । आब की करी?

"अहाँ के छी?"

" एहिठाम प्रश्न -उत्तर करबाक परंपरा नहि छैक । सभ किछु अपनहि होइछ, किछु करए नहि पड़ैछ ।"

"मुदा हमरा संगे एना किएक भए रहल अछि?"

" हम छी महाकाल । हमर आदि-अंत केओ नहि देखलक। अहाँ बेसी बुझबाक जोगारमे नहि पड़ू नहि तँ कष्टमे पड़ि जाएब ।"

सामनेमे किछु राखल देखलिऐक । नान्हिटा पुड़िआमे किछु छलैक । हम ओकरा हाथमे राखबाक प्रयास केलहुँ कि ओ अदृश्य भए गेल। हम अवाक् ओहीठाम बैसि गेलहुँ । सामने चौकपर  तरह-तरहक चीज-वस्तु राखल छल । मोन भेल जे मालपुआ खइतहुँ । तुरंते मालपुआ एकटा थारीमे राखल छल । भरिमोन मालपुआ खेलहुँ। चाह पिलहुँ। ताबे बुझाएल जेना केओ  हमरा देखि हँसि रहल अछि । ओकरासभक हाथमे मादक गंधयुक्त हरिअर कंचन कोनो तरल वस्तु सँ भरल गिलास छलैक । एहन मादक गंध  कथीक भए सकैत अछि?- मोने-मोन सोचाए । ताबते कतहुसँ अबाज आएल -

"ई थिक दिव्यरस। "

"! हमरो भेटि सकैत अछि की?"

"अहाँ तँ अपने चाह पीबए लगलहुँ ।"

देखिते-देखिते ओ सभ दिव्यरसक भरि सीसी  पीबि गेल। तकरबादक दृश्य तँ देखैत बनैत छल । मदमस्त, एक-दोसरसँ एककार भेल सभ नाचि रहल छल ।

"ई तँ रागिनी लागि रहल अछि ।"

 शरदकसंग ओकरा एतेक अंतरंग देखि हमर मोन जरि गेल। हम चिचिआ उठलहुँ-

"रागिनी बस करू तमासा ।" औ बाबू हम एतबे बजले छलहुँ की केओ जोरसँ हमर गट्टा धेलक । कतबो कहिऐक ओ नहि छोड़लक ।

" अहाँ के छी आ हमरा एना किएक धेने छी?"

"हम महाकालक दूत छी ।"

"मुदा हमरा तँ किछु नहि देखा रहल अछि ।"

"तकर समाधान अहाँक हाथक पिपही कए सकैत अछि।"

हम ओहि पिपहीक बीचक बटन नहि दबा कए कतका बटन दबा देलिऐक । लएह ,ई तँ आओर गड़बड़ भए गेल । हम कतए आबि गेलहुँ? उलटैत-पलटैत कतहु अपने रूकि गेलहुँ । ओहिठाम कतहु किछु नहि देखा रहल छल । चारूकात अन्हार गुप्प। हमर पिपही से कतहु खसि पड़ल । ऊपर-नीचा  कतहु किछु नहि छल । सामने एकटा पोखरि सन बुझाएल । बहुत जोर पिआस लागल छल । हम पानि पिबाक हेतु आगू बढ़ैत छी । ताबतेमे भयाओन अबाज सुनाएल-

"खबरदार! जौँ आगू बढ़ब तँ रौरब नर्कमे धसि जाएब।"

"हमरा तँ ई पोखरि बुझाएल, तैँ ओमहर जा रहल छलहुँ।"

"ई अंधलोक थिक । एहिठाम किछु स्पष्ट नहि देखाइत छैक, ने बुझाइत छैक ।"

"अहाँ के छी? अहाँक नाम की अछि आ हमरा एना किएक पकड़ने जा रहल छी?"

"हम छी, प्रभु ।"

"अहाँ तँ हमर पिता छी।’’

"रहल होएब कहिओ । मुदा आइ-काल्हि हम महाकालक चाकरीमे छी । ओ अहाँकेँ बजओलथि अछि।"

"अहाँ कहिआ एमहर आबि गेलहुँ ।"

"अहाँ हमरासभकेँ असमयेमे छोड़ि गेलहुँ । हम ई दुख बरदास नहि कए सकलहुँ । थोड़बे दिनक बाद हमहूँ गुजरि गेलहुँ।"

"हम तँ अहाँक पिण्डदानो नहि कए सकलहुँ?"

"आब तकर की माने छैक? जखन अहाँ रहबे नहि केलहुँ तँ पिण्डदानक कोन सबाल उठैत छैक? फेर पिण्डदानसँ होइते की छैक? एतेक गोटे जे अंधलोकमे बौआ रहल अछि से किएक? एहिमे कतेकोकेँ ओकर संतान सभ मरला पर जबार केने रहैक,बैदिकी श्राद्ध आ पता नहि की,की केने रहैक। आ ढ़ाकक तीन पात । ओहोसभ ओहिना बफारि तोड़ि रहल अछि । असलमे मोन शुद्ध रहितैक तखन ने? अंत-अंत धरि हेराफेरी मे लागल रहलैक ।  निर्दोष लोककेँ सतबैत रहलैक। एहन लोकक आओर भइए की सकैत छलैक ? गीतामे भगवान तैँ ने कहने छथिन जे अंतिम कालमे जे जेहन सोचैत रहत तेहने ओकर गति होएत ।"

" मुदा हमर तँ किछु करू । अहाँ तँ अपन लोक छी । अहाँ नहि मदति करब तँ के करत? पितासँ बढ़ि कए के भए सकैत अछि?" । "

" एहिठाम मृत्युलोकक हिसाब नहि चलैत छैक । "

"ई कोन न्याय छी?"

"न्याय-अन्यायक हिसाब करए बला हम के?"

" तँ के करत?"

"महाकाल!

"ऐँ!"

"आओर के करत?"

किछुकालमे हम महाकालक दरबारमे उपस्थित कएल गेलहुँ।

-7-

"सरकार! हमरासँ गलती भए गेल ।"

"तोरासँ वारंबार एना किएक भए रहल छह? ई कोनो मृत्यु लोक नहि थिकैक जे हेराफेरीमे लागल रहबह । एहिठाम सभकिछु स्वचालित छैक । एमहर-ओमहर करबह तँ तुरंते पकड़ल जेबह ।"

"मुदा हमरे संगे एना किएक भए रहल अछि?"

"ई तोहर भ्रम छह । जे केओ एहन करत तकरा ओहिना हेतैक । "

"मुदा कैक गोटाकेँ तँ बहुत सुखी देखैत छी ।"

"इएह ने गड़बड़ी करैत छह । सदिखन अनके प्रति सोचैत रहैत छह ।"

"एहिसभसँ बचबाक किछु व्योंत करिऔक कारण हमरा तँ अपने से सभ होमए लगैत अछि ।"

"कहलिअह से तूँ बुझलह नहि । एतेक ककरा समय छैक जे तोरामे लागल रहत। तोरा पिपही देलिअह । ओहीमे समाधान छलैक । तूँ ओकर गलत-सलत बटन दबा दैत छलहक । ओ निष्क्रिय भए गेल आ तोरा अंधलोकमे पटकि देलकह ।"

"आब की हेतैक? किछु तँ रस्ता निकालबै नहि तँ हम तँ बौआइते रहि जाएब ।"

"से हम की करबह? जेहन तोहर कर्म हेतह,तेहने ने भेटतह। एहिठाम तँ पूर्वजन्मक कर्मक हिसाबे सभकिछु फलाफल होइत अछि ।"

""हमर कल्याण करू । कोनो ऊपाय करू जाहिसँ हमरा नीकठाम जोगार लागि जाए।"

"जोगार...? कहलिअह से बुझलहक नहि?एहिठाम जोगारक गुंजाइस नहि छैक । जे हेतैक से अपने हेतैक ।'

"मुदा कहिआधरि हेतैक?"

"तोहार फाइल हरा गेल अछि । तेँ निर्णयमे देरी भए रहल अछि । धैर्य राखह । ताबे ई पिपही राखह । एहिमे कोड लागल छैक । ध्यानसँ एकरा चलबिअह । जँ फेर किछु गड़बड़ केलह तँ तूँ जानह आ तोहर काज जानए ।"

हम पिपही  संगे बान्हल कागजमे सँ  कोड पढ़ैत छी आ कोड संख्या एक दबा दैत छी। औ बाबू ! भक दए इजोत भए गेल। चारूकात देखाए लागल । महाकाल चाकर समेतं बिला गेल छलाह। आब बुझलिऐक जे ई पिपही केहन उपयोगी अछि । जरूर महाभारत कालमे इएह वा एहने कोनो यंत्र व्यास संजयकेँ देने गेल रहथिन ,नहि तँ घरे बैसल ओ सभटा खिस्सा धृतराष्ट्रकेँ कोना सुनाबति? आइ-काल्हिक टेलीवीजन भए सकैत अछि ओकरे प्रतिकृति होइक किंवा ओहीमे सँ  किछु-किछु गुण जेना-ने तेना हासिल कए लेने होथि । जे होइ मुदा ई अछि अजूबा यंत्र , एहिमे कोनो सक नहि।

 सभसँ कठिन छल एकर कोडकेँ मोन राखब । ओना पुर्चीमे सभकिछु लिखल छलैक मुदा जौँ ओ हरा गेल किंबा फाटि गेल तँ फेर ओएह लफड़ासभ शुरु भए सकैत अछि ।

इजोत होइतहि हमरा लखनपुर आ मौजपुरक बीचमे बनल पुल देखाएल  । ओतए किछुगोटे श्यामकेँ घेरि जोर-जोरसँ नारा लगा रहल अछि ।

"तिरपित बाबू जिंदाबाद । तिरपित बाबू अमर होथि ।"

तिरपितक लहास लेने किछुगोटे घुमि रहल छलाह । श्याम हुनकासभकेँ हाथ-पैर जोरि रहल छथि । मुदा केओ हुनकर सुनि नहि रहल अछि । पुलक दुनूभाग पुलिस घेरने अछि । लगैत अछि जेना कोनो जबरदस्त कांड भए गेल अछि।

हमरा नहि रहल गेल । यद्यपि महाकालक चेतौनी हमरा मोने छल तथापि गामक बात छलैक,नहि मोन मानलक ,भेल जे जँ एक बेर अपने जा कए देखि सकी तँ बढ़िआँ रहत ,सही समाचार भेटत आ जिज्ञासा सेहो कए लेबैक । ई बुझेबे नहि करए जे तिरपित केँ एना किएक भेलनि । जरूर श्याम किछु झञ्झटि केने होएत । असली बात तँ ओतहि पता लागत । मुदा जाएब कोना? हमरा ई बात नीकसँ बूझल छल जे आब हम ओ मनोज नहि थिकहु जे रागिनीसंगे इसकुलक रस्तामे खेलाइत रहैत छल । जकर हाथ-पैरमे दम छल,जे जखन जतए चाहए चलि जाइत छल । आब तँ हम की छी से अपनो नहि बुझाइत अछि । महाकालक देल पिपही आ तकर गुप्त कोडक बले कतेक कुदब ? अपन हालपर अपने हँसी लागि रहल अछि। एक मोन कहैत अछि-

"जखन अहाँक ई हाल अछि तँ कथीक लौलमे पड़ल छी?"

दोसर मोन कहैत -" जा धरि स्मृति काज कए रहल अछि,आ मोनमे भावनाक  संचार भए रहल अछि ताधरि अहाँ कोना बँचि सकैत छी ? बँचिओ कए कतए जाएब?संसारसँ बँचिओ जाएब मुदा अपने-आपसँ? कोनो उपाय नहि छैक अपनासँ बँचबाक । "

फेर मोन होइत-"अहाँ तँ स्वयं समस्या ठाढ़ केने छी? ने अहाँकेँ देह अछि ने माथ । लोकसभ ई बात बुझिओ रहल अछि । तखन अहाँक कोन दायित्व शेष रहि गेल जे एतेक व्यग्र छी?"

फेर दोसर मोन कहैत-"सबाल दायित्वक नहि छैक?"

"तँ कथीक छैक?"

"हमर अपने मोनमे एहि तरहेँ अन्तर्द्वन्द होइत रहल, ताधरि जाधरि ओ लहास अदृश्य नहि भए गेल । की भेल, कोना भेल तकर जिज्ञासा बनले रहि गेल ।

एना दृश्य-अदृश्य होइत घटनाक्रमसँ हम अचंभित छलहुँ। सभसँ बेसी चिंता महाकालक देल पिपही  रक्षा लए होइत छल । हमरा लगमे तँ जे छल से ओएह छल आ जँ ओ फेर गुम भेल तँ भगवाने मालिक । पिपही  कोड मोन रखबाक जतेक चेष्टा करितहुँ ततेक जल्दी ओ बिसरा जाइत छल । तेँ पिपहीसंगे  कोड बला कागजकेँ सम्हारि कए राखब बहुत जरूरी छल ।

निश्चय ई पिपही किछु विशेष छल । कीसभ एकर विशेषता छलैक से केओ  कहलक नहि ,ने ओकरा संगे कोनो सूची छलैक जे पढ़ि कए सभबात शुरुएमे बुझि लितहुँ । इएहसभ सोचैत रही कि कोड संख्या एक फेरसँ दबा गेल । फेर ओएह पूल देखा रहल छल मुदा ओतए लोकक भीड़ छटि गेल छल। तिरपितक लहास लेने किछुगोटे "रामनाम सत्य है" कहैत बहुत आगू चलि गेल छलाह मुदा श्याम अखनो पूलक कातमे पुलिस बला सभसँ गप्प कए रहल छलाह ।  मुदा ई की? ओ तँ बूढ़ लागि रहल छलाह । केसो पाकि गेल छलनि । समयक गतिक ताल-पातरा नहि बुझा रहल छल । हमरा तँ लागए जेना हम किछुए कालपूर्व अपन गामसँ अएलहुँ अछि। मुदा एतबे कालमे एतेक परिवर्तन कोना संभव भए सकैत अछि ? फेर भेल जे जरूर ओहूमे किछु रहस्य हेतैक । सोच-विचारक क्रममे पिपही  कोड संख्या नौ दबा गेलैक। औ बाबू! लगलैक जेना पुलिसक सायरन बाजि रहल अछि । रहि- रहि कए अबाज आबए लागल-

"की बात? हमरा किएक बजओलहुँ ?"

"हम कहाँ ककरो बजओलिऐक?"

"बेकारक बहस नहि करू। की पुछबाक अछि से बाजू नहि तँ फेर ई मौका नहि भेटत?"

"श्याम एतेक जल्दी बूढ़ कोना लागि रहल अछि?"

"लागि नहि रहल अछि, भए गेल अछि । मृत्युलोकक समयक गणना बहुत छोट छैक । दिव्यलोककक एकपलमे एतए कतेको बर्ख बीति जाइत अछि ।"

"ओ़! ई तँ अद्भुत अछि ।"

"जे अछि, से अछि, मुदा अहाँ कान खोलि कए सूनि लिअ। पिपहीक कोड सावधानीसँ प्रयोग करू । आब अहाँ लग मात्र दूटा अवसर अछि । तकरबाद की होएत से हमहूँ नहि जनैत छी ।"-से कहि ओ अबाज लुप्त भए गेल ।

-8-

 

पिपही आ कोड बला कागजकेँ नीकसँ रखलाकबाद सामने राखल बेंचपर सुस्ताइत छलहुँ। ओहिठाम करेटक -करेट दिव्यरस राखल छल । केओ  चौकीदारो नहि छलैक । जे जेमहर सँ आएल एकटा सीसी उठओलक आ गटकि गेल । फेर दोसर सीसी गटकि गेल । एहि तरहेँ सीसीपर सीसी ढ़ाड़ि रहल छल । दिव्यरसक प्रभावसँ  ओ सभ मस्तीमे नचैत-गबैत आगू बढ़ि जाइत छल । चारूदिस मनमोहक ओ मादक दृश्य छल । हमरा नहि रहल गेल। हम तर्र दए हाथ बढ़ओलहुँ आ सीसीकेँ अंदर केलहुँ। औ बाबू! जहाँ एकघोंट भीतर भेल हेतैक कि सौंसे देहमे जेना करेंट लागि गेल। आब होमए लागल जे रागिनी कहुना लगमे रहैत । हमहूँ नचैत-गबैत आगू बढ़ि जइतहुँ । एतबा सोचिए रहल छलहुँ कि सुनैत छी-

"की रागिनी, रागिनीक रट लगेने छी। एहिठाम कोनो लोकक कमी छैक जे अहाँ मृत्युलोक जकाँ भोकारि पारि रहल छी।"

किछु सोचितहुँ,किछु बुझितिऐक ताहिसँ पहिने एकटा अद्भुत सुंदर तरुणी हमरा देखाइत छथि । ओ देखैत सौंदर्यक पराकाष्ठा छलीह । सौंसे देहसँ जेना इजोत निकलि रहल छलैक। कहि नहि विधाता कोन क्षणमे हुनका गढ़ने हेताह? सुगंधसँ संपूर्ण वातावरण महमह करैत छल ।

"अहाँ के छी?"

"हम छी दिव्यपुरक प्रसिद्ध राजनर्तकी मंजुषा।"

"! अहाँक स्वागत अछि  ।"

मंजुषा दिव्यरसक दूटा सीसी अपने हाथे निकालैत छथि । एकटा सीसी अपने गट-गट अंदर कए लैत छथि आ दोसर हमरा दैत छथि।

"हम तँ कैकटा सीसी पहिनहि पीबि चुकल छी"

"कोनो बात नहि एकटा आओर सही ।"

दिव्यरसक असर ततेक जोरदार भेल जे पिपही किछु सोह नहि रहल । मंजुषाक संग रंग -रभस करैत काल ओकर कोनो बटन दबि गेलैक । बटन की दबेलैक,जुलुम भए गेलैक। आब तँ हमरा किछु नहि बुझाइत छल,किछु नहि देखाइत छल।

"आब की सोचि रहल छह । एतेक बुझा कए कहने रहिअह मुदा सीसीपर सीसी ढ़ारने जाइत छलह । पिपही तँ सम्हारि कए रखितह ।"

"अहाँ के छी?"

" तिरपित, तोहर मास्टर ।"

"एहिठाम की कए रहल छी? अहाँक तँ लहास देखने रही। ओहिदिन पुल लग लोकक मेला लागल छल । सभ श्यामकेँ गरिआ रहल छल । "

" ओ तँ बहुत पुरान बात अछि ।"

" हमरा तँ किछुए काल पूर्व ई देखाएल छल ।"

"छोड़ह ई गप्प-सप्प । केओ सुनि लेतह तँ मोसकिलमे पड़ि जेबह ।"

"से किएक? '

" ई अंधलोक थिक । एहिठाम हम तोरासँ गप्प करबाक हेतु अधिकृत नहि छी ।"

"से किएक?"

"बेसी कबाइत नहि पढ़ह । भागह ......"

 

-9-

 

अंधलोकमे चारूकात अन्हारे-अन्हार छल । एहिठाम सौंसे दुनिआँक लोकसभ फँसल छथि । हुनका लोकनिक आत्मा एहिठाम बौआइत रहैत अछि । ककरो शांति नहि,कोनो सुख नहि,सभ परेसान,व्यग्र ,अभावग्रस्त । मृत्युलोकसँ देह तँ छुटि गेलैक तथापि ओकरसभक मोन ओतहि अटकल छल । एहन ठाम तिरपित कोना पहुँचि गेलाह? असलमे भेलैक ई जे अपने ओहिठामक केओ  किरानी अंधलोकक हिसाब-किताब करैत छल। ओ बहुत दिनसँ एहि काज केँ करैत-करैत काजमे माहिर भए गेल छल । सभकेँ ओकरापर विश्वास रहैक । तकरे ओ फएदा उठओलक आ घोटाला कए देलक । जाबे-जाबे बात खुजलैक ताबे तँ बहुत किछु भए गेल छल। तखन की कएल जाए । ओकरा तँ हटा देल गेल मुदा काज कोना चलत? ताबते तिरपित ओतए पहुँचलाह । जेबाक तँ हुनका दिव्यपुरम रहनि मुदा महाकाल हुनकर इमान्दार छवि देखि अंधलोकक तहसीलदार बना देलाह । ईहो  एक तरहें  हुनकर नियति छल अन्यथा ओ दिव्यलोक छोड़ि अंधलोक किएक जइतथि?

पिपही  बटन कनिको एमहर-ओमहर होइक आ हम कतएसँ कतए फेका जाइत छलहुँ। एहन तँ कहिओ नहि देखने रहिऐक । कतहु-ने-कतहु हमरा बुझबामे दिक्कति भए जाइत अछि आ अछैते पिपहीकेँ  हम बौआ रहल छी"- हम सएह सभ सोचैत अंधलोकक चौकपर ठाढ़ रही कि कोनो परिचितक अबाज सुनबामे आएल ।

"अहाँ के छी?"

" ई तँ अहाँकेँ स्वयं बुझबाक चाही।"

"बुझौअलि नहि बुझाउ । साफ-साफ कहू ।"

"इएह तँ अहाँक दिक्कति अछि । "

"जखन से बुझि रहल छी तँ हमर रस्ता सोझरा किएक नहि दैत छी?"

"ई हमर काज थोड़े थिक ।"

"मुदा अहाँ छी के?"

"अन्तर्दृष्टि"

"से की भेलैक।"

"लएह । हम कहैत रही जे हम अहाँक प्रश्नक जबाब नहि छी कारण अहाँक लगमे हम छीहे नहि ।"

"कारण?"

" एहि प्रश्नक उत्तर तँ नियतिए दए सकैत छथि ।"-एतबा कहि ओ ओहिठामसँ लुप्त भए गेलाह । हुनका जाइत-जाइत ततेक प्रकाश भेल जे तकरे इजोतमे पिपही देखाएल । हम ओकरा लपकि लेलहुँ । एहिबेर हम पक्का निर्णय केलहुँ जे पिपहीकेँ आब एमहर-ओमहर नहि होमए देब।

"मुदा अहाँक चाहने की होएत?"

" अहाँ छी के?"

" अहाँक नियति ।"

"ओ तँ अहीँक द्वारे हमरा ई सभ परेसानी अछि ।"

"हमरा द्वारे किएक होएत?"

"तखन?"

"तखन की?"

"किछु तँ स्पष्ट करिऔक जाहिसँ हमर आगूक रस्ता साफ होअए । हम बुझि सकी जे आब हमर गंतव्य की अछि । हम कतहु चैनसँ रहि सकैत छी कि एहिना बौआइत रहब ।"

"सभटा जखन अहीँ बुझि जेबैक तखन नियति की भेलैक?"

"मुदा नियतिओक पाछू तँ कथुक हाथ हेतैक ।"

"छैक किएक नहिॅ? "

" एना बुझौअलि नहि बुझाउ ।"

"मानि लिअ जे हम अहाँकेँ बुझाए देब तँ अहाँकेँ चैन होएत? नहि होएत? अहाँ फेर एकटा नव प्रश्नक संग ठाढ़ रहब।"

" से किएक?"

"कारण अहाँक इएह नियति अछि ।"

ओकर सबाल- जबाब सुनि हम निरुत्तर भए गेलहुँ । हमरा छगुन्तामे देखि ओकरा दया आबि गेलैक । फेर अपने बजैत अछि-

"नियति किछु नहि, अहीँक पूर्व कर्मक प्रतिबिम्ब अछि । एकरा अहाँ किछु नहि कए सकैत छी । जे अहाँ कए सकैत छलहुँ से कए चुकल छी । आब तँ ओ अपन काज कए रहल अछि ।"

"मुदा हमरा अहिसभ सँ मुक्ति कोना भेटत? कोनो रस्ता होइक तँ कहू।"

"रस्ता तँ अन्तर्दृष्टिएसँ भए सकैत अछि।"

"मुदा से हमरा कहिआ आ कोना भेटत?"

"प्रतीक्षा करू ।"

से कहि ओ अबाज लुप्त भए गेल । कतबो प्रयास केलहुँ ओ वापस नहि आएल, दोबारा ओकरा नहि सुनि सकलहुँ । चारूकात एमहर-ओमहर  बौआइत रही । भेल जे जाबे हमर हिसाब नहि फरिछा रहल अछि,जाबे नियति हमर दिसा स्वयं नहि तय कए दैत छथि ताबे एहि पिपहीकेँ  सम्हारि कए राखी। एहीमे कल्याण अछि ।

"सेहो तखने होएत जखन नियतिकेँ से मंजूर होइक ।"

से सुनितहि मोन भेल जे ठोहि पारि कए कानी । कहिअनि-

"हे विधाता!  हमरापर दया करू । "

मुदा हम असमर्थ भेल ओहिना अंधलोक चौराहापर ठाढ़ रहि गेलहुँ । संभवतः हमर इएह निएति होअए-?"

-10-

 

हम पिपहीकेँ  सम्हारि कए रखबाक प्रण कए लेने रही मुदा ओकरा रखितहुँ कतए? ने अंगा छल ,ने जेबी,ने बटुआ । एहनो समय हेतैक से नहि सोचने रही । हमही एतेक दुबिधामे छी की आओरो लोकसभ अहिना परेसान अछि?किछु कहल नहि जा सकैत अछि । सुनने रहिऐक जे मृत्युसँ जीवनक अंत भए जाइत अछि । जीवनक जे होइत होइक मुदा समस्याक अंत तँ नहिऐ होइत बुझा रहल अछि । मौजपुर हो वा लखनपुर सभगामक लोकसभ गाहे-बगाहे एतहि पहुँचि गेलाह । बात ओतबे रहितैक तँ कोनो बात नहि । देश-विदेशक लोकसभ एहिठाम विद्यमान छथि,समयक घात-प्रतिघात सहि रहल छथि । किछुगोटे एहनो छथि जे एखनो मृत्युलोकमे अपन अर्जित अकूत संपत्तिकक हेतु बेचैन छथि ।

एहने एकटा व्यक्ति छलाह  श्याम । कहि नहि कहिआ आ कोना अंधलोकक द्वारिपर पड़ल छथि । रौद,बसातसभ लागि रहल छनि । कोनो प्रकारक सुविधा नहि भेटि रहल छनि। चाही सभटा,भेटि किछु नहि रहल छनि । पिआस,भूखसँ छटपटा रहल छथि । समाधान किछु नहि । तिरपित कैक बेर अबैत-जाइत हुनका देखैत छथि । हुनकर बास अंधलोकेमे छनि । श्यामक दशापर हमरो दया अबैत रहैत अछि।

पिपहीकेँ  बेर-बेर उलटि-पुलटि कए किछु करबाक प्रयासमे रही । हमरा बसमे आओर किछु छलहो नहि । तिरपित जँ देखेबो करितथि तँ बेसीकाल टरका दैत छलाह । असलमे ओ अपने काजसँ बहुत व्यस्त छलाह । महाकालक विश्वस्त हेबाक कारण सभटा संवेदनशील फाइल हुनके जिम्मा छल । किछुदिन पहिने भेल धांधलीमे बहुतरास फाइलसभ एमहर-ओमहर भए गेल रहैक। तकर जाँच-पड़ताल चलिए रहल छल मुदा एखन धरि किछु निजगुत पता नहि चलि सकल । तिरपिते एहन व्यक्ति छलाह जिनका हम जनैत छलिअनि,जे महाकालक कृपापात्र छलाह । मुदा ओ तँ सदिखन अपन काजमे लागल रहितथि । ककरोसँ,कथुसँ, किछु लेना-देना नहि । जखन कखनो गप्प करबाक प्रयास करी हुनकर संग चलि रहल अंगरक्षकसभ भयावह रूप धए लैत ।  हम सकपका जाइत छलहुँ । तिरपित काका हँसि दितथि आ आगू बढ़ि जइतथि। मोने-मोन सोची जे तिरपित तँ एहन निसोख नहि छलाह । कैक बेर इसारासँ ओ किछु बुझेबाक प्रयास करितथि मुदा हम बुझितिऐक तखन ने?

हमर ने कोनो बगए छल ने कोनो ठेकान । कालक वशीभूत भए चारूकात बौआ रहल छलहुँ । एहिना एकदिन  एकटा चौक लग बैसल छलहुँ । ओहिठाम एकटा मार्गदर्शक लागल छलैक जाहिमे तीनटा दिशासूचक पट्टिका छल । सभसँ ऊपर दिस दिशा निर्देश करैत उज्जर रंगक पट्टिका छल जाहिमे लिखल छल-दिव्यलोक  । बीचमे एकटा कारी रंगक पट्टिका छल जाहिमे नीचा दिस जेबाक संकेत बनल छल आ ओहिमे लिखल छल अंधलोक। सभसँ नीचा छल हरिअर आ पिअर रंगक पट्टिका जाहिपर लिखल छल मृत्युलोक । मृत्युलोकक दिशा सोझे सामने देखा रहल छल । कहक माने जे ओहिठामसँ एहि तीनूलोकमे गेनिहार लोकसभ गुजरैत छलाह । हम मोने-मोन सोचलहुँ जे ई तँ अद्भुत चौक अछि। किएक ने एतहि किछु काल बैसल रही । भए सकैत अछि जे किछु चमत्कारे भए जाए, हमरो कोनो ठेकान लागि जाए ।

ओहिठाम चुक्कीमाली बैसि गेलहुँ । बैसबाक क्रममे  पिपही  नौ नम्बरक बटन दबि गेलेक। औ बाबू तकरबाद तँ निरंतर  अबाज आबए लागल-"महाकालक दरबारमे अहाँक स्वागत अछि । आ से ततेक तरहक भाषामे  दोहराओल जाइक जे मैथिलीमे घोषणा सुनबाक हेतु कतेको काल धरि प्रतीक्षा करए पड़ि रहल छल । सोचलहुँ जे अगुताइ नहि । हम चुपचाप सुनैत रहलहुँ । जहाँ मैथिलीमे घोषणा भेलैक की तर्र दए बजलहुँ॒-

"हमरा ई कहू जे हमर हाथक पिपहीमे   की-की सुविधा अछि आ एकरा नीकसँ केना चलाओल जा सकैत अछि जाहिसँ एकर व्यापक उपयोग होइक ।"

" एतेक दिनसँ ई पिपही अहाँक हाथमे अछि आ अहाँ आब ई प्रश्न कए रहल छी ।"

"हमरा माफ करू । हम बहुत परेसानीमे समय काटि रहल छी । कखनो किछु, कखनो किछु भए जाइत अछि ।"

"सभक जड़ि अछि अहाँक नियति । एकरासँ पछोड़ छुटब असंभव थिक । ई पिपही अहाँक बहुत मदति कए सकैत छल । नियतिवश अहाँ सेहो ठीकसँ नहि कए पाबि रहल छी ।"

"एकर समाधान किछु छैक कि नहि?"

"एहिठाम मौजपुर आ लखनपुर बला गप्प तँ छैक नहि जे लोक दोसरक मामिलामे टांग अड़बैत रहए। अहाँ इएह करबाक अभ्यस्त रहबाक कारण लगातार परेसानीमे पड़ि जाइत छी।"

"तखन की करी?"

" ध्यानसँ सुनू । अहाँक पिपही एही लेल देल गेल अछि जे अंतरदृष्टि सक्रिय हेबा धरि अपन समय सुखपूर्वक बिता सकी । एहिमे सभ साधन छैक । एकर कोड हम बजैत जाइत छी, अहाँ ध्यानसँ सभटा सुनैत जाउ । अहाँक सभ समस्याक समाधान अपने होइत रहत ।"

तकरबाद ओ पिपहीमे देल गेल तरह-तरहक सुविधा आओर तकरा प्राप्त करबाक हेतु कोडक जानकारी देबए लगलाह। शुरुएमे कहैत छथि-

" अहाँ तँ एकबेर हेल्पलाइनक उपयोग कए चुकल छी। आब मात्र दूटा अवसर अहाँक लग अछि । तकरबाद ई पिपही निष्क्रिय भए सकैत अछि । एहि बातसँ सावधान रहब। " तकरबाद ओ धराधर कोड बजैत गेलाह । मुदा हमरा तँ किछु मोन नहि रहल "-हम कहलिअनि।

" अहाँ एहन डपोरसंख कहिआसँ भए गेलहुँ । हम फेरसँ सभ किछु दोहरा रहल छी जँ अहाँ एहूबेर ध्यान नहि रखलहुँ तँ अहाँक भगवाने मालिक । हमरा आनोठामक काज देखबाक अछि। दरबारमे बहुत लोकक जिज्ञासा आबि रहल अछि । हम अहींमे लटकल नहि रहि सकैत छी ।"

तकरबाद फेर ओ कोडसभ आ तकर काज कहि गेलाह । हम सतर्क रही । मुदा भेल ओएह । जतेक प्रयास केलहुँ सभ व्यर्थ चलि गेल । तीनटा कोड मात्र ध्यानमे रहल , शेष सभ फुर्र भए गेल।


 

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