१.१३.सुनिल कुमार ‘भानू’-गहबरक बाटपर संघारामक पाखंड आ समाजक यथार्थ
सुनिल कुमार ‘भानू’
(युवा लेखक)
गहबरक बाटपर: संघारामक पाखंड आ समाजक यथार्थ
बौद्ध धर्म अपन अवनतिक बाट पर चलि रहल छल। बज्रयानक (बौद्ध वाड़्गमयमे दू मतक चर्चा अछि पहिल हीनयान आ दोसर महायानक। बादमे महायानक रूपांतरण बज्रयान पंथक रूपमे भए गेल छल से देखबामे अबैत अछि।) शाखा बौद्ध धर्ममे भिक्षुणीक उपस्थिति बढ़ा देने छल। ई बौद्ध लोकनि साधनाकेँ अपन फायदा लेल एकटा नब रूप दए देने छल। पंच मकार (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा एवं मैथुन)क नामपर ई लोकनि खुलेआम व्यभिचार करय लागल छलाह। ई लोकनि अपन यौन उच्छृंखलताकेँ एकगोट दार्शनिक चोंगा पहिरा देने छल, जकरा ई लोकनि ‘महासुखवाद’ कहैत छलाह। एहि महासुखवादक मुख्य आधार छल संभोग। जकरा लिये निम्नवर्ग केर कन्याकेँ इ सभ ‘नायिका’ बनबैत छलीह जे ‘मुद्रा’ कहबैत छल आ जकरा समाधीक मुख्य साधन मानल जाइत छल। ई व्यभिचार हुनका सभकेँ एतेक उदंड बना देने छल जे ओ सभ बुद्धक उपदेश धरिकेँ कतिआएब शुरू कए देने छल। पाला राजा जे शूद्र वर्णक बौद्ध मतावलम्बी छलाह, एहि बज्रयानी लोकनिक आदर करैत छलाह, हुनका प्रोत्साहन दैत छलाह आ जरूरत पड़लापर हुनका सभकेँ राज्याश्रय सेहो दैत छलाह। एहन स्थि तिमे सनातन धर्मक की हाल होइत हेतेय तकर अंदाजा लगा सकैत छी। मुदा एहनो परिस्थिजतिमे सनातन धर्मक किछु ध्वलजवाहक छलाह जे सनातन धर्मक झंडा बुलंद केने छलाह। ओ नहि मात्र समजाकेँ जगेबाक काज करैत छल अपितु अपन धर्मक रक्षा लेल एहन-एहन दुराचारीक भंडा सेहो फोड़ैत छलाह। महिषी ग्राम वासी मंडन मिश्र छलनि। हुनका आ हुनक गामकेँ केन्द्रधमे राखि पंडित भवनाथ अपन पहिल मैथिली उपन्यागस लिखने छलाह ‘गहबरक बाटपर’
मैथिली साहित्यमे भवनाथ झा एकगोट चर्चित नाम छथि। हाँ, हुनक रचना बहुत रास प्रकाशित नहि अछि मुदा मैथिली लिपी आ पांडुलिपीपर हुनक जे काज अछि से स्तुात्यर अछि। एहिठाम हुनक एकगोट अप्रकाशित उपन्यास गहबरक बाटपर जे बौद्धकालीन संघारामक पृष्ठभूमि पर लिखल गेल अछि तकर चर्च अछि। ई कथा केवल भूतकालक इतिहास नहि, अपितु समाजक भीतर चलैत धार्मिक पाखंड आ नैतिक पतनक कथा सेहो कहैत अछि।
उपन्यासक मुख्य केंद्र एकटा संघाराम अछि -एकटा विशाल मठ, जे बाहरसँ ज्ञान, ध्यान आ साधनाक केन्द्र देखाइत अछि। मुदा भीतरक स्थिति भिन्न अछि। तथाकथित महाश्रमण आ भिक्षु लोक धर्मक नाम पर तंत्र-मंत्र, जादू-टोना आ यौनाचार करैत छथि। साधनाक नाम पर जनताकेँ लोभाकेँ आ विशेष रूपसँ स्त्रीक शोषण करैत अछि।
लेखक एहि माध्यम सँ देखाबैत छथि जे जखन धर्मक मूल स्वरूप भ्रष्ट भs जाइत अछि, तखन ओ जनसामान्य लेल बोझ भए जाइत अछि। संघारामक भिक्षु राजनीति आ सत्तासँ मिलि अपन स्वार्थ साधैत छथि। राजा लोक सेहो एहि तथाकथित चमत्कारक सहारा लैत छथि। परिणामस्वरूप जनता शोषणक शिकार बनैत अछि।
उपन्यासमे मण्डन मिश्र नामक पात्र वैदिक संस्कृति आ नैतिक मूल्यक प्रतिनिधि अछि। ओ बौद्ध संघारामक पाखंडक विरोध करैत छथि आ धर्मक सच्चा स्वरूपक रक्षा करबाक कोशिश करैत छथि। एहि संघर्ष मे समाजक असली प्रश्न सामने अबैत अछि, ‘की धर्म मनुष्य लेल अछि, कि मनुष्य धर्म लेल’?
आलेखक दृष्टिकोणसँ गहबरक बाटपर मात्र ऐतिहासिक कथा नहि, बल्कि चेतावनी सेहो अछि। जेना ओहि समय धार्मिक संस्था पाखंड आ भ्रष्टाचारक केन्द्र बनि गेल छल, ओहिना आधुनिक समाजमे सेहो एहेन खतरा मौजूद अछि। धर्म आ राजनीति जखन मिलि जाइत अछि, तखन समाजक दुर्बल वर्ग शोषणक शिकार बनैत अछि।
भवनाथ झा अपन कथा आ शैली सँ स्पष्ट कएलनि अछि जे धर्मक शक्ति केवल करुणा, दया आ सत्यपर टिकल रहि सकैत अछि। जखन ओ शक्ति स्वार्थ आ लोभक अधीन भए जाइत अछि, तखन ओ मानवता लेल घातक सिद्ध होइत अछि।
मैथिली उपन्यास परम्परामे कतिपय कृति एहन अछि, जकरा केवल कथा साहित्यक दृष्टिसँ नहि, अपितु समाज-इतिहासक दर्पण रूपेँ सेहो देखल जा सकैत अछि। भवनाथ झाक गहबरक बाटपर एहनहि एकटा कृति अछि। उपन्यासक आरंभमे संघारामक भव्यता वर्णित अछि - विशाल करजान, सुंदर मूर्तिसभ, मण्डप, पोखर आ भिक्षुसभक जप-तप। एहन दृश्य पाठकक मोनमे पवित्रता आ श्रद्धा जगबैत अछि। मुदा धीरे-धीरे परदा हटैत अछि आ संघारामक भीतरक यथार्थ बाहर अबैत अछि। साधनाक नाम पर तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत, यौनाचार आ राजनीति-संधि, ई सब संघारामक असली चेहरा अछि।
धर्मक नामपर होइत ई आचरण केवल धार्मिक विकृति नहि, बल्कि समाजक नैतिक पतनक संकेत सेहो अछि। साधनाक बहाना बनाकि स्त्रीक देहक उपभोग, भोला जनता केँ छलि आ शोषित करब -ई सब उपन्यासक मुख्य सरोकार अछि।
पंडितजी उपन्यासक माध्यमसँ देखबैत छथि जे जखन धर्म आ राजनीति एक दोसरक सहारा बनैत अछि, तखन जनता सबसँ बेसी पीड़ित होइत अछि। राजा लोक अपन सत्ता सुरक्षित करबाक लेल संघारामक महाश्रमणपर निर्भर करैत अछि, आ महाश्रमण राजाश्रयक बदलामे अनैतिक साधना करैत अछि। एहि गठजोड़क परिणाम समाजक दुर्बल वर्गक शोषण रूपेँ देखाइत अछि। उपन्यासमे मण्डन मिश्रक वैदिक परम्परा आ नैतिक मूल्यक प्रतिनिधि छथि। बौद्ध संघारामक पाखंड आ विकृति देखि ओ प्रतिवाद करैत छथि। मण्डन मिश्रक माध्यमसँ लेखक वैदिक संस्कृति आ बौद्ध धर्मक टकरावकेँ उजागर करैत छथि, मुदा हुनकर मर्म ई अछि जे कोनो धर्म यदि मानवताक सेवा आ नैतिकता सँ अलग भए जाइत अछि, तँ ओ विनाशक कारण बनैत अछि।
गहबरक बाटपरमे स्त्री मात्र गृहस्थ जीवनक पात्र नहि, बल्कि धार्मिक साधनाक नामपर शोषणक साधन सेहो बनि गेल अछि। दीक्षा लेल पवित्रताक बहाना, कुमारी कन्याकेँ कपासक सूत्र सँ बान्हनाइ, यौनाचारक कुरीति - ई सब घटनासभ उपन्यासमे स्त्रीक पीड़ादायक स्थिति देखबैत अछि। ई चित्रण केवल इतिहासक नहि, बल्कि पितृसत्तात्मक समाजक सतत् विडम्बनाक प्रतीक अछि।
गहबरक बाटपर मैथिली साहित्यक एकटा ऐतिहासिक उपन्यास जरूर अछि, मुदा एकर प्रासंगिकता कालातीत अछि। ई उपन्यास पाठक केँ चेतावनी दैत अछि जे पारदर्शिता, नैतिकता आ मानवता बिना कोनो धर्म आ संस्कृति टिकि नहि सकैत अछि।
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