१.८.भैरव लाल दास-पं.भवनाथ
झाक शोध दृष्टि

(महात्मा गाँधी विशेषज्ञ, गाँधी जीपर अनेक पोथी प्रकाशित, शोधकर्ता। संपर्क-9430606724)
पं.भवनाथ झाक शोध दृष्टि
पं. भवनाथ झाक शोध दृष्टि व्यापक छनि। ओहूमे मिथिलासँ संबंधित कोनो विषय हिनका सम्मुख आबि जाए त’ जाबत धरि विषयक ओर-छोर सोझरा नहि लेताह, विश्राम नहि लेताह। हमरा लेल ई एकटा व्यक्ति नहि, संस्थाक समान छथि। हिनका पर भगवानक कृपा छनि जे ई शोध करैत छथि, प्रकाशक छथि, कम्प्यूटर सँ संबंधित सब विधाक जानकार आ अभ्यासी सेहो छथि। इएह कारण अछि जे पं. भवनाथ झा ‘ब्राह्मी’ नामक एकटा वेबपेज स्वयं विकसित केलन्हि आ आइ हुनक कएल गेल काज ब्राह्मी वेबपेज पर सेहो उपलब्ध अछि। बहुमुखी प्रतिभाशाली छथि। संस्कृत, मैथिली आ अंग्रेजी विषयक नीक ज्ञाता। धर्मग्रन्थ आ पुराभिलेखक नीक शोधार्थी। मिथिलाक्षरक उद्भट विद्वान। आ सबसँ पैघ बात जे अत्यंत सोझमतिया, सरल, सहज व्यक्ति। लोभ-लाभ सँ दूर रहए वला व्यक्ति। पहिने संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगामे सेवारत छलाह। ओहि विश्वविद्यालयक तत्कालीन कुलपति आचार्य किशोर कुणालजीक नजरि हिनक काज पर पड़लनि। ओ हिनका अपना संगे पटना आनि, हनुमान मंदिरक शोध एवं प्रकाशन पदाधिकारीक दायित्व द’ हिनका तेहेन ने ओझरौलखिन जे ओ पटनाक नागरिक बनि क’ रहि गेलाह। व्यक्तिगत रूपसँ एहि सँ पंडितजी सेहो लाभान्वित भेलाह कारण पटना एलाक बाद हिनकर काज राष्ट्रीय आ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पसरैत गेलैन।
पं. भवनाथ झा मिथिलाक्षर वा तिरहुताक उद्भट विद्वान छथि। एतबहि नहि, एहि लिपिक कम्प्यूटर फॉंटक संधारणमे सी-डैक, पुणेक मार्गदर्शक सेहो छथि। कतोक विद्वत गोष्ठीमे मिथिलाक्षरक स्वरूप निर्धारणक क्रममे हिनक स्पष्टत अभिमत सँ विद्वान लोकनि पुन: विचारार्थक प्रस्ताव स्वीकार केने छथि। मिथिलाक्षरक प्रस्तर अभिलेख पाठनमे हिनक विद्वताक उपयोग हमरा लोकनि सेहो केने छी। दरभंगामे मिथिला विश्वविद्यालय परिसरमे स्तंभ अभिलेखक लेल बिहार सरकार विशेष रूप सँ हिनका सँ सहायता लेने छल। तदनुसार सहोदरा अभिलेख, सिमरौनगढ़ अभिलेख स’ ल’ क’ आनो-आन प्रस्तर अभिलेखक काल निर्धारणमे पंडितजी अपन स्पष्ट विचार देने छलाह। एहि क्रममे सिमरॉंवगढ़ प्रस्तर मूर्त्तिक प्रसंग विशेष उल्लेखनीय अछि।
मिथिलाक्षरक प्राचीनता आ प्रसारक कारणे एकर लिखावटमे परिवर्तन आएब सामान्य प्रक्रिया मानल जेबाक चाही। बहुत विद्वान लोकनि एखनो भ्रम पसारबामे लागल छथि जे मिथिलाक्षर बेसी पुरान लिपि अछि वा बांग्ला-आसामी लिपि। एहि चकचोन्हीमे कतोक बेर सरकारक अधिकारीलोकनि सेहो आबि जाइत छथि आ अलर-बलर तथ्य पर आधारित निर्णय ल’ क’ नाम हँसबैत छथि। पं. भवनाथ झाक व्यक्तित्व एहन छनि जे ओ कोनो भावावेशमे आबि तथ्य सँ दूर नहि भ’ सकैत छथि। नीर-क्षीर विवेक। मुदा एहन लोकक उपयोगिता वैह क’ सकैत अछि जिनका सत्यक लगमे ठाढ़ हेबासँ शीतलताक अनुभव होए। मिथिलाक्षरसँ पुरान लिपि ब्राह्मी अछि। की ई मानल जा सकैत छैक जे ब्राह्मी लिपि आ बांग्ला-आसामी लिपिमे कोनो अंतर नहि छैक। मुदा उच्च पागवला सब निम्नस्तरीय शोधक पछुआरिमे ठाढ़ भ’ क’ किछु एहन निर्णय करैत छथि जेकर खिधांश होयब अवश्यंभावी अछि। पटना संग्रहालयक सभागारमे आयोजित विद्वत गोष्ठीमे पं. भवनाथ झा पावर प्वायंट पर एक बेर अपन शोध प्रस्तुति देने रहथिन जे मिथिलाक्षरक प्रभाव बांग्ला लिपिक कोन-कोन आखर पर कोना-कोना पड़लैक। एतबहि नहि, मिथिलाक्षरक आखरक स्वरूपमे कोना-की परिवर्तन भेलै, ताहि पर सेहो हिनक शोधक प्रस्तुति छलनि। मिथिलाक्षरक इतिहासमे कतोक परिवर्तन भेल अछि। पाथर, मूर्त्ति वा देवालय आदि पर लिखल मिथिलाक्षर सँ आरम्भ भ’ क’, पाण्डुलिपि, कागज, सामान्य जन, प्रिंट, कम्प्यूटर फॉंट धरि आबी त’ लिखावटमे भिन्नता भेटब स्वाभाविक अछि। मुदा विद्वतजन समय-समय पर एकरा सम्हारैत रहलखिन जाहि सँ आम जनकेँ कोनो भ्रम नहि होइन। संगहि आखरक स्वरूपमे एकरूपता सेहो रहए। मुदा केओ मिथिलाक्षरक आखरमे बांग्ला लिपिक आखरक फेंट-फांट करबाक प्रयत्न करत, एहि तरहक प्रयत्नकेँ प्रिंटमे आनत त’ बुझू जे हमर पंडित भवनाथ झा फराठी ल’क’ मिथिलाक सीमान पर ठाढ़ रहता। कोनो चिन्ता नहि करताह जे हम एसकरे छी कि बहुत लोग संगे अछि, मुदा अपन मिथिलाक्षरक मौलिकताक लेल सदैव सिपाही बनल रहता।
पं. भवनाथ झाक शोध मौलिक होइत छनि। एहि क्रममे ओ पूर्व निर्धारित ऐतिहासिक अवधारणाकेँ खंडित करबा सँ कोनो तरहक परहेज नहि करैत छथि। एहि लेल एकटा शोधज्ञके जे दृष्टि चाही, जतेक शोध सामग्रीक सहायता चाही अथवा तथ्यकेँ रखबाक लेल जतेक तरहक लूरि चाही, ओ सबटा पंडितजीमे छनि। एकर एकटा उदाहरण देबाक अनुमति चाहैत छी। मिथिलाक कतोक स्थलक ऐतिहासिकता संबंधमे बेर-बेर प्रश्न उठब स्वाभाविक अछि। जनकपुरक मादे किछु इतिहासकार प्रश्न उठौलनि जे जँ ई राजा जनकजीक राजधानी छलनि त’ निश्चित रूप सँ एहि शहरक इतिहास रामायणकालीन हेबाक चाही। कोनो शहरक इतिहासक निर्धारण ओहि ठाम भेल उत्खनन सँ सिद्ध कएल जा सकैत छैक किएक त’ उत्खननमे प्राप्त पुरावशेषक वैज्ञानिकता एकरा प्रमाणित करैत अछि। किछु इतिहासकारक कथन छनि जे वर्तमान जनकपुर ततेक पुरान नहि अछि कारण वर्तमान सीता मंदिरक निर्माणक इतिहास सोझॉं अछि। पं. भवनाथ झा लग सेहो एहि तरहक ऐतिहासिकता पर वाद-विवाद आयब कोनो नव बात नहि। ओ विद्यापतिक ‘भूपरिक्रमणम्’ नामक ग्रंथक संदर्भ दैत मिथिलाक बहुत रास गाम-ठामक वर्णन अपन शोधालेख मे केलैनि। एतबहि नहि अंग्रेज अधिकारीक प्रतिवेदन आदिक संदर्भ दैत ओ खूब मजगर शोधालेख तैयार केलैनि। पंडित भवनाथ झा लिखैत छथि जे रामानन्दी वैष्णवक प्रभाव सँ जनकपुरकक पर्याप्त विकास त’ भेल मुदा एहि कातक पुरान धर्मस्थल अवडेरल गेल। बेसी सँ बेसी भक्त लोकनि जनकपुर आबथि ताहि लेल रामानन्दी वैष्णव सब किछु धर्मोत्तर प्रचार सेहो केलनि। 1894 ई. मे एहि क्षेत्रक गाछक निचला, सबसँ मोटका भागमे माटिक लेबा लगाक’ ओहि पर मानव केशक अंश साटि देबाक घटनामे अनायास वृद्धि भेलै। लोकक नजरिमे रहस्यमय घटना छल। अफवाह उड़ल जे स्वयं हनुमानजी एकटा पोखरि खुनला आ हुनका हाथमे जे माटिक गिलेबा लगलनि, से ओ गाछ सबमे पोछि देलाह। ईहो जे एहिमे साटल केश जे देखा रहल अछि से वस्तुत: हनुमानजीक रोईयाँ छनि। ई घटना कोनो एक गाम मे नहि, गामक-गाम मे देखल गेल। जतेक मुँह ततेक बात। किछु लोकक कहब छलनि जे हनुमानजी हमरा लोकनिकेँ जनकपुर बजा रहल छथि। बहुत लोक एकरा जादू-टोना सँ सेहो जोड़ लगला। लोक सब जनकपुरो जाइ गेलाह, मुदा एहि तरहक कोनो बात नहि देखेलैन। एकर प्रचार ततेक भ’ गेलै जे बात इंग्लैंडक हाऊस ऑफ कॉमन्स तक चलि गेलै आ ओत’ एकर जॉंच करेबाक आश्वासन देल गेलै। बंगाल सिविल सर्विसक अधिकारी डब्ल्यू एजार्टन द्वारा जुलाई, 1894 ई.मे एकटा विस्तृत रिपोर्ट तैयार कएल गेल जकर प्रकाशन लन्दनक सैम्प्सन लॉ, मार्स्टन एंड कम्पनी सँ प्रकाशित ‘ द नाइन्टीन्थ सेंचुरी नामक पत्रिकाक 36वां अंकमे 1894 ई.मे भेल। एजार्टन साहेब एहि निष्कर्ष पर पहुँचला जे जनकपुरक मेलामे भक्तक भीड़ जमा करबाक लेल, जनकपुरक प्रचार-प्रसारक लेल एहि तरहक रहस्यमय काज साधु द्वारा कराओल गेल छल जाहिसँ जनकपुरमे बेसी-सँ-बेसी चढ़ौआ आबए आ साधु-संतकेँ भोजनादिमे दिक्कत नहि होइन।
एहन प्रतिवेदनक संदर्भ सँ धर्मस्थानक व्यापारक दोसर स्वरूप सामने अबैत अछि। एहि तरहक प्रयास आईयो भ’ रहल अछि। समाज वैज्ञानिकक लेल पंडित भवनाथ झा द्वारा कएल गेल एहि रिसर्च मात्र एकटा नवीन दृष्टिकोण उपलब्ध करबैत अछि। धर्म आ आस्था फराक विषय अछि आ धर्म-आस्थाक संग जुड़ल व्यापार दोसर विषय। जखन दुनू एक संग भ’ जाइत अछि त’ धर्मस्थानक प्रति लोकक आस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ैत छैक। पंडितजीक एहन तरहक शोध समाजक लेल सेहो अत्यंत गुणकारी अछि। मिथिलाक संदर्भ लेल जाए त’ एहिठाम पंचदेवताक पूजनक परम्परा रहल अछि। मुदा समाज एहि सोचके एकांगी रूपसँ देखैत अछि। एहिठाम बौद्ध, जैन, मुसलमान धर्मक इतिहासक साक्ष्य सेहो भेटैत अछि। कोनो ऐतिहासिक तथ्यकेँ स्वीकार करी आ एकरा संग आन संदर्भक इतिहासककेँ स्वीकार नहि करी, ई कोनो बौद्धिकताक परिचायक नहि अछि। कारण अंतिम सत्य किछु नहि होइत छैक। जाहि सत्य सँ आइ परहेज होयत, काल्हि दोसर रूपमे समाजक सोझॉं आयत। पंडित भवनाथ झाक इतिहास दृष्टि कनेको झलफलाइत नहि छनि। ओ सत्यक आश्रयमे सदैव रहबाक प्रयत्न करैत रहलाह अछि।
पंडितजीक एकटा श्रमसाध्य काज पांडुलिपिक अध्ययन सेहो अछि। एहि लेल आब जो बिहार प्रान्तहि नहि, आसाम, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदिक कतोक संस्थाक संग जुडि़ नव पीढ़ीकेँ पाण्डुलिपि अध्ययनक जटिलताकेँ दूर करबाक प्रयत्न क’ रहल छथि। भारतक लिपिशास्त्रमे समानता सेहो छैक कारण बेसी लिपि ब्राह्मी सँ निकलल लिपि अछि। जँ जडि़क पर्याप्त अध्ययन भ’ जाय आ मूल लिपिक विस्तारक अध्ययन आ अभ्यास भ’ जाय त’ एहि लिपिसँ निसृत आन-आन लिपिक अध्ययन सुगम भ’ जाइत छैक। पंडित भवनाथ झाक पाण्डुलिपि अध्ययनक काज, विशेष रूप सँ नव पीढ़ीकेँ एहि दिस प्रेरित करबाक काज बहुत महत्वक अछि। एहि दिस समाजमे घटाटोप अन्हार छैक। मिथिलाक अपन लिपि मिथिलाक्षरक ज्ञाता आब बहुत कम लोक बॉंचि रहल छथि। विशेष रूप सँ ओहन विद्वान जिनका संस्कृत पर अधिकार होइन आ मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपिक अध्ययनक सामर्थ्य होइन। मैथिली विषय ओहुना तिरस्कृत रहलीह। मिथिलाक्षर मात्र मैथिली नहि, अपितु संस्कृतक लिपि रहल अछि। जँ मात्र मिथिला रिसर्च इंस्टिच्यूट, कब्राघाट, दरभंगाक संदर्भ लेल जाए त’ ओहि ठाम साढ़े बारह हजार सँ बेसी पाण्डुलिपि संगृहित अछि। एहि पाण्डुलिपि मे मिथिलाक ज्ञान भंडार अछि। मुदा, एहि पाण्डुलिपिमे लिखल चीजक अनुवाद वैह करताह जिनका मिथिलाक्षर लिपिक पाण्डुलिपि पढ़बाक अवगति होइन आ ओ संस्कृतक ज्ञाता सेहो होथि। मणि-कांचन संयोग आवश्यक। एकर अभाव मे मिथिलाक ज्ञानक धुजा ठीक सँ फहरा नहि रहल अछि। मिथिलाक जन-सामान्यक वैश्विक मोजर आई मात्र प्रवासी बोनिहारक रहि गेल अछि। एहि काजमे पंडित भवनाथ झा सनक विद्वान नेतृत्व क’ सकैत छथि। मुदा एहि लेल सरकार आ समाजक सहयोग सेहो चाही। सहयोग त’ दूरक गप्प भेल, असहयोग बेसी अछि।
एक बेर मिथिला शोध संस्थानमे चोरि भेलैक आ चोर किछु पाण्डुलिपि चोरा लेलक। आलमीरा सेहो क्षतिग्रस्त क’ देलक। पुलिस आ सरकार चोर पकड़लक कि नहि, चोरि भेल पाण्डुलिपि ताकि-हेर क’ आपस अनलक कि नहि, ई सब दीगर गप्प अछि। एकर प्रतिफल ई भेलैक जे आब एहि शोध संस्थानक कर्मचारी कोनो पाठक, कोनो शोधार्थीके पाण्डुलिपिक एको टा पन्ना देखेबाक लेल तैयार नहि होइत छथि। हुनका ततेक डर पैसल छनि जे शोधार्थीकेँ ओ चोरक एजेंट मात्र बुझैत छथिन। पाण्डुलिपि आ पुस्तकालयमे सहयोग त’ बहुत दूरक गप्प, दू टप्पी मीठ गप्पो संभव नहि। तखन पंडित भवनाथ झा सनक स्वाभिमानी विशेषज्ञ कोनो काज कोना करताह आ तखन मिथिलाक ज्ञान परम्परामे कोना वृद्धि होयत। सरकारकेँ एहि सब पर ध्यान देबाक चाही। सबसँ पहिने पाण्डुलिपिक सुरक्षाक नीक इंतजाम होए जाहि सँ भविष्यमे पाण्डुलिपि चोरिक कोनो घटना प्रतिवेदित नहि होए। मिथिलाक पाण्डुलिपिक चोर सबपर देशद्रोहक मोकदमा चलायब मोनासिब होयत। पाण्डुलिपि सभक डिजिटाइजेशनक प्रक्रिया आरंभ हेबाक चाही। इंटैक दिस सँ हमरा लोकनि एकर पायलट प्रोजेक्ट केने रही आ एहि संस्थानक किछु पाण्डुलिपिक कंजर्वेशन आ प्रिजर्वेशन करौने रही आ इंटैक अपन पाइ खर्च केने रहए। हमरा लोकनि सरकारकेँ प्रस्ताव देलियैक जे एहि संस्थानक पाण्डुलिपिक प्रिजर्वेशन, कंजर्वेशन होय। सरकार प्रस्ताव मानियो लेलक आ एहि लेल पाइक बियोंत सेहो केलक। मुदा जखन काज करेबाक समय एलैक त’ ई काज बिहार राज्य भवन निर्माण निगम के द’ देल गेलै। बुद्धिजीवी लोकनि सरकारक एहि निर्णयक आलोचना सेहो केलखिन, मुदा ताहि सँ सरकार पर कोनो असरि नहि। कोनो प्रबुद्ध लोक एहि ओझरीमे नहि पड़ चाहैत छथि कारण जँ कोनो पाण्डुलिपिक फेर चोरि हेतै त’ खोजबीन हेतै जे ओहि समयमे के सब ओहि संस्थानमे पढ़' जाइत छलाह। पंडित भवनाथ झा संस्कृत आ मिथिलाक्षरक उद्भट विद्वान छथि, तैं हिनका सँ आशा कएल जा सकैत छैक जे अपन दस-बीस टा चटिया ल’ क’ ई काज अपना हाथ मे लेथि आ महत्वपूर्ण पाण्डुलिपि सभके अनुवाद-प्रकाशन कराबथि। एखन मिथिलाक स्थिति ई अछि जे संस्कृतक सामान्य ज्ञाताक संख्या सेहो अत्यल्प अछि। तखन, संस्कृतक पोथीमे लिखल गंभीर विषयके रुचिगर, सुपाठ्य बनाक’ जनसामान्यक साहित्यमे पसरब, एकटा दुरूह काज सनक अछि। मुदा जँ एहिना समय निकलैत गेलै त’ ई भविष्यक काज बनि क’ रहि जायत। पीढ़ी समाप्त हेबामे 25-30 वर्ष सँ बेसी कहाँ लगैत छैक।
पंडित भवनाथ झाक विद्वता आब जगजियार भ’ गेल अछि। एखन धरि ओ जे काज केलथि, कम नहि छैक। एक व्यक्ति एसकरे एतेक काज आ एतेक तरहक काज क’ रहल छथि। हिनका पर महावीरजीक विशेष कृपा छनि। पंडितजीक पारिवारिक जिम्मेवारीमे सहायता देबाक लेल हिनक सुयोग्य आ यशस्वी पुत्र आब संग छथिन। एहन स्थितिमे आब पंडित भवनाथ झाकेँ अपन काजकेँ पसारबाक समय आबि गेल छनि। हिनका आब समूहमे काज करक चाहियैन। अपन चेला-चेटियाके पैघ आ गंभीर काज करबाक लेल प्रशिक्षित करक चाहियैन। अपन संपर्क आ प्रभावक उपयोग करैत सरकार आ सरकारी अधिकारी केँ परतारबाक चाहियैन जे मिथिलाक काज कतेक पाछॉं छैक। तखने, मिथिलाक विद्वत परम्परा आगॉं बढ़त। जँ पंडितजी एखनो एसकरे काज करैत रहता त’ नीक बात नहि होयत। कारण, जखन सेनापति सिपाही जकॉं युद्ध लड़तै त ओ सेना निश्चित हारि जेतै।
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